लोग अक्सर शाब्दिक हिंसा की बात करते हुए उसे वास्तविक हिंसा के समान ठहराते हैं. फ़ेसबुक पर एक ऐसी ही पोस्ट देखकर निम्न उद्गार सामने आये. शब्दों को ठोकपीट कर कविता का स्वरूप देने के लिये सलिल वर्मा जी का आभार. (अनुराग शर्मा)
मत करो
मत करो तुलना
कलम-तलवार में
और समता
शब्द और हथियार में
ताण्डव करते हुये हथियार हैं
शब्द पीड़ा-शमन को तैयार हैं
कुछ बुराई कर सके
अपशब्द माना
वह भी तभी जब
मैं समझ पाऊँ
गिरी भाषा तुम्हारी
और निर्बलता मेरी
आहत मुझे कर दे ज़रा
कुछ भी कहो
सामान्यतः
लेकिन तुम्हारी
आईईडी, बम, और बरसती गोलियाँ
इनसे भला किसका हुआ
हर कोई बस है मरा
नारी-पुरुष, आबाल-वृद्ध
कोई नहीं है बच सका
जो सामने आया
वही जाँ से गया
शब्द और हथियार की तुलना
तो केवल बचपने की बात है
ध्यान से सोचें तनिक तो
ये किन्हीं हिंसक दलों की
इक गुरिल्ला घात है
इनके कहे पर मत चलो तुम
वाद या मज़हब,
किसी भी बात पर
इनका हुकुम मानो नहीं तुम
छोड़कर हिंसा को ही
संसार यह आगे बढ़ा है
नर्क तल में और हिम ऊपर चढ़ा है
बस चेष्टा इतनी करो
हिंसा से तुम बचकर रहो
जब भी कहो, जैसा कहो, बस सच कहो
और धैर्य धर सच को सहो
शब्द से उपचार भी सम्भव है जग में
प्रेम तो नि:शब्द भी करता है अक्सर
फिर भला नि:शस्त्र होना
हो नहीं सकता है क्यों
पहला कदम इंसानियत के नाम पर
कर जोड़कर
कर लो नमन, हथियार छोड़ो
अग्नि हिंसा की बुझाने के लिये तुम
आज इस पर बस ज़रा सा प्रेम छोड़ो!
मत करो
मत करो तुलना
कलम-तलवार में
और समता
शब्द और हथियार में
ताण्डव करते हुये हथियार हैं
शब्द पीड़ा-शमन को तैयार हैं
कुछ बुराई कर सके
अपशब्द माना
वह भी तभी जब
मैं समझ पाऊँ
गिरी भाषा तुम्हारी
और निर्बलता मेरी
आहत मुझे कर दे ज़रा
कुछ भी कहो
सामान्यतः
हर शब्द ने है
दर्द अक्सर ही हरा
दर्द अक्सर ही हरा
लेकिन तुम्हारी
आईईडी, बम, और बरसती गोलियाँ
इनसे भला किसका हुआ
हर कोई बस है मरा
नारी-पुरुष, आबाल-वृद्ध
कोई नहीं है बच सका
जो सामने आया
वही जाँ से गया
शब्द और हथियार की तुलना
तो केवल बचपने की बात है
ध्यान से सोचें तनिक तो
ये किन्हीं हिंसक दलों की
इक गुरिल्ला घात है
इनके कहे पर मत चलो तुम
वाद या मज़हब,
किसी भी बात पर
इनका हुकुम मानो नहीं तुम
छोड़कर हिंसा को ही
संसार यह आगे बढ़ा है
नर्क तल में और हिम ऊपर चढ़ा है
बस चेष्टा इतनी करो
हिंसा से तुम बचकर रहो
जब भी कहो, जैसा कहो, बस सच कहो
और धैर्य धर सच को सहो
शब्द से उपचार भी सम्भव है जग में
प्रेम तो नि:शब्द भी करता है अक्सर
फिर भला नि:शस्त्र होना
हो नहीं सकता है क्यों
पहला कदम इंसानियत के नाम पर
कर जोड़कर
कर लो नमन, हथियार छोड़ो
अग्नि हिंसा की बुझाने के लिये तुम
आज इस पर बस ज़रा सा प्रेम छोड़ो!