Friday, April 25, 2014

पंप हाउस - इस्पात नगरी से 68

सभी श्रमजीवियों को श्रमदिवस पर शुभकामनायें।
यह पम्पहाउस आज श्रमिकों का श्रद्धांजलिस्थल  है।
इस्पात नगरी पिट्सबर्ग की नदियों के किनारे आज भी स्टील मिलों के अवशेष बिखरे हुए हैं। मोनोङ्गहेला (Monongahela) नदी के किनारे बसा होमस्टेड तो पिट्सबर्ग के इस्पात निर्माण की कहानी का एक ऐतिहासिक अध्याय रहा है। विश्व प्रसिद्ध उद्योगपति एण्ड्र्यू कार्नेगी की कार्नेगी स्टील कंपनी का होमस्टेड कारख़ाना अन्य कारखानों से बेहतर था। इसके श्रमिक भी अधिक कुशल थे और यहाँ नई तकनीक के प्रयोग पर खासा ज़ोर था।

यह भवन हर रविवार को टूअर के लिए खुलता है।

प्रबंधन और कर्मियों की तनातनी लगातार बनी हुई थी जिसके कारण हड़ताल और तालाबंदी भी आम थे। 1889 की हड़ताल के बाद हुए तीन-साला समझौते के फलस्वरूप श्रमिकों के संघ अमलगमेटेड असोसियेशन ऑफ आइरन एंड स्टील वर्कर्स (Amalgamated Association of Iron and Steel Workers) को प्रबंधन द्वारा मान्यता मिली। इसके साथ ही होमस्टेड मिल के कर्मियों का वेतन भी देश के अन्य इस्पात श्रमिकों से बहुत अधिक बढ़ गया। तीन साल बाद करार पूरा होने पर खर्च बचाने को तत्पर मिलमालिक एंड्रयू कार्नेगी, कंपनी के अध्यक्ष हेनरी क्ले फ्रिक के सहयोग से संघ को तोड़ने के प्रयास में जुट गया।

घटना की विवरणपट्टी के पीछे मोनोङ्गहेला नदी पर बना इस्पात का पुरातन रेलपुल

मजदूरों ने तालाबंदी कर दी तो कार्नेगी ने पिंकरटन नेशनल डिटेक्टिव एजेंसी (Pinkerton National Detective Agency) को अपनी मिल का कब्जा लेने के लिए नियुक्त किया। 6 जुलाई 1892 को जब पिंकरटन रक्षकों का पोत मिल के साथ नदी के किनारे लगा तो श्रमिकों ने कड़ा विरोध किया। संघर्ष में सात श्रमिक और तीन रक्षकों की मृत्यु हुई और दर्जनों लोग घायल हुए। दो अन्य श्रमिकों की मृत्यु बाद में हुई। इस घटना के कारण स्थिति पर काबू पाने के लिए किए गए फ्रिक के अनुरोध पर आठ हज़ार से अधिक नेशनल गार्ड घटनास्थल पर पहुँच गए और मिल के साथ पूरी बस्ती को कब्जे में ले लिया। स्थिति नियंत्रण में आ गई।


एक बड़ी सी केतली, नहीं तब की अत्याधुनिक भट्टी


23 जुलाई 1892 को अराजकतावादी (anarchist) अलेक्ज़ेंडर बर्कमेन ने श्रमिकों के खून का बदला लेने के लिए फ्रिक के दफ्तर में घुसकर उसकी गर्दन पर दो गोलियां मारीं और बाद में चाकू से भी कई वार किए। फ्रिक को बचा लिया गया। वह एक हफ्ते में ही अस्पताल से छूटकर काम पर आ गया। बर्कमेन के हमले की वजह से मजदूरों का पक्ष काफी कमजोर पड़ा। उसे 22 वर्ष का कारावास हुआ और नवंबर 1892 तक सभी मजदूरों ने हड़ताल खत्म कर दी। श्रमिक संघ ऐसे समाप्त हुआ कि उसके बाद 1930 में ही वापस अस्तित्व में आ सका।

अपने कलाप्रेम के लिए देश भर में विख्यात फ्रिक को इस घटना के कारण अमेरिका के सबसे घृणित व्यक्ति और सबसे खराब सीईओ (Worst American CEOs of All Time) जैसे नाम दिये गए।

फ्रिक ने अपनी वसीयत में 150 एकड़ ज़मीन और बीस करोड़ (200,000,000) डॉलर का न्यास पिट्सबर्ग पालिका को दान किया। उसकी पत्नी एडिलेड की मृत्यु के बाद उनका कला संग्रहालय भी जनता के लिए खोल दिया गया। 1990 में उनकी पुत्री हेलेन ने उनकी अन्य संपत्ति दान करके पिट्सबर्ग के फ्रिक कला और इतिहास केंद्र (Frick Art and Historical Center) की स्थापना की।   

1892 की हड़ताल और तालाबंदी के स्थल पर आज "मनहाल का पंपहाउस" इस्पात श्रमिकों का स्मारक बनकर खड़ा है। घटनास्थल के कुछ अन्य चित्र यहाँ हैं। प्रत्येक चित्र को क्लिक करके बड़ा किया जा सकता है।


प्रकृति, जल, इस्पात, श्रम, निवेश, तकनीक और इतिहास

इस्पात के पुर्जे आज भी बिखरे हैं

एक पुरानी मिल के अवशेष

आलेख व सभी चित्र: अनुराग शर्मा द्वारा :: Pictures and article: Anurag Sharma

Monday, March 31, 2014

अच्छे ब्लॉग - ज़रूरतों से आगे का जहाँ

नवसंवत्सर प्लवंग/जय, विक्रमी 2071, नवरात्रि, युगादि, गुड़ी पड़वा, ध्वज प्रतिपदा की हार्दिक मंगलकामनाएँ!

अच्छे ब्लॉग के लक्षणों और आवश्यकताओं पर गुणीजन पहले ही बहुत कुछ लिख चुके हैं। इस दिशा में इतना काम हो चुका है कि एक नज़र देखने पर शायद एक और ब्लॉग प्रविष्टि की आवश्यकता ही समझ न आये। लेकिन फिर भी मैं लिखने का साहस कर रहा हूँ क्योंकि कुछ बातें छूट गयी दिखती हैं। जैसा कि शीर्षक से स्पष्ट है, यह बिन्दु किसी ब्लॉग की अनिवार्यता नहीं हैं। मतलब यह कि इनके न होने से आपके ब्लॉग की पहचान में कमी नहीं आयेगी। हाँ यदि आप पहचान और ज़रूरत से आगे की बात सोचने में विश्वास रखते हैं तो आगे अवश्य पढिये। अवलोकन करके अपनी बहुमूल्य टिप्पणी भी दीजिये ताकि इस आलेख को और उपयोगी बनाया जा सके।

प्रकृति के रंग
कृतित्व/क़ॉपीराइट का आदर
हमसे पहले अनेक लोग अनेक काम कर चुके हैं। विश्व में अब तक इतना कुछ लिखा जा चुका है कि हमारी कही या लिखी बात का पूर्णतः मौलिक और स्वतंत्र होना लगभग असम्भव सा ही है। तो भी हर ब्लॉग लेखक को पहले से किये गये काम का आदर करना ही चाहिये। अमूमन हिन्दी ब्लॉग में चित्र आदि लगाते समय यह बात गांठ बान्ध लेनी चाहिये कि हर रचना, चित्र, काव्य, संगीत, फिल्म आदि अपने रचयिताओं एवम अन्य सम्बन्धित व्यक्तियों या संस्थाओं की सम्पत्ति है। अगर आप तुर्रमखाँ समाजवादी हैं भी तो अपना समाजवाद दूसरों पर थोपने के बजाय खुद अपनाने का प्रयास कीजिये, अपने लेखन को कॉपीराइट से मुक्त कीजिये। लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग में इसका उल्टा ही देखने को मिलता है। आश्चर्य की बात है कि अपने ब्लॉग पर कॉपीराइट के बड़े-बड़े नोटिस लगनेवाले अक्सर दूसरों की कृतियाँ बिना आज्ञा बल्कि कई बार बिना क्रेडिट दिये लगाना सामान्य समझते हैं।

विधान/संविधान का आदर
मैं तानाशाही का मुखर विरोधी हूँ, लेकिन अराजकता और हिंसक लूटपाट का भी प्रखर विरोधी हूँ। आप जिस समाज में रहते हैं उसके नियमों का आदर करना सीखिये। मानचित्र लगते समय यह ध्यान रहे कि आप अपने देश की सीमाओं को संविधान सम्मत नक्शे से देखकर ही लगाएँ। हिमालय को खा बैठने को तैयार कम्युनिस्ट चीन के प्रोपेगेंडापरस्त नक्शों के प्रचारक तो कतई न बनें। देश की संस्कृति, परम्पराओं, पर्वों, भाषाओं को सम्मान देना भी हमें आना चाहिए। हिन्दी के नाम पर तमिल, उर्दू या भोजपुरी के नाम पर खड़ी बोली का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं है, यह ध्यान रहे। अपनी नैतिक, सामाजिक, विधिक जिम्मेदारियों का ध्यान रखिए और किसी के उकसावे का यंत्र बनने से बचिए।

सौन्दर्य शिल्प
अ थिंग ऑफ ब्यूटी इज़ अ जॉय फोरेवर। कुछ ब्लॉगों को सुंदर बनाने का प्रयास किया गया है, अच्छी बात है। लेकिन कुछ स्थानों पर सौन्दर्य नैसर्गिक रूपसे मौजूद है। जीवन शैली या विचारधारा के अंतर अपनी जगह हो सकते हैं लेकिन अविनाश चंद्र, संजय व्यास, गौतम राजऋषि, किशोर चौधरी, नीरज बसलियाल, सतीश सक्सेना आदि की लेखनी में मुझे जादू नज़र आता है। एक अलग तरह का जादू सफ़ेद घर, स्वप्न मेरे, और बेचैन आत्मा के शब्द-चित्रों में भी पाता हूँ।

सत्यनिष्ठा
कई बार लोग ईमानदारी की शुद्ध हिन्दी पूछते नज़र आते हैं। उन्हें बता दीजिये कि धर्म-ईमान समानार्थी तो नहीं परंतु समांतर अवश्य हैं। आमतौर पर सत्यनिष्ठा के विकल्प के रूप में प्रयुक्त होने वाला शब्द ईमानदारी का शाब्दिक अर्थ सत्यनिष्ठा, कपटहीनता आदि न होकर अल्लाह में विश्वास और अन्य सभी में अनास्था है। मजहब, भाषा, क्षेत्र, राजनीति, जान-पहचान, रिश्ते-नाते, कर-चोरी, रिश्वत, भ्रष्टाचार, गलत-बयानी आदि के कुओं से बाहर निकले बिना सत्यनिष्ठा को समझ पाना थोड़ा कठिन है। मैं सत्यनिष्ठा  को एक अच्छे ब्लॉग का अनिवार्य गुण समझता हूँ। बिना लाग-लपेट के सत्य को स्पष्ट शब्दों में कहने का प्रयास स्वयं भी करता हूँ, और ऐसे अन्य ब्लॉगों को नियमित पढ़ता भी हूँ जहाँ सत्यनिष्ठा की खुशबू आती है। ऐसे लेखकों से विभिन्न विषयों पर मेरे हज़ार मतभेद हों लेकिन उनके प्रति आदर और सम्मान रहता ही है। घूघूती बासूती, ज्ञानवाणी, लावण्यम-अन्तर्मन, सुज्ञ, मैं और मेरा परिवेश, मयखाना, सच्चा शरणम्, बालाजी, सुरभित सुमन, शब्दों के पंख आदि कुछ ऐसे नाम हैं जिनकी सत्यनिष्ठा के बारे में मैं निश्शङ्क हूँ। (मयखाना ब्लॉग के उल्लेख को मयकशी आदि वृत्तियों का समर्थन न समझा जाये।)

क्षणिक प्रचार महंगा पड़ेगा
हर रोज़ अपने साथी ब्लॉगरों को, भारतीय संस्कृति, पर्वों, शंकराचार्य या मंदिरों को, देश के लोगों या/और संविधान को गालियाँ देना आपको चर्चा में तो ला सकता है लेकिन वह लाईमलाइट क्षणिक ही होगी। तीन अंकों की टिप्पणियाँ पाने वाले कई ब्लॉगर क्षणिक प्रचार के इस फॉर्मूले को अपनाने के बाद से आज तक 2-4 असली और 10-12 स्पैम टिप्पणियों तक सिमट चुके हैं। ठीक है कि कुछ लोग टिप्पणी-आदान-प्रदान की मर्यादा का पालन करते हुए आपके सही-गलत को नज़रअंदाज़ करते रहेंगे लेकिन जैसी कहावत है कि सौ सुनार की और एक लुहार की।

विश्वसनीयता बनी रहे
फेसबुक से कोई सच्चा-झूठा स्टेटस उठाकर उसे अपने ब्लॉग पर जस का तस चेप देना आसान काम है। चेन ईमेल से ब्लॉग पोस्ट बनाना भी हर्र लगे न फिटकरी वाला सौदा है। इससे रोज़ एक नई पोस्ट का इंतजाम तो हो जाएगा। लेकिन सुनी-सुनाई अफवाहों पर हाँजी-हूँजी करने के आगे भी एक बड़ी दुनिया है जहां विश्वसनीयता की कीमत आज भी है और आगे भी रहेगी। झूठ की कलई आज नहीं तो कल तो खुलती ही है। एक बात यह भी है कि जो चेन ईमेल आपके पास आज पहुँची है उसकी काट कई बार पिछले 70 साल से ब्रह्मांड के चक्कर काट रही होती है। बेहतरी इसी में है कि बेसिरपर की अफवाह को ब्लॉग पर पोस्ट करने से पहले उसकी एक्सपायरी डेट देख ली जाय।

विषय-वस्तु अधिकारक्षेत्र
हृदयाघात से मर चुके व्यक्ति के ब्लॉग पर अगर हृदयरोगों को जड़ से समाप्त करने की बूटी बांटने का दावा लिखा मिले तो आप क्या कहेंगे? कुरान या कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो के अनुयायी वेदमंत्रों का अनाम स्रोतों द्वारा किया गया अनर्थकारी अनुवाद छापकर अपने को धर्म-विशेषज्ञ बताने लगें तो कैसे चलेगा? कितने ही लोग नैसर्गिक रूप से बहुआयामी व्यक्तित्व वाले होते हैं। ऐसे लोगों का विषयक्षेत्र विस्तृत होता है। लेकिन हम सब तो ऐसे नहीं हो सकते। अगर हम अपनी विशेषज्ञता और अधिकारक्षेत्र के भीतर ही लिखते हैं तो बात सच्ची और अच्छी होने की संभावना बनी रहती है। अक्सर ही ऐसी बात जनोपयोगी भी होती है।

विषय आधारित लेखन
ब्लॉग लिखने के लिए आपका शायर होना ज़रूरी तो नहीं। अपनी शिक्षा, पृष्ठभूमि, संस्था या व्यवसाय किसी को भी आधार बनाकर ब्लॉग चलाया जा सकता है। हिन्दी में पाककला पर कई ब्लॉग हैं। भ्रमण और यात्रा पर आधारित ब्लॉगों की भी कमी नहीं है। जनोपयोगी विषयों को लेकर भी ब्लॉग लिखे जा रहे हैं। चित्रकारिता, फोटोग्राफी, नृत्य, संगीत, समर-कला, व्याकरण, जो भी आपका विषय है, उसी पर लिखना शुरू कीजिये। कॉमिक्स हों या कार्टून, विश्वास कीजिये, आपके लेखन-विषय के लिए कहीं न कहीं कोई पाठक व्यग्र है। लोग हर विषय पर लिखित सामग्री खोज रहे हैं।

नित-नूतन वैविध्य
कोई कवि है, कोई कहानीकार, कोई लेखक, कोई संवाददाता तो कोई प्रचारक। यदि आप किसी एक विधा में प्रवीण हैं तो उस विधा के मुरीद आपको पढ़ेंगे। लेकिन अगर आपके लेखन में वैविध्य है तो आपके पाठकवृन्द भी विविधता लिए हुए होंगे। विभिन्न प्रकार के पुरस्कारदाता आपको किसी एक श्रेणी में बांधना चाहते हैं। विशेषज्ञता महत्वपूर्ण है लेकिन उसके साथ-साथ भी लेखन में विविधता लाई जा सकती है। और यदि आप किसी एक विधा या विषय से बंधे हुए नहीं हैं, तब तो आपकी चांदी ही चांदी है। रचनाकार पर रोज़ नए लोगों का कृतित्व देखने को मिलता है। आलसी के चिट्ठे में रहस्य-रोमांच से लेकर संस्कृति के गहन रहस्यों की पड़ताल तक सभी कुछ शामिल है। मेरे मन कीकाव्य मंजूषा ब्लॉगों पर कविता, कहानी,आलेख के साथ साथ पॉडकास्ट भी सुनने को मिलते हैं। आप भी देखिये आप नया क्या कर सकते हैं।

सातत्य
यदि आप नियमित लिखते हैं तो पाठक भी नियमित आते हैं। टिप्पणी करें न करें लेकिन नियमित ब्लॉग पढे अवश्य जाते हैं। सातत्य खत्म तो ब्लॉग उजड़ा समझिए। आज जब अधिकांश हिन्दी ब्लॉगर फेसबुक आदि सोशल मीडिया की ओर प्रवृत्त होकर ब्लॉग्स पर अनियमित होने लगे हैं, सातत्य अपनाने वाले ब्लॉग्स चुपचाप अपनी रैंकिंग बढ़ाते जा रहे हैं। उल्लूक टाइम्स, एक जीवन एक कहानी जैसे ब्लॉग निरंतर चलते जा रहे हैं।

कुछ अलग सा
अपना लेखन अक्सर अद्वितीय लगता है। अच्छा लेखन वह है जो पाठकों को भी अद्वितीय लगे। उसमें आपकी जानकारी के साथ-साथ शिल्प, लगन और नेकनीयती भी जुड़नी चाहिए। असामान्य लेखन के लिए लेखन, वर्तनी और व्याकरण के सामान्य नियम जानना और अपनाना भी ज़रूरी है। किसी को खुश (या नाराज़) करने के उद्देश्य से लिखी गई पोस्ट अपनी आभा अपने आप ही खो देती है। इसी प्रकार किसी कहानी में पात्रों के साथ जब लेखक का अहं उतराने लगे तो अच्छी कथा की पकड़ भी कमजोर होने लगती है। किसी गजल या छंद को मात्रा के नियमों की दृष्टि से सुधारना अलग बात है लेकिन आपका लेखन आपके व्यक्तित्व का दर्पण है। उसके नकलीपन को सब न सही, कुछेक पारखी नज़रें तो पकड़ ही लेंगी। कुछ अलग से लेखन के उदाहरण के लिए मो सम कौन, चला बिहारी, शब्दों का डीएनए, उन्मुक्त, और मल्हार को पढ़ा जा सकता है। अलग सा लेखन वही है जिसे अलग सा बनाने का प्रयास न करना पड़े।

निजता का आदर
आपका ब्लॉग आपके व्यक्तित्व का दर्पण है। लोगों की निजता का आदर कीजिये। हो सकता है आप ही सबसे अच्छे हों। सारी कमियाँ आपके साथी लेखकों में ही रही हों। लेकिन अगर आपकी साहित्यिक पत्रिका के हर अंक में आपके एक ऐसे साथी की कमियाँ नाम ले-लेकर उजागर की जाती हैं जो या तो ऑनलाइन नहीं है, या फिर इस संसार में ही नहीं है तो इससे आपके साथियों के बारे में कम, आपके बारे में अधिक पता लगता है। इसी प्रकार जिस अनदेखे मित्र को आप सालगिरह मुबारक करने वाले हैं, हो सकता है वह आज भी उस आदमी को ढूंढ रहा हो, जिसने उसकी सालगिरह की तिथि सार्वजनिक की थी। लोगों की निजता का आदर कीजिये।

ट्रेंडसेटर ब्लॉग्स
अगर हर कोई कविता लिखने लगे, तो ज़ाहिर है कि पाठकों की कमी हो जाएगी। लेकिन अगर हर कोई पत्रिकाओं में छपना चाहे तो अधकचरे संपादकों के भी वारे-न्यारे हो जाएँगे। इसी तरह यदि हर ब्लॉगर किताब लिखना चाहेगा तो प्रकाशकों के ब्लॉग्स के ढूँढे पड़ेंगे। यदि आपका ब्लॉग भीड़ से अलग हटकर है, बल्कि उससे भी आगे यदि वह है जिसकी तलाश भीड़ को है तो समझ लीजिये कि आपने किला फतह कर लिया। इस श्रेणी का एक अनूठा उदाहरण है हमारे ताऊ रामपुरिया का ब्लॉग। मज़ाक-मज़ाक में सामाजिक विसंगतियों पर चोट कर पाना तो उनकी विशेषता है। लेकिन सबसे अलग बात है अपने पाठकों को ब्लॉग में शामिल कर पाना। ब्लॉग की सफलतम पहेली की बात हो, ब्लॉग्स को सम्मानित करने की, या ब्लॉगर्स के साक्षात्कार करने की, ताऊ रामपुरिया का ब्लॉग एक ट्रेंडसेटर रहा है।

बहुरूपियों के पिट्ठू मत बनिए
आपके आसपास बिखरी विसंगतियों को बढ़ा-चढ़ाकर आपकी भावनाओं का पोषण करने वाले मौकापरस्त सौदागरों के शोषण से बचने के लिए लगातार चौकन्ने रहना ज़रूरी है। लिखते समय भी यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि कहीं आपकी भावनाओं का दोहन किसी निहित स्वार्थ के लिए तो नहीं हो रहा है। कितनी ही बहुरूपिया, मजहबी और राजनीतिक विचारधाराओं के एजेंट अपनी असलियत छिपाकर अपने को एक सामान्य गृहिणी, जनसेवक, पत्रकार, शिक्षक, डॉक्टर या वकील जैसे दिखाकर अपनी-अपनी दुकान का बासी माल ठेलने में लगे हुए हैं। ज़रा जांच-पड़ताल कीजिये। विरोध न सही, उनकी धार में बह जाने से तो बच ही सकते हैं। जो व्यक्ति अपनी राजनीतिक या मजहबी प्रतिबद्धता को साप्रयास छिपा रहे हैं, उन्हें खुद अपनी विचारधारा की नैतिकता पर शक है। बल्कि कइयों को तो अपनी विचारधारा की अनैतिकता अच्छी तरह पता है। वे तो भोले ग्राहक को ठगकर अपने घटिया माल को भी महंगे दाम पर बेच लेना चाहते हैं। ऐसे मक्कारों का साथ, मैं तो कभी न दूँ। आप भी खुद बचें, दूसरों को बचाएं। ध्यान रहे कि इस देश में सैकड़ों क्रांतियाँ हो चुकी हैं। बड़े-बड़े कवि, लेखक, साहित्यकार भी मोहभंग के बाद कोने में पड़े टेसुए बहाते देखे गए हैं। उनकी दुर्गति से सबक लीजिये।

मौलिकता - कंटेन्ट इज़ किंग
अनुवादमूलक ब्लॉगस को छोड़ दें तो सार यह है कि आपका मौलिक लेखन ही आपकी विशेषता है। बल्कि, अच्छे अनुवाद में भी मौलिकता महत्वपूर्ण है। हिन्दी के दो बहु-प्रशंसित ब्लॉगों में हिंदीजेन और केरल पुराण शामिल हैं। ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की मानसिक हलचल से अभिषेक ओझा के ओझा-उवाच तक, मौलिकता एक सरस सूत्र है। दूसरों के लेख, कविता, नाम पते, बीमारी या अन्य व्यक्तिगत जानकारी छापकर आप केवल अस्थाई प्रशंसा पा सकते हैं। कुछ वही गति राजनीतिक प्रश्रय, श्रेय पाने, या डाइरेक्टरी बेचकर पैसा कमाने के लिए बांटी गई रेवड़ियों की होती है। चार दिन की चाँदनी, फिर अंधेरी रात। अच्छा लिखिए, सच्चा लिखिए और मौलिक लिखिए, आपका लेखन अवश्य पहचाना जाएगा।

संबन्धित कड़ियाँ
* विश्वसनीयता का संकट
* लेखक बेचारा क्या करे?
* आभासी सम्बन्ध और ब्लॉगिंग

Sunday, March 23, 2014

शहीदत्रयी को श्रद्धांजलि

(अनुराग शर्मा)


1933 में छपा शहीदत्रयी पोस्टर
पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और उनके कई साथियों की फाँसी के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद ने जब हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के पुनर्गठन का बीडा उठाया तब नई संस्था हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन (HSRA = हि.सो.रि.ए.) को पंजाब की ओर से भी सक्रिय योगदान मिला। उस समय लाहौर में लाला लाजपत राय के 'पंजाब नेशनल कॉलेज' में सरदार भगतसिंह, यशपाल, भगवतीचरण वोहरा, सुखदेव थापर, तीर्थराम, झण्डासिंह आदि क्रांतिकारी एकजुट हो रहे थे। सुखदेव थापर ने पंजाब नेशनल कॉलेज में भारत के स्वाधीनता संग्राम के दिशा-निर्देशन के लिए एक अध्ययन मण्डल की स्थापना की थी। भगवतीचरण वोहरा और भगत सिंह नौजवान भारत सभा के सह-संस्थापक थे। भगवतीचरण वोहरा "नौजवान भारत सभा" के प्रथम महासचिव भी थे। हिसोरिए में पंजाब से आने वाले क्रांतिकारियों में उपरोक्त नाम प्रमुख थे।

आज 23 मार्च का दिन शहीदत्रयी यानि सुखदेव, भगतसिंह और राजगुरु के नाम समर्पित रहा है। 1931 में इसी दिन शहीदत्रयी ने फाँसी को गले लगाया था। आइये एक बार फिर उन वीरों के दर्शन करें जिन्होने हमारी व्यक्तिगत, राजनीतिक, धार्मिक स्वतन्त्रता और उज्ज्वल भविष्य की कमाना में अल्पायु में ही अपना सर्वस्व त्याग दिया।

लाला लाजपत राय
8 अप्रैल 1929 को भगतसिंह के साथ असेंबली में बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त को पहले ही आजीवन कारावास घोषित हुआ था। फिर लाहौर षडयंत्र काण्ड में अदालत की बदनीयती के चलते जब यह आशंका हुई कि अंग्रेज़ सरकार शहीदत्रयी को मृत्युदंड देने का मन बना चुकी है तब भाई भगवती चरण वोहरा और भैया चंद्रशेखर आजाद ने मिलकर बलप्रयोग द्वारा उन्हें जेल से छुड़ाने की योजना बनाई। आज़ाद द्वारा भेजे गये दो क्रांतिकारियों और अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर इसी उद्देश्य से बनाए जा रहे शक्तिशाली बमों के परीक्षण के समय 28 मई 1930 को रावी नदी के किनारे हुए एक विस्फोट ने वोहरा जी को हमसे सदा के लिये छीन लिया। भाई भगवतीचरण वोहरा के असामयिक निधन के साथ शहीदत्रयी को जेल से छुड़ने के शक्ति-प्रयास भी मृतप्राय से हो गए।

वोहरा जी की हृदयविदारक मृत्यु के दारुण दुख के बावजूद चन्द्रशेखर आज़ाद ने आशा का दामन नहीं छोड़ा और गिरफ्तार क्रांतिकारियों को छुड़ाने के लिए राजनीतिक प्रयास आरंभ किए। इसी सिलसिले में कॉङ्ग्रेस के नेताओं से मुलाकातें कीं। ऐसी ही एक मुलाक़ात में पंडित नेहरू से तथाकथित बहसा-बहसी के बाद इलाहाबाद के एलफ्रेड पार्क में पुलिस मुठभेड़ का कड़ा मुक़ाबला करने के बाद उन्होने अपनी कनपटी पर गोली मारकर अपने नाम "आज़ाद" को सार्थक किया।
  
राजगुरु
क्रांतिकारियों के बीच राजगुरु नाम से जाने गए इस यशस्वी नायक का पूरा नाम हरि शिवराम राजगुरु है। उनका जन्म 1908 में हुआ था। उस काल के अनेक प्रसिद्ध शहीदों की तरह वे भी चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व वाले हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सम्मानित सदस्य थे। उन्होने साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शनों में पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के साथ भाग लिया था। पंजाब केसरी की हत्या का बदला लेने की गतिविधियों में उनकी उल्लेखनीय प्रस्तुति रही थी। लेकिन उनकी मशहूरी दिल्ली असेंबली बम कांड की शहीदत्रयी में शामिल होने के कारण अधिक हुई क्योंकि इसी घटना के कारण मात्र 23 वर्ष की उम्र में उन्होने हँसते-हँसते मृत्यु का वरण किया।

सुखदेव थापर
15 मई 1907 को जन्मे सुखदेव थापर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के वरिष्ठ और सक्रिय सदस्य थे। वे पंजाब केसरी की हत्या का बदला लेने की गतिविधियों और 1928 के हत्याकांड में भगत सिंह और राजगुरु के सहभागी थे। 1929 में जेल में हुई भूख हड़ताल में भी शामिल थे। सुखदेव ने गांधी जी को एक खुला पत्र भी लिखा था जिसे उनके भाई मथुरादास ने महादेव देसाई को पहुँचाया। था। गांधी जी ने सुखदेव की इच्छा के अनुसार उस पत्र का उत्तर एक जनसभा में दिया था। इन्हीं मथुरादास थापर का विश्वास था कि क्रांतिकारियों का साथी और हिन्दी लेखक यशपाल एक पुलिस मुखबिर था।

सरदार भगतसिंह
पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल की बदनीयती पर ध्यान आकर्षित करने के लिये क्रांतिकारियों के बनाये कार्यक्रम के अनुसार बटुकेश्वर दत्त और भगतसिंह द्वारा सेंट्रल एसेंबली में कच्चा बम फेंकने के बाद भगतसिंह ने घटनास्थल पर ही गिरफ़्तारी दी और इस सिलसिले में बाद में कई अन्य क्रांतिकारियों की गिरफ़्तारी हुई। शहीदत्रयी (राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह) द्वारा न्यायालय में पढ़े जाने वाले बयान "भाई" भगवतीचरण वोहरा द्वारा पहले से तैयार किये गये थे। 23 मार्च 1931 को हँसते-हँसते फांसी चढ़कर भगतसिंह ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में अपना नाम अमर कर दिया।
 
80 दशक के प्रारम्भिक वर्षो से भगतसिंह पर रिसर्च कर रहे उनके सगे भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह के अनुसार भगतसिंह पिस्तौल की अपेक्षा पुस्तक के अधिक करीब थे। उनके अनुसार भगतसिंह ने अपने जीवन में केवल एक बार गोली चलाई थी, जिससे सांडर्स की मौत हुई। उनके अनुसार भगतसिंह के आगरा स्थित ठिकाने पर कम से कम 175 पुस्तकों का संग्रह था। चार वर्षो के दौरान उन्होंने इन सारी किताबों का अध्ययन किया था। पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल की तरह उन्हें भी पढ़ने की इतनी आदत थी कि जेल में रहते हुए भी वे अपना समय पठन-पाठन में ही लगाते थे।

हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में भगत सिंह का कूटनाम "रणजीत" था। कानपुर के "प्रताप" में वे "बलवंत सिंह" के नाम से तथा दिल्ली के "अर्जुन" में "अर्जुन सिंह" के नाम से लिखते थे।

चंद्रशेखर आज़ाद
चन्द्रशेखर आज़ाद असेम्बली में बम फ़ेंकने के पक्ष में नहीं थे परंतु हिसोरिए के प्रमुख सेनापति होने के बावजूद उन्होंने अपने साथियों की इच्छा को माना। तब भी वे बम फेंककर गिरफ़्तार हो जाने के विरोधी रहे और असेम्बली के बाहर कार लेकर क्रांतिकारियों का इंतज़ार भी करते रहे थे। काश उनके साथी उनकी बात मान लेते!


अमर हो स्वतन्त्रता