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Monday, December 10, 2012

बेशक मंदिर मस्जिद तोड़ो

अनुराग शर्मा

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों, विशेषकर सिख और हिंदुओं के प्रति हिंसा और अत्याचार के मामले नए नहीं हैं। लेकिन इस साल तो जैसे इन मामलों की संख्या में बाढ़ सी आ गई है। कराची के हिंदुओं द्वारा अदालत से स्थगनादेश ले आने के बावजूद वहाँ के सोल्जर बाज़ार स्थित एक सौ वर्ष से अधिक पुराना राम पीर मंदिर और उसके परिसर में रहने वाले हिंदुओं के घर एक बिल्डर द्वारा दिन दहाड़े भारी पुलिस की उपस्थिति में गिरा दिये गये है जिसे लेकर वहां का हिंदू समुदाय दुखी है। स्थानीय हिंदुओं ने सरकार से कहा है कि यदि वह उनकी, उनके घरों तथा धार्मिक स्थलों की हिफाजत नहीं कर सकती है, तो वह उन्हें सुरक्षित भारत भिजवाने की व्यवस्था करे। अपने गैर-मुस्लिम नागरिकों के दमन के लिए बदनाम पाकिस्तान के इस कृत्य से वहां अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर एक बार फिर प्रश्न चिह्न लगा है। मंदिर परिसर में रहने वाले लगभग 40 हिन्दू बेघर हो गए हैं और सर्दी की रातें अपने बच्चों के साथ खुले में आसमान के नीचे बिताने को मजबूर हैं। उनका आरोप है कि पुलिस मंदिर में रखी अनेक मूर्तियां तथा उन पर चढ़ाए गए सोने के आभूषण भी उठाकर ले गई।

अपने अस्तित्व में आने के साथ ही पाकिस्तान में मंदिर नष्ट करने के सुनियोजित प्रयास चलते रहे हैं। कराची में ही पिछले दिनों इवेकुई बोर्ड ने एक मंदिर को एक ऑटो वर्कशॉप चलाने के लिए लीज पर दे दिया था। पाकिस्तान हिंदू कांउसिल (PHC) ने इस बारे में पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखे थे और कोई कार्यवाही न होने पर मन मसोस कर रह गए थे।

कराची के बाहरी इलाके में स्थित श्री कृष्ण राम मंदिर पर इस एक साल में ही दो बार हमला हुआ है। चेहरा छिपाने की कोई ज़रूरत न समझते हुए इन हमलावरों ने नकाब भी नहीं पहन रखा था। उन्होंने हवा में पिस्तौल लहराई, हिन्दुओं के खिलाफ नारे लगाए और प्रतिमाओं से छेड़छाड़ की। मंदिर में उपस्थित किशोर ने बताया कि पाकिस्तानी मुसलमान उन्हें अपने समान नागरिक नहीं समझते हैं और जब चाहे उन्हें मारते-पीटते हैं और मंदिरों पर हमले करते रहते हैं।

वैसे तो मंदिरों पर हमला करने के लिए पाकिस्तान में किसी बहाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, लेकिन जब बहाना मिल जाये तो ऐसी घटनाएँ और भी आसानी से घटती हैं। शरारती तत्वों द्वारा यूट्यूब पर डाली गयी बेहूदा वीडियो क्लिप 'इंनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स' के खिलाफ 21 सितंबर को पाकिस्तान भर में हुए विरोध प्रदर्शन ने पाकिस्तान के कई बड़े शहरों में हिंसक रूप ले लिया था जिनमें 19 अल्पसंख्यक मारे गए थे और जमकर तोड़फोड़ हुई थी। उसी दिन कराची के गुशलन-ए-मामार मुहल्ले के 25-30 हिन्दू परिवारों के एक मंदिर में रखी देवी-देवताओं की मूर्तियों को हबीउर्रहमान नाम के एक मौलवी के नेतृत्व में आयी एक भीड़ ने क्षतिग्रस्त किया। डर के कारण हिंदू परिवार इस मामले की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कराना चाहते थे।

छोटे शहरों या कम प्रसिद्ध मंदिरों की तो कोई खबर पाकिस्तान से बाहर पहुँचती ही नहीं है। इस साल के आरंभ में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित प्रसिद्ध हिंगलाज माता मंदिर की सालाना तीर्थयात्रा शुरू होने से महज दो दिन पहले वहाँ की प्रबंध समिति के अध्यक्ष महाराज गंगा राम मोतियानी का पुलिस की वर्दी में आए लोगों ने अपहरण कर लिया था।

अल्लाहो-अकबर के नारे लगाती एक भीड़ ने मई 2012 में पेशावर में गोर गाथरी इलाके के एक पुरातात्विक परिसर के बीच में स्थित 200 साल पुराने गोरखनाथ मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया था। हमलावरों ने मंदिर में रखे धर्म ग्रन्थों और चित्रों में आग लगाई, शिवलिंग को खंडित कर दिया और मूर्तियां अपने साथ ले गये। मंदिर के संरक्षक ने बताया कि दो महीने में मंदिर पर यह तीसरा हमला था।

सिंध प्रांत के उमरकोट स्थित 3 एकड़ में फैले आखारो मंदिर की चारदीवारी के पास करीब 50 दुकानें हैं। फरवरी 2012 में वहाँ के एक व्यापारी जुल्फिकार पंजाबी और उसके भाई हाफिज पंजाबी ने अपनी किराए की दुकान बढ़ाने के लिए बिना मंदिर प्रशासन की इजाजत लिए निर्माण कार्य शुरू कर दिया और मंदिर समिति की आपत्ति पर गोलीबारी कर दी जिसमें दो हिन्दू बुरी तरह घायल हो गए थे।

मंदिर ही नहीं हिन्दुओं की शमशान भूमि पर भी पाकिस्तान के भू-माफियाओं की नज़र है। मुसलमानों की शह और सरकार की फिरकापरस्ती के चलते न जाने कितने हिंदुओं को मरने के बाद अग्नि संस्कार भी नसीब नहीं हो पाता है। पाकिस्तान से भागकर आए शरणार्थी अपने साथ न जाने कितनी दर्दनाक कहानियाँ लाये हैं। बीस वर्षीय रुखसाना ने कहा कि पाकिस्तान में कट्टरपंथियों के चलते हिन्दुओं को अपनी पहचान छिपानी पड़ती है और बहुत से लोग इसके लिए वहां मुसलमानों जैसे नाम रख लेते हैं। कभी पाकिस्तान के बलूचिस्तान में एक मंदिर के पुजारी रहे रामश्रवण ने कहा कि उनके यहां तालिबान जैसे धर्मांध संगठनों के डर का आलम यह था कि वह मंदिर जाते समय या घर लौटते समय मुसलमानी टोपी लगाकर चलते थे। 13 वर्षीय लक्ष्मी ने कहा कि उसे भारत में पहली बार एक स्कूल में दाखिला मिला है, जबकि पाकिस्तान में वह कभी स्कूल का मुँह नहीं देख सकी थी। वहां हिन्दू-सिख घरों में घुस कर धर्म परिवर्तन को लेकर मार-पीट करते हुए महिलाओं से बदसलूकी करना सामान्य है। सिन्धी समिति के समक्ष एक व्यक्ति ने बताया कि उन्हें बार-बार अपमानित किया जाता है और जबरदस्ती मांस खिलाया जाता है। 45 वर्षीय शांति देवी ने कहा कि वह कभी पाकिस्तान नहीं लौटेंगी और भारत में ही मरना पसंद करेंगी क्योंकि पाकिस्तान में हिन्दुओं को हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार तक नहीं करने दिया जाता है। डेरा इस्माइल खान में 1947 से अब तक एक मात्र हिंदू पंडित खडगे लाल के शव को ही हिंदू रीतिरिवाजों के तहत अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी गई है। डेरा इस्माइल खान में पहले मेडियन कॉलोनी और टाउन हॉल में एक-एक श्मशान घाट था जिनकी नीलामी हो चुकी हैं।

मंदिरों पर हमलों के अलावा पाकिस्तान में हिंदुओं को लगातार ही महिलाओं के अपहरण और जबरन धर्मांतरण का सामना करना पड़ता है। मुसलमानों के निगरानी गुट अल्पसंख्यक हिंदुओं पर दबाव बनाते रहते हैं। सिंध प्रांत में मीरपुर माथेलो से गायब हुई 17 वर्षीय हिंदू लड़की रिंकल कुमारी बाद में एक स्थानीय दरगाह के एक प्रभावशाली मुस्लिम मिट्ठू मियां के परिवार की देख-रेख में मिली थी और उसका धर्म परिवर्तन कराकर एक स्थानीय मुसलमान युवक से उसकी शादी करा दी गई थी। एक तरफ खुशी मनाने और शक्ति प्रदर्शन के लिए दरगाह के हथियारबंद ज़ायरीन हवा में गोलियां चला रहे थे वहीं दूसरी तरफ सामाजिक कार्यकर्ता मिट्ठू मियां पर हिन्दू लड़कियों के संगठित अपहरण और विक्रय के आरोप लगा रहे थे।

26 मार्च 2012 को रिंकल कुमारी ने पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश इफित्खार मुहम्मद चौधरी को बताया कि नवीद शाह ने उसका अपहरण किया था और अब उसे अपनी माँ के घर जाने दिया जाए। रिंकल के इस साहस के बदले में उसके दादा को गोली मार दी गई और अगली पेशी में उसकी अनुपस्थिति में अदालत को उसका एक वीडियो दिखाया गया जिसके आधार पर उसके अपहरण और धर्मपरिवर्तन को स्वेच्छा बताकर अपहरण, बलात्कार और जबरिया धर्म परिवर्तन के आरोप निरस्त कर दिये गए।

अमेरिकी विदेश विभाग की ताज़ा रिपोर्ट में गहरी चिंता जताते हुए कहा गया है कि पाकिस्तान में हिंदुओं को अपहरण और जबरन धर्म-परिवर्तन का डर लगा रहता है। पाकिस्तान मानवाधिकार परिषद के अनुसार वहाँ हर महीने 20-25 हिंदू लड़कियां अपहृत कर ली जाती हैं और उन्हें जबरन इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा जाता है। हिन्दू होने भर से किसी को ईशनिन्दा कानून में फंसाकर मृत्युदंड दिलाना या दिन दहाड़े मारना आसान हो जाता है। नवंबर 2011 में चार हिंदू डॉक्टरों की सिंध प्रांत के शिकारपुर जिले में सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

असहिष्णुता के इस जंगल में जहां तहां एकाध आशा की किरण भी नज़र आ जाती है। मारवी सिरमेद जैसी समाज सेविका जहां अल्पसंख्यकों पर हो रहे अपराधों के विरुद्ध मीडिया और अदालत में अडिग खड़ी दिखती हैं वहीं वकील जावेद इकबाल जाफरी पाकिस्तान सरकार को अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों एवं संपत्ति की रक्षा करने के संवैधानिक कर्तव्य की याद दिलाते हुए पाकिस्तान के मंदिरों को अवैध कब्जों से मुक्त कराने और उनके पुनर्निर्माण की मांग करते हैं। पाकिस्तानी अखबार डॉन ने अपने संपादकीय में सरकार से मांग की है कि राम पीर मंदिर गिराने के लिए हिंदू समुदाय से माफी मांगने की जरूरत है।

[आभार: चित्र व सूचनाएँ विभिन्न समाचार स्रोतों से]

Wednesday, December 31, 2008

नव वर्ष का संकल्प

मित्रों,
बातों ही बातों में पुराना साल कब निकल गया, पता ही न चला। देखते-देखते हम नव-वर्ष की पूर्व संध्या पर आ पहुँचे हैं. २००८ में मैंने एक कविता लिखी थी "कितना खोया कितना पाया।" दुहराव के डर से उसे यहाँ फ़िर से पोस्ट नहीं करूंगा। परन्तु उत्सुक जन कविता के शीर्षक पर क्लिक कर के उसे पढ़ सकते हैं।

गत वर्ष में बहुत कुछ हुआ - हमने कोसी की विनाशलीला भी देखी और पाकिस्तान से आए हैवानी आतंकवादियों की २६ नवम्बर की कारगुजारी भी, कश्मीर में आतंकवादियों की धमकियों और बयानबाजी का मुँहतोड़ जवाब देते हुए लोगों का शांतिपूर्ण मतदान भी देखा और चंद्रयान का सफल प्रक्षेपण भी। और भी बहुत कुछ दिया है इस साल ने। मैं बूढा तो भूल जाता हूँ, आप तो युवा हैं सब याद रखते हैं।

नए साल की पूर्व-संध्या पर कुछ संकल्प लेने की परम्परा सी बन गयी है। पहले तो मुझे यह बात समझ में नहीं आती थी लेकिन अब कुछ-कुछ समझने लगा हूँ। यदि संकल्प लेना ही है तो खुश रहने और अपने को बेहतर बनाने का संकल्प लेना पसंद करूंगा। २००८ में हिन्दी ब्लोगिंग शुरू की और बहुत से नए मित्रों से मिला जिनके साथ और कृपा से मेरा विकास ही होना है। क्या पता मेरा २००८ का ब्लॉग लिखना २००९ में पुस्तक लेखन में ही बदल जाए।

जिन लोगों ने कभी नए साल का संकल्प नहीं लिया या फ़िर कोई नई तरह का संकल्प लेना चाहते हैं, उनके लिए अपने अनुभव से निचोड कर कुछ सुझाव रखना चाहता हूँ।

कुछ ऐसा करिए जिससे आप में और समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन आए। कोई भी उम्र कम नहीं होती है। झांसी की रानी हों या भगत सिंह, उन्हें जीवन में इतने बड़े काम करने के लिए ३० साल का भी नहीं होना पडा था। जिन तांतिया टोपे के नाम से दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य काँप रहा था। माना जाता है कि उन्हें दो बार फांसी दी गयी थी। अपने बलिदान के समय वे १८५७ के संग्राम के युवा नायकों में सबसे बड़े थे - ३९ वर्ष के।

कोई भी पद कम नहीं है, कोई भी काम छोटा नहीं है। अंग्रेजी फौज में एक मामूली सिपाही के पद पर काम करने वाले मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूस को अपने दाँत से छूने नहीं दिया। बन्दा शहीद हो गया मगर उसकी फाँसी के साथ ही मुगलों, मराठों को हराने वाली "ईस्ट इंडिया कंपनी" का कभी न डूबने वाला सूरज हमेशा के लिए डूब गया।

सतही तौर पर ऐसा लगता है कि लेना आसान है मगर देना उससे भी आसान है। अगर सत्कार्य में देने को पैसा नहीं है तो समय दीजिये। और कोई दान नहीं तो रक्त-दान कीजिये। २००८ में हमारे एक बुजुर्ग का देहांत हुआ, उन्होंने अपनी आँखें दान कीं जिससे दो बच्चों को रोशनी मिली।

हम अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें। हो सके तो तैराकी या घुड़सवारी सीखें। जिम नहीं जा सकते तो घर में योगासन शुरू करें। इस साल के वृक्षारोपण में लगाए किसी सूख रहे पौधे को पानी देकर जमने लायक बना दें। बहुत दिनों से खोये हुए किसी पुराने मित्र को अचानक मिलकर आश्चर्यचकित कर दें, किसी चाय वाले छोटू को शतरंज खेलना सिखायेे या काम-वाली बाई के बेटे-बेटी की एक साल की कापी-किताबों का इंतजाम कर दें। जिस दिन भी शुरू करेंगे, आपको पता लगेगा कि एक छोटी सी शुरूआत से ही बड़े बड़े काम होते हैं:
बात तो आपकी सही है यह थोड़ा करने से सब नहीं होता
फिर भी इतना तो मैं कहूंगा ही कुछ न करने से कुछ नहीं होता


लिखने को बहुत कुछ है मगर बातें तो होती ही रहेंगी, कहीं भूल न जाऊँ इसलिए आज बस इतना ही कहता हूँ:
आपको, आपके परिवारजनों और मित्रों को नव-वर्ष की शुभकामनाएं!