(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)
क्यों ऐसी बातें करते हो
ज़ालिम दुनिया से डरते हो
जो आग को देखके राख हुए
क्यों तपकर नहीं निखरते हो
बस एक ही था वह रूठ गया
अब किसके लिये संवरते हो
हर रोज़ बिछड़ जन मिलते हैं
तुम मिलकर रोज़ बिखरते हो
सब निर्भय होकर उड़ते हैं
तुम फिक्र में डूबते तिरते हो
जब दिल में आग सुलगती है
तुम भय की ठंड ठिठुरते हो
इक बार नज़र भर देखो तो
जिस राह से रोज़ गुज़रते हो
कल त्याग आज कल पाता है
तुम भूत में कितना ठहरते हो
ज़ालिम दुनिया से डरते हो
जो आग को देखके राख हुए
क्यों तपकर नहीं निखरते हो
बस एक ही था वह रूठ गया
अब किसके लिये संवरते हो
हर रोज़ बिछड़ जन मिलते हैं
तुम मिलकर रोज़ बिखरते हो
सब निर्भय होकर उड़ते हैं
तुम फिक्र में डूबते तिरते हो
जब दिल में आग सुलगती है
तुम भय की ठंड ठिठुरते हो
इक बार नज़र भर देखो तो
जिस राह से रोज़ गुज़रते हो
कल त्याग आज कल पाता है
तुम भूत में कितना ठहरते हो