Saturday, April 9, 2011

घर और बाहर - लघुकथा

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" ... ऊँच-नीच से ऊपर उठे बिना क्रांति नहीं आयेगी। ... मैं और मेरा, यह सब पूंजीपतियों के चोंचले हैं। ... धर्म अफीम है। ... शादी, विवाह, परिवार जैसी रस्में हमें बान्धने के लिये, हमारी सोच को कुंद करने के लिये पिछड़े, धर्मभीरु समाजों ने बनाई थीं। ... अपना घर फूंककर हमारे साथ आइये।"

कामरेड का ओजस्वी भाषण चल रहा था। उनके चमचे जनता को विश्वास दिला रहे थे कि क्रांति दरवाज़े तक तो आ ही चुकी है। जिस दिन इलाके के स्कूल, कारखाने, थाने, और इधर से गुज़रने वाली ट्रेनों को आग लगा दी जायेगी, क्रांति का प्रकाश उसी दिन उनके जीवन को आलोकित कर देगा।

भाषण के बाद जब कामरेड अपनी कार तक पहुँचे तो देखा कि उनके नौकर एक अधेड़ को लुहूलुहान कर रहे थे।

"क्या हुआ?" कामरेड ने पूछा।

"हुज़ूर, चोरी की कोशिश में था ... शायद।"

"तेरी ये हिम्मत, जानता नहीं कार किसकी है?" कामरेड ने ज़मीन पर तड़पते हुए अधेड़ को एक लात लगाते हुए कहा और अपने काफिले के साथ निकल लिये। उनका समय कीमती था।

उस सर्द रात के अगले दिन एक स्थानीय अखबार के एक कोने में एक लावारिस भिखारी सड़क पर मरा पाया गया। दो भूखे अनाथ बच्चों पर अखबार की नज़र अभी नहीं पडी है क्योंकि वे अभी भी जीवित हैं।

मंत्री जी कमिश्नर से कह रहे थे, "कोई लड़का बताओ न! अपने कामरेड जी की बेटी के लिये। दहेज़ खूब देंगे, फैक्ट्री लगा देंगे, एनजीओ खुला देंगे। उत्तर-दक्षिण, देश-विदेश कहीं से भी हो शर्त बस एक है, लडका ऊँची जाति का होना चाहिये।"

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ऑडियो प्रस्तुतियाँ - आपके ध्यानाकर्षण के लिये
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उपाय छोटा काम बड़ा
बांधों को तोड़ दो
कमलेश्वर की "कामरेड"

Monday, April 4, 2011

नव सम्वत्सर शुभ हो!

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कमाल का राष्ट्र है अपना भारत। ब्राह्मी से नागरी तक की यात्रा में पैशाची आदि न जाने कितनी ही लिपियाँ लुप्त हो गयीं। आश्चर्य नहीं कि आज भारतभूमि तो क्या विश्व भर में कोई विद्वान सिन्धु-सरस्वती सभ्यता की मुहरों को निर्कूट नहीं कर सके हैं। हड़प्पा की लिपि तो बहुत दूर (कुछ सहस्र वर्ष) की बात है, एक महीना पहले जब विष्णु बैरागी जी ने "यह कौन सी भाषा है" पूछा था तो ब्लॉग-जगत की विद्वत्परिषद बगलें झाँक रही थी। जबकि वह भाषा मराठी आज भी प्रचलित है और वह लिपि मोड़ी भी 40 वर्ष पहले तक प्रचलित थी।

आज भले ही हम गले तक आलस्य, लोभ और भ्रष्टाचार में डूबे पड़े हों, एक समय ऐसा था कि हमारे विचारक मानव-मात्र के जीवन को बेहतर बनाने में जुटे हुए थे। लम्बे अध्ययन और प्रयोगों के बाद भारतीय विद्वानों ने ऐसी दशाधारित अंक (0-9) पद्धति की खोज की जो आज तक सारे विश्व में चल रही है। भले ही अरबी-फारसी दायें से बायें लिखी जाती हों, परंतु अंक वहाँ भी हमारे ही हैं, हमारे ही तरीके से लिखे जाते हैं, और हिंदसे कहलाते हैं।

जब धरा के दूसरे भागों में लोग नाक पोंछना भी नहीं जानते थे भारत में नई-नई लिपियाँ जन्म ले रही थीं, और कमी पाने पर सुधारी भी जा रही थीं। निश्चित है कि उनमें से अनेक अल्पकालीन/अस्थाई थीं और शीघ्र ही काल के गाल में समाने वाली थीं। आश्चर्य की बात यह है कि नई और बेहतर लिपियाँ आने के बाद भी अनेकों पुरानी लिपियाँ आज भी चल रही हैं, भले ही उनके क्षेत्र सीमित हो गये हों।

भारत की यह विविधता केवल लेखन-क्रांति में ही दृष्टिगोचर होती हो, ऐसा नहीं है, कालगणना के क्षेत्र में भी हम लाजवाब हैं। लिपियों की तरह ही कालचक्र पर भी प्राचीन भारत में बहुत काम हुआ है। जितने पंचांग, पंजिका, कलैंडर, नववर्ष आपको अकेले भारत में मिल जायेंगे, उतने शायद बाकी विश्व को मिलाकर भी न हों। भाई साहब ने भारतीय/हिन्दू नववर्ष की शुभकामना दी तो मुझे याद आया कि अभी दीवाली पर ही तो उन्होंने ग्रिगेरियन कलैंडर को धकिया कर हमें "साल मुबारक" कहा था।

आज आरम्भ होने वाला विक्रमी सम्वत नेपाल का राष्ट्रीय सम्वत है। वैसे ही जैसे "शक शालिवाहन" भारत का राष्ट्रीय सम्वत है। वैसे तमिलनाडु के हिन्दू अपना नया साल सौर पंचांग के हिसाब से तमिल पुत्तण्डु, विशु पुण्यकालम के रूप में या थईपुसम के दिन मनाते हैं। इसी प्रकार जैन सम्वत्सर दीपावली को आरम्भ होती है। सिख समुदाय परम्परागत रूप से विक्रम सम्वत को मानते थे परंतु अब वे सम्मिलित पर्वों के अतिरिक्त अन्य सभी दैनन्दिन प्रयोग के लिये कैनैडा में निर्मित नानकशाही कलैंडर को मानने लगे हैं। युगादि का महत्व अन्य सभी नववर्षों से अधिक इसलिये माना जाता है क्योंकि आज ही के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि-सृजन किया था, ऐसी मान्यता है।

आज का दिन देश के विभिन्न भागों में गुड़ी पडवो, युगादि, उगादि, चेइराओबा (चाही होउबा), चैत्रादि, चेती-चाँद, बोहाग बिहू, नव संवत्सर आदि के नाम से जाना जाता है। यद्यपि उत्सव का दिन प्रचलित सम्वत और उसके आधार (सूर्य/शक/मेष संक्रांति या चन्द्रमा/सम्वत/चैत्र शुक्ल प्रतिपदा या दोनों) पर इधर-उधर हो जाता है। भारत और नेपाल में शक और विक्रमी सम्वत के अतिरिक्त भी कई पंचांग प्रचलित हैं। आज के दिन पंचांग और वर्षफल सुनने का परम्परागत महत्व रहा है। मुझे तो आज सुबह अमृतवेला में काम पर निकलना था वर्ना हमारे घर में आज के दिन विभिन्न रसों को मिलाकर बनाई गई "युगादि पच्चड़ी" खाने की परम्परा है।
हर भारतीय संवत्सर का एक नाम होता है और उस कालक्षेत्र का एक-एक राजा और मंत्री भी। संवत्सर के पहले दिन पड़ने वाले वार का देवता/नक्षत्र संवत्सर का राजा होता है और वैसाखी के दिन पड़ने वाले वार का देवता/नक्षत्र मंत्री होता है।
यही नव वर्ष गुजरात के अधिकांश क्षेत्रों में दीपावली के अगले दिन बलि प्रतिपदा (कार्तिकादि) के दिन आरम्भ होगा। जबकि काठियावाड़ के कुछ क्षेत्रों में आषाढ़ादि नववर्ष भी होगा। सौर वर्ष का नव वर्ष वैशाख संक्रांति (बैसाखी) के अनुसार मनाया जाता है और यह 14 अप्रैल 2011 को होगा। नव वर्ष का यह वैसाख संक्रांति उत्सव उत्तराखंड में बिखोती, बंगाल में पोइला बैसाख, पंजाब में बैसाखी, उडीसा में विशुवा संक्रांति, केरल में विशु, असम में बिहु और तमिलनाडु में थइ पुसम के नाम से मनाया जाता है। श्रीलंका, जावा, सुमात्रा तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों कम्बोडिआ, लाओस, थाईलैंड में भी संक्रांति को नववर्ष का उल्लास रहता है। वहाँ यह पारम्परिक नव वर्ष सोंग्रन या सोंक्रान के नाम से आरम्भ होगा।        

भारतीय सम्वत्सर साठ वर्ष के चक्र में बन्धे हैं और इस तरह विक्रम सम्वत के हर नये वर्ष का अपना एक ऐसा नाम होता है जो कि साठ वर्ष बाद ही दोहराया जाता है। साठ वर्ष का चक्र ब्रह्मा,विष्णु और महेश देवताओं के नाम से तीन बीस-वर्षीय विभागों में बँटा है। दक्षिण भारत (तेलुगु/कन्नड/तमिल) वर्ष के हिसाब से इस संवत का नाम खर है। जबकि आज आरम्भ होने वाला विक्रम सम्वत्सर उत्तर भारत में क्रोधी नाम है। (उत्तर भारत के विक्रम संवतसर के नाम के लिये अमित शर्मा जी का धन्यवाद)

अनंतकाल से अब तक बने पंचांगों के विकास में विश्व के श्रेष्ठतम मनीषियों की बुद्धि लगी है। युगादि उत्सव अवश्य मनाइये परंतु साथ ही यदि अन्य भारतीय (सम्भव हो तो विदेशी भी) मनीषियों द्वारा मानवता के उत्थान में लगाये गये श्रम को पूर्ण आदर दे सकें तो हम सच्चे भारतीय बन सकेंगे। अपना वर्ष हर्षोल्लास से मनाइये परंतु कृपया दूसरे उत्सवों की हेठी न कीजिये।

आप सभी को सप्तर्षि 5087, कलयुग 5113, शक शालिवाहन 1933, विक्रमी 2068 क्रोधी/खरनामसंवत्सर की मंगलकामनायें!

साठ संवत्सर नाम

१. प्रभव
२. विभव
३. शुक्ल
४. प्रमुदित
५. प्रजापति
६. अग्निरस
७. श्रीमुख
८. भव
९. युवा
१०. धाता
११. ईश्वर
१२. बहुधान्य
१३. प्रमादी
१४. विक्रम
१५. विशु
१६. चित्रभानु
१७. स्वभानु
१८. तारण
१९. पार्थिव
२०. व्यय

२१. सर्वजित
२२. सर्वधर
२३. विरोधी
२४. विकृत
२५. खर
२६. नंदन
२७. विजय
२८. जय
२९. मन्मत्थ
३०. दुर्मुख
३१. हेवलम्बी
३२. विलम्ब
३३. विकारी
३४. सर्वरी
३५. प्लव
३६. शुभकृत
३७. शोभन
३८. क्रोधी
३९. विश्ववसु
४०. प्रभव

४१. प्लवंग
४२. कीलक
४३. सौम्य
४४. साधारण
४५. विरोधिकृत
४६. परिद्व
४७. प्रमादिच
४८. आनंद
४९. राक्षस
५०. अनल
५१. पिंगल
५२. कलायुक्त
५३. सिद्धार्थी
५४. रौद्र
५५. दुर्मथ
५६. दुन्दुभी
५७.रुधिरोदगारी
५८.रक्ताक्षी
५९. क्रोधन
६०. अक्षय
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* भारतीय काल गणना
* वर्ष और संवत्सर
* खरनाम सम्वत्सर पंचांग ऑनलाइन
* राष्ट्रीय नववर्ष - श्री शालिवाहन शक सम्वत 1933

Sunday, April 3, 2011

अनामी बेनामी गुमनामी ज़रा बच के रहें

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसे पसन्द नहीं है? ब्लॉगिंग हम सबका पसन्दीदा प्लैटफॉर्म शायद इसीलिये है कि इसमें अपने विचारों को निर्बन्ध प्रस्तुत किया जा सकता है। और जहाँ तक सम्भव है, अधिकांश ब्लॉगर्स इस स्वतंत्रता का पूर्ण लाभ उठा रहे हैं। परंतु जैसी कि कहावत है, अधिकार के साथ ज़िम्मेदारी भी बंधी होती है। हमारे अन्य कर्मों की तरह, हम क्या लिखते हैं इसकी पूरी ज़िम्मेदारी भी हमारी ही रहेगी।

सच तो यह है कि हमारे ब्लॉग की पूरी ज़िम्मेदारी हमारी ही है। मतलब यह कि हमारी पोस्ट्स के अलावा भी जो कुछ भी हमारे ब्लॉग पर लिखा जाता है उसकी ज़िम्मेदारी भी काफी हद तक हमारी ही है।

यदि हमारे ब्लॉग की विषय-वस्तु मर्यादित नहीं है या वयस्क-उन्मुख है तो हमें अपने ब्लॉग का समुचित वर्गीकरण करना चाहिये। ब्लॉग पर दिखने वाले लिंक, विज्ञापन, फ़ॉलोवर आदि के द्वारा भी कुछ लोग गन्दगी छोड सकते हैं अतः इन सबका नियमित अवलोकन और सफ़ाई आवश्यक है। यद्यपि मॉडरेशन से खफा होने वाले ब्लॉगरों की संख्या काफी है परंतु टिप्पणियों और फ़ोलोवर लिस्ट में छोडे गये स्पैम या अमर्यादित विज्ञापनों/कडियों से बचने के लिये मॉडरेशन सर्वश्रेष्ठ साधन है।

कई लोग जो अपने सेवा-नियमों या अन्य कारणों से अपनी असली पहचान छिपाकर ब्लॉगिंग कर रहे हैं उन्हें भी यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि पहचान छिपाने भर से उनकी ज़िम्मेदारी कम नहीं होती। यदि वे लिखने के लिये अनधिकृत हैं तो छद्मनाम होकर भी अनधिकृत ही हैं। साथ ही गलत लिखने का उत्तरदायित्व भी लेखक पर रहेगा ही, नाम असली हो या नक़ली। यह दुनिया आभासी हो सकती है लेकिन याद रहे कि इसकी हर रचना के पीछे एक वास्तविक व्यक्ति छिपा है।

एक और मुद्दा है बेनामी, अनामी, गुमनामी, ऐनोनिमस टिप्पणियों का। बेनामी और छद्मनामी ब्लॉग्स की सामग्री की तरह ही ऐसी टिप्पणियों की सामग्री के लिये भी इसके लेखक ज़िम्मेदार हैं। यदि आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग सभ्यता के साथ कर रहे हैं तब शायद इस बात से कोई अंतर नहीं पडता कि आपका नाम सामने है या नहीं। लेकिन यदि आप कुछ ऊलजलूल आक्षेप लगा रहे हैं, किसी की बेइज़्ज़ती कर रहे हैं, अश्लील भाषा का प्रयोग कर रहे हैं या किसी भी प्रकार से क़ानून का उल्लंघन कर रहे हैं तो अपना नाम छिपाने के बावज़ूद आपके कुकृत्य की पूरी ज़िम्मेदारी आप की ही है। आपकी आज़ादी वहीं समाप्त हो जाती है जहाँ दूसरे व्यक्ति का नाम शुरू होता है। राहज़नी करते समय नक़ाब लगाने से अपराध की गम्भीरता कम नहीं होती है।

हो सकता है कि जीवन में एक बार ऐसा अपराध करने वाला बच भी जाये, मगर आदतन बदमाशी करने वाले सावधान रहें क्योंकि आदमी हों या नारी, उनकी पहचान और पकड कहीं आसान है। 2007 में विस्कॉंसिन के एक अध्यापक की गिरफ्तारी ऐसा ही एक चर्चित उदाहरण है। कई बडी हस्तियों का मानना है कि इंटरनैट पत्रकारिता भी समय के साथ परिपक्व हो रही है और अब समय आ गया है कि असभ्य टीका-टिप्पणियों पर अंकुश लगे। बेनामी हो या नामी, सभ्यता तो किसी भी युग की आवश्यकता है। क्या कहते हैं आप?

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कुछ सम्बन्धित कडियाँ अंग्रेज़ी में
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बेनामी टिप्पणियों पर न्यूयॉर्क टाइम्स का एक आलेख
उत्तरदायित्व अभियान
बेनामी भडास के दिन पूरे