Monday, June 21, 2010

१९ जून, दास प्रथा और कार्ल मार्क्स [इस्पात नगरी से - २४]

आज वर्ष का सबसे बड़ा दिन है। जून का महीना चल रहा है। पूर्वोत्तर अमेरिका में गर्मी के दिन बड़े सुहावने होते हैं। जो पेड़ सर्दियों में ठूँठ से नज़र आते थे आजकल हरियाली की प्रतिमूर्ति नज़र आते हैं। हर तरफ फूल खिले हुए हैं। चहकती चिडियों के मधुर स्वर के बीच में किसी बाज़ को चोंच मार-मारकर धकेलते हुए क्रंदन करके हुए माता कौवे का करुण स्वर कान में पड़ता है तो प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य के पीछे छिपी कुई क्रूरता का कठोर चेहरा अनायास ही सामने आ जाता है।

जून मास अपने आप में विशिष्ट है। इस महीने में हमें सबसे अधिक धूप प्राप्त होती है। आश्चर्य नहीं कि वर्ष का सबसे बड़ा दिन भी इसी महीने में पड़ता है। गर्मियों की छुट्टियाँ हो गयी हैं। बच्चे बड़े उत्साहित हैं। यहाँ पिट्सबर्ग में तीन-नदी समारोह की तय्यारी शुरू हो गयी है। अमेरिका में उत्सवों की भारत जैसी प्राचीन परम्परा तो है नहीं। कुछ गिने-चुने ही समारोह होते हैं। हाँ, धीरे-धीरे कुछ नए त्यौहार भी जुड़ रहे हैं। पितृ दिवस (Father’s day) भी ऐसा ही एक पर्व है जो हमने कल ही १०० वीं बार मनाया। सोनोरा नाम की महिला ने १९ जून १९१० को अपने पिता के जन्मदिन पर उनके सम्मान में पहली बार पितृ दिवस का प्रस्ताव रखा। सन १९२६ में न्यूयार्क नगर में राष्ट्रीय पितृ दिवस समिति बनी और १९७२ में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने पितृ दिवस को जून मास के तीसरे रविवार को मनाने का ऐलान किया। तब से पितृ-सम्मान की यह परम्परा अनवरत चल रही है।
जूनटींथ ध्वज

रोचक बात यह है कि पितृ दिवस १९ जून को मनाया जाने वाला पहला पर्व नहीं है। एक और पर्व है जो इस दिन हर साल बड़ी गर्मजोशी से मनाया जाता है। जून्नीस या जूनटीन्थ (Juneteenth) नाम से मनाये जाने वाले इस पर्व का इतिहास बहुत गौरवपूर्ण है। जूनटीन्थ दरअसल जून और नाइनटीन्थ का ही मिला हुआ रूप है अर्थात यह १९ जून का ही दूसरा नाम है। मगर इसकी तहें इतिहास के उन काले पन्नों में छिपी हैं जहां इंसानों के साथ पशुओं जैसा बर्बर व्यवहार किया जाता था और पशुओं की तरह उनका भी क्रय-विक्रय होता था। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ दास प्रथा की।

१९ जून १८६५ को इसी घर के छज्जे से दास प्रथा के अंत और मानव-समानता की घोषणा की गयी थी
सन १८६३ में अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने गुलाम प्रथा को मिटा देने का वचन दिया था। १९ जून १८६५ में जब जनरल गोर्डन ग्रेंगर के नेतृत्व में २००० अमेरिकी सैनिक उस समय के विद्रोही राज्य टैक्सस के गैलवेस्टन नगर में पहुँचे तब टैक्सस राज्य के दासों को पहली बार अपनी स्वतन्त्रता के आदेश का पता लगा। पहले अविश्वास, फिर आश्चर्य के बाद गुलामों में उल्लास की लहर ऐसी दौडी कि तब से यह उत्सव हर वर्ष मनाया जाने लगा। कुछ ही वर्षों में यह परम्परा आस-पास के अन्य राज्यों में भी फ़ैल गयी और इसने धीरे-धीरे राष्ट्रीय समारोह का रूप धारण कर लिया। समय के साथ इस उत्सव का रूप भी बदला है और आजकल इस अवसर पर खेल-कूद, नाच-गाना और पिकनिक आदि प्रमुख हो गए हैं।

आज जब पहली बार एक अश्वेत राष्ट्रपति का पदार्पण श्वेत भवन (White house) में हुआ है, पहले जूनटीन्थ को देखा हुआ सम्पूर्ण समानता का स्वप्न सच होता हुआ दिखाई देता है। आज जब अब्राहम लिंकन जैसे महान नेताओं के अथक प्रयासों से दास प्रथा सभ्य-समाज से पूर्णतयः समाप्त हो चुकी है, यह देखना रोचक है कि तथाकथित साम्यवाद का जन्मदाता कार्ल मार्क्स अपने मित्र पैवेल वसील्येविच अनंकोव (Pavel Vasilyevich Annenkov) को १८४६ में लिखे पत्र में दास प्रथा को ज़रूरी बता रहा है:

"दास प्रथा एक अत्यधिक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है. दास प्रथा के बिना तो विश्व का सबसे प्रगतिशील देश अमेरिका पुरातनपंथी हो जाएगा. दास प्रथा को मिटाना विश्व के नक़्शे से अमेरिका को हटाने जैसा होगा. अगर नक़्शे से आधुनिक अमेरिका को हटा दो तो आधुनिक सभ्यता और व्यापार नष्ट हो जायेंगे और दुनिया में अराजकता छा जायेगी. एक आर्थिक गतिविधि के रूप में दास प्रथा अनादिकाल से सारी दुनिया में रही है."

कार्ल मार्क्स एक गोरा नस्लवादी था

कैसी विडम्बना है कि कार्ल मार्क्स की कब्र एक देश-विहीन शरणार्थी के रूप में इंग्लैण्ड में है जहां से उन दिनों साम्राज्यवाद, रंगभेद और दासप्रथा का दानव सारी दुनिया में कहर बरपा रहा था.

इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ

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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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(इस पोस्ट के सभी चित्र - इंटरनेट से उठाईगीरीकृत)

Sunday, June 20, 2010

एक शाम बार में - कहानी

एलन
आजकल हर रोज़ रात को सोते समय सुबह होने का इंतज़ार रहता है। जाने कितने दिनों के बाद जीवन फिर से रुचिकर लग रहा है. और यह सब हुआ है मेगन के कारण। मेगन से मिलने के बाद ज़िन्दगी की खूबसूरती पर फिर से यक़ीन आया है। वरना जेन से शादी होने से लेकर तलाक़ तक मेरी ज़िन्दगी तो मानो नरक ही बन गयी थी। विश्वास नहीं होता है कि मैंने उसे अपना जीवनसाथी बनाने की बेवक़ूफी की थी। उसकी सुन्दरता में अन्धा हो गया था मैं।

मेगन
उम्रदराज़ है, मोटा है, गंजा है और नाटा भी। चश्मिश है, फिर भी आकर्षक है। चतुर, धनी और मज़ाकिया तो है ही, मुझ पर मरता भी है। हस्बैंड मैटीरियल है। बेशक मुझे पसन्द है।

एलन
बहुत प्रसन्न हूँ। आजकल मज़े लेकर खाना खाता हूँ। बढ़िया गहरी नीन्द सोता हूँ। सारा दिन किसी नौजवान सी ताज़गी रहती है। मेगन रूपसी न सही सहृदय तो है। पिछ्ले कुछ दिनों से अपनी तरफ से फोन भी करने लगी है। और आज शाम तो मेरे साथ डिनर पर आ रही है।

मेगन
पिछले कुछ दिनों में ही मेरे जीवन में कितना बड़ा बदलाव आ गया है? हम दोनों कितना निकट आ गये हैं। और आज हम डिनर भी साथ ही करेंगे। अगर आज वह मुझे सगाई की अंगूठी भेंट करता है तो मैं एक समझदार लड़की की तरह बिना नानुकर किये स्वीकार कर लूंगी।

एलन
आज की शाम को तो बस एक डिसास्टर कहना ही ठीक रहेगा। शहर का सबसे महंगा होटल। मेगन ने तो ऐसी जगह शायद पहली बार देखी थी। कितनी खुश थी वहाँ आकर। पता नहीं कैसे इतनी सुन्दर शाम खराब हो गयी?

मेगन
वैसे तो वह इतना पढा लिखा और सभ्य है। उसको इतना भी नहीं पता कि एक लडकी को सामने बिठाकर खाने पर इंतज़ार करते हुए बार-बार फोन पर लग जाना या उठकर बाथरूम की ओर चल पडना असभ्यता है।

एलन
पता नहीं कौन बदतमीज़ था जो बार-बार फोन करता रहा। न कुछ बोलता था और न ही कोई सन्देश छोडा। वैसे मैं उठाता भी नहीं लेकिन माँ जिस नर्सिंग होम में गयी है वहाँ से फोन कालर आइडी के बिना ही आता है। और फिर बडी इमारतों में कभी-कभी सिग्नल भी कम हो जाता है। यही सब सोचकर... खैर छोडो भी। लेकिन मेगन तो ऐसी नकचढी नहीं लगती थी। मगर जिस तरह बिना बताये खाना छोडकर चली गयी... और अब फोन भी नहीं उठा रही है। इस सब का क्या अर्थ है?

मेगन
मैं तो इतनी सरल हूं कि अपने आप शायद इस बात को भी नहीं समझ पाती। भगवान भला करे उन बुज़ुर्ग महिला का जो दूर एक टेबल पर बैठकर यह तमाशा देख रही थीं और एक बार जब वह फोन लेकर दूर गया तब अपने आप ही मेरी सहायता के लिये आगे आयीं और चुपचाप एक सन्देश दे गयीं।

जेन
मुझे घर से निकालकर जवान छोकरियों के साथ ऐश कर रहा है। मेरी ज़िन्दगी में आग लगाकर वह चूहा कभी खुश नहीं रह सकता है। मैं जब भी मुँह खोलूंगी, उसके लिये बद्दुआ ही निकलेगी। अगर वह मजनू मेरा फोन पहचान लेता तो एक बार भी उठाता क्या? मैने भी उस छिपकली से कह दिया, "आय ओवरहर्ड हिम। एक साथ कई लैलाओं से गेम खेलता यह लंगूर तुम्हारे लायक नहीं है।"

(अनुराग शर्मा)

Saturday, June 19, 2010

जन्म दिवस की शुभ कामनाएँ





19 जून - इन सब का अपना विशेष दिन - शुभ कामनाएँ

पितृ दिवस की शुभकामना
एँ

(इस पोस्ट के सभी चित्र - इंटरनेट से उठाईगीरीकृत)