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Monday, June 9, 2014

सत्य पर एक नज़र - दो कथाओं के माध्यम से

1. दो सत्यनिष्ठ (संसार की सबसे छोटी बोधकथा)
चोटी पर बैठा सन्यासी चहका, "धूप है"।  तलहटी का गृहस्थ बोला, "नहीं, सर्दी है"।  ऊपर चढ़ते पर्वतारोही ने कहा, "ठंड घट रही है।"
2. निबंध - लघुकथा

बच्चा खुश था। उसने न केवल निबंध प्रतियोगिता में भाग लिया बल्कि इतना अच्छा निबंध लिखा कि उसे कोई न कोई पुरस्कार मिलने की पूरी उम्मीद थी। "एक नया दिन" प्रतियोगिता के आयोजक खुश थे। सारी दुनिया से निबंध पहुँचे थे, प्रतियोगिता को बड़ी सफलता मिली थी। आकलन के लिए निबंधों के गट्ठे के गट्ठे शिक्षकों के पास भेजे गए ताकि सर्वश्रेष्ठ निबंधों को इनाम मिल सके।

परीक्षक जी का हँस-हँस के बुरा हाल था। कई निबंध थे ही इतने मज़ेदार। उदाहरण के लिए इस एक निबंध पर गौर फरमाइए।

दिन निकल आया था। सूरज दिखने लगा। दिखता रहा। एक घंटे, दो घंटे, दस घंटे, बीस घंटे, एक दिन पाँच दिन, दो सप्ताह, चार हफ्ते, एक महीना, दो महीने, ....

शुरुआत से आगे पढ़ा ही नहीं गया, रिजेक्ट करके एक किनारे पड़ी रद्दी की पेटी में डाल दिया।  

उत्तरी स्वीडन के निवासी बालक को यह पता ही न था कि कोई विद्वान उसके सच को कोरा झूठ मानकर पूरा पढे बिना ही प्रतियोगिता से बाहर कर देगा।

हमारे संसार का विस्तार वहीं तक है जहाँ तक हमारे अज्ञान का प्रकाश पहुँच सके।