Thursday, September 30, 2010
Tuesday, September 28, 2010
बुरे काम का बुरा नतीज़ा [इस्पात नगरी से - 30]
अदा जी ने हाल ही में कैनाडा में अपने अनुभवों के बारे में एक-दो पोस्ट लिखीं जिनपर काफी रोचक प्रतिक्रियायें पढने को मिलीं। साथ ही आजकल गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी की कैलिफोर्निया यात्रा का वर्णन भी काफी मानसिक हलचल उत्पन्न कर रहा है। इसी बीच में अमेरिका के बैल नगर पालिका से कुछ लोगों की गिरफ्तारी की खबर आयी। दोनों बातों का क्या सम्बन्ध है? कोई खास तो नहीं मगर यह गिरफ्तारी यह भी दर्शाती है कि भ्रष्टाचारी तो हर जगह हो सकता है, परंतु किसी देश का चरित्र बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि उसके भ्रष्टाचारी अंततः किस गति को प्राप्त होते हैं।
कैलिफोर्निआ राज्य की बैल नगरी में आठ नये-पुराने वरिष्ठ अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। गिरफ्तार लोगों में नगर के मेयर और उप-मेयर भी शामिल हैं। मज़े की बात यह है कि वे रिश्वत नहीं ले रहे थे और न ही उनमें से किसी ने अपनी गाडी पर लाल बत्ती लगाकर अपनी जल्दी के लिये सारा ट्रैफिक रुकवाया था। उन्होने किसी सरकारी कर्मचारी को धमकाया भी नहीं था। अपने विरोधी दल वालों को घर से उठवा लेने की धमकी दी हो, ऐसा भी नहीं है। न ही उनके सम्बन्ध दुबई या कराची में बैठे अंडरवर्ड के किसी डॉन से थे। किसी व्यक्ति के शोषण या किसी से दुर्व्यवहार की शिकायत भी नहीं है। नेताजी के जन्मदिन के लिये कम चन्दा भिजाने वाले इंजीनियर की हत्या का आरोप भी नहीं है। उन्होंने सत्ता के दम्भ में न तो संरक्षित प्राणियों का शिकार किया था और न ही शराब पीकर गरीब मज़दूरों पर गाडी चढा दी थी। उनके नगर में धनी ठेकेदारों के लिये सीवर की सफाई करने के लिये उतरे मुफ्त जान गंवाते गरीब मज़दूरों के बच्चे भीख भी नहीं मांग रहे थे।
इन अधिकारियों के अपराध के लिये जमानत की राशि एक लाख तीस हज़ार अमेरिकी डॉलर से लेकर बत्तीस लाख डॉलर तक तय हुई है। और इनका अपराध यह है कि इनके वेतन और भत्ते इनके नगर की औसत मासिक आय के अनुपात में कहीं ज़्यादा है। उदाहरण के लिये नगर प्रबन्धक रॉबर्ट रिज़ो की वार्षिक तनख्वाह आठ लाख डॉलर थी। भारी तनख्वाह लेने के अलावा इन लोगों द्वारा सिर्फ भत्ते लेने के उद्देश्य से की गयी मीटिंगें भी आरोप सूची में हैं। बेल नगर के पार्षदों की वार्षिक तनख्वाह 96,000 थी जिसे जनकर्मियों के हिसाब से काफी अधिक माना जा रहा है क्योंकि अमेरिका में इसी आकार के नगरों के पार्षद सामान्यतः केवल 4800 डॉलर वार्षिक मानदेय पर काम करते हैं।
इन लोगों की करतूत से नगर और बाहर के लोगों के बीच काफी नाराज़गी है। राज्य के गवर्नर ने इस गलती को सही करने के उद्देश्य से एक ऐसे बिल पर हस्ताक्षर किये हैं जिसके द्वारा बेल नगर में जनता से वसूला गया कर उन्हें उचित अनुपात में वापस किया जायेगा।
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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कैलिफोर्निआ राज्य की बैल नगरी में आठ नये-पुराने वरिष्ठ अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। गिरफ्तार लोगों में नगर के मेयर और उप-मेयर भी शामिल हैं। मज़े की बात यह है कि वे रिश्वत नहीं ले रहे थे और न ही उनमें से किसी ने अपनी गाडी पर लाल बत्ती लगाकर अपनी जल्दी के लिये सारा ट्रैफिक रुकवाया था। उन्होने किसी सरकारी कर्मचारी को धमकाया भी नहीं था। अपने विरोधी दल वालों को घर से उठवा लेने की धमकी दी हो, ऐसा भी नहीं है। न ही उनके सम्बन्ध दुबई या कराची में बैठे अंडरवर्ड के किसी डॉन से थे। किसी व्यक्ति के शोषण या किसी से दुर्व्यवहार की शिकायत भी नहीं है। नेताजी के जन्मदिन के लिये कम चन्दा भिजाने वाले इंजीनियर की हत्या का आरोप भी नहीं है। उन्होंने सत्ता के दम्भ में न तो संरक्षित प्राणियों का शिकार किया था और न ही शराब पीकर गरीब मज़दूरों पर गाडी चढा दी थी। उनके नगर में धनी ठेकेदारों के लिये सीवर की सफाई करने के लिये उतरे मुफ्त जान गंवाते गरीब मज़दूरों के बच्चे भीख भी नहीं मांग रहे थे।
इन अधिकारियों के अपराध के लिये जमानत की राशि एक लाख तीस हज़ार अमेरिकी डॉलर से लेकर बत्तीस लाख डॉलर तक तय हुई है। और इनका अपराध यह है कि इनके वेतन और भत्ते इनके नगर की औसत मासिक आय के अनुपात में कहीं ज़्यादा है। उदाहरण के लिये नगर प्रबन्धक रॉबर्ट रिज़ो की वार्षिक तनख्वाह आठ लाख डॉलर थी। भारी तनख्वाह लेने के अलावा इन लोगों द्वारा सिर्फ भत्ते लेने के उद्देश्य से की गयी मीटिंगें भी आरोप सूची में हैं। बेल नगर के पार्षदों की वार्षिक तनख्वाह 96,000 थी जिसे जनकर्मियों के हिसाब से काफी अधिक माना जा रहा है क्योंकि अमेरिका में इसी आकार के नगरों के पार्षद सामान्यतः केवल 4800 डॉलर वार्षिक मानदेय पर काम करते हैं।
इन लोगों की करतूत से नगर और बाहर के लोगों के बीच काफी नाराज़गी है। राज्य के गवर्नर ने इस गलती को सही करने के उद्देश्य से एक ऐसे बिल पर हस्ताक्षर किये हैं जिसके द्वारा बेल नगर में जनता से वसूला गया कर उन्हें उचित अनुपात में वापस किया जायेगा।
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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Saturday, September 25, 2010
कम्युनिस्ट सुधर रहे हैं?
सोवियत संघ का दिवाला पिटने के समय से अब तक लगभग सारी दुनिया में कम्युनिज़्म की हवा कुछ इस तरह निकलती रही है जैसे पिन चुभा गुब्बारा। लेकिन विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के पड़ोस में कम्युनिज़म की बन्दूक, मेरा मतलब है, पर्चम अभी भी फहर रही है। वह बात अलग है कि कम्युनिज़्म के इन दोनों ही रूपों में तानाशाही के सर्वाधिकार और जन-सामान्य के दमन के अतिरिक्त अन्य समानतायें न्यूनतम हैं। कम्युनिज़्म के पुराने साम्राज्य से तुलना करें तो आज बहुत कुछ बदल गया है। क्या कम्युनिज़्म भी समय के साथ सुधर रहा है? क्या यह एक दिन इतना सुधर जायेगा कि लोकतंत्र की तरह प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करने लगेगा? शायद सन 2030 के बाद ऐसा हो जाये। मगर 2030 के बाद ही क्यों? क्योंकि, चीन के एक प्रांत ने ऐसा सन्देश दिया है कि आज से बीस वर्ष बाद वहाँ के परिवारों को दूसरा बच्चा पैदा करने का अधिकार दिया जा सकता है। मतलब यह कि आगे के बीस साल तक वहाँ की जनता ऐसे किसी पूंजीवादी अधिकार की उम्मीद न करे। मगर चीन के आका यह भूल गये कि अगर जनता 2030 से पहले ही जाग गयी तो वहाँ के तानाशाहों का क्या हाल करेगी।
ऐसा नहीं है कि चीन में इतने वर्षों में कोई सुधार न हुआ हो। कुछ वर्ष पहले तक चीन की जनता अपने बच्चों का नामकरण तो कर सकती थी परंतु उन्हें उपनाम चुनने की आज़ादी नहीं थी। चीनी कानून के अनुसार श्रीमान ब्रूस ली और श्रीमती फेंग चू के बच्चे का उपनाम ली या चू के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो सकता है। उस देश में होने वाले बहुत से सुधारों के बावज़ूद जनता की व्यक्तिगत पहचान पर कसे सरकारी शिकंजे की मजबूती बनाये रखने के उद्देश्य से कुलनाम के नियम में कोई छूट गवारा नहीं की गयी थी। मगर कुछ साल पहले जनता को एक बडी आज़ादी देते हुए उपनाम में माता-पिता दोनों के नाम का संयोग एक साथ प्रयोग करने की स्वतंत्रता दी गयी है। मतलब यह कि अब ली और चू को अपने बच्चे के उपनाम के लिये चार विकल्प हैं: चू, ली, ली-चू और चू-ली।
चीन से दूर कम्युनिज़्म के दूसरे मजबूत किले क्यूबा की दीवारें भी दरकनी शुरू हो गयी हैं। वहाँ के 84-साला तानाशाह फिडेल कास्त्रो के भाई वर्तमान तानाशाह राउल कास्त्रो ने देश की पतली हालत के मद्देनज़र पाँच लाख सरकारी नौकरों को बेरोज़गार करने का आदेश दिया है। मतलब यह है मज़दूरों के तथाकथित मसीहा हर सौ में से दस सरकारी कर्मचारी को निकाल बाहर कर देंगे। क्या इन बेरोज़गारों के समर्थन में हमारे करोड़पति कम्युनिस्ट नेता क्रान्ति जैसा किताबी कार्यक्रम न सही, आमरण अनशन जैसा कुछ अहिंसक करेंगे?
ऐसा नहीं है कि चीन में इतने वर्षों में कोई सुधार न हुआ हो। कुछ वर्ष पहले तक चीन की जनता अपने बच्चों का नामकरण तो कर सकती थी परंतु उन्हें उपनाम चुनने की आज़ादी नहीं थी। चीनी कानून के अनुसार श्रीमान ब्रूस ली और श्रीमती फेंग चू के बच्चे का उपनाम ली या चू के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो सकता है। उस देश में होने वाले बहुत से सुधारों के बावज़ूद जनता की व्यक्तिगत पहचान पर कसे सरकारी शिकंजे की मजबूती बनाये रखने के उद्देश्य से कुलनाम के नियम में कोई छूट गवारा नहीं की गयी थी। मगर कुछ साल पहले जनता को एक बडी आज़ादी देते हुए उपनाम में माता-पिता दोनों के नाम का संयोग एक साथ प्रयोग करने की स्वतंत्रता दी गयी है। मतलब यह कि अब ली और चू को अपने बच्चे के उपनाम के लिये चार विकल्प हैं: चू, ली, ली-चू और चू-ली।
चीन से दूर कम्युनिज़्म के दूसरे मजबूत किले क्यूबा की दीवारें भी दरकनी शुरू हो गयी हैं। वहाँ के 84-साला तानाशाह फिडेल कास्त्रो के भाई वर्तमान तानाशाह राउल कास्त्रो ने देश की पतली हालत के मद्देनज़र पाँच लाख सरकारी नौकरों को बेरोज़गार करने का आदेश दिया है। मतलब यह है मज़दूरों के तथाकथित मसीहा हर सौ में से दस सरकारी कर्मचारी को निकाल बाहर कर देंगे। क्या इन बेरोज़गारों के समर्थन में हमारे करोड़पति कम्युनिस्ट नेता क्रान्ति जैसा किताबी कार्यक्रम न सही, आमरण अनशन जैसा कुछ अहिंसक करेंगे?
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