Tuesday, November 3, 2009

अहम् ब्रह्मास्मि - कविता

हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा प्रकाशित
प्रवासी काव्य संग्रह "देशांतर" की प्रथम कविता
शामे अवध हो या सुबहे बनारस
पूनम का चन्दा हो चाहे अमावस

अली की गली या बली का पुरम हो
निराकार हो या सगुण का मरम हो

हो मज़हब रिलीजन, मत या धरम हो
मैं फल की न सोचूँ तो सच्चा करम हो

कोई नाम दे दो कोई रूप कर दो
उठा दो गगन में धरा पे या धर दो

तमिलनाडु, आंध्रा, शोनार बांगला
सिडनी, दोहा, पुणे माझा चांगला

सूरत नी दिकरी, मथुरा का छोरा
मोटा या पतला, काला या गोरा

सारे जहाँ से आयी ये लहरें
ऊँची उठी हैं, पहुँची हैं गहरे

खुदा की खुमारी, मदमस्त मस्ती
हरि हैं हृदय में, यही मेरी हस्ती

19 comments:

  1. हो मज़हब रिलीजन, मत या धरम हो
    मैं फल की न सोचूँ तो सच्चा करम हो

    कोई नाम दे दो कोई रूप कर दो
    उठा दो गगन में धरा पे या धर दो

    तमिलनाडु, आंध्रा, शोनार बांगला
    सिडनी, दोहा, पुणे माझा चांगला
    वाह आज की ये कविता देश प्रेम और एकता से और प्रोत है , सुन्दर अभिव्यक्ति आभार
    regards

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  2. मैं फल की न सोचूं तो सच्‍चा करम हो। अनुराग भाई बेहतरीन रचना। बधाई।

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  3. अहम् ब्रह्मास्मि - कविता
    Tuesday, November 3, 2009शामे अवध हो या सुबहे बनारस
    पूनम का चन्दा हो चाहे अमावस

    अली की गली या बली का पुरम हो
    निराकार हो या सगुण का मरम हो

    हो मज़हब रिलीजन, मत या धरम हो
    मैं फल की न सोचूँ तो सच्चा करम हो

    Bahut sundar !!

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  4. प्रभु हैं ह्रदय में, यही मेरी हस्ती
    यही तो सारभूत है !
    और यद् सारभूतं तदुपास्नीयम !

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  5. खुदा की खुमारी, मदमस्त मस्ती
    प्रभु हैं ह्रदय में, यही मेरी हस्ती

    ये शेर बहुत बढ़िया है।
    बधाई!

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  6. शामे अवध हो या सुबहे बनारस
    पूनम का चन्दा हो चाहे अमावस
    पहली शेर इतनी खबसूरत और गहरी बाते लिये हुये ........बाकि की रचना एक से बढकर एक है ........
    सारे जहां से आयी ये लहरें
    ऊंची उठी हैं, पहुँची हैं गहरे
    आपकी यह पंक्तियाँ आपके रचना के लिये मै कह सकता हूँ ......बहुत बहुत सुन्दर लाज़वाब!

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  7. अली की गली या बली का पुरम हो
    निराकार हो या सगुण का मरम हो ...

    खुदा की खुमारी, मदमस्त मस्ती
    प्रभु हैं ह्रदय में, यही मेरी हस्ती

    ये दोनों chhand बहुत ही achhe लगे आपकी इस रचना के ..... vaise तो पूरी रचना ही kamaal की है ...... anoothi .....

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  8. वाह, ऋग्वैदीय युग से ले कर आजतक के सभी फ्लेवर मिले पोस्ट में!

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  9. अति सुंदरतम रचना.शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  10. कोई नाम दे दो कोई रूप कर दो
    उठा दो गगन में धरा पे या धर दो
    अत्यंत खूबसूरत रचना.

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  11. प्यारे अनुराग भाई,
    आज दिल जीतने की बात कह गए आप।
    बहुत ही बेहतरीन और संग्रहणीय रचना है ये आपकी।
    बहुत बहुत आभार ऐसे वक्त पर इसे प्रस्तुत करने के लिए।

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  12. अद्वितीय..
    ...बस यही एक शब्द पारिभाषित कर सकता है आपकी इस बेमिसाल रचना को !!!

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  13. कमाल है इस तरह से किसी और ने क्यों न सोचा !
    भैया, आप का आत्मविश्वास नमनीय है। ..हस्ती अब इससे अधिक क्या होगी?

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  14. खुदा की खुमारी, मदमस्त मस्ती
    प्रभु हैं ह्रदय में, यही मेरी हस्ती
    बहुत सुंदर जी आप की यह गजल.
    धन्यवाद

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