(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)
सदा खिलाया औरों को
खुद खाना सीखो दादी माँ
सबको देते उम्र कटी
अब पाना सीखो दादी माँ
थक जाती हो जल्दी से
अब थोड़ा सा आराम करो
चुस्ती बहुत दिखाई अब
सुस्ताना सीखो दादी माँ
रूठे सभी मनाये तुमने
रोते सभी हँसाये तुमने
मन की बात रखी मन में
बतलाना सीखो दादी माँ
दिन छोटा पर काम बहुत
खुद करने से कैसे होगा
पहले कर लेती थीं अब
करवाना सीखो दादी माँ
हम बच्चे हैं सभी तुम्हारे
जो चाहोगी वही करेंगे
मानी सदा हमारी अब
मनवाना सीखो दादी माँ
Friday, March 29, 2019
Thursday, March 14, 2019
सत्य - लघु कविता
(अनुराग शर्मा)
सत्य नहीं कड़वा होता
कड़वी होती है कड़वाहट
पराजय की आशंका और
अनिष्ट की अकुलाहट
सत्यासत्य नहीं देखती
मन पर हावी घबराहट
कड़वाहट तो दूर भागती
सुनते ही सत्य की आहट
सत्य नहीं कड़वा होता
कड़वी होती है कड़वाहट
पराजय की आशंका और
अनिष्ट की अकुलाहट
सत्यासत्य नहीं देखती
मन पर हावी घबराहट
कड़वाहट तो दूर भागती
सुनते ही सत्य की आहट
Saturday, March 2, 2019
लघुकथा: असंतुष्ट
दबे-कुचले, दलितों में भी अति-दलित वर्ग के उत्थान के सभी प्रयास असफल होते गये। शिक्षा में सहूलियतें दी गईं तो ग़रीबी के कारण वे उनका पूरा लाभ न उठा सके। फिर आरक्षण दिया गया तो बाहुबली ज़मींदारों ने लट्ठ से उसे झटक लिया। व्यवसाय के लिये ऋण दिये तो भी कहीं अनुभव की कमी, कहीं ठिकाने की - कुछ न कुछ ऐसा हुआ कि अति-दलित वर्ग समाज के सबसे निचले पायदान पर ही रहा। अन्य सभी जातियाँ, मज़हब, और वर्ग उनके व्यवसाय को हीन समझते रहे।
मेरा शिक्षित और सम्पन्न, लेकिन असंतुष्ट मित्र फत्तू अति-दलितों की चिंता जताकर हर समय सरकार की शिकायत करता था। फिर एक दिन ऐसा हुआ कि सरकार बदल गयी। नया प्रशासक बड़े क्रांतिकारी विचारों वाला था। उसने बहुत से नये-नये काम किये। यूँ कहें कि सबको हिला डाला।
पहले वाले प्रशासक तो हवाई जहाज़ से नीचे कदम ही नहीं रखते थे। इस प्रशासक ने अति-दलित वर्ग के कर्मियों के साथ जाकर नगर के मार्गों पर झाड़ू लगाई, साफ़-सफ़ाई की।
मेरा असंतुष्ट मित्र फ़त्तू बोला, “पब्लिसिटी है, अखबार में फ़ोटो छपाने को किया है। झाड़ू लगाने में क्या है? अरे, उनके चरण पखारे तब मानूँ ...”
इत्तेफाक़ ऐसा हुआ कि कुछ दिन बाद प्रशासक ने सफ़ाईकर्मियों के मुहल्ले में जाकर उनके चरण भी धो डाले।
मैंने कहा, “फ़त्तू, अब तो तेरे मन की हो गई। अब खुश?”
फतू मुँह बिसूरकर बोला, “पैर धोने में क्या है, उनका चरणामृत पीता, तो मानता।”
सभी दोस्त हँसने लगे। मैंने कहा, "फत्तू, तू भी न, कमाल है।"
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