पंक्तियां आपकी और बयान मेरा । मैं भी इन दिनों इसी अवसाद को जी रहा हूं । लेकिन यह स्थिति बिलकुल ही अच्छी नहीं है - न मेरे लिए, न आपके लिए न ही किसी और के लिए । इस कविता का प्रति उत्तर आपसे जल्दी मिले-ईश्वर से यही प्रार्थना है ।
अकेलेपन की यह पीड़ा सबके भीतर का सच है, घर लौटता हुआ आदमी दिन भर के आपाधापी के बाद फिर अकेला हो जाता है, ज्यादातर किया गया प्रक्रम अकेलेपन से बचने के लिए ही किया जाता है। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
anil pushkar ji se sehmath hun, akelapan bahut hee dard dene wala hai, kabhi kabhi bahut der ho jati hai iska ehsaas hone mein.Kavita dil ko choo jati hai aur ek dard de jati hai.Badai Anurag ji.
मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।
यह भावना मुझमें भी आती है। पर इसके आने पर जानबूझ कर लोगों के बीच चले जाना चाहिये।
ReplyDeleteबड़ी अवसादोत्पादक है यह।
bahut khoob
ReplyDeleteachcha likha hai, kabhi kabhi akele rahne ki ichcha to sabki hoti hai
ReplyDeleteयह अकेलापन भयावह सा है -
ReplyDelete"कुछेक दिन और
ReplyDeleteयूँ ही मुझे
अकेले रहने दो"
बहादुर लोग इस स्थिति में भी हंसते २ पार निकल जाते हैं !
भावो की सुंदर अभिव्यक्ति ! बहुत २ शुभकामनाएं !
इतनी मुद्दत तक
ReplyDeleteअकेले ही सब कुछ
सहा है मैंने
ज़िन्दगी अपने रंग अनेक तरह से दिखाती है ..अच्छी लगी आपकी यह रचना
जो रहा अकेला
ReplyDeleteहमेशा, यही कहेगा
उस ने न बिगाड़ा किसी का
कोई क्यों बिगाड़े उस का?
और आखरी वक्त क्या खाक
मुसमाँ होंगे।
आज मूड कुछ अलग है जनाब
ReplyDeleteकभी कभी ज़रूरी भी होता है शायद ... एकदम अकेले रहना.
ReplyDeleteबचे दो चार दिन भी
ReplyDeleteढीठ बनकर
मुझे ही सहने दो
बहुत सच्ची बात है ! धन्यवाद !
seedha/saral/prabhaavi.. ekaant ....न तुम कुछ कहो
ReplyDeleteऔर न मुझे ही
कुछ कहने दो..shart ye ki ghutan na ho....
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteपंक्तियां आपकी और बयान मेरा । मैं भी इन दिनों इसी अवसाद को जी रहा हूं । लेकिन यह स्थिति बिलकुल ही अच्छी नहीं है - न मेरे लिए, न आपके लिए न ही किसी और के लिए । इस कविता का प्रति उत्तर आपसे जल्दी मिले-ईश्वर से यही प्रार्थना है ।
ReplyDeleteअकेलेपन की यह पीड़ा सबके भीतर का सच है, घर लौटता हुआ आदमी दिन भर के आपाधापी के बाद फिर अकेला हो जाता है, ज्यादातर किया गया प्रक्रम अकेलेपन से बचने के लिए ही किया जाता है। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteभई अपन को तो अकेलापन काट्ता है।बडा डर लगता है अकेलेपन से।वैसे रचना बहुत अच्छी है।
ReplyDeleteanil pushkar ji se sehmath hun, akelapan bahut hee dard dene wala hai, kabhi kabhi bahut der ho jati hai iska ehsaas hone mein.Kavita dil ko choo jati hai aur ek dard de jati hai.Badai Anurag ji.
ReplyDelete'तबे एकला' वाले अकेलेपन और इस अकेलेपन में बड़ा अन्तर है... यहाँ झुंझलाहट और आक्रोश सहज ही दीखता है... ये अकेलापन डरावना है भाई !
ReplyDeleteअकेले ही आये थे हम और एक जगह सभी अकेले हैँ उसका विषाद न हो !
ReplyDeleteमन को सँयत और शाँत रखना जरुरी है
-लावण्या
आपने बिल्कुल सही कहा अकेले ही चलना है! भीड तो दिखावा मात्र है!!
ReplyDeleteWonderful, very nice idea!
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