सच कड़वा है कहने वाले,
न जानें सच क्या होता है।
सच मीठा भी हो सकता है,
क्या जाने जो बस रोता है।
दोषारोप लगें कितने, सच
सिसकता है न रोता है।
सच तनकर चलते रहता है,
जब झूठ फिसलता होता है।
सच वैतरणी भी तरता है,
जहाँ झूठ लगाता गोता है।
सच की छाया तरसेगा ही
जो बीज झूठ के बोता है।
न तत्व वचन सत्यं, न तत्व वचनं मृषा ।यद्भूत हितमत्यन्तम् तत्सयमिति कथ्यते॥(महाभारत)
अर्थ: बात को ज्यों को त्यों कह देना सत्य नहीं है और न असत्य है। जिसमें प्रणियों का अधिक हित होता है, वही सत्य है।
अरे बन्धुवर, झूठ के साथ एक परेशानी है। आपकी मेमोरी बहुत शार्प होनी चाहिये - यह याद रखने को कि क्या क्या झूठ बोल चुके हैं। वर्ना अपने झूठ को झूठ से काटते हुये बड़ी हास्यास्पद दशा होती है।
ReplyDeleteसच में यह झंझट नहीं।
सच वैतरणी भी तरता है,
ReplyDeleteजहाँ झूठ लगाता गोता है।
" sach sach mey jo tumne baat khee,
humko bhee lga sach hotta hai,
jub sach pe aanch koee aaye,
sach dukhta hai sach rotta hai...."
Regards
वाकई
ReplyDeleteसत्यमेव जयते
या फिर ये भी कहा जा सकता है कि
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
बहरहाल प्रखर भावबोध के लिये बधाई स्वीकारें
बहुत बढिया लिखा ।सच में।
ReplyDeleteक्या जाने सच क्या होता है बहुत खूब। सच में। बेहतरीन।
ReplyDeleteसच वैतरणी भी तरता है,
ReplyDeleteजहाँ झूठ लगाता गोता है।
सच्ची और अच्छी बात...वाह.
नीरज
सच तनकर चलते रहता है,
ReplyDeleteजब झूठ फिसलता होता है।
बहुत सच कहा आपने ! वैसे ये कहा जाता है की एक झूँठ को सच बनाने के लिए सौ झूँठ बोलने पड़ते हैं और झूँठ के लिए खाते बही रखने पड़ते हैं ! अत: सच बोलने वाला ज्यादा चैन से रहता है !
हाँ, यदि झूठ की आदत न होती तो सच ही सही व मधुर लगता । बहुत अच्छि कविता ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सच वैतरणी भी तरता है,
ReplyDeleteजहाँ झूठ लगाता गोता है।
सही कहा आपने ..अच्छी लगी आपकी यह पंक्तियाँ
एकदम सत्य कहा.सत्य यदि विनीत मनोरम ढंग से कहा जाए तो उससे सुंदर कुछ हो ही नही सकता.सत्य कटु उसे लगता है,जो असत्यपथगामी होते हैं.और सचमुच इसपर चलने वाला ही मस्तक उठा कर चल सकता है.
ReplyDeleteसत्य ही ईश्वर है । जिसने सच को साध लिया, ईश्वर उसी के साथ, उसी का होकर रह गया ।
ReplyDeleteझूठ तभी तक चलता है जब तक उस के सच होने का भ्रम बना रहता है।
ReplyDeleteसच कड़वा है कहने वाले,
ReplyDeleteक्या जानें सच क्या होता है।
बहुत बढिया कहा आपने ! तिवारीसाहब का सलाम !
वाह! बहुत सुंदर.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ ""
ReplyDeleteसच तनकर चलते रहता है,
ReplyDeleteजब झूठ फिसलता होता है।
बहुत अच्छी और सटीक बात कही आपने !
हर बार की भाँती फ़िर से सुंदर पंक्तियाँ और गहरे भाव बधाई
ReplyDeleteसच हमेशा जी है, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद
सटीक विवेचना !!
ReplyDeleteसत्य एक रहस्य भी है
जो लगता है वह अक्सर नही होता है !!
सच कड़वा है कहने वाले,
ReplyDeleteक्या जानें सच क्या होता है।
सच को आपने एक नया आयाम दे दिया !!!!!!
सच की बात ही निराली है। अच्छि कविता।
ReplyDeleteSach men , aapne sach ko sundar paribhasha dee hai. ya yon kahen ki sach ki sundar vyakhya ki hai. pahli do linon men sach ka saar chhipa hai.
ReplyDeleteab kya likhen sach ke baare me aapne hi sach likh diya
ReplyDeleteसत्यम् शिवम् सुंदरम्। अच्छी कविता है।
ReplyDeleteसच तो प्यारे सच होता है
ReplyDeleteझूठ सदा बेबस होता है
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
Great. Simple , yet towering presence of contents with substance.
ReplyDeleteThanks!
(My Hindi translator is giving problem, hence used English)
सच तनकर चलते रहता है,
ReplyDeleteजब झूठ फिसलता होता है।
सच वैतरणी भी तरता है,
जहाँ झूठ लगाता गोता है।
acchchhi baat hai.
सच तनकर चलते रहता है,
ReplyDeleteजब झूठ फिसलता होता है।
सच वैतरणी भी तरता है,
जहाँ झूठ लगाता गोता है।
bahut khub
सच तो सच है....बढ़िया.
ReplyDeleteअनुराग जी,
ReplyDeleteवैतरणी पार करने की चिंता और कर लेने तरीके, वाह! वाह!!
मन की साध पूरी हुई बड़े दिनों से चाहता था कि आप मेरे ब्लॉग पर आयें और कुछ कहें. आगे भी स्नेह बनाये रखें
ध्न्यवाद.
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत अच्छा लिखा है |
ReplyDeleteसच मैं भी मिठास होता है |