छः जुलाई १९३५ को जब तिब्बत के एक छोटे से गाँव में ल्हामो धोण्डुप का जन्म हुआ था तब किसे पता था कि यह बालक बड़ा होकर महामहिम दलाई लामा (तेनजिन ग्यात्सो) बनकर संसार भर के करोड़ों लोगों को प्रेम और करुणा के साथ सत्य और अहिंसा की प्रेरणा ही नहीं बनेगा वरन अनेकों लोगों के लिए साक्षात अवतार जैसा मान्य होगा।
यह दलाई लामा का सरल व्यक्तित्व ही है कि वह अपने को तिब्बत, गेलुग परिवार या बौद्ध धर्म तक सीमित न रखकर संपूर्ण विश्व के नागरिक बन सके। १९४९ में चीन द्वारा तिब्बत पर हुए हमले के बाद १९५९ में नेहरू जी की सहायता से दलाई लामा और लाखों शरणार्थियों ने भारत आकर तिब्बत की निर्वासित सरकार का गठन किया। तब से यह सरकार धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में ही स्थापित है। सब जानते हैं कि चीन ने तिब्बत के अलावा सिक्किम, भूटान, लद्दाख और अरुणाचल के क्षेत्रों पर भी अपना दावा किया और इस सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र को हथियाने के प्रयास किए। अंततः सिक्किम और भूटान पर कब्ज़ा न कर पाने की स्थिति में भारत पर हमला भी किया और अंतर्राष्ट्रीय दवाब बनने पर सेना की वापसी भी कर ली परन्तु बलपूर्वक कब्जाए हुए लद्दाखी क्षेत्र अक्साई चिन को नहीं छोड़ा।
मंगोल भाषा में दलाई लामा का अर्थ है ज्ञान का महासागर। यह दलाई लामा का नेतृत्व ही है जिसने तिब्बत में चीनी दमन के ख़िलाफ़ चल रहे आन्दोलन को हिंसक नहीं होने दिया है। चीनी कब्जे में तिब्बत में जनता की खराब स्थिति का शांतिपूर्ण हल ढूँढने के लिए दलाई लामा ने अस्सी के दशक में एक शांति योजना भी प्रस्तुत की। १९८९ में दलाई लामा को शान्ति का नोबेल पुरस्कार मिला और चीन की धमकियों की परवाह किए बिना अनेकों राष्ट्रों ने उन्हें अपने देश के विशिष्ट नागरिक का दर्जा दिया है। उनको अनेकों सम्मान एवं बीसिओं डॉक्टरेट उपाधियां भी मिल चुकी हैं । भारत व अमेरिका के अलावा भी अनेकों विश्व विद्यालय उन्हें प्रवचन के लिए बुलाते रहते हैं। अपनी शांत मुस्कान के लिए प्रसिद्व दलाई लामा पचास से अधिक पुस्तकों के लेखक भी हैं।
यदि उनके जीवन संदेश को गिने-चुने शब्दों में कहना हो तो मैं चुनूंगा - अहिंसा, क्षमा, विश्व-बंधुत्व और नम्रता। दलाई लामा को जन्म दिन मुबारक!