लोहड़ी की रातें
जब आग के चारों ओर
सुंदर मुंदरिये हो
के साथ गूंजते थे
खिलखिलाते मधुर स्वर
जो बनतालाब की शामों को
रोशन कर देती थीं
अपनी चुन्नी में लपेटे
जगमगाते जुगनुओं से।
यौवन और बुढ़ापा
नहीं लगा सके थे
सेंध
मेरे शैशव में
जब दौड़ता था मैं
ताकि छू सकूँ नन्ही उंगलियों से
क्षितिज पर डूबते सूरज को
मुझे याद हैं
सुहाने विगत की बातें
सब याद है मुझे
जब आग के चारों ओर
सुंदर मुंदरिये हो
के साथ गूंजते थे
खिलखिलाते मधुर स्वर
मुझे याद हैं
नन्ही लड़कियाँजो बनतालाब की शामों को
रोशन कर देती थीं
अपनी चुन्नी में लपेटे
जगमगाते जुगनुओं से।
मुझे याद हैं
वे दिन जबयौवन और बुढ़ापा
नहीं लगा सके थे
सेंध
मेरे शैशव में
मुझे याद हैं
अनमोल उस
बचपन की यादेंजब दौड़ता था मैं
ताकि छू सकूँ नन्ही उंगलियों से
क्षितिज पर डूबते सूरज को
मुझे याद हैं
सुहाने विगत की बातें
सब याद है मुझे
🙏 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
वाह खूबसूरत यादें।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 14
ReplyDeleteजनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद!
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (14-01-2020) को "सरसेंगे फिर खेत" (चर्चा अंक - 3580) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
-- लोहिड़ी तथा उत्तरायणी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद!
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबचपन की सुहानी यादों का सुंदर चित्रण !
ReplyDeleteसुहानी यादों का चित्रण !
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