क्रिसमस के अगले दिन हिमांक से नीचे के तापक्रम पर उसे देखा भोजन की जुगाड़ करते हुए। संसार के सबसे समृद्ध देश में वंचितों को देखकर यही ख्याल आता है कि संसार में मानवीय समस्यायें केवल इसीलिये हैं क्योंकि हमने उन्हें हल करने के प्रयास पूरे दिल से किये ही नहीं। नहीं जानता हूँ कि क्या करने से इस समस्या का उन्मूलन हो सकेगा। बस इतना ही जानता हूँ कि जो होना चाहिए वह किया नहीं जा रहा है। भाव अस्पष्ट हैं और इस बार भी रचना शायद काव्य की दृष्टि से ठीक न हो।
समां शाम का कितना प्यारा
डरता उत्सव से अँधियारा
रिश्ते भरकाते तो डर क्या
हो भले शून्य से नीचे पारा
शाम ढली उल्लास भी बढ़ा
ठिठुर रहा पर वह बेचारा
सैंटा मिलता हरिक माल में
ओझल रहा यही दुखियारा
सबको तो उपहार मिले पर
ये क्यों न प्रभु को प्यारा
बर्फ ने काली रात धवल की
चन्दा छिपा छिपा हर तारा
रजत परत सब ढंके हुए थे
कांपते उघड़ा वक़्त गुज़ारा
अगला दिन भी रहा उनींदा
अलसाया था हर घर द्वारा
सूरज की छुट्टी कूड़े में
बीन रहा भोजन भंडारा
तख्ती सब कहती है |
डरता उत्सव से अँधियारा
रिश्ते भरकाते तो डर क्या
हो भले शून्य से नीचे पारा
शाम ढली उल्लास भी बढ़ा
ठिठुर रहा पर वह बेचारा
सैंटा मिलता हरिक माल में
ओझल रहा यही दुखियारा
सबको तो उपहार मिले पर
ये क्यों न प्रभु को प्यारा
बर्फ ने काली रात धवल की
चन्दा छिपा छिपा हर तारा
रजत परत सब ढंके हुए थे
कांपते उघड़ा वक़्त गुज़ारा
अगला दिन भी रहा उनींदा
अलसाया था हर घर द्वारा
सूरज की छुट्टी कूड़े में
बीन रहा भोजन भंडारा