दीवाली के मौके पर यहाँ पिट्सबर्ग में एक भारतीय समारोह में जाना पड़ा। मेरी आशा के विपरीत दीये और मिठाई कहीं नज़र नहीं आयी। अलबत्ता शराब व कबाब काफ़ी था। कहने को शबाब भी था मगर मेकअप के नीचे छटपटा सा रहा था।
बहुत से लोगों से मुलाक़ात हुई। नवीन जी भी उन्हीं में से थे। दारु का गिलास उठाये कुछ चलते, कुछ झूमते, कुछ उड़ते और कुछ छलकते हुए से वे मेरे साथ की सीट पर संवर गए। अब साथ बैठे हैं तो बात भी करेंगे ही। पहले औपचारिकताएँ हुईं। मौसम, खेल, व्यवसाय, परिवार से गुज़रते हुए हम बड़ी बड़ी बातों तक पहुँचे। विदेश में बसे कुछ भारतीयों के लिए बड़ी बात का मतलब है उस मातृभूमि की फ़िक्र का ज़िक्र जिसके लिए हमने कभी अपनी जिंदगी से न एक पल दिया और न एक धेला ही।
वे पूछने लगे कि अगर मैं इसी शहर में रहता हूँ तो फ़िर कभी उन्हें मन्दिर में क्यों नहीं दिखता। मैंने अंदाज़ लगाकर बताया कि शायद हमारे मन्दिर जाने के दिन और समय अलग अलग रहे हों। वैसे भी भक्ति और पूजा मेरे लिए एक व्यक्तिगत विषय है और मेरी मन्दिर यात्रायें नियमित भी नहीं हैं। मेरी बात उनको अच्छी नहीं लगी।
"तो अपने बच्चों को हिन्दी नहीं सिखायेंगे क्या?" झूमते हुए उन्होंने अपना गिलास मुझपर लगभग उड़ेल ही दिया।
"मेरे बच्चे हिन्दी, ही नहीं बल्कि और भी भारतीय भाषायें अच्छी तरह जानते हैं। वे तो हिन्दी सिखा भी सकते है" मैंने खुश होकर उन्हें बताया।
"सवाल केवल भाषा का नहीं है।" उन्होंने मेरी मूर्खता पर हँसते हुए कहा, "अमेरिका में भारतीय संस्कृति को भी तो ज़िंदा रखना है ..."
अपने इस कथन को वे शायद ही सुन पाए होंगे क्योंकि इसे पूरा करने से पहले ही वे टुन्न हो गए। वे सोफा पर और भरा हुआ गिलास कालीन पर लोटने लगा। मैं समझ गया कि अमेरिका में उनकी भारतीय संस्कृति को कोई ख़तरा नहीं है।
आप सभी को, मित्रों और परिजनों के साथ दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएं!
[मूल आलेख: अनुराग शर्मा; शनिवार २१ जून २००८]
बहुत से लोगों से मुलाक़ात हुई। नवीन जी भी उन्हीं में से थे। दारु का गिलास उठाये कुछ चलते, कुछ झूमते, कुछ उड़ते और कुछ छलकते हुए से वे मेरे साथ की सीट पर संवर गए। अब साथ बैठे हैं तो बात भी करेंगे ही। पहले औपचारिकताएँ हुईं। मौसम, खेल, व्यवसाय, परिवार से गुज़रते हुए हम बड़ी बड़ी बातों तक पहुँचे। विदेश में बसे कुछ भारतीयों के लिए बड़ी बात का मतलब है उस मातृभूमि की फ़िक्र का ज़िक्र जिसके लिए हमने कभी अपनी जिंदगी से न एक पल दिया और न एक धेला ही।
वे पूछने लगे कि अगर मैं इसी शहर में रहता हूँ तो फ़िर कभी उन्हें मन्दिर में क्यों नहीं दिखता। मैंने अंदाज़ लगाकर बताया कि शायद हमारे मन्दिर जाने के दिन और समय अलग अलग रहे हों। वैसे भी भक्ति और पूजा मेरे लिए एक व्यक्तिगत विषय है और मेरी मन्दिर यात्रायें नियमित भी नहीं हैं। मेरी बात उनको अच्छी नहीं लगी।
"तो अपने बच्चों को हिन्दी नहीं सिखायेंगे क्या?" झूमते हुए उन्होंने अपना गिलास मुझपर लगभग उड़ेल ही दिया।
"मेरे बच्चे हिन्दी, ही नहीं बल्कि और भी भारतीय भाषायें अच्छी तरह जानते हैं। वे तो हिन्दी सिखा भी सकते है" मैंने खुश होकर उन्हें बताया।
"सवाल केवल भाषा का नहीं है।" उन्होंने मेरी मूर्खता पर हँसते हुए कहा, "अमेरिका में भारतीय संस्कृति को भी तो ज़िंदा रखना है ..."
अपने इस कथन को वे शायद ही सुन पाए होंगे क्योंकि इसे पूरा करने से पहले ही वे टुन्न हो गए। वे सोफा पर और भरा हुआ गिलास कालीन पर लोटने लगा। मैं समझ गया कि अमेरिका में उनकी भारतीय संस्कृति को कोई ख़तरा नहीं है।
आप सभी को, मित्रों और परिजनों के साथ दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएं!
पिट्सबर्ग का एक दृश्य |
[मूल आलेख: अनुराग शर्मा; शनिवार २१ जून २००८]
विदेश में बसे कुछ भारतीयों के लिए बड़ी बात का मतलब है उस मातृभूमि की फ़िक्र का ज़िक्र जिसके लिए हमने कभी अपनी जिंदगी से न एक पल दिया और न एक धेला ही।
ReplyDeletekitni saadgi aur imaandaari se apni baat ya kahen ki dard bayaan kar diya...
bahut achha lekh hai... aasha hai hum jaise aur khaskar navin ji jaise log kuchh jagruk ho aur sanskriti ka matlab samajhe....
bahut khoob
बड़ी दिलचस्पी से कुछ हुआ कारवां...बहुत खूब. लिखेत रहिये. शुभकामनयें.
ReplyDelete--
उल्टा तीर
आपने संस्कृति से सम्बंधित विदेश में प्रवास करते भारतियों की जीवन शैली का शानदार चित्रण किया है ! पढ कर पीडा या कहे कि दुख्: हुवा.... पर आपने बहुत ही सुंदर लिखा..
ReplyDeleteशुभकामनाएं !
बडा दिलचस्प किस्सा,
ReplyDeleteहमें भी यहाँ ह्यूस्टन में देश की सभ्यता की चिंता करने वाले बहुत मिल जाते हैं । हम तो सिर्फ़ प्रणाम करके चलते बनते हैं, वैसे ये किस्से महफ़िलों में खाना खाने और जाम छलकाने के साथ ही शुरू होते हैं ।
अनुराग जी आपका यह आलेख भी बहुत बेबाक है मज़ा आ गया. कल हिन्दयुग्म पर आपसे मुलाक़ात करके दिल प्रसन्न हो गया ...... शुभ कामनाओं सहित
ReplyDeleteछद्म संस्कृति रक्षक!!
ReplyDeleteस्वार्थी गौरव लेना चाहते है पर योगदान करना नहीं चाहते।
दुनिया ऐसी ही है सर जी।
ReplyDeleteआप को भी दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं....
दिलचस्प, भारतीय संस्कृति के ऐसे रखवालों से संस्कृति को भगवान बचाये।
ReplyDeleteजी । अपनी अपनी समझ, अपना अपना "संस्कृति रक्षण" ।
ReplyDeleteआपको भी दीपावली की शुभकामनाएं ।
ऐसे भी लोग हैं | समाचार और फिल्मों के माध्यम से तो यह लगता था कि सभी प्रवासी भारतीयों को यहा के लोगों से ज्यादा समझ है इन सब के बारे में |
ReplyDeleteஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
दीपावली कि शुभकामनाये
ReplyDeleteभारतीय संस्कृति के संवाहक टुन्न पाए गए :)
ReplyDeleteबहुत शुभकामनायें !