Monday, November 12, 2012

भारतीय संस्कृति के रखवाले

दीवाली के मौके पर यहाँ पिट्सबर्ग में एक भारतीय समारोह में जाना पड़ा। मेरी आशा के विपरीत दीये और मिठाई कहीं नज़र नहीं आयी। अलबत्ता शराब व कबाब काफ़ी था। कहने को शबाब भी था मगर मेकअप के नीचे छटपटा सा रहा था।

बहुत से लोगों से मुलाक़ात हुई। नवीन जी भी उन्हीं में से थे। दारु का गिलास उठाये कुछ चलते, कुछ झूमते, कुछ उड़ते और कुछ छलकते हुए से वे मेरे साथ की सीट पर संवर गए। अब साथ बैठे हैं तो बात भी करेंगे ही। पहले औपचारिकताएँ हुईं। मौसम, खेल, व्यवसाय, परिवार से गुज़रते हुए हम बड़ी बड़ी बातों तक पहुँचे। विदेश में बसे कुछ भारतीयों के लिए बड़ी बात का मतलब है उस मातृभूमि की फ़िक्र का ज़िक्र जिसके लिए हमने कभी अपनी जिंदगी से न एक पल दिया और न एक धेला ही।

वे पूछने लगे कि अगर मैं इसी शहर में रहता हूँ तो फ़िर कभी उन्हें मन्दिर में क्यों नहीं दिखता। मैंने अंदाज़ लगाकर बताया कि शायद हमारे मन्दिर जाने के दिन और समय अलग अलग रहे हों। वैसे भी भक्ति और पूजा मेरे लिए एक व्यक्तिगत विषय है और मेरी मन्दिर यात्रायें नियमित भी नहीं हैं। मेरी बात उनको अच्छी नहीं लगी।

"तो अपने बच्चों को हिन्दी नहीं सिखायेंगे क्या?" झूमते हुए उन्होंने अपना गिलास मुझपर लगभग उड़ेल ही दिया।

"मेरे बच्चे हिन्दी, ही नहीं बल्कि और भी भारतीय भाषायें अच्छी तरह जानते हैं। वे तो हिन्दी सिखा भी सकते है" मैंने खुश होकर उन्हें बताया।

"सवाल केवल भाषा का नहीं है।" उन्होंने मेरी मूर्खता पर हँसते हुए कहा, "अमेरिका में भारतीय संस्कृति को भी तो ज़िंदा रखना है ..."

अपने इस कथन को वे शायद ही सुन पाए होंगे क्योंकि इसे पूरा करने से पहले ही वे टुन्न हो गए। वे सोफा पर और भरा हुआ गिलास कालीन पर लोटने लगा। मैं समझ गया कि अमेरिका में उनकी भारतीय संस्कृति को कोई ख़तरा नहीं है।

आप सभी को, मित्रों और परिजनों के साथ दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएं! 
पिट्सबर्ग का एक दृश्य

 [मूल आलेख: अनुराग शर्मा; शनिवार २१ जून २००८]

Saturday, November 3, 2012

तूफ़ान, बर्फ और उत्सव - इस्पात नगरी से [61]

भारतीय पर्व पितृपक्ष की याद दिलाने वाला हैलोवीन पर्व गुज़ारे हुए कुछ समय हुआ लेकिन हाल में आये भयंकर तूफ़ान सैंडी के कारण अधिकाँश बस्तियों ने उत्सव का दिन टाल दिया था। हमारे यहाँ यह उत्सव आज मनाया गया। खूबसूरत परिधानों में सजे नन्हे-नन्हे बच्चे घर घर जाकर "ट्रिक और ट्रीट" कहते हुए कैंडी मांग रहे थे। विभिन्न स्कूलों व कार्यालयों में यह उत्सव कल या परसों बनाया गया था जब सभी बड़े और बच्चे तरह तरह के भेस बनाए हुए टॉफियों के लेनदेन में व्यस्त थे। आसपास से कुछ चित्रों के साथ आपको हैलोवीन की शुभकामनाएं!



 सैंडी तूफ़ान ने अमेरिका के न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी समेत कुछ क्षेत्रों में काफ़ी तबाही मचाई और अमेरिका के सबसे बड़े नगर का कामकाज बिलकुल रोक दिया। इसका असर हमारे यहाँ भी हुआ। हफ्ते भर चलने वाली बरसात के साथ-साथ आसपास के कुछ क्षेत्रों में समयपूर्व हिमपात देखने को मिला। आपके लिए एक हिमाद्री क्लिप एक नज़दीकी राजमार्ग से:

सम्बंधित कड़ियाँ
* हैलोवीन - प्रेतों की रात्रि [२०११]
* प्रेतों का उत्सव [२००९]
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला

[वीडियो व चित्र अनुराग शर्मा द्वारा]

Tuesday, October 23, 2012

दशहरे के बहाने दशानन की याद


नवरात्रि के नौ दिन भले ही देवी और श्रीराम के नाम हों, दशहरा तो महर्षि विश्रवा पौलस्त्य और कैकसी के पुत्र महापंडित रावण ने मानो हर ही लिया है। और हो भी क्यों न? इसी दिन तो अपने अंतिम क्षणों में श्रीराम के अनुरोध पर गुरु बनकर रावण ने दशरथ पुत्रों को आदर्श राज्य की शिक्षा दी थी। दैवी धन के संरक्षक और उत्तर दिशा के दिक्पाल कुबेर रावण महाराज के अर्ध-भ्राता थे। कुछ कथाओं के अनुसार सोने की लंका और पुष्पक विमान कुबेर के ही थे परंतु बाद में पिता की आज्ञा से वे इन्हें रावण को देकर उत्तर की ओर चले गये और अल्कापुरी में अपनी नयी राजधानी बनायी।

भारतीय ग्रंथों में रावण जैसे गुरु चरित्र बहुत कम हैं। वीणावादन का उस्ताद माना जाने वाला रावण सुरुचि सम्पन्न सम्राट था। वह षड्दर्शन और वेदत्रयी का ज्ञाता है। जैन विश्वास है कि वह अलवर के रावण पार्श्वनाथ मन्दिर में नित्य पूजा करता था। कैलाश-मानसरोवर क्षेत्र का राक्षस-ताल उसके भार से बना माना जाता है। कैलाश पर्वत पर पडी क्षैतिज रेखायें रावण द्वारा इस पर्वत को शिव सहित लंका ले जाने के असफल प्रयास के चिह्न हैं। ब्रह्मज्ञान उसके जनेऊ की फांस में बन्धा है। फिर वह राक्षस कैसे हुआ? उसके नारे "वयम रक्षामः" को भारतीय तट रक्षकों ने अपने नारे के रूप में अपनाया है। यह नारा ही राक्षस वंश की विशेषताओं को दर्शाने के लिये काफी है। ध्यान से देखने पर इस नारे में दो बातें नज़र आती हैं - एक तो यह कि राक्षस अपनी रक्षा स्वयम कर सकने का गौरव रखते हैं और दूसरी अंतर्निहित बात यह भी हो सकती है कि राक्षसों को अपनी शक्ति, सम्पन्नता और पराक्रम का इतना दम्भ है कि वे अपने को ही सब कुछ समझते हैं। याद रहे कि राक्षस, दानवों और दैत्यों से अलग हैं।

ऐसा कहा जाता है कि रावण ने काव्य के अतिरिक्त ज्योतिष और संगीत पर ग्रंथ लिखे हैं। रावण की कृतियों में आज "शिव तांडव स्तोत्र" सबसे प्रचलित है। मुझे छन्द का कोई ज्ञान नहीं है फिर भी केवल अवलोकन मात्र से ही आदि शंकराचार्य की कई रचनायें इसी छन्द का पालन करती हुई दिखती हैं। रावण के वयम रक्षामः में ईश्वर की सहायता के बिना अपनी रक्षा स्वयम करने का दम्भ उसके सांख्य-धर्मी होने की ओर भी इशारा करती है। हमारे परनाना के परिवार के सांख्यधर होने के कारण "रावण के खानदानी" होने का मज़ाकिया आक्षेप मुझे अभी भी याद है। सांख्यधर शब्द ही बाद में संखधर, शंखधार और शकधर आदि रूपों में परिवर्तित हुआ। वयम रक्षामः से पहले, कुवेर के शासन में लंका का नारा वयम यक्षामः था जिसमें यक्षों की पूजा-पाठ की प्रवृत्ति का दर्शन होता है जोकि राक्षस जीवन शैली के उलट है।

दूसरी ओर भगवान राम द्वारा लंकेश के विरुद्ध किये जा रहे युद्ध में अपनी विजय के लिये सेतुबंध रामेश्वर में महादेव शिव की स्तुति के समय का यज्ञ व प्राण-प्रतिष्ठा में वेदमर्मज्ञ पंडित रावण को बुलाना और अपने ही विरुद्ध विजय का आशीर्वाद रामचन्द्र जी को देने के लिये रामेश्वरम् आना निःशंक रावण की नियमपरायणता और धार्मिक निष्पक्षता का प्रमाण है।

मथुरा (मधुरा, मधुवन, मधुपुरी) के राजा मधु (मधु-कैटभ वाला) से रावण की बहिन कुम्भिनी का विवाह हुआ था। इसी कुम्भिनी और भाई कुम्भकर्ण के नाम पर दक्षिण के नगर कुम्भाकोणम का नामकरण हुआ माना जाता है। मध्य प्रदेश के मन्दसौर नाम का सम्बन्ध मन्दोदरी से समझा जाता है। यहाँ शहर से बाहर रावण की मूर्ति बनी है और रावण दहन नहीं होता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बिसरख ग्राम (ग्रेटर नॉएडा) रावण के पिता ऋषि विश्रवा से सम्बन्धित समझा जाता है। खरगोन (Khargone) नगर भी खर (खर दूषण वाला खर) का क्षेत्र है। खरगोन से 55 किलोमीटर दूर सिरवेल महादेव मन्दिर की प्रसिद्धि इसलिये है कि यहाँ पर रावण ने अपने दशानन महादेव को अर्पित किये थे। जोधपुर/मंडोर क्षेत्र के कुछ ब्राह्मण (दवे कुल/श्रीमाली समाज) अपने को रावण का वंशज मानते हैं। जोधपुर के अमरनाथ महादेव मन्दिर में रावण की प्राण प्रतिष्ठा का विश्व हिन्दू परिषद द्वारा विरोध एक खबर बना था। पता नहीं चला कि बाद में प्रशासन ने क्या किया। यदि किसी को इस बारे में वर्तमान स्थिति की जानकारी है तो कृपया बताइये। मौरावा के लंकेश्वर महादेव का रावण दशहरे पर भी नहीं मरता है। सिंहासन पर बैठे राजा रावण की यह सात मीटर ऊँची प्रस्तर मूर्ति अब तक 200 से अधिक दशहरे देख चुकी है और इसकी नियमित पूजा-अर्चना होती है। विदिशा के रावणग्राम में भी नियमित रावण-पूजा होती है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित प्राचीन धार्मिक तीर्थ बैजनाथ में भी विजया दशमी को रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। कानपुर निवासी तो शायद दशहरे पर शिवाला के दशानन मन्दिर में रावण के दर्शन कर रहे होंगे।

कभी कभी, एक प्रश्न मन में उठता है - श्रीराम ने एक रावण का वध करने पर उस हिंसा का प्रायश्चित भी किया था। हम हर साल रावण मारकर कौन सा तीर मार रहे हैं?

आप सभी को दुर्गापूजा और दशहरे की शुभकामनायें। पाप का नाश हो धर्म का कल्याण हो और हम समाज और संसार को काले सफेद में बाँटने के बजाये उसे समग्र रूप में समझने की चेष्टा करें।

शुभमस्तु!



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(17 अक्टूबर 2010)