Tuesday, December 24, 2013

संगीता रिचर्ड बनाम देवयानी खोबरागड़े बनाम भावुक भारतीय

शहीद सूबेदार कुंवर पाल
दिसंबर 2013: मेरठ के सूबेदार कुँवर पाल गुरुवार को भारतीय शांति सैनिकों के शिविर पर हुए हमले में मारे गए। दक्षिणी सूडान से उनके शव को लाने में हो रही देरी पर उनके परिवार और गाँव में बहुत रोष है। उनकी पत्नी के भाई कहते हैं, "कोई नेता होता तो दो घंटे में इंतज़ाम हो जाता. यहाँ सेना के जवान के लिए कोई सुविधा नहीं है?"

दिसंबर 2013: न्यूयॉर्क में अपनी नौकरानी के शोषण और प्रताड़ना तथा अमेरिकी वीसा प्रक्रिया के साथ धोखाधड़ी के आरोप में न्यूयॉर्क में पकड़ी गई देवयानी खोबरागड़े को सस्पेंड करने के बजाय भारत सरकार अमेरिका के खिलाफ हर तरह के विरोध दर्ज़ करने के बाद देवयानी को राजनीतिक प्रतिरक्षा का लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से उसे संयुक्त राष्ट्र के स्थाई प्रतिनिधि के रूप में प्रोन्नत करती है। खबरें देखने पर पता लगता है कि देवयानी खोबरागड़े ने वीसा प्रक्रिया में तो धोखाधड़ी की ही थी, साथ ही नौकरानी द्वारा कानूनी सहायता लेने पर उसके परिवार के खिलाफ भारत में धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज़ कराकर उसके पति को भी गिरफ्तार कराया था। बात यहीं नहीं रुकी, देवयानी ने नौकरानी का पासपोर्ट रद्द कराया और फिर पासपोर्टविहीन होने के कारण उसे अवैध आप्रवासी बताकर अमेरिकी सरकार पर दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास द्वारा उसकी गिरफ्तारी के लिए दवाब डाला। एक ओर एक निम्न-मध्यवर्गीय घरेलू नौकरानी और दूसरी ओर एक शक्तिशाली नौकरशाह परिवार। दवाब बढ़ता गया और अंततः बात यहाँ तक पहुँची कि अमेरिकी सरकार को संगीता के परिवार को दमन से बचाने के लिए अमेरिका लाना पड़ा।

दोनों परिस्थितियों की तुलना करने पर न केवल शहीद सूबेदार के परिजनों के शब्द सही साबित होते हैं बल्कि हमारे महान राष्ट्र के आदर्श वाक्य "सत्यमेव जयते" को भी गहरी चोट पहुँचती है और मेरे जैसा सामान्य बुद्धि वाला एक भारतीय यह सोचने को बाध्य होता है कि देश की वर्तमान व्यवस्था किस किस्म के लोगों को लाभ पहुँचाने में लगी है और एक गरीब भारतीय नागरिक के दमन के लिए उसके लिए हमारी मशीनरी कितना दूर तक जा सकती है।

एक ओर निहित स्वार्थ के लिए कानून को नचाने वाले नेता और नौकरशाह हैं और दूसरी ओर वे सैनिक हैं जिनके सिर आतंकवादी काट लेते हैं, जिनके शरीर को पड़ोसी देश की सेना अपमानजनक रूप से क्षत-विक्षत करती है। जिनकी विधवाओं को देने के नाम पर बने "आदर्श" के फ्लैट कुछ भ्रष्ट नेता और नौकरशाह मिलकर बाँट लेते हैं।

एक ओर पूरा भारतीय नौकरशाही तंत्र है और दूसरी ओर एक घरेलू सहायिका संगीता रिचर्ड है जो अपने घर-परिवार से दूर एक समृद्ध राजनयिक के परिवार की सेवा में लगी है और जब अपने पैसे या समय के बारे में कानूनन जायज़ शिकायत करती है तो उसकी मालकिन अपने प्रभाव का प्रयोग करके एक ऐसे इकरारनामे के आधार उसके पति को भारत में चार सौ बीसी के आरोप में गिरफ्तार करवाती है,जो आगे चलकर मालकिन देवयानी के खुद के अपराध का प्रमाण बनता है। देवयानी को इतने पर भी तसल्ली नहीं होती तो अपने रसूख का प्रयोग कर अमेरिकी प्रशासन और दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास पर दवाब डलवाती है कि पासपोर्ट रद्द होने के बावजूद भी अमेरिका में रुकी हुई सहायिका को गिरफ्तार करके सज़ा काटने के लिए भारत क्यों नहीं भेजा जा रहा है। जबकि वह पासपोर्ट तो संगीता की मर्ज़ी और जानकारी के बिना (संभवतः देवयानी की पहल पर) रद्द किया गया था। इस जोश में वह अमेरिकी दूतावास को गलती से यह भी बता बैठती है कि भारत में संगीता और उसके पति के खिलाफ कोर्ट और पुलिस के जोश का आधार देवयानी का तैयार किया गया एक ऐसा दूसरा इकरारनामा (25,000 रुपये मासिक का) है जो उसने संगीता को नौकरी देते समय लिखवाया था और घरेलू नौकरानी का वीसा दाखिल कराते समय, अमेरिकी कानून की प्रतिबद्धता (न्यूयॉर्क में 9.75 डॉलर प्रति घंटा या अधिक) की बात पर हस्ताक्षर करते समय उनके शोषण-विरोधी श्रम क़ानूनों की काट के लिए उन्हीं के विरुद्ध बनाए गए इस इकरारनामे की बात छिपा ली गई थी। वीसा अर्ज़ी में घोषित और अमेरिका में रहते हुए न्यूनतम वेतन या उससे अधिक वेतन देने के वादे वाले इकरारामे से इतर (कम पैसे वाला) कोई भी इकरारनामा अमेरिका में कार्य के नियमों का खुला उल्लंघन है, और 25,000 रुपये मासिक के ऐसे छिपे हुए और समांतर समझौते का उद्देश्य सिर्फ इतना ही हो सकता है कि संगीता को नियम से कम वेतन दिया जाय और यदि कभी वह अपने अधिकारों के बारे में जान जाये और उनकी मांग करे तो उसे भारत में कानूनी कार्यवाही के नाम से धमकाया जा सके। क्या ऐसा इकरारनामा भारतीय संविधान के तहत कानूनी माना जाएगा? मुझे इसमें शक है लेकिन कानूनी विशेषज्ञों की राय जानना चाहूँगा।

देवयानी सरकारी सुविधाओं का पूर्ण लाभ उठा रही थीं। खबरें हैं कि वे अमेरिका के सबसे महंगे इलाकों में से एक मैनहेटन में चार बेडरूम के निवास में रह रही थीं जहां पति और दो बच्चों के परिवार और नौकरानी के साथ एक राजनयिक के रहने योग्य घर का किराया मात्र ही एक भारतीय राजनयिक के तथाकथित "मामूली" वेतन से कहीं अधिक होगा। उनकी न्यूयोर्क पोस्टिंग का एक आधार उसी नगर में जन्मे उनके अमेरिकी पति आकाश सिंह राठोर का निवास भी था। इससे पहले 1999 में जब आकाश सिंह राठोर बर्लिन में थे तब देवयानी को बर्लिन पोस्टिंग दिलाने के लिए उनसे दो रैंक ऊपर रहे महावीर सिंघवी की उपस्थिति को नकार कर नियमों में बदलाव किया गया था, यह बात महावीर सिंघवी द्वारा भारत सरकार के विरुद्ध दायर मुकदमे का निर्णय सिंघवी के पक्ष में करते समय भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी मानी थी। सिंघवी को नौकरी से सस्पेंड किया गया था। खबर है कि उन्हें बहाल कराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। आप समझ ही गए होंगे कि यह खबर कहीं नहीं है कि जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही होगी या नहीं।

शहीदों की विधवाओं के पुनर्वास के नाम पर मुंबई में हुए आदर्श सोसाइटी फ्लैट घोटाले की जांच करने वाले न्यायिक जांच आयोग ने देवयानी खोबरागड़े को उन 25 आवंटियों की सूची में रखा है जिन्होने आवंटन के अयोग्य होते हुए भी सोसाइटी में फ्लैट प्राप्त किया था। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जे ए पाटिल की अगुवाई वाले दो सदस्यीय आयोग की रपट में देवयानी के सेवानिवृत्त आईएएस पिता और बेस्ट (BEST) के तत्कालीन महाप्रबंधक उत्तम खोबरागड़े पर आरोप है कि उन्होंने आदर्श सोसाइटी का फ्लोर एरिया बढ़ाने के लिए बेस्ट का नजदीकी प्लॉट हस्तांतरित कर दिया था। इस काण्ड में भी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही होने की खबर नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र विधानसभा ने तो रिपोर्ट में राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों विलाराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे और अशोक चव्हाण का नाम होने के कारण रिपोर्ट को ही अमान्य कर दिया है। अमेरिका में काम कर रही नौकरानी को अमेरिका में निर्धारित न्यूनतम वेतन देने की बात पर राजनयिकों के कम वेतन का रोना रोने वालों को यह ध्यान रखना चाहिए कि देवयानी द्वारा इस फ्लैट के लिए दिये गए एक करोड़ दस लाख रुपये के लिए किसी बैंक लोन का कोई रिकार्ड जांच समिति को नहीं मिला है।

देवयानी से संबन्धित पिछली तीन घटनाएँ तो सत्तासीन हठधर्मी के बाइप्रोडक्ट के रूप में प्रकाश में आ गईं। लेकिन हमारे आसपास हर रोज़ न जाने ऐसी कितनी घटनाएँ हो रही हैं जहाँ भ्रष्ट नेता-नौकरशाह-अपराधी गठबंधन आम भारतीय नागरिकों के अधिकारों का हनन करता रहता है और उन्हीं को नेतृत्व प्रदान करने का ढोंग भी रचता है। दुख की बात यह है कि इस मामले के सामने आने तक देवयानी ने महिला अधिकारों की रक्षक की छवि बनाकर रखी थी। भारत में रहते हुए अपने सम्बन्धों, बाहुबल और सत्ता के मद में चूर लोग कई बार यह बात भूल जाते हैं कि (भारत के बाहर) अधिकांश विकसित देशों के विकास के मूल में एक सुदृढ़ कानूनी व्यवस्था है। वे देश तरक्की इसलिए कर सके क्योंकि वहाँ सामंतों द्वारा अधीनस्थों के खिलाफ कानून-पुलिस-नियम आदि का दुरुपयोग कर पाना आसान नहीं है।

नौकरों के मानवाधिकार का हनन भारत में आम है लेकिन अमेरिका में पहले भी कई भारतीय धनाढ़्यों का नाम इस अपराध में सामने आया है। मई 2007 में न्यूयॉर्क के धनपति व्यापारी महेंद्र मुरलीधर सभनानी और उनकी पत्नी वर्षा सभनानी को अपने लॉन्ग आइलैंड (न्यूयॉर्क) स्थित घर में इंडोनेशियाई मूल की दो महिलाओं को कई सालों से गुलामों की तरह रखने और निरंतर प्रताड़ित करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था।

सन 2001 में बर्कले कैलिफोर्निया में एक गर्भवती किशोरी की मृत्यु की जांच जब आगे बढ़ी तो भारत में इंजीनियरिंग कॉलेज और धर्मार्थ संस्था चलाने वाले एक परोपकारी भारतीय व्यवसाई का नाम सामने आया जिसने बर्कले से अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर किया था। जांच आगे बढ़ी तो पता लगा कि अमेरिका में नौकरी दिलाने के बहाने भारतीय लड़कियों को अमेरिका लाकर उनके शोषण का बड़ा रैकेट चल रहा था। अंत में वीसा फ्रॉड, करचोरी और मानव तस्करी के आरोप में लकी रेड्डी को 97 महीने कारावास, बीस लाख डॉलर के जुर्माने की सज़ा तो मिली ही, अदालत के आदेश पर उसने पीडिताओं को 89 लाख डॉलर का भुगतान भी किया।

इस साल के आरंभ में न्यूयॉर्क राज्य में ही 30,000 वर्ग फुट के 34 कमरों वाले घर में रहने वाली भारतीय मूल की एनी जॉर्ज को अपनी घरेलू नौकरानी के शोषण के अपराध में सजा हुई थी। इस कांड में नौकरानी भी भारतीय मूल की (केरल से लाई गई) थी। सुबह साढ़े पाँच से रात के 11 बजे तक बिना छुट्टी लगातार काम करने के बाद एक बड़ी अलमारी में ज़मीन पर सोने वाली परिचारिका अङ्ग्रेज़ी नहीं बोल सकती थी।

देवयानी से पहले के कई मामलों में भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका भी रही है। 2011 में न्यूयॉर्क उपदूतावास के ही कॉन्सुलर प्रभु दयाल पर उनकी भारत से लाई गई घरेलू नौकरानी संतोष भारद्वाज ने मिलते जुलते आरोप लगाए थे। खोबरागड़े की तरह प्रभुदयाल ने भी अमेरिका से मांग की थी कि संतोष को पकड़कर भारत भेज दिया जाये। उस मुकदमे में भी भारत सरकार अपने अधिकारी की ओर से लड़ी और गरीब भारतीय नागरिक के जायज़ अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने का काम अमेरिकी सरकार ने किया। बाद में ऐसी खबरें आईं कि प्रभुदयाल ने अदालती व्यवस्था के बाहर समझौता कर लिया था।

2010 में इसी उपदूतावास की प्रेस सचिव डॉ नीना मल्होत्रा भी अपनी घरेलू नौकरानी शांति गुरुङ्ग के साथ इसी स्थिति का सामना कर चुकी हैं जिन पर फरवरी 2012 में अपनी नौकरानी को देने के लिए 15 लाख डॉलर का हर्जाना लगाया गया था। इस केस में नीना और उनके पति ने दिल्ली हाईकोर्ट से शांति को भारत के बाहर कोई कानूनी कार्यवाही न करने देने का आदेश दिलाया था।

हाँ, यह पहली बार हुआ है जब बात इतनी आगे पहुँच गई कि आरोपी को गिरफ्तार करने की नौबत आ गई। यदि खोबरागड़े की पहल पर भारतीय व्यवस्था द्वारा संगीता के परिवार को भारत में प्रताड़ित करने और अमेरिका पर उसकी गिरफ्तारी और वापसी का ऐसा गहरा दवाब नहीं बनाया जाता तो शायद मामला ऐसे टकराव तक नहीं पहुँचता।

दुख की बात है कि जैसे ही ऐसी कोई भी खबर आती है हमारे राष्ट्रीय प्रेम की केतली में ज्वार आ जाता है और हम सही-गलत सब भूलकर अमेरिका को लतियाने बैठ जाते हैं। इतना भी याद नहीं रहता कि दूसरा पक्ष अमेरिका नहीं है, एक अन्य भारतीय नागरिक है जो भारतीय न्याय व्यवस्था में केवल जेल जाने के लिए अभिशप्त है। भारतीय कानून के कागज के सहारे जब शक्तिशाली नेता या राजनयिक एक घरेलू नौकर को "मेरी मानो या जेल जाओ" की धमकी देते हैं तो यह भी उसी राष्ट्रव्यापी भ्रष्टाचार का ही एक भयानक चेहरा है जिसे हम नकार नहीं सकते। अपने शोषण का विरोध करने वाली घरेलू नौकरानियों को अमेरिकी वीसा उल्लंघन के लिए भारत में गिरफ्तार करवाने की मांग करने वाले भारतीय राजनयिकों को अपनी कानूनी ज़िम्मेदारी याद रहे तो देश की छवि चकनाचूर होते रहने से बचेगी।
कुछ लोग अपने अपराध का नहीं, अपने प्रति हुई कानूनी कार्यवाही का प्रायश्चित करते हैं
अब बातें उन भावनात्मक सवालों की जिन्हें सोशल मीडिया में भोले-भारतीयों द्वारा बारंबार उठाया जा रहा है। इनमें से अधिकांश का स्रोत देवयानी, उसके परिवारजनों और कुछ नेताओं से जुड़ा है।

1. अमेरिका जिस तरह संगीता को बचा रहा है उसके जासूस होने की संभावना है।
- संगीता को बचाने का प्रयास अमेरिकी मानवाधिकार प्रतिबद्धता के एकदम अनुकूल है। यदि भारत में ऐसी प्रतिबद्धता दिख जाये तो हमारी वंचित और दरिद्र जनता के न जाने कितने सपने साकार हो जाएँ। देवयानी का तो पति ही अमेरिकी नागरिक है, क्या इतने भर से आप देवयानी और उसके पति पर भी जासूस होने का आरोप लगाने का साहस करेंगे? कमजोर को लतियाने और दबंग से डर जाने की आदतें छोड़िए और कभी कभी दिमाग पर ज़ोर डालने की कोशिश भी कीजिये। अमेरिकी कानून में यह प्रयास है कि अवैध आप्रवासियो को भी अपने या परिवार के इलाज या शिक्षा आदि में कोई बाधा न पहुँचे और उनके मानवाधिकारों की रक्षा हो। अपनी शरणागत-वत्सल परंपरा तेज़ी से भूलने वाले देश को आज के अमेरिका से काफी कुछ सीखने की ज़रूरत है

2. देवयानी दलित है, यह केस उच्चजातियों की साजिश है।
- देवयानी का परिवार भारत के बड़े धनिक और राजनीतिक शक्ति-सम्पन्न परिवारों में से एक है। उसे मेडिकल कॉलेज और नौकरी में कानून के तहत आरक्षण भले ही मिला हो लेकिन इस मामले में दलित कार्ड का प्रयोग करना भी वंचितों और दलितों का मखौल उड़ाने जैसा है। इस केस में यदि कोई दलित है तो वह संगीता है।

3. यह अमेरिका की हिन्दू विरोधी साजिश है
- संगीता के नाम में रिचर्ड देखते ही आपको हिन्दू याद आ गए? इससे पहले शांति गुरुङ्ग और संतोष भारद्वाज को बचाने में तो अमेरिका हिन्दू विरोधी नहीं था। वैसे, मीडिया में जितनी सामग्री उपलब्ध है उसके अनुसार देवयानी का परिवार हिन्दू नहीं नव-बौद्ध (माइनस हिन्दू) लगता है। सच यह है कि अमेरिका एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है और ऐसे कयास बड़े बचकाने हैं।

4. भारत में अमेरिकी राजनयिकों को गिरफ्तार किया जाये क्योंकि उनमें से कोई भी अमेरिका के हिसाब से न्यूनतम वेतन नहीं देता होगा।
- कुतर्क का यह एक उत्तम उदाहरण है। हमें तो यह भी नहीं पता कि उनमें से कितनों के घर में नौकर हैं। और फिर आप भारत में भारत के कानून के पक्षधर हैं कि अमेरिका के? यह सच है कि भारत में भी न्यूनतम वेतन आदि के क़ानूनों के निर्माण और अनुपालन की ज़रूरत है और इस दिशा में प्रयास होना चाहिए। अमेरिका में हर कार्यालय में न्यूनतम वेतन के सरकारी निर्देश बुलेटिन बोर्ड पर किसी दर्शनीय स्थल पर लगाए जाने का प्रावधान भी है। हम भी कानून बनाने और उसे लागू करने के बाद इस प्रकार की छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दे सकते हैं।
जिस तेज़ी से न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक नौकरों के दमन और शोषण के मामलों में फंस रहे हैं भारतीय उप-दूतावास को अपने ही परिसर में उच्च-स्तरीय स्कैन सुविधाओं से लेस एक भारतीय-कामगार-शोषण-जेल-सेल खोलने के मामले पर विचार करना चाहिए ताकि अधिकारियों को शारीरिक जांच से न गुज़रना पड़े।
5. अमेरिकी दूतावास के समलैंगिक कर्मचारियों को भारतीय कानून के तहत गिरफ्तार किया जाये
- पुनः, क्या आपको पता है कि देश भर के सारे समलैंगिक अमेरिकी दूतावास में ही रहते हैं? आज़ादी के छः दशक बाद भी जिस देश की राजधानी तक को विकास छू भी नहीं गया है, वहाँ अमेरिकी समलैंगिकों को पकड़ने को प्राथमिकता बनाना, साफ दिखा रहा है कि हमारे नेता देश की जनता की जरूरतों के बारे में कितने जागरूक हैं।    

6. पासपोर्ट रद्द होने के बाद संगीता रिचर्ड फ्यूजिटिव (भगोड़ी अपराधी) है, उसके अमेरिका रुकने का कोई कानूनी आधार नहीं है, उसे गिरफ्तार करके भारत भेजा जाये
- संगीता को भारत से राजनयिक पासपोर्ट बनवाने के बाद उसके वीसा के कागजों पर झूठ लिखकर अमेरिका लाकर कानून से अधिक काम और कम वेतन देने के बाद उसका पासपोर्ट रद्द कराकर उसे अवैध बनाने वाली जब देवयानी है तो फिर संगीता गिरफ्तार क्यों हो? बल्कि भारतीय कानून उसे किस आधार पर फ्यूजिटिव कह सकता है? और अगर वह फ्यूजिटिव है तो उसे विदेश ले जाकर फ्यूजिटिव बनाने वाले के प्रति भारतीय कानून के तहत क्या कार्यवाही की जा रही है? संगीता कानूनी तरीके से वैध वीसा और पासपोर्ट पर अमेरिका आई है और यहाँ रहते हुए किसी गैरकानूनी गतिविधि में लिप्त नहीं है। उसके खिलाफ कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है। पासपोर्ट न होना कोई अपराध नहीं है। वह इस कांड की मूल पीड़िता है, उसके खिलाफ कोई भी कानूनी आधार नहीं बनता, न यहाँ, न भारत में।

7. भारतीय राजनयिकों का वेतन इतना कम है कि वे अमेरिका के न्यूनतम वेतन के नियमों का पालन नहीं कर सकते
- इससे लचर तर्क कोई हो सकता है क्या? आप सिविल सरवेंट हैं, भारत से नौकरानी लाना आपकी कानूनी बाध्यता नहीं है। पैर उतने ही पसारिए जितनी चादर है। वैसे वेतन कम होने की बात पूरी तरह से सही नहीं है क्योंकि अधिकारियों को मूल वेतन के अलावा अनेक मोटे भत्ते भी मिलते हैं। शशि थरूर ने तो एक टीवी कार्यक्रम में यह भी कहा है कि राजनयिकों को नौकरानी के वेतन का भी आंशिक भुगतान मिलता है। वैसे, भारत में करोड़ों की संपत्ति की स्वामिनी, मैनहेटन में रहने वाली देवयानी के केस में तो वेतन कोई मायने ही नहीं रखता। फिर भी अगर सरकार को इस मुद्दे पर अपने अधिकारियों से इतनी ही सहानुभूति है और वह नौकरानी रखने की परंपरा का पोषण करना चाहती है तो अमेरिका स्थित राजनयिकों के घरेलू सहायकों के लिए कानून-सम्मत वेतन और सभी ज़रूरी सुख-सुविधाओं की पक्की व्यवस्था करे और उल्लंघन करने वाले राजनयिकों को कड़ी सज़ा का प्रावधान करे।

8. देवयानी को बेटी के सामने हथकड़ी लगाई गई
- जहां इतने झूठ वहाँ एक और सही। भारत से इतर अमेरिका के कानून में पकड़े जाने पर हथकड़ी लगाना सामान्य कानूनी प्रक्रिया है। फिर भी देवयानी के केस में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था यह बात अब स्पष्ट हो चुकी है। न उसे बेटी के सामने पकड़ा गया और न ही हथकड़ी लगाई गई।

9. देवयानी को नशेड़ियों, यौनकर्मियों और अपराधियों के साथ रखा गया
- यह बचकाना आरोप पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कि देवयानी का साथ देने के लिए अमेरिकी सरकार ने नशेड़ियों, यौनकर्मियों और अपराधियों की विशेष व्यवस्था की थी। अव्वल तो देवयानी के पास यह जानने का कोई आधार नहीं है कि वहाँ उपस्थित अन्य लोग कौन थे। दूसरे, वे भी आरोपी ही रहे होंगे। अपने आपको निरपराध घोषित करने वाले व्यक्ति दूसरों को एक जनरल स्टेटमेंट देकर नशेड़ी, यौनकर्मी और अपराधी कैसे कह देते हैं यह बात समझ आ जाये तो इस केस की अन्य बातें समझना भी आसान हो जाएगा। लगता है कि कुछ लोग सोचते हैं कि जैसे वे अपने घरेलू नौकर भी अपने साथ विदेश ले जाते हैं वैसे ही अदालत/थाने में अपनी विशेष सेल भी साथ लेकर चलेंगे।

10. देवयानी को राजनयिक सुरक्षा मिलनी चाहिए थी
- जहां तक मैं समझता हूँ, राजनयिक कारण से ही पकड़े जाने में देर हुई। देवयानी को आधिकारिक मामलों में सीमित राजनयिक सुरक्षा उपलब्ध है जो व्यक्तिगत नौकर के लिए किए गए वीसा फ्रॉड या वेतन अपराध पर लागू नहीं होती है। अगर वे संगीता के खिलाफ बदले की कार्यवाही को अति की हद तक नहीं बढ़ातीं तो अमेरिकी सरकार को न तो झूठे इकरारनामे का पता लगता और न ही संगीता के परिवार की सुरक्षा की चिंता करनी होती। देवयानी, उसके पिता और भारत-सरकार के सहयोग से संगीता पर हो रहे सरकारी दमन ने यह सिद्ध कर दिया कि शोषण की बात न केवल सच्ची है बल्कि यदि समय पर एक्शन न लिया गया तो संगीता और उसका परिवार सुरक्षित नहीं है। यदि यह अति न की जाती तो यह मामला केवल न्यूनतम वेतन न देने का ही रहता और शायद प्रभुदयाल मामले की तरह ही समुचित हरजाना देने पर निबट भी जाता।

11. देवयानी की जांच का उद्देश्य उसे अपमानित करना था
- कानूनरहित वातावरण में रहने का एक बड़ा खामियाजा यह है कि लोग टिकट खिड़की पर पंक्ति भी तब तक नहीं लगा सकते जब तक कि लाठीचार्ज न हो जाये। जिस देश में रेल में काली और बाहर खाकी वर्दी पहनकर कोई भी उगाही कर सकता हो वहाँ व्यवस्था के मुद्दों को समझ पाना थोड़ा कठिन तो हो ही जाता है। भारत में पिछले दिनों निर्भया कांड के मुख्य आरोपी ने कड़ी सुरक्षा वाली सेल में आत्महत्या कर ली तो मीडिया पर काफी हल्ला हुआ। इसके पहले उत्तर प्रदेश के मुख्य सर्जन के हत्याकांड केस में अभियुक्त पुलिस कस्टडी में संदिग्ध परिस्थितियों में मर गए। एक प्रमुख आतंकवादी कस्टडी से भाग गया। हर साल न जाने कितने आरोपी पुलिस कस्टडी में मारे जाते हैं जिनकी ज़िम्मेदारी किसी पर नहीं आती क्योंकि अधिकांश परिस्थितियों में यह तय ही नहीं हो पाता है कि मृत्यु का कारक क्या था, शस्त्र कैसे अंदर पहुँचा आदि। कितने मामलों में तो यह भी सिद्ध नहीं हो पाता कि पुलिस ने मृतक को पकड़ा भी था कि नहीं क्योंकि देश में कोई सिद्ध प्रणाली ही नहीं है। हर ज़िम्मेदारी को "सब कुछ चलता है" और "जुगाड़" के नियमान्तर्गत निबटाया जा रहा है। भारत के भाग्य-विधाता तो भ्रष्टाचार और लोकपाल पर चर्चा में व्यस्त हैं लेकिन विकसित देशों में सरकारी न्याय-कारागार-पुलिस व्यवस्था के अंदर लाये गए सभी व्यक्तियों के बारे में व्यवस्थित कार्यक्रम है जिसे उन्नत बनाने के प्रयास चलते रहते हैं। इस प्रणाली के तहत न केवल हर आने जाने वाले की पुख्ता जानकारी हर समय मौजूद रहती है बल्कि इस बात का भी अतिसंभव प्रयत्न रहता है कि किसी प्रकार के गैरकानूनी पदार्थ की आवाजाही न हो सके। इन्हीं नियमों के अंतर्गत कुछ स्थानों में शारीरिक जांच का प्रबंध भी है। ऐसी जगह पर एक विदेशी नागरिक ही नहीं, उस व्यवस्था का निर्माता भी आरोपी के तौर पर जाएगा तो उसकी भी वैसी ही जांच होगी।
अमेरिकी प्रशासन की यह व्यवस्था आज देवयानी के लिए नहीं बनी, बल्कि लंबे समय से स्थापित है और इसका उद्देश्य बिना किसी भेदभाव के पुलिस, न्याय, गवाह, आरोपी, मुजरिम, मुलजिम आदि सबकी सुरक्षा निश्चित करना है। शारीरिक जांच में लगाए गए सुरक्षाकर्मी (महिलाओं के केस में महिला, पुरुषों के केस में पुरुष) को जांच से गुज़र रहे व्यक्ति का स्पर्श करने की मनाही है।

सीधी-सच्ची बात यह है कि इतने सारे आपराधिक मामलों के सामने आने के बावज़ूद भी भारत सरकार घरेलू नौकरानी साथ ले जाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा ही क्यों देती है? क्या अमेरिका में रहने वाले सभी आप्रवासी अपनी-अपनी नौकरानियाँ लेकर आते हैं? बेहतर हो कि इस बार कुछ सबक लिया जाय और राजनयिकों को भी श्रम, मानवाधिकार और कानून का सम्मान करने की शिक्षा दी जाये। वीसा अर्जियों पर झूठ लिखने के प्रति उन्हें सख्त चेतावनी दी जाये और सरकार का स्टैंड ऐसे किसी भी झूठ के साथ खड़े न होने का रहे। उन्हें यह भी याद दिलाया जाये कि वे जनसेवक (सिविल सेरवेंट्स) हैं दासस्वामी (स्लेव मास्टर्स/मालिक) नहीं। उन्हें कड़े शब्दों में बताया जाये कि व्यक्तिगत खुंदक के चलते वे दूसरों के पासपोर्ट रद्द करने/कराने से बचें। साथ ही घरेलू नौकरानियों सहित सभी भारतीय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का वचन दिया जाये और उनके खिलाफ बदले की कार्यवाही करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्यवाही का विधान हो। सरकारी दमन का शिकार बने ऐसे नागरिकों के विरुद्ध लगाए गए सभी आरोपों की जांच हो और झूठे मुक़द्दमे वापस लिए जाएँ।

इस मुद्दे को अमेरिका की "चौधराहट" या "दादागिरी" समझने वाले मित्रों से मेरा यही अनुरोध है कि अगर अपनी धरती पर हो रहे अन्याय के विरुद्ध खड़े होना चौधराहट है तो भारत के लिए भी चौधरी बनाने का एक ज़बरदस्त मौका है। और वह है एक आम भारतीय नागरिक संगीता रिचर्ड और उस जैसी अनेक शोषित और पीड़ित भारतीय महिलाओं के शोषण के खिलाफ प्रतिबद्धता दिखाना। शर्म की बात है कि विदेश हमारे नागरिक के अधिकार के लिए खड़ा है और हम उनसे कुछ सीखने के बजाय अपने ही नागरिक के असंवैधानिक दमन में पार्टी बने हुए हैं।

यद्यपि इस मामले में आर्थिक भ्रष्टाचार भी सामने आया है लेकिन भ्रष्टाचार केवल पैसे के लेनदेन तक सीमित नहीं होता है। सत्ता के दुरुपयोग के उपरोक्त सारे कृत्य भी मेरी नज़र में भ्रष्टाचार के ही उदाहरण हैं। विदेशों में पोस्टेड राजनयिक भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए उन पर महती ज़िम्मेदारी है। ऐसे पदों के लिए ऐसे लोग चुने जाने चाहिए जिनकी न्याय-निष्ठा, निष्पक्षता और ईमानदारी अटूट और विश्वसनीय हो। बस एक बात मेरी समझ में नहीं आती है कि "सत्यमेव जयते" के देश में भ्रष्टाचार का झण्डा ऐसी बुलंदी के साथ कैसे रह रहा है? और फिर जब अमेरिका ने अपनी धरती पर "एक भारतीय के विरुद्ध" हुए मानवाधिकार उल्लंघन के एक अपराध को रोकने की कोशिश की तो हमने इसका इतना कडा विरोध क्यों किया? हमारे नेताओं और नौकरशाहों को तय करना चाहिए कि वे भारत के "सत्यमेव जयते" के आग्रह के रक्षक हैं कि भक्षक। और साथ ही हमारी जनता को हर बार एक नई तरह से भावनात्मक मूर्ख बनते रहने का भोलापन छोड़ने का प्रयास करना चाहिए।
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[नोट: मैं कोई सरकारी अधिकारी नहीं हूँ, न ही इस केस से संबन्धित कागजातों की मूलप्रतियाँ मुझे दिखाई गई हैं। पूरा आलेख विश्वसनीय और सार्वजनिक सूत्रों में प्रकाशित समाचारों, अपनी सहज बुद्धि और भारत व अमेरिका में नौकरशाहों के साथ हुए अनुभवों के साथ-साथ भारत भर में आसानी से देखे जा सकने वाले घरेलू नौकरों तथा दबंग नौकरशाहों के व्यवहार और प्रवृत्तियों पर आधारित है।]

43 comments:

  1. चीजों को स्‍पष्‍ट करने के लिए धन्‍यवाद।

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    1. अच्छा हुआ नेट बंद हो गया ! INC जिंदाबाद !

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    2. हडडी और कुत्तों का क्या करें?

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    3. Criminal Devyani and her Corrupt father Uttam Khobragade are sick!!!.

      U.S. has done the right thing by issuing T Visas to Sangeeta and her family.

      Indian bureaucrats have already harassed Sangeeta’s family members by arresting them in retaliation for her complaint against Devyani. A case was filed against Sangeeta in the Delhi High Court last year.

      Leaving Sangeeta’s family in India or deporting Sangeeta to India would be tantamount to leaving them at the mercy of wolves.

      Indian judiciary and bureaucracy are extremely biased against the lower classes, who often fall victim to oppressive state action on specious and merit-less grounds.

      U.S. must be applauded in quietly getting Sangeeta’s family to the U.S. before initiating action against Devyani Khobragade for her SERIOUS crimes.

      Why did CRIMINAL Devyani keep quiet about her legitimate diplomatic immunity for two weeks since her arrest?? Wouldn’t it have been, well, more diplomatic, to show her forged UN credentials at the very onset and squash the shadow-boxing instead of getting Richard’s passport revoked and moving an Indian court to prevent her from suing in a US court? The passport revocation made Richard look like a victim and triggered media probes into Devyani’s background with unsavoury revelations.

      She and her father were found to have played a questionable role in getting an allocation in a housing project meant for war widows. It was also found that there was some irregularity in her career, with Devyani receiving an out-of-turn language allotment.

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  2. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने.

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  3. ये आलेख जरूरी था !

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  4. हम ’भाल देखकर तिलक लगाने’ की परंपरा के वाहक हैं। तर्क-कुतर्क भी मुँह\माथा\जाति\धर्म\जेंडर\वगैरह वगैरह देखकर दिया करते हैं।

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  5. जब प्रथमिकतायें ही हिली हों तो अपेक्षाओं पर अधिक दबाव डालना बेमानी होगी।

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  6. इस मामले पर पहली बार इतने विस्तार से सारी बातें पढ़ी हैं | सेवा करवाने और श्रम का सम्मान न करने के मामले में भारतीयों की सामंती सोच शायद ही कभी बदले, एक ज़रूरी लेख के लिए आभार

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  7. इसी विश्लेषण की आवश्यकता थी और प्रतीक्षा भी अनुराग जी! आपने जिन पहलुओं को छुआ है उनपर यहाँ एक गहन चुप्पी छाई है. और मीडिया की बात ही बेकार है. डोमेस्टिक हेल्प के नाम पर एक व्यक्ति के साथ कैसा अमानवीय व्यवहार किया जाता है यह सं.अ.अमीरात में भी देखा है मैंने. और विदेश की बात दीगर, हमारे अपने देश में भी उनके साथ होने वाले व्यवहार कहाम सहृदय हैं. हाल ही में दिल्ली में एक उ.प्र. के नेता की परित्यक्ता (?) पत्नी, जो स्वयम एक चिकित्सक हैं, के आवास से (पति का सरकारी आवास) एक परिचारिका का शव प्राप्त होता है.
    एक बहुत ही सम्वेदनशील मुद्दे पर अमेरिका से आपकी रिपोर्ट अमेरिका की वकालत हो न हो, इस प्रकरण का दूसरा पहलू उजागर करता है!
    धन्यवाद आपका!!

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  8. बहुत बढ़िया लेख। अब तक समाचार चैनलों पर एक पक्ष (देवयानी का) ही दिखाया जाता रहा है। कई नई जानकारियाँ पता चली।
    धन्यवाद

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  9. अभी कुछ दिनों से देवयानी प्रकरण पर बहुत सारे समाचार पढ़े थे अख़बार में, साथ में एकपक्षीय लेख भी पढ़ रही थी तय करना मुश्किल था की सच क्या है, आपने बहुत बारीकी से हर पहलु पर प्रकाश डाला है अनुराग जी, आभार इस लेख के लिए !

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  10. 1. द्रौपदी के चीरहरण के कारण बताने के लिए भी सारे बड़े बुजुर्गों ने कोई न कोई तर्क बना ही लिए थे। भीष्म और द्रोण जैसे बुद्धिजीवी तब भी थे और अब भी हैं।

    २. सैनिक की शहादत की महानता की कसौटी दिखाकर स्त्री की अस्मिता के प्रश्न का महत्त्व कम कैसे किया जा सकता है यह मेरी समझ से बाहर है।

    ३. सैनिक क्या स्त्रियों की अस्मिता की रक्षा के विरुद्ध खड़े हैं ? उन्हें बीच में घसीटने से पहले उनसे पूछ देखिये की वे क्या सोचते हैं इस बारे में।

    ४. यह विरोध भारतीय मानस में संगीता और देवयानी की है ही नहीं - यह विरोध "अमेरिका की चौधराई" के विरुद्ध है। अमेरिका यदि अपने कानूनों पर भारतीय राजनयिकों को तौलता है , तो क्या अमेरिका भारत के क़ानून की धारा ३७७ के तहत भारत के उनके राजनयिकों के "गे पार्टनर्स" पर भारतीय क़ानून के तहत कार्यवाही (दस साल का कारावास - और उससे जुडी पुलिस कार्यवाही) को सही ठहराएगा ?(मैं निजी तौर पर इस धरा का विरोध करती हूँ लेकिन यह प्रश्न अलग देशों के अलग क़ानून का है)

    ५. देवयानी या संगीता में से कोई भी सही या गलत हो सकती हैं। लेकिन भारतीय राजनयिक के प्रति हुए अपमान को कमतर दिखने के भारतीयों के प्रयास वैसे ही हैं जैसे कोई जिस डाल पर बैठा हो उसी पर कुल्हाड़ी मारे।
    *** ५ अ. देवयानी वहाँ "निजी" कार्य से नहीं रह रही - वे भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसके विरुद्ध संगीता वहाँ प्राइवेट नागरिक के तौर पर गयी हैं। दोनों के केस एक नहीं हैं।
    *** ५ ब. इसी तरह देवयानी ने यदि जुर्म किया (शोषण) (जो अभी प्रूव्ड नहीं है, और अमेरिकी और भारतीय दोनों ही कानूनों के अनुसार जब तक जुर्म साबित नहीं हो तब तक व्यक्ति को न अपराधी कहा जा सकता है, न उसे सजा हो सकती है ) तो वह लाखों करोडो "निजी नागरिक" के द्वारा हुआ जुर्म है और कोई बड़ी बात नहीं है। यह होता रहा है, इसका सामाजिक विरोध होता रहा है, यह होता रहेगा , इसका सामाजिक विरोध होता रहेगा। ---------- लेकिन देवयानी के साथ जो हुआ, वह एक सरकार द्वारा दुसरे देश के प्रतिनिधि के साथ किया गया अधिकार उल्लंघन है, जो बड़ी बात है, जिसका विरोध हो रहा है।
    *** ५ स. भारत में विरोध संगीता का नहीं, बल्कि अमेरिका की दादागिरी का हो रहा है। और जो लोग संगीता पर ऊल जलूल आरोप लगा रहे हैं उनमे से अधिकाँश न्याय की फ़िक्र से नहीं बल्कि निजी स्वार्थों और बायस के तहत कर रहे हैं। उन पर भी न्यायिक जांच के बिना कुछ कहना उतना हो गलत है जितना देवयानी पर।

    continued..

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    1. Criminal Devyani and her Corrupt father Uttam Khobragade are sick!!!.

      U.S. has done the right thing by issuing T Visas to Sangeeta and her family.

      Indian bureaucrats have already harassed Sangeeta’s family members by arresting them in retaliation for her complaint against Devyani. A case was filed against Sangeeta in the Delhi High Court last year.

      Leaving Sangeeta’s family in India or deporting Sangeeta to India would be tantamount to leaving them at the mercy of wolves.

      Indian judiciary and bureaucracy are extremely biased against the lower classes, who often fall victim to oppressive state action on specious and merit-less grounds.

      U.S. must be applauded in quietly getting Sangeeta’s family to the U.S. before initiating action against Devyani Khobragade for her SERIOUS crimes.

      Why did CRIMINAL Devyani keep quiet about her legitimate diplomatic immunity for two weeks since her arrest?? Wouldn’t it have been, well, more diplomatic, to show her forged UN credentials at the very onset and squash the shadow-boxing instead of getting Richard’s passport revoked and moving an Indian court to prevent her from suing in a US court? The passport revocation made Richard look like a victim and triggered media probes into Devyani’s background with unsavoury revelations.

      She and her father were found to have played a questionable role in getting an allocation in a housing project meant for war widows. It was also found that there was some irregularity in her career, with Devyani receiving an out-of-turn language allotment....

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  11. continued from previous

    ६. यदि वहाँ की पुलिस ने संगीता के कपडे उतारे होते और केविटी सर्च की होती, और यह बात ख़बरों में आयी होती तो उसका भी विरोध हुआ ही होता। तो इस आधार पर विरोध करने वालों को गलत ठहराना भी गलत ही है।

    ७. हम अपनी समस्याओं (चाहे वह घरेलु काम करने वालों के शोषण की समस्या हो या काश्मीर की या मुम्बई हमलों की) को स्वयं सुधारें तब ही वह सुलझाव है। दुसरे देश के उदाहरण दे कर अपने देश को गलत या सही ठहराना पहला कदम है गुलामी की ओर , और दुःख की बात है की हैम इतिहास से यह भी नहीं सीख पाये। हर बार हमने यही किया है , और यह भी इसी का एक उदहारण है।

    ८. यदि अमेरिका को भारतीय राजनयिकों के विरुद्ध शिकायत है - तो उन्हें भारत सरकार से बात करनी उचित होती - या शायद यह भी की "इस व्यक्ति का राजनयिक वीज़ा रद्द होता है, आप इस व्यक्ति को वापस ले कर किसी और को भेजें"....., राजनयिक स्त्री की केविटी सर्च किसी भी हालत में सही नहीं ठहरायी जानी चाहिए।

    ९. राजनयिक तो क्या, किसी भी स्त्री के साथ यह किया जाना गलत है, और भारत के क़ानून के अनुसार तो यह बलात्कार है। और यह न कहा जाए कि "यह "महिला पुलिस" ने किया" - क्योंकि अमेरिकी क़ानून के अनुसार स्त्री स्त्री के यौन सम्बन्ध मान्य हैं, और यौन शोषण स्त्री का स्त्री नहीं कर सकती ऐसा कोई क़ानून नहीं है। actually there are cases of womem being accused of raping other women etc ... | किसी भी स्त्री का वस्त्रहरण यदि सरकार के प्राधिकारियों द्वारा उसकी मर्जी के विरुद्ध हो रहा हो तो वह किसी तरह न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता - जाना चाहिए।

    १० एक साधारण नागरिक को भी मानवीय अधिकार है कि उसका जबरन वस्त्रहरण न किया जाए।

    ११. हर एक्यूज़ड को अधिकार है कि उसके साधारण नागरिक अधिकारों का हनन न हो। चाहे फिर वह निजी नागरिक हो या डिप्लोमेट।

    १२. यह कौनसा क़ानून है जो कहता है की घरेलु नौकर को कम तनख्वाह देने वाले "आरोपी" (सिर्फ आरोपी, कानूनन गुनहगार नहीं हैं वे अब तक) के कपडे उतार कर उसे बेइज्जत किया जाए ? आरोप न किसी तरह की ड्रग ट्रेफिकिंग का था न हथियार आदि रखने का जो यह सोचा जाए कि छुपा रखे होंगे। … केविटी सर्च क्यों ? पुलिस को नागरिक पर यह कार्यवाही करने का यह अधिकार क्यों हो ?


    १३. आरोप किसी पर भी कुछ भी लगाए जा सकते हैं - चाहे वह आसाराम / तेजपाल / कसाब / देवयानी / ....... कोई भी हो। आरोप सिर्फ आरोप हैं - मुल्ज़िम और मुजरिम में बहुत बड़ा फर्क है। कोई भी किसी पर भी कुछ भी आरोप कभी भी लगा सकता है। सिर्फ अभियुक्त भर होने से किसी के मानवाधिकारों का हनन गलत है। उसे सही ठहराने का हर प्रयास मानवाधिकारों के हनन में एक योगदान है। ऐसा करने वाला हर व्यक्ति भीष्म की तरह अंधे धृतराष्ट्र का समर्थक है, और उसके कर्म में हिस्सेदार है । आरोप हम्मे से किसी की परिवार की महिला - पत्नी, बहन बेटी - किसी पर भी लग सकता है, चाहे उसने कुछ किया हो या नहीं किया हो । जब आप इस केस में देवयानी के साथ हुए बर्ताव को सही ठहराते हैं तो आप किसी के साथ भी वही किये जाने को बढ़ावा देते हैं।

    १४. यदि वे मुलजिम के बजाय मुजरिम भी होतीं तब भी इस जुर्म के लिए नग्न कर योनि अन्वेषण (जो अंग्रेजी में कहा जा रहा है जिससे वह सभ्य सुनाई दे -) किया जाना सभ्यता नहीं, यह पाषाणकालीन मनःस्थिति है।

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    1. the problem with us is we are very self obsesses and ready to judge one way or the other without any evidence whatsoever

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    2. this is exactly what i said on this matter on many posts on this matter at Facebook

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  12. बहुत दिनों बाद आपका ब्लॉग पढ़ा, बहुत विस्तार से आपने घटनाओं को विश्लेषित किया है, सरकारें अपने निहित स्वार्थों को साधने के लिए बहुत कुछ ऐसा करती हैं जो जनता को समझ में नहीं आता

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  13. आपका आलेख आँखें खोलने वाला है ... देश का मीडिया, सरकार और उनके भौंपू लगातार इसे दूसरे तरीके से प्रसारित कर रह हैं ... इस सच को जानते हुए भी छुपाया जा रहा है ... और अंत ... वो तो यही होना है की अमेरिका के सामने मुंह छुपाते फिरेंगे येही नेता ... जो आज चीख चीख के बोल रहे हैं ...

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  14. निष्पक्ष एवं तार्किक लेख लिखने के लिए साधुवाद! अमेरिकी कानून गरीब- अमीर, स्त्री-पुरुष, निरीह-ताकतवर के बीच भेदभाव नहीं करता है | भारतीय मीडिया एवं भारतीय नेता ताकतवर दोषी का साथ दे रहे हैं और सही सूचना जनता के सामने नहीं ला रहे हैं | आशा है कि भारतीय कानून का दुरुपयोग करने वाली इस बार कानून एवं मानवता के सम्मान का सबक सीखे |

    अमेरिकी कानून के अंतर्गत जो जाँच आवश्यक थी वह की गयी, कानून के सामने स्त्री-पुरुष सामान हैं - जाँच प्रक्रिया में स्त्री अस्मिता का प्रश्न उठाना अनुचित है |

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  15. बहुत कुछ जानने को मिला...

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  16. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-12-2013 को चर्चा मंच की चर्चा - 1473 ( वाह रे हिन्दुस्तानियों ) पर दिया गया है
    कृपया पधारें
    आभार

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  17. चिंता ना करें "आप" करेगी या "मोदी" करेगा कुछ !

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  18. सच को सामने लाने का आपका ये बेहतरीन प्रयास है। देवयानी के पुरखे बेशक दलित रहे हो पर देवयानी दलित नहीं हैं । हाँ ये जरुर है कि उन्होंने अपनी नौकरी प्राप्त करने के लिए आरक्षण कि सुविधा उपयोग अवशय किया होगा। आदर्श सोसायटी मामले में भी उन्होंने दस्तावेजों में गलत जानकारी दी और अपनी वार्षिक आय मात्र एक लाख रुपये बताई पर फ्लैट के लिए करीब एक करोड़ रुपयों का भुगतान किया। कोई आश्चर्य नहीं भारतीय सर्कार ने उन्हें इस सब के लिए पुरस्कृत किया। उनके पति अमेरिकी नागरिक हैं। बेशक वे भारतीय मूल के हों। क्या भारतीय सर्कार अपने दूतावास कि गोपनीयता के साथ समझोता नहीं कर रही जब वो एक ऐसे कर्मचारी को दूतावास में जगह दे रही है जिसका spouse उसी देश का नागरिक है।

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  19. justified and analytical post thanks bhaiya ji
    good morning with PRANAM

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  20. अनुराग जी ! आपने कुछ नये तत्व पर प्रकाश डाला है परन्तु मीडिया के समान आपका प्रस्तुति भी एक पक्षीय लगता है ! इर. शिल्पा मेहता द्वारा उठाए गए मुद्दों को भी शामिल करके एक निष्पक्ष आलेख लिख सके तो पाठकों को ख़ुशी होगी |
    नई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
    नई पोस्ट ईशु का जन्म !

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  21. भारतियों को आदत पड़ी हुई है हर सुविधा के दुरूपयोग की। जिस तरह से नेतागिरी हो रही थी इस घटना पर , लग ही रहा था कि कहीं कोई बड़ा घालमेल है। आपके लेख ने विस्तार से इसकी पुष्टि की।
    आपकी निरपेक्षता और स्पष्टवादिता को सलाम !

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  22. अनुराग जी
    आप के लगातार दूसरे लेख से असहमत होने के लिए माफ़ी
    मेरी प्रतिक्रिया को केतली में उबाल के रूप में मत देखिएगा ( क्योकि मै न तो चाय पीती हूँ न बनाती हूँ )
    किसी तथ्य में गलती हो तो मुझे बताइयेगा, सुधार दीजियेगा ( आखिर मै आम गृहणी हूँ मेरी भी जानकारी का श्रोत टीवी अखबार आदि ही है और मेरी सहज बुद्धि )
    सारा विश्व एक परिवार की तरह है , और नैतिकता नाम की भी कोई चीज होती है जैसे जुमलो पर भरोषा करे तो आप की बाते सही है किन्तु ऐसा है नहीं, जब बात दो देशो के बिच की हो तो नैतिकता एक तरफ रखिये और कूटनीति की बात कीजिये ।
    १- करीब कुछ महीने पहले रसिया के लगभग २० ( शायद २६ ) राजनयिक बिलकुल इसी तरह के मामलो में फंसे थे , देवयानी के ही समकक्ष , तो वही अमेरिकी प्रवक्ता जो आज देवयानी के मामले में सब कुछ सही हो रहा है बोल रहे है उन्होंने कहा की ये राजनयिक मामला है और उसमे हम कुछ नहीं कर सकते है ये विदेश विभाग के अंतर्गत आता है , उनके खिलाफ कुछ नहीं किया जा सकता है , ब्ला ब्ला ब्ला , फिर अमेरिकी कानून आदि कहा गया ।
    २- ज्यादा दिन नहीं हुआ जब एक अमेरिकी जासूस ( जिसे जबरजस्ती राजनयिक बताया गया ) ने पकिस्तान में दो लोगो की गोली मार कर ह्त्या कर दी , किस मानवाधिकार और कानून के तहत अमेरिका उसे पकिस्तान से बाइज्जत बरी करा कर ले गया , जो मरे उनके कोई मानवाधिकार नहीं था , उन्हें न्याय नहीं चाहिए था ।
    ३- अमेरिकी बड़े कानून के पालक और मानवाधिकार के पुरोधा होते है , ये हम सभी अफगानिस्तान और इराक युद्ध के समय बाकायदा वीडियो, फोटो देख कर जान गए है , कितनो पर कार्यवाही हुई और सार्वजनिक कितनो की रिपोर्ट की गई बताइयेगा ।
    ४- धर्म निरपेक्ष अमेरिका में ९/११ के बाद गैकानूनी तरीके से एक पकड़े गए मुस्लिमो और उन पर अत्याचार को लेकर संगठनो ने सी आई ए ( अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग का नाम यही है ना ) के प्रमुख के ऊपर मुकदमा किया था उस मुकदमे का क्या हुआ बताइयेगा , और उन मुस्लिमो के मानवाधिकारो के हनन के लिए कितना मुआवजा दिया गया ये भी बताइयेगा ।
    ५- सही कहा वहा हिन्दू मुस्लिम का भेद नहीं है , बुश के ज़माने में अमेरिका के अश्वेत इलाको को तूफ़ान आया था ( शायद कैटरीना नाम था क्या , मुझे याद नहीं आ रहा ) जिसमे अश्वेतों ने आरोप लगाया की अश्वेत होने के कारण उनके लिए राहत कार्यक्रम ठीक से नहीं चलाये गए , बाकि भी अश्वेत होने के कारण भेदभाव के आरोप लगते ही रहे है , किसी अश्वेत के राष्ट्रपति बनने में तभी इतना समय लग गया , और इसे वहा भी बड़ी बात मानी गई ,

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  23. ६- कानून के पालक अमेरिकी अपने देश के बाहर आते ही कानून का पालन बंद क्यों कर देते है , कितने कानूनो का पालन वो भारत में करते है इस बात का खुलासा कुछ ही दिन में हो जायेगा यदि भारतीय रीढ़ में दम हुआ तो ,
    १- यदि देवयानी गलत थी तो उसे तुरंत ही यु एन के अधिकारी के रूप में क्यों मान्यता दे दी गई , वो भी उस अमेरिकी सरकार द्वारा जो हमें रसिया से रॉकेट इंजन नहीं खरीदने देता अपनी टांग अड़ा देता है वो देवयानी को बड़े आराम से मान्यता दे देता है बिना किसी न नुकुर के ,भारत की कड़ी प्रतिक्रिया देख कर
    २- उन्हें अच्छे से मालूम था की उनके राजनयिकों के गैरकानूनी सहूलियतों पर असर होगा ।
    ३- परिचय पत्र तुरंत न लौटा कर कुछ समय मांगा गया ताकि भारत के बैंक स्टेटमेंट मांगने पर गैरकानूनी रूप से रखे पैसो को हटाया जा सके , साथ में गैरकानूनी रूप से रह रहे लोगो को भी ।
    ४- परिवार के रूप में यहाँ आये लोग कैसे बिना वर्क परमिट के यहाँ काम कर रहे थे , कानून के पालक यहाँ कानून का पालन क्यों नहीं कर रहे थे , क्या उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि दूसरे देश में बिना वर्क वीजा के आप काम नहीं कर सकते है ।
    ७- यही मानवाधिकार, कानून ,नैतिकता का राग पाकिस्तान कश्मीर को लेकर कर रहा होता तब मै भी देखती की यहाँ आप की हा में हां मिलाने वाले के केतली से ले कर चम्मच तक में कितना उबाल आता ।

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  24. ८- हम बहुत ख़राब है गरीबो का शोषण करते है ये हमारे देश का और उसके नागरिक का मामला है ये हमारे देश में देखा और लड़ा जायेगा किसी अन्य देश को उस पर उंगली उठाने का जरुरत नहीं है जो खुद गले तक मानवाधिकार हनन और नागरिक क्या जो कमजोर देशो का शोषण करने के लिए जाना जाता है ।
    १- हमारे देश में मानवाधिकार के लिए लड़ने वालो की कोई कमी नहीं है
    २- यहाँ भी अनेको एन जी ओ है जो गरीबो के लिए लड़ते है
    ३-भारत आ कर सुनीता ने मामलो क्यों नहीं दर्ज किया
    ४- भारतीय कानून भी किसी भी तरीके के गलत कांट्रैक्ट को मान्यता नहीं देता है , आप अपने कॉन्ट्रैक्ट में यु ही कुछ भी नहीं लिख सकते है , भारतीय न्यायलय कई बार सरकारी और नीजि हर किसी के ऐसे मामलो में ऐसी बातो को गलत कह चुका है , और उसे अमान्य माना है ।
    ५- क्या सुनीता को भारतीय कानून पर विश्वास नहीं था , क्या उसे नये केवल अमेरिकी कानून के अंतर्गत ही न्याय मिल सकता था
    ६-और तुरंत ही उसके परिवार को भी अपनी जेब से पैसे दे कर अमेरिका बुला लेना , क्योकि उसका भारत में बहुत शोषण हो रहा है , ये कुछ ज्यादा नहीं हो गया , मै अमेरिका और उसके पक्ष में खड़े लोगो से कहूँगी कि भारत के सारे गरीब शोषण के शिकार है , ख़ुशी ख़ुशी ले जाओ उन्हें अमेरिका देखु तो कितनो को ले जाते है ।

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    1. @६-और तुरंत ही उसके परिवार को भी अपनी जेब से पैसे दे कर अमेरिका बुला लेना , क्योकि उसका भारत में बहुत शोषण हो रहा है , ये कुछ ज्यादा नहीं हो गया , मै अमेरिका और उसके पक्ष में खड़े लोगो से कहूँगी कि भारत के सारे गरीब शोषण के शिकार है , ख़ुशी ख़ुशी ले जाओ उन्हें अमेरिका देखु तो कितनो को ले जाते है ।

      इतनी लम्बी टिप्पणी है आपकी नहीं पढ़ पाई हूँ लेकिन ये वाला अंश पढ़ लिया।
      आपको बता दूँ कि अगर कोई ये साबित कर दे कि उसका जीना मुहाल हो गया है भारत में और उसकी जान को अब ख़तरा हो गया है तो अमेरिका उसे बुला लेगा, टिकट भी ख़रीदकर देगा , इसे रिफ्यूजी कैटेगरी कहा जाता है । १९८४ के दौरान पंजाब से अधिकतर सरदार इसी आधार पर कनाडा और अमेरिका गए हैं । संगीता के केस में, उसने भी साबित कर दिया कि देवयानी ने अपने पावर का उपयोग किया । और क्योंकि संगीता को एक बार वीज़ा इशू हो चूका था अब उसे मना नहीं किया जा सकता था क्योंकि कहीं भी संगीता कि कोई गलती दिखाई नहीं देती थी ।

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  25. ९-पहले तो आप ये समझ लीजिये की यहाँ बात शोषण नैतिकता मानवाधिकार की है ही नहीं , बात है कि एक आम भारतीय नहीं बल्कि भारतीय राजनयिक के साथ गलत व्यवहार किया गया है गिरफ्तारी से लेकर उसके बाद तक उसे गम्भीर अपराधी की तरह व्यवहार किया गया जो सीधे सीधे भारत के सम्मान को ठेस है , विरोध उसका हो रहा है मामला बस देवयानी का नहीं है और केवल उस तक सिमित मत रखिये ।
    १- ६ महीने पहले ही अमेरिकी सरकार ने भारत को नोटिस दिया था और भारत ने उन्हें जवाब भी दे दिया था जिसमे बताया गया था कि वो भारत सरकार के लिए काम करती है और उस पर भारतीय कानून लागु होगा न कि अमेरिकी ।
    २- उस बारे में जो भी बात करनी थी भारत सरकार से करनी थी , देवयानी का नीजि मामला क्यों बनाया गया , जबकि भारत सरकार पहले ही ये कह चुकी थी ।
    ३- जवाब में ये क्यों नहीं कहा गया कि भारतीय दूतावास के किन किन कर्मचारियो पर भारतीय कानून लागु होगा और किन पर अमेरिकी ,वेतन के मामले में , वो हमें बताएंगेक् हमें अपने कर्मचारियो को कितना वेतन देना चाहिए और क्या सहुलियते ।
    ४- वो चाहते तो आराम से इस घटना की शिकायत भारत सरकार से करके उसे मेरिकी कानून के खिलाफ बता कर मामला उसे ही सुलझाने देते ।
    ५- सुनीता को भारत क्यों नहीं भेजा गया , उसे वहा छुपा कर क्यों रखा गया है , क्या अमेरिका बतायेगा की सारी क़ानूनी प्रक्रियाओ के बाद वो उसे भारत भेजगा या अमेरिका में शरण देने वाला है ।
    १० - घटनाए तो गिनाने के लिए कई है , याद होगा एक भारतीय राजनयिक की बेटी को सरे आम गिरफ्तार किया गया , उसी तरीके से अपमानित किया गया जैसे देवयानी को कहा गया कि उसने अपने प्रोफेसर को घमकी वाले मेल भेजे है , बाद में जाँच में पता चला कि ये काम एक चीनी विद्यार्थी ने किया था किन्तु उसे नहीं पकड़ा गया और न ही उसके खिलाफ कार्यवाही हुई , क्यों
    ११ - अपना घटिया हथियार बेचने वाले देशो के महाशक्ति कहे जाने से खुश होने की जरुरत नहीं है , जरुरत इस बात कि है की हम माने की हम एक शक्ति है और हमारा व्यवहार उसके जैसा हो , हाल ये है कि हम सम्मान विनम्रता आदि आदि के नाम पर नमस्कार कर सर निचे किये है और दूसरे ये समझ रहे है कि हमारा सर झुका है और जो आ रहा है वही एक चपत उस झुके सर पर जड़ कर चला जाता है , टैंगो जैसा देश भी जो नक़्शे में भी खोजे न मिले ।
    १२ - आदर में हाथ जुड़े हो पर सर सीधा खड़ा हो ताकि आगे से कोई ऐसा करने की हिम्मत न करे , और कहे नहीं माने भी की भारत एक महाशक्ति है ।
    १३ - लोग अपनी पहुँच से पोस्ट पाते है , उनके पास कितनी दौलत है आदि आदि बाते इस मामले से मेल नहीं खाती है, इसलिए इस पर बात फिर कभी , ये पूरी दुनिया में होता है ।

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  26. टिप्पणियों की अधिकता के लिए माफ़ी , आप ने प्रतिक्रिया दी या कुछ नये तथ्य याद आये तो फिर आउंगी नहीं तो
    जय हिन्द !

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    1. अंशुमाला जी । आभार। आपने सब कहा जो मैं कहना चाहती थी ।

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  27. शुरु में आपने सूडान में शहीद हुए भारतीय सेना के जवान का जिक्र किया। आलेख की ऐसी शुरुआत मेरी मंशा के अनुरूप ही हुई है। बजाय संयुक्‍त राष्‍ट्र शान्ति सेना के तरफ से लड़ कर भारतीय शहीदों के प्रति चिंतित होने और उनके पक्ष में कोई नई नीति बनाने के, भारतीय विदेश नीति ऐसे निकम्‍मे पक्ष के साथ खड़ी है जो असल में मुद्दा ही नहीं है (केवल नौकरानी के साथ मनवाधिकार उल्‍लंघन को छोड़ कर)। विस्‍तृत और विचारणीय आलेख।

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  28. मैं इस विषय में जो जानना चाहती थी वो आपके लेख से अच्छी तरह जान पायी इस तरह की गलती देवयानी को नहीं करनी चाहिए ..............

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  29. ग़जब हैं लोग, एक तरफ तो स्त्री-पुरुष समानता की बात की जाती है दूसरी तरफ़ स्त्री होने की दुहाई !!
    देवयानी स्त्री है तो क्या हुआ वो एक अपराधी भी है । क्या बात है ! अपराध करते वक्त ये नहीं सोचा कि मैं एक स्त्री हूँ, मुझे ये सब नहीं करना चाहिए, फिर भुगतते वक्त स्त्री होने की बात क्यों की जा रही है ? उसने वीज़ा फ्रॉड किया है । क्राईम करनेवाले जब पकडे जाते हैं तो यहाँ उनकी सर्च ऐसे ही की जाती है । यह यहाँ के कानून के हिसाब से ही किया गया है और वो अपनी जगह दुरुस्त है । हो सकता है भारत में फ्रॉड-उराड करना बड़ी छोटी बात हो लेकिन ये उम्मीद करना कि दुनिया के सारे देश इन बातों को हलके से लेंगे ग़लत है । क्या भारत के सरकारी नुमाईन्दे दुसरे देश में आकर कानून उल्लंघन करने के जोखिम से वाकिफ नहीं हैं ? क्या भारत की सरकार का यह कर्तव्य नहीं है कि वो सुनिश्चित करे कि भारत के राजनयिक जिस भी देश में भेजे जाते हैं वो उस देश के कानून का अवश्य पालन करें। क्या देवयानी ने वीज़ा फ्रॉड करने की हिम्मत इसलिए की कि उसे डिप्लोमेटिक इम्युनिटी का भान था ? डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी का दुरुपयोग करने की आदत बन गयी है अधिकतर डिप्लोमेट्स को.। जैसे किराया नहीं देना, बिल नहीं पे करना, ड्रंक ड्राईविंग, सेक्स क्राईम, डोमेस्टिक स्लेवरी, अवैध शराब, अवैध रूप से इमिग्रेशन करवाना और न जाने क्या क्या। ये सब वो तब कर रहे हैं जबकि इनलोगों को बहुत ज्यादा सुविधाएं एवं सुरक्षा प्राप्त है । जब इनलोगों को इतना सबकुछ दिया जाता है और इनपर भरोसा किया जाता है तब और भी कारण होता है कि ये अपने देश, अपने पद और जिस देश में ये जाते हैं इन सबकी गरिमा का पूरा ख्याल रखें।

    बहुत ही अच्छा लिखा है आपने अनुराग जी, हृदय से आभारी हूँ।

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  30. दोबारा टिप्पणियों को पढ़ने के बाद लगता है किसी भी देश के कानून को अधिकतर भारतीय बस भारतीय संस्कृति या भारतीय क़ानून के चश्मे से ही देखते हैं ? अमेरिका का अपना कानून है और अगर आप अमेरिका में हैं तो आपको उसे मानना होगा, नहीं मानना है तो मत आईये अमेरिका । देवयानी डिप्लोमैट थी, संगीता नहीं। देवयानी को अगर अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए मेड चाहिए तो वो मेड अमेरिकन कानून के हिसाब से ही लायी जा सकती है । मेड लाने के लिए एक प्रोसेस है, अखबार में ऐड देना, ये साबित करना कि जैसी मेड मुझे चाहिए वैसी मेड अमेरिका में मिलेगी ही नहीं (जो अपने आप में ही एक झूठ है, फिर भी चलिए मान लिया ) बाक़ायदा ह्यूमन रिसोर्स डिपार्टमेंट से अप्रूव कराना पड़ता है, कॉन्ट्रैक्ट बनता है, इमिग्रेशन डिपार्मेंट में इंटरव्यू, मेडिकल के बाद वीज़ा मिलता है.।
    संगीता भारतीय दूतावास की कर्मचारी नहीं थी, वो देवयानी कि कर्मचारी थी, इसलिए उसे देवयानी से ही तनखा मिलनी थी और वो तनखा अमेरिका के वेतनमान के नियम के अनुसार ही मिलना होगा जो $९.७५ / hr है. सप्ताह में सिर्फ ४० घंटे आप काम ले सकते हैं ये क़ानून है और इसमें किसी भी तरह का कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं होना चाहिए कम से कम एक राजनयिक को तो इसका पालन करना ही चाहिए । लेकिन क्या ऐसा हुआ ?? क़ानून का नहीं पालन करना और फ्रॉड करना क्या भारतीय राजनयिक के लिए अच्छी बात हुई ?? हैरानी होती है देख कर एक तो चोरी उसपर से सीना जोरी !!

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  31. संगीता को देवयानी का अपने व्यक्तिगत काम के लिए hire करना देवयानी का व्यक्तिगत मामला है और इस मामले में घाल-मेल करना उसका व्यक्तिगत अपराध है ..

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  32. Criminal Devyani and her Corrupt father Uttam Khobragade are sick!!!.

    U.S. has done the right thing by issuing T Visas to Sangeeta and her family.

    Indian bureaucrats have already harassed Sangeeta’s family members by arresting them in retaliation for her complaint against Devyani. A case was filed against Sangeeta in the Delhi High Court last year.

    Leaving Sangeeta’s family in India or deporting Sangeeta to India would be tantamount to leaving them at the mercy of wolves.

    Indian judiciary and bureaucracy are extremely biased against the lower classes, who often fall victim to oppressive state action on specious and merit-less grounds.

    U.S. must be applauded in quietly getting Sangeeta’s family to the U.S. before initiating action against Devyani Khobragade for her SERIOUS crimes.

    Why did CRIMINAL Devyani keep quiet about her legitimate diplomatic immunity for two weeks since her arrest?? Wouldn’t it have been, well, more diplomatic, to show her forged UN credentials at the very onset and squash the shadow-boxing instead of getting Richard’s passport revoked and moving an Indian court to prevent her from suing in a US court? The passport revocation made Richard look like a victim and triggered media probes into Devyani’s background with unsavoury revelations.

    She and her father were found to have played a questionable role in getting an allocation in a housing project meant for war widows. It was also found that there was some irregularity in her career, with Devyani receiving an out-of-turn language allotment.

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  33. is maamle me Bharat banam America ya Bharat banam Bharat wala drashtikon sarahaniya hai.

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मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।