(अनुराग शर्मा)
जब तुम्हें दिया तो अक्षत था
सम्पूर्ण चूर्ण बिखरा है मन
भूकंप हुआ धरती खिसकी
क्षण भर में बिखर गया जीवन
घर सारा ही तुम ले के गए
कुछ तिनके ही बस फेंक गए
उनको ही चुनता रहता हूँ
बीते पल बुनता रहता हूँ।
जब तुम्हें दिया तो अक्षत था
सम्पूर्ण चूर्ण बिखरा है मन
भूकंप हुआ धरती खिसकी
क्षण भर में बिखर गया जीवन
घर सारा ही तुम ले के गए
कुछ तिनके ही बस फेंक गए
उनको ही चुनता रहता हूँ
बीते पल बुनता रहता हूँ।
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteक्या बात है?वैसे रचना बडी सुंदर है।
ReplyDeletebeete palon ko bunna adhiktar sukhdayi hi hota hai
ReplyDeleteपंक्तियां तो निस्सन्देह सुन्दर हैं किन्तु 'अनुराग' का यह 'विराग' तनिक अटपटा है । विश्वास है, सब ठीक और सामान्य ही होगा ।
ReplyDeleteउनको ही चुनता रहता हूँ
ReplyDeleteबीते पल बुनता रहता हूँ।
शालीन अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !
घर सारा ही तुम ले के गए
ReplyDeleteकुछ तिनके ही बस फेंक गए
उनको ही चुनता रहता हूँ
बीते पल बुनता रहता हूँ।
" excellent expression with touching words, great"
Regards
मन और जीवन की बड़ी गंभीर अभिव्यक्ति है इस रचना में ! शायद जीवन ऐसा ही होगा ! पर मुझे लगता है की ये भी धूप छाँव का खेल है स्थितियां कभी इसके उलट भी रही होंगी और फ़िर वैसी ही हो सकती हैं ! पता नही क्यों ? मुझे अब इस कविता में एक आशा की किरण भी दिखाई दे रही है ! मैं वैसे तो कविता कम ही समझ पाता हूँ पर ये रचना मुझे परिपूर्ण लग रही है ! शुभकामनाएं !
ReplyDeleteअनुराग जी बहुत ही सुन्दर रचना । दर्र विदारक । बधाई
ReplyDeleteबिखरे मन की भावपूर्ण संवेदना ..बहुत पसंद आई आपकी यह रचना
ReplyDeleteवाह क्या बात है। बहुत खूब।
ReplyDeleteउदासी सी है कुछ !
ReplyDelete"भूकंप हुआ धरती खिसकी
ReplyDeleteक्षण भर में बिखर गया जीवन"
सब कुच्छ ङमारे कर्मों की देन हैं।
प्रणाम करो उस धर्ती की जिसने हमको जनम दिया।
जब तुम्हें दिया तो अक्षत था
ReplyDeleteसम्पूर्ण चूर्ण बिखरा है मन
भूकंप हुआ धरती खिसकी
क्षण भर में बिखर गया जीवन
घर सारा ही तुम ले के गए
कुछ तिनके ही बस फेंक गए
वाह! बहुत खूब.
उनको ही चुनता रहता हूँ
ReplyDeleteबीते पल बुनता रहता हूँ।
बहुत सुन्दर - पर इस मनस्थिति से, लिखने के बाद, निकल लेना चाहिये मित्रवर।
उनको ही चुनता रहता हूँ
ReplyDeleteबीते पल बुनता रहता हूँ।
बहुत सुंदर पंक्तिया अंत्यंत गंभीर भाव संजोये हुए अद्भुत .. चुनावी दंगल पढ़ने मेरे ब्लॉग पर पधारें
बढ़िया है।
ReplyDeleteराग विराग?
ReplyDeleteउनको ही चुनता रहता हूँ
ReplyDeleteबीते पल बुनता रहता हूँ।
भाव पुर्ण प्रस्तुति !!आभार
उनको ही चुनता रहता हूँ
ReplyDeleteबीते पल बुनता रहता हूँ।
बहुत ही भावुक ..... अगर जिन्दगी मे कुछ ऎसा हॊ तो हमे इन सोचो से दुर जाना चाहिये, झटक देनी चाहिये ऎसी यादें
धन्यवाद
उनको ही चुनता रहता हूँ
ReplyDeleteबीते पल बुनता रहता हूँ।
- बहुत खूब.
मनोदशा का यथार्थ चित्रण-
ReplyDeleteउनको ही चुनता रहता हूँ
बीते पल बुनता रहता हूँ।
Unko hi chunta rahta hun,beete pal bunta rahta hun. man ke bikhrao ka bahut sundar chitran. kam sabdon men bahut kuchh kah dala.
ReplyDeleteविषाद भी एक भाव है पर उससे बाहर आना भी जीवन के प्रिति सच्चा अनुराग है
ReplyDelete- लावण्या
सुंदर रचना ! अनुरागजी को बधाई !
ReplyDeleteअछ्ची रचना है आपकी
ReplyDeleteक्या कहूँ....अद्भुत लिखा है.हर शब्द पीड़ा का सागर समेटे हुए है,जो ह्रदय झकझोर जाती है.मार्मिक शब्द भाव मिश्रित अनुपम अभिव्यक्ति.
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