आप सभी को यम द्वितीया (भैया दूज के पर्व) की हार्दिक शुभकामनायें!
कुछ दिन पहले गिरिजेश राव ने
तेज़ी से लापता होते कौवों के बारे में पोस्ट लिखी थी। यहाँ पिट्सबर्ग में इतने कौवे हैं कि मुझे कभी यह ख्याल ही नहीं आया कि वहाँ लखनऊ में इनकी कमी महसूस की जा रही है। इसी बीच जापान जाने का मौका मिला। तोक्यो नगर में पदयात्रा पर था कि फुटपाथ के निकट ही मयूर और कौवे की मिली-जुली सी आवाज़ सुनाई दी। काँ काँ ही थी मगर इतनी तेज़ और गहरी मानो मयूर के गले से आ रही हो। शायद सामने के भवन की छत पर बैठे मित्र को पुकारा जा रहा था।
तोक्यो नगर के भारत सरीखे (परंतु अत्यधिक स्वच्छ और करीने वाले) मार्ग में भारत की ही तरह जगह जगह मन्दिर और मठियाँ दिख रही थीं। मैं उन्हें देखता चल रहा था कि एक मन्दिर में एक विकराल मूर्ति को देखकर देवता को जानने की गहरी उत्सुकता हुई। जैसे ही एक जापानी भक्त आता दिखा, मैंने पूछ लिया और उसने जापानी विनम्रता के साथ बताया, "एन्मा दाई ओ" अर्थात मृत्यु के देवता।
भैया दूज यानी यम द्वितीया के पावन पर्व के अवसर पर यमराज की याद स्वाभाविक है। आप सभी को भाई दूज की बधाई!
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जापान के धरतीपकड काक |
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प्रकृतिप्रेमी काक |
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गगनचुम्बी काक |
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ज़ोजोजी परिसर में एक समाधि स्थल |
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मृतकों की शांति की प्रार्थनायें! |
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जापान के यमराज |
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एन्मा दाई ओ (यमदेव) |
Saturday, November 6, 2010 अनुराग शर्मा (मूल आलेख: नवम्बर ६, २०१०)
गोया जापान हो या भारत, 'लोक रंग' सब जगह एक सा।
ReplyDeleteआपके सौजन्य से रोचक जानकारी हाथ लगी। जापानी यम के दर्शन हुए...
ReplyDeleteमृत्यु के देवता का यह रूप अच्छा लगा...हाय ! जापानियों के लेने इतने सुंदर देवता आएंगे..!
जानकारी के लिए शुक्रिया .. आपको भी शुभकामनायें !
ReplyDeleteजानकारीपरक पोस्ट..... यह सब तो पता नहीं था ...
ReplyDeleteमृत्यु के देवता को तो सब नमन करते हैं।
ReplyDeleteलट्ठधारक कहीं का भी हो, झुकना तो पड़ेगा ही.. काकमयी पोस्ट हेतु धन्यवाद..
ReplyDelete@ धरतीपकड़ काक, गगनचुम्बी काक - :)
ReplyDeleteएशियाई संस्कृतियाँ मृत्यु का निरूपण लगभग समान विधि से करती आई हैं। जापान में यमदेव को होना ही था। पता नहीं बज्रयानी बौद्ध यम को देवता मानते हैं या नहीं?
शिंतो के अलावा वहाँ बौद्ध धर्म भी तो है।
रोचक जानकारी।
ReplyDeleteकाक-चित्र-चर्चा अच्छी है, पर ये दिल मांगे मोर...।
थोड़ी बहुत हेरफ़ेर के साथ मूल धार्मिक मान्यतायें एक जैसी ही हैं।
एक शंका है, मृत्यु और मृत्यु के देवता को इतना विकराल क्यों मानते हैं लगभग सभी संस्कृतियों में? जन्म की ही तरह मृत्यु भी स्वाभाविक नहीं क्या?
भाई-दूज की आपको भी शुभकामनायें।
मुझे तो काक फिर काके और काका ही समझ आते थे अब एनमा दोई भी हुए :)
ReplyDeleteरोचक प्रविष्टि ! मृत्यु के देवता भी दिख गये जापान के !
ReplyDeleteकौवे तो मैंने भी देखे खूब गिरिजेश जी प्रविष्टि के बाद से ! लगा नहीं कि वे विलुप्त हो रहे हैं ! हो सकता है आंखें खोज-खोज कर देख रहीं हो उन्हें !
प्रविष्टि का आभार !
बहुत सुन्दर नयी जानकारी .....
ReplyDeleteयमराज को तो हमेशा ही याद रखना पड्ता है इन के बिना तो मोक्ष भी नही मिलेगा। सुन्दर तस्वीरें। आपको सपरिवार भैया दूज की बधाई और शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत सही कहा!
ReplyDeleteआज तो भारत में भी कागों का अकाल जैसा है!
यमराज और पितर दोनों के दर्शन हो गए. आभार.
ReplyDeleteसर जी ्/ यह मृत्यु का नाम ही इतना डरावना है कि उसके देवता को तो भयानक और विकराल ही दिखाना पडेगा । हमारे यहां भी तो बडी बडी मूछे और भैसे पर सवारी लेकिन सर यमराज को धर्मराज भी कहा जाता है वो तो क्या है कि युधिष्टिर कुछ ज्यादा ही धर्म के पक्के थे तो उन्हे भी कहने लगे थे धर्मराज । आपकी महरवानी से जापान के यमराज की भी तस्वीर देखी ।धन्यवाद
ReplyDeleteजापान में कागा... रोचक रिपोर्ट।
ReplyDeleteजापान में और क्या है जो भारत में नहीं है यह भी बताएँ।
काक चेष्टा देखी. धरती से गगनचुम्बी तक काक देखे.
ReplyDeleteजापानी यमराज भी देखे ............
अपने यहा तो काक को श्राद्ध मे खोजना पडता है तब भी नज़र नही आते .अब तो बिना कौवा बोले मेहमान आ जाते है
@सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
ReplyDeleteजापान में नेताजी हैं (जिनसे हम जल्दी ही मिलेंगे, इन्हीं पन्नों पर)
@मो सम कौन
ReplyDelete1. कौवा आया है तो मोर भी पास ही होगा
2. सच है, भिन्न संस्कृतियों में भी अनेक समानताएं हैं
3. जन्म की ही तरह मृत्यु भी स्वाभाविक नहीं क्या?
विस्तार से बात होगी कभी
शायद मृत्यु के भय ने ही यमराज को इतनी प्रतिष्ठा दी हो ?
ReplyDeleteआखिर दबंगों का ही तो ज़माना है ........:-)
@प्रवीण त्रिवेदी जी,
ReplyDeleteपतंजलि ने योगसूत्र में कहा है:
स्वरसवाही विदुषोअपि तथारूढोअभिनिवेषः [साधनपाद सूत्र 9]
स्वरस नामक वासना द्वारा वाहित अभिनिवेश मृत्युभय विद्वानों और मूर्खोंके लिये समान रूप से जन्मजन्मांतर से रहने वाला क्लेश है।
[तुच्छ से तुच्छ जीव भी मृत्यु से भयभीत है और इससे भागना चाहता है]
@मो सम कौन जी,
अब मृत्यु स्वयम ही विकराल है तो यमराज तो विकराल होने ही हैं।
रोचक जानकारी भरी पोस्ट...भारत में बैठे बैठे दूर-दराज के बारे में इतनी बढ़िया बढ़िया जानकारी आपके माध्यम से मिल पाई..
ReplyDeleteबहुत सार्थक पोस्ट..आभार...
सुन्दर चित्र हैं सब ... रोचक जानकारी दी है आपने ...
ReplyDeleteवैसे कोवे दुबई में भी बहुत हैं .... कम से कम हमारे इलाके में तो हैं ही ...
ये लो ...हम तो सोचे थे यमराज अलग अलग नामों से सिर्फ यही हैं ...जापानी भी डरते हैं मृत्यु से !
ReplyDeleteअच्छी जानकारी...सुन्दर तस्वीरें !
बहुत बढ़िया पोस्ट व चित्र!
ReplyDeleteयदि हम विभिन्न संस्कृतियों में अन्तर ढूँढने की जगह उनमें साम्य ढूँढें तो कितना बेहतर रहेगा। देखिए आपने जापान में यम महाराज को ढूँढ लिया। शायद साम्य ढूँढने के मामले में भी वही बात सच है' जिन खोजा तिन पा इया '
कौवों पर मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी ...'
काकेश जी से विनती........काले कौओं का इन्तजाम कीजिए !' http://ghughutibasuti.blogspot.com/2007/04/blog-post_18.html
घुघूती बासूती
पोस्ट पढ़कर आनंद आया और नई जानकारियां मिली. धन्यवाद.
ReplyDeleteरोचक.
ReplyDeleteदिपावली की शुभकामनायें.
आपका भारत आने का कोई कार्यक्रम?
:) :) जापान में भी यमराज हैं! जय हो!
ReplyDeleteदूसरी वाली तस्वीर बहुत खूबसूरत है।
ReplyDeleteयमराज के दर्शन शायद पहले भी आपने कराये हैं। भारत में एक भी यमराज की मूर्ति नहीं होगी। हमारी बहने मृत्यु के देवता की खोपड़ी फोड़ देती हैं..पूजा कौन करेगा! :)
पता नहीं गिरिजेश जी को क्यों नहीं दिखते कौए! शायद वे अधिक साफ-सुथरी जगह रहते हैं। हमको तो रोज दिखते हैं।
ReplyDeleteजापान में सड़क के किनारे मठिया टाइप मंदिर मैंने भी देखे हैं,उनकी बनावट और अंदर की मूर्तियों पर वौद्ध-धर्म की महायान शाखा का प्रभाव दिखाई दिया,पर वहाँ पूजा आदि होती हो ऐसा कोई आभास नहीं मिला.
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