Monday, February 15, 2010

नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे [1]

लगता है कि एक विनम्र निवेदन लगाना ही पडेगा - मनोविज्ञान, तंत्र-तंत्रिका विज्ञान, स्वप्न-विज्ञान, ..., इन किसी की कक्षा में नहीं बैठा कभी. जीव विज्ञान भी व्यक्तिगत कारणों से हाई स्कूल के बाद छोड़ दिया था. सिर्फ जिज्ञासु हूँ. इस शृंखला के बहाने स्वप्न के रहस्यों के कुछ टुकड़ों में अपने अनुभवों का पैबंद लगाने की कोशिश कर रहा हूँ. शृंखला पूर्ण होने तक आपकी बहुमूल्य टिप्पणियों से कुछ नया ज़रूर सीख सकूंगा, ऐसी आशा है.

सपनों की दुनिया बहुत रोचक है और आश्चर्यजनक भी। इस पर बहुत साहित्य बिखरा हुआ है मगर अधिकांश लेखन ऐसा है जो पर्दा हटाने के बजाय इसे और भी रहस्यमय बना देता है। किशोर चौधरी के नाम अपने पत्र में मैंने स्वप्न-जगत के बारे में अपनी जानकारी और अनुभव के आधार पर कुछ लिखने की इच्छा प्रकट की थी। यह लिखने की इच्छा बरसों से मन में थी मगर हाय समयाभाव...

कोई नहीं, जब आँख खुले तब सवेरा। अथ आरम्बिक्कलामा! पहले कुछ उदाहरण...

1960 का दशक, जम्मू...
एक साधु एकतारे पर गाता हुआ जा रहा है... बीच बीच में यदृच्छया कुछ भी बोल देता है. एक वाक्य पर मेरा ध्यान जाता है जब वह कहता है, अपना सपना किसी को मत बताना... पूछने पर भी कारण नहीं बताता।

1980 का दशक, बदायूँ...
कई दिनों से अजीब-अजीब से सपने आ रहे हैं... खासकर जबसे आगरा, सीकरी, मथुरा, वृन्दावन से लौटा हूँ। ऊँचे नीचे पहाडी रास्ते। सब घरों की छतें ढलवाँ। सामने से देखो तो हर भवन त्रिकोण जैसा लगे। यह मैदान तो कब्रिस्तान सा दिखता है, ढेरों क्रॉस लगे हैं। ... और यह लम्बी काली अर्ध-वृत्त जैसी सुरंग, छत पर पाइपों का एक जाल सुरंग के एक सिरे से दूसरे तक जा रहा है। दूसरे सिरे पर बना द्वार चौकोर है। उस छोर तक पहुँचते ही सूर्य का आँखें चौंधियाने वाला प्रकाश दिखता है। बहुत सुन्दर नगर, खुशनुमा बाज़ार। पहला अपरिचित सामने पड़ते ही मुस्कराकर स्वागत करता है।

आँख खुलते ही मैं सपने को सरल रेखाचित्रों सहित डायरी में लिख लेता हूँ पंद्रह साल बाद पिट्सबर्ग में मैं उन सब चिन्हों को वास्तविक पाता हूँ।

2000 का दशक, पिट्सबर्ग...
श्याम नारायण चौधरी सिर्फ एक सफ़ेद तौलिया लपेटे मेरे सामने खड़े हैं शायद नहाने जा रहे हैं। उनसे मेरा रक्त-सम्बन्ध नहीं है मगर माँ के लिए वे ताऊ जी हैं सो मेरे नानाजी। जूनियर हाई स्कूल में कई साल तक वे ही स्कूटर से मुझे स्कूल छोड़ते रहे थे। मैं कुछ पूछ पाता इससे पहले ही आँख खुलती है। दो दिन बाद माँ से बात होने पर पता लगता है कि अब वे दिवंगत हैं।

और भी कई सपने हैं मगर यहाँ पर उतना ही लिखना ठीक है जितना समयानुकूल है। मेरे सारे ब्लॉग-लेखों की तरह ही इस शृंखला का भी कोई नियमित प्रारूप नहीं बनाया है। जो कुछ ध्यान में आता रहेगा लिखता रहूँगा। आपकी टिप्पणियाँ भी दिशा-निर्देश देती रहेंगी, ऐसी आशा है। सपनों के अलावा दुसरे सम्बंधित तथ्य भी बीच-बीच में आ सकते हैं। अगली कड़ी से कुछ ठोस जानकारी सामने आने लगेगी।

सपनों पर पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है - हिन्दी ब्लॉग पर भी। लेकिन पढ़ने पर पता लगता है कि उनमें से अधिकतर सुनी सुनाई दोहराई बातें हैं और अधिकांश निराधार भी। यह कोई साइंस-ब्लॉगिंग है, इस भ्रम में मैं नहीं हूँ मगर अंधविश्वास से यथासंभव दूर हटने की कोशिश ज़रूर है।
स्वप्न में देखी टनल वास्तव में दिखी 15 वर्ष बाद
[Photo by Anurag Sharma - चित्र अनुराग शर्मा]
[क्रमशः]

29 comments:

  1. रोचक रहेगा ,जारी रखें.

    ReplyDelete
  2. शुरुआत इतनी अच्छी है आगे का इन्तज़ार है बेसब्री से

    ReplyDelete
  3. यहाँ कुछ मिल सकता है आपको - http://main-samay-hoon.blogspot.com/2009/07/blog-post_10.html

    http://main-samay-hoon.blogspot.com/2009/07/blog-post.html

    ReplyDelete
  4. शेष आप लिखें हम पढेंगे ही.

    ReplyDelete
  5. @लवली कुमारी,
    समय के लेखों का लिंक देने का शुक्रिया. अभी जाकर दोबों लेख पढ़े. अच्छे लगे मगर एक तो बहुत लम्बे और दुरूह भाषा में हैं. दूसरे, इतने सारे शब्दों में अंततः बात सिर्फ एक ही सुनाई देती है कि सपने में वही दिखता है जो अंतर्मन में चल रहा हो, जबकि सच्चाई इतनी सरल नहीं है.

    एक बात और, सुमन जी ने भी उनमें से एक लेख को सिर्फ "good" दिया है जबकि सामान्यतः वे सभी लेखों को "nice" देते हैं.

    अब और मज़ाक नहीं करूंगा, इस जानकारी की जानकारी का आभार!

    ReplyDelete
  6. सपने में वही दिखता है जो अंतर्मन में चल रहा हो, जबकि सच्चाई इतनी सरल नहीं है. - जहाँ तक मैं समझती हूँ...स्वप्न मानव अवेचेतन में चल रही यादों और अनुभवों का प्रतिबिम्ब ही होता है.
    जुंग के शब्दों में - स्वप्न में आप खुद अपने समक्ष कन्फेशन के लिए पेश होते हैं ...हम भी ऐसा ही समझते हैं..

    रही बात समय के लेख की वह सार -संक्षेप में लिखी गई सार-गर्भित प्रविष्टि लगी मुझे.. पर दो पोस्टों में अधिक नही समेटा जा सकता... शेष आप लिखे.
    भाषा को लेकर मैं कुछ नही कहूँगी ....जैसे आप शुद्ध वर्तनी के पक्षधर है वैसे मैं गूढ़ विषयों के लिए मानक भाषा की :-)

    अधिक मजाक नही करुँगी :-)

    ReplyDelete
  7. *अवेचेतन = अवचेतन :-D (शुद्ध वर्तनी)

    ReplyDelete
  8. अब तो मुझपर इतना दवाब है कि लिखना ही पडेगा कि मेरी पिछली टिप्पणी में
    "अभी जाकर दोबों लेख पढ़े."
    की जगह कृपया
    "अभी जाकर दोनों लेख पढ़े"
    समझें, धन्यवाद.

    ReplyDelete
  9. इस बात पर सिर्फ :-)
    ------------
    दबाव कदापि नही है बड़े भाई एरर होते रहते हैं..जिंदगी में.

    ReplyDelete
  10. अर्कजेशFebruary 15, 2010 at 12:18 PM

    देश विदेश की इस तरह की कई घटनाओं को पुस्‍तकों में पढा हूँ । । लेकिन यह आता भी है तो अनायास आता है ।

    अकारण और चमत्‍कार जैसा कुछ भी नहीं होता हमें वजह पता हो या नहीं ।

    आपके अनुभव जानना मजेदार रहेगा ।

    ReplyDelete
  11. कोई माने या ना माने, मैं मानता हूं और जानता हूं, यह अवचेतन मन से कही आगे की बात है. गूढ इसलिये कि हम उसे डेसिफ़र करने में अक्षम है.

    आपके द्वारा लिखे गये इन विषयों पर पोस्ट का स्वागत रहेगा.

    ReplyDelete
  12. अनुराग जी इन सपनो का समबंध है कही ना कही हमारे जीवन मै... आज से करीब १० साल पहले मुझे एक दो सपने आते थे, थोडे अंतराल के बाद, मेने एक दो बार बीबी को बताया ओर उन्हे भुल गया... लेकिन अब वही सपने सच हो रहे है, मै चार बार भारत गया यह मै आज से दस साल पहले सपने मै देख चुका था... ओर एक एक दर्शय वेसे का वेसा देखा... ओर अगले सपने के बारे सोच कर डर भी लगता है अगर वो सच हुया तो....

    ReplyDelete
  13. रोचक प्रसंग प्रारंभ किया है..आगे भी इन्तजार रहेगा. सपनों की यह दुनिया भी एक रहस्य रही है हमेशा से.

    ReplyDelete
  14. मेरे लिए तो रोचक विषय है। प्रतीक्षा करूँगा।

    ReplyDelete
  15. अवचेतन में कहां से आती हैं यें बाते? सपनों की दुनिया रहस्यमयी है.

    ReplyDelete
  16. कुछ और पन्ने खुलने की प्रतीक्षा । सहज नहीं है कोई निश्चय-तथ्य ! बातें होतीं रहेंगी आपकी प्रविष्टियों के माध्यम से ।

    आभार ।

    ReplyDelete
  17. मुझे सपने बहुत कम आते हैं या यूँ कहें कम याद रहते हैं। सुना है जो सपने नहीं देखते वे कुछ भी महान नहीं कर पाते :)

    ReplyDelete
  18. सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर आपकी इस श्रृंखला को गंभीरता से पढने का संकल्प लेता हूँ -
    एक अनुग्रह करेगें -क्या जब भी इस श्रृखला की कोई पोस्ट प्रकाशित करेगें मुझे मेरे ई मेल पर भी सूचित कर सकेगें ?
    drarvind3@gmail .com
    कहीं कोई छूट न जाय !

    ReplyDelete
  19. @गिरिजेश राव
    मुझे सपने बहुत कम आते हैं या यूँ कहें कम याद रहते हैं।
    जल्दी ही हम इस विषय पर बात करेंगे.

    सुना है जो सपने नहीं देखते वे कुछ भी महान नहीं कर पाते :)
    आपने गलत सुना है यह सिद्ध करने में आप मेरी सहायता करने वाले हैं.

    ReplyDelete
  20. @भारतीय नागरिक
    अवचेतन में कहां से आती हैं यें बाते?
    हम देखेंगे अगली कड़ी/कड़ियों में.

    ReplyDelete
  21. और हाँ आपके और लवली जी की बतकही में एक बिघ्न -
    सबसे बड़ा एरर जिदगी का वह होता है जब हम सच को एरर मानने की एरर
    कर बैठते हैं -अगर यह जल्दी सुधार नहीं ली जाती तो इसकी भरपाई बहुत मुश्किल और जिन्दगी नारकीय बन
    जाती है -तो इस मामले में सूनर द बेटर ,,,,
    और हाँ जब विचार अस्पष्ट और अमूर्त होते हैं ,हृदयंगम नहीं ,तो भाषा गूढ़ और भारी भरकम हो ही जाती है .
    पर शायद मैं अछूत बन गया हूँ इस विषय पर बात करने से /में
    मुझे मेरे कुछ एरर सपने में दिखे हैं -ऐसी चर्चा कभी ....

    ReplyDelete

  22. यह एक रोचक विषय रहा है,
    नतीज़े पर पहुँचने पर ज्ञानवर्धक भी होगा ।
    मु्झ जैसे अनियमित पाठक की वही परेशानी जो
    डा. अरविन्द की है, ई-मेल सदस्यता विकल्प उपलब्ध हो जाता तो..

    ReplyDelete
  23. मेरे जींस में ये बीमारी है .दोपहर में पंद्रह मिनट के लिए भी लेटता हूँ.कोई सपना फ़ौरन पलकों पर बैठा रहता मिलता है ....सिर्फ इतना कन्फर्म है के सपने देखने वालो की नींद पूरी नहीं मानी जाती क्यूंकि उसे आर इ एम् स्लीप बोलते है ...दूसरा अधिक सपनेदेखने वाले की मेमोरी सेल पर फर्क पड़ता है

    ReplyDelete
  24. पता नही यह पोस्ट कैसे चूकी? शायद फ़ीड मे गडबड है. बहरहाल आगे की कडियां काफ़ी रोचक रहने वाली हैं. इंतजार है.

    रामराम.

    ReplyDelete
  25. रोचक है सपनों का शहर ....

    ReplyDelete
  26. Sach kaha...itna bhi saral nahi sapano ki gutthi ko suljha lena ya nishchit roop se nishkarsh roop me kuchh kah dena...

    Mujhe to yah bahut hi rochak aur romanchak lagti hai...

    ReplyDelete
  27. अनुराग भाई ,
    आपके सपनों पर लिखी ये शृंखला बढ़िया रहेगी
    मैंने भी देखे हैं कई ऐसे स्वप्न जो सच हुए और
    कई ऐसे जिन्हें आजतक समझने का विफल प्रयास
    कर रही हूँ
    स - स्नेह
    - लावण्या

    ReplyDelete
  28. बेहद ही रोचक लगी सपनो से जुडी ये श्रंखला , पंद्रह साल बाद पिट्सबर्ग में मैं उन सब चिन्हों को वास्तविक पाता हूँ.
    क्या सपने इतने लम्बे अंतराल के बाद भी सच हो जाते हैं, मन सोच में पड गया है, क्या सपनो में जो कुछ भी हम देखें उन्हें सहेज कर रखना चाहिए??? जिज्ञासा बड रही है क्योंकि सपने हमे भी बहुत आते हैं मगर कभी ध्यान नहीं दिया

    regards

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।