Thursday, October 9, 2008

खोया पाया - कविता

कितना खोया कितना पाया,
उसका क्या हिसाब करें हम?

दर्पण पर जो धूल जमा है,
उसको कैसे साफ करें हम?

सपने भी अपने भी बिछड़े,
कब तक यह संताप करें हम?

नश्वर सृष्टि नष्ट हुई तो,
नूतन जग निर्माण करें हम।

भूल चूक और लेना-देना,
कर्ज-उधारी माफ़ करें हम।

बीती बातें छोड़ें और अब,
आगत का सम्मान करें हम॥


.

23 comments:

  1. नश्वर सृष्टि नष्ट हुई तो
    नूतन जग निर्माण करें हम

    गुजरी बातें छोडो अब तो
    उठने का सामान करें हम।



    बहुत सुंदर और प्रफुल्लित करने वाली रचना ! हार्दिक शुभकामनाएं !

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  2. सुंदर और सहज कविता। नवनिर्माण का संदेश लिए।

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  3. कितना खोया कितना पाया
    उसका क्या हिसाब करें हम

    दर्पण पर जो धूल जमा है
    उसको कैसे साफ करें हम

    भूल चूक और लेना देना
    कर्ज उधारी माफ करें हम
    ………………………………………………… ………………………………

    गुजरी बातें छोडो अब तो
    उठने का सामान करें हम।
    बहुत सुन्दर,बधाई आपको

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  4. सपने भी अपने भी बिछडे
    किस किस का संताप करें हम
    वाह !
    अच्छी कविता वह है जो समष्टि की पीडा को भी स्वर दे !

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  5. Anuragji kaise hain aap? aapki rachnayen to achhi hi hoti hain, kya tarif karun is kavita ki. mujhe lagta hai ek line thodi theek karlen- darpan par jo dhool jami hai.asha hai anytha nahin lenge. aap videsh men baith kar bhi hindi ke liye jo kar rahe hain aur ham logon se jude rahne ke liye samay nikalte hain, achha lagta hai. aapki drashti ko salaam. aapki aaj ki kavita bahut achhi lagi.

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  6. नश्वर सृष्टि नष्ट हुई तो
    नूतन जग निर्माण करें हम
    ' very soft inspiring and motivating poetry'

    Regards

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  7. गुजरी बातें छोडो अब तो
    उठने का सामान करें हम।

    आज आपकी कविता ने नया जोश भर दिया !
    बहुत २ शुभकामनाएं !

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  8. गुजरी बातें छोडो अब तो
    उठने का सामान करें हम।
    सही सोच है भाई

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  9. अति सुन्दर कविता, सुन्दर ओर गहरे भाव,
    धन्यवाद

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  10. भगत सिंह को खोकर हमने अमर सिंह को है पाया
    इतना कचरा हुआ देश में बोलो क्या क्या साफ करें

    आपकी ग़ज़ल से प्रेरित होकर यह पंक्तिया आपको पेश हैं
    दुसाहस के लिए क्षमा चाहता हूँ
    ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यबाद पुन: पधारें नई रचना मुम्बई किसके बाप की आपका इंतज़ार कर रही है

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  11. दर्पण पर जो धूल जमा है
    उसको कैसे साफ करें हम
    ............
    गुजरी बातें छोडो अब तो
    उठने का सामान करें हम।
    .......
    शानदार भाव!!
    आपकी भावनाओं को नमन !

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  12. bahut acchey...नश्वर सृष्टि नष्ट हुई तो
    नूतन जग निर्माण करें हम

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  13. सपने भी अपने भी बिछडे
    किस किस का संताप करें हम


    --बहुत उम्दा रचना, वाह!!

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  14. नश्वर सृष्टि नष्ट हुई तो
    नूतन जग निर्माण करें हम

    Bahut hi achha vichar hai!!!

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  15. "दर्पण पर जो धूल जमी है
    उसको कैसे साफ करें हम"
    श्रीकांत जी, बारीकी से देखने के लिए धन्यवाद. "जमा" ठीक कर दिया है.

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  16. गजब की प्रवाह है इस कवि‍ता में , भाव का प्रवाह भी संतुलन बनाकर चला है। दि‍लफेंक मस्‍ती भी है-
    भूल चूक और लेना देना
    कर्ज उधारी माफ करें हम

    बहुत सुंदर।

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  17. आशा भरा सँदेश लेकर आई है आपकी कविता !

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  18. अत्यंत प्रेरणादायक कविता के लिये बधाई

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  19. बहुत सुंदर..आपकी रचनाओं में गजब का प्रवाह रहता है।

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  20. बहुत बढ़िया ..इस तरह की सोच से कुछ भी खोया नहीं...पाया ही जाता ही भाई. और आपने हौसला, साथ में हम सबका दाद पाया है.

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