(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)
कल उसका फोन आया था। ताबड़तोड़ प्रमोशनों के बाद अब वह बड़ा अफसर हो गया है। किसी ज़माने में हम दोनों निगम के स्कूल में एक साथ काम करते थे। मिडडे मील पकाने से लेकर चुनाव आयोग की ड्यूटी बजाने तक सभी काम हमारे जिम्मे थे। ऊपर से अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ। इन सब से कभी समय बच जाता था तो बच्चों की क्लास भी ले लेते थे।
उसे अपने असली दिल्लीवाला (मूलनिवासी) होने का गर्व था। मुझे हमेशा 'ओए बिहारी' कहकर ही बुलाता था। दिल का बुरा नहीं था लेकिन हज़ार बुराइयाँ भी उसे सामान्य ही लगती थीं। अपनी तो मास्टरी चलती रही लेकिन वह असिस्टेंट ग्रेड पास करके सचिवालय में लग गया। अब तो बहुत आगे पहुँच गया है।
आज मूड ऑफ था उसका। अपने पुराने दोस्त से बात करके मन हल्का करना चाहता था सो बरसों बाद उस दिन मुझे फोन किया।
"कैसा है तू?"
"हम ठीक हैं। आप कैसे हैं?"
"गुड ... और तेरी बिहारिन कैसी है?"
इतने साल बाद बात होने पर भी उसका यह लहज़ा सुनकर बुरा लगा। मुझे लगा था कि उम्र बढ़ने के साथ उसने कुछ तमीज़ सीख ली होगी। मैं आरा का सही, उसका इलाका तो दिल्ली देहात ही था। सोचा कि उसे उसी के तरीके से समझाया जा सकता है।
"हाँ, हम सब ठीक हैं, तू बता, तेरी देहातन कैसी है?"
"ओए बिहारी, ये तू-तड़ाक मुझे बिलकुल पसंद नहीं। और ये देहातिन किसे बोला? अपनी भाभी के बारे में इज़्ज़त से बात किया कर।"
फोन कट गया था। बरसों की दोस्ती चंद मिनटों में खत्म हो गई थी।
बेमेल दोस्ती की गंध |
उसे अपने असली दिल्लीवाला (मूलनिवासी) होने का गर्व था। मुझे हमेशा 'ओए बिहारी' कहकर ही बुलाता था। दिल का बुरा नहीं था लेकिन हज़ार बुराइयाँ भी उसे सामान्य ही लगती थीं। अपनी तो मास्टरी चलती रही लेकिन वह असिस्टेंट ग्रेड पास करके सचिवालय में लग गया। अब तो बहुत आगे पहुँच गया है।
आज मूड ऑफ था उसका। अपने पुराने दोस्त से बात करके मन हल्का करना चाहता था सो बरसों बाद उस दिन मुझे फोन किया।
"कैसा है तू?"
"हम ठीक हैं। आप कैसे हैं?"
"गुड ... और तेरी बिहारिन कैसी है?"
इतने साल बाद बात होने पर भी उसका यह लहज़ा सुनकर बुरा लगा। मुझे लगा था कि उम्र बढ़ने के साथ उसने कुछ तमीज़ सीख ली होगी। मैं आरा का सही, उसका इलाका तो दिल्ली देहात ही था। सोचा कि उसे उसी के तरीके से समझाया जा सकता है।
"हाँ, हम सब ठीक हैं, तू बता, तेरी देहातन कैसी है?"
"ओए बिहारी, ये तू-तड़ाक मुझे बिलकुल पसंद नहीं। और ये देहातिन किसे बोला? अपनी भाभी के बारे में इज़्ज़त से बात किया कर।"
फोन कट गया था। बरसों की दोस्ती चंद मिनटों में खत्म हो गई थी।
[समाप्त]
अच्छा हुआ !
ReplyDeleteकुछ बातें ऐसी हैं जो ना उम्र सिखा पाती है और ना ही नसीहतें. यहाँ भी कुछ ऐसा ही लगता है.
ReplyDeleteश्री राम नवमी की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (29-03-2015) को "प्रभू पंख दे देना सुन्दर" {चर्चा - 1932} पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद, शास्त्री जी।
Deleteसटीक रचना
ReplyDeleteअच्छा हुआ ऐसी दोस्ती ख़त्म हो गयी, सौ में से निन्यान्नव दोस्त दोस्त नहीं दोस्ती का केवल आभास देते है, सटीक लगी कहानी !
ReplyDeleteबेमेल रिश्तों को विराम देना ही बेहतर , बढ़िया कहानी
ReplyDeleteऐसी दोस्ती जल्दी ही ख़त्म हो तो अच्छा है ... अच्छी कहानी है ...
ReplyDeleteछोटी सी सुन्दर लघुकथा .जो बडा सन्देश छुपाए है . .
ReplyDeleteपर ज्यादातर मामलों का नंगा सच ऐसा ही होता है ।
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