जो आज दिखी
असहमति नहीं
अभिव्यक्ति मात्र है
आज तक
सारा नियंत्रण
अभिव्यक्ति पर ही रहा
असहमति
विद्यमान तो थी
सदा-सर्वदा ही
पर
रोकी जाती रही
अभिव्यक्त होने से
सभ्यता के नाते
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-12-2014) को "ना रही बुलबुल, ना उसका तराना" (चर्चा-1814) पर भी होगी। -- चर्चा मंच के सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।
ऐ जौक तकल्लुफ में है तकलीफ सरासर
ReplyDeleteआराम से वो हैं जो तकल्लुफ नहीं करते!
कई बार तकल्लुफ को कमजोरी समझ लेते हैं लोग...
एक बार की तल्ख़ बयानी ज़िंदगी भर आसानी!!
असहमति होना असभ्यता नहीं है ... ये सोच विकसित होने में बहुत समय निकल जाता है ...
ReplyDeleteसोच खुली होनी चाहिए ...
प्रभावी रचना ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-12-2014) को "ना रही बुलबुल, ना उसका तराना" (चर्चा-1814) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
(Y)
ReplyDeleteएक कहावत याद आ गई -
ReplyDelete'जिसने करी शरम,उसके फूटे करम .
जिसने करी बेहयायी उसने खाई दूध -मलाई .'
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता तो मानव का मूल अधिकार है, हाँ, हर बात का...समय जरूर होता है
ReplyDeleteहम वही तो अभिव्यक्त करते है जो दूसरों को पसंद हो
ReplyDeleteसभ्यता के नाते जनहिताय ही सही सहमति,
लेकिन तकल्लुफ से कई अधिक महत्व तल्खी का है !
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeletePranaam sir ji..aapki jigyaasa ne humaara bhi gyaan badhaaya ..saadar dhanyavaad .
ReplyDeleteस्वतन्त्रता तो मानव का मूल अधिकार है
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