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Friday, December 16, 2011

बेहतर हो - कविता

(~ अनुराग शर्मा)

ये दिन जल्दी ढल जाये तो अच्छा हो
रात अभी गर आ जाये तो अच्छा हो
सूरज से चुन्धियाती आंखें बहुत सहीं
घनघोर घटा अब घिर आये तो अच्छा हो

बातों को तुम न पकड़ो तो अच्छा हो
शब्दों में मुझे न जकड़ो तो अच्छा हो
कौन किसे कब परिभाषित कर पाया है
नासमझी पे मत अकड़ो तो अच्छा हो

विषबेल अगर छँट पाये तो अच्छा हो
इक दूजे को सहन करें तो अच्छा हो
नज़दीकी ने थोड़ा सा असहज किया
कुछ दूरी फिर बन जाये तो अच्छा हो

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* यूँ भी तो हो - एक इच्छा
* काश - कविता