Thursday, October 2, 2008

सबसे तेज़ मिर्च - भूत जोलोकिया

hottest chile
नागा जोलोकिया
भारत में था तो तरह-तरह की मिर्च खाने को मिलती थीं। कई किस्म के पौधे मैंने घर में भी लगाए हुए थे। मिर्च की सब्जी हो, पकौडी हो या चटनी, भरवां पहाडी मिर्च हो या तडके वाली लाल मिर्च, एक फल/सब्जी यही थी जो हर खाने के साथ चलती थी। मिर्च मुझे इतनी पसंद थी कि मैं तो उपवास का हलवा भी हरी मिर्च के साथ ही खाता था। मेरा बस चलता तो आफ़्टर शेव लोशन भी मिर्च की गन्ध वाले ही प्रयोग करता। हमारे घर में अन्य पौधों के साथ नीले, हरे, लाल, पीले विभिन्न प्रकार की मिर्चों के अनेक पौधे थे।

यहाँ आने के बाद जब भी मिर्च की बात होती थी स्थानीय लोग सबसे तेज़ मिर्च की बात करते थे। जिससे भी बात हुई उसने ही रेड सैविना हेबानेरो का नाम लिया। एकाध दफा मेरे दिमाग में आया कि सबसे तेज़ मिर्च तो शायद भारत में ही होती होगी. मगर कोई सबूत तो था नहीं सिर्फ़ मन की भावना थी और भावना का तो कोई मूल्य नहीं होता है। और फ़िर यहाँ के लोग तो हर काम पड़ताल कर परख कर और फ़िर नाप-जोख कर करते हैं। उन्होंने बाकायदा मिर्च की तेज़ी को भी परिभाषित किया हुआ है। और इस तेज़ी की इकाई है स्कौविल पैमाना। रेड सैविना हेबानेरो ३५०,००० से ५८०,००० स्कौविल तक की होती है।

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सबसे तीखी
मगर बुजुर्गों ने कहा ही है कि श्रद्धा के आगे बड़े-बड़े पर्वत झुक जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में शोध के बाद यह पता लगा कि भारत में पाई जाने वाली एक मिर्च रेड सैविना हेबानेरो से लगभग ढाई गुनी तेज़ है। नारंगी से लाल रंग तक पाई जाने वाली यह मिर्च पूर्वोत्तर भारत में, विशेषकर असम के तेजपुर जनपद और उस के आसपास पायी जाती है। मणिपुर में इसे राजा मिर्च और ऊ मोरोक कहते हैं जबकि असम व नागालैंड में उसे भूत जोलोकिया, बीह जोलोकिया व नाग जोलोकिया कहते हैं। मगर अंग्रेजी में इसे तेजपुर चिली के नाम से जाना गया। संस्कृत में मिर्च का एक नाम भोजलोक भी है, भूत जोलोकिया शब्द का उद्भव वहीं से हो सकता है। यह मिर्च लगभग तीन इंच तक लंबी और एक या सवा इंच मोटी होती है।

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नाग मिर्च
काफी समय तक तो हेबानेरो उगाने वाले लोगों ने भारतीय दावे को विभिन्न बेतुके बहानों से झुठलाने की कोशिश की। एक बहाना यह भी था कि एक ही मिर्च के इतने सारे नाम होना भर ही उसके काल्पनिक होने का सबूत है। मगर जब न्यू-मेक्सिको विश्वविद्यालय में स्थित चिली-पेपर संस्थान ने भारतीय वैज्ञानिकों के सहयोग से इस मिर्च के बीज मंगवाकर संस्थान में उगाकर उसकी जांच की तो इस दावे को सत्य पाया। भूत मिर्च की स्कौविल इकाई ८५५,००० से १,०५०,००० पायी गयी। भूत जोलोकिया के गुणों से प्रभावित होकर रक्षा अनुसन्धान संस्थान उसकी सहायता से टीयर गैस का सुरक्षित विकल्प खोजने में लगा है।

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विश्व की सबसे तेज़ मिर्चें
जब मेरे एक अमरीकी सहकर्मी ने मुझे बताया कि वे अपने घर में दुनिया की सबसे तेज़ मिर्च हेबानेरो उगाते हैं तो मैंने उनकी जानकारी को अद्यतन किया। तबसे वे लग गए भूत जोलोकिया को ढूँढने। जब उन्हें पता लगा कि चिली-पेपर संस्थान विभिन्न मिर्चों के बीज बेचता है तो उन्होंने फ़टाफ़ट बीज मंगाकर पौधे उगा लिए और फ़िर दो पौधे मुझे भेंट किए। उनमें से एक तो भगवान् को प्यारा हो गया मगर दूसरा खूब फला। उस पौधे के दो चित्र ऊपर हैं और साथ में नीचे हैं भूत जोलोकिया के कुछ चित्र। साथ में रेड सविना हेबानेरो और चौकलेट हेबानेरो भी हैं।

चलिए आप लोग पढिये तब तक मैं आपके लिए चाय के साथ मिर्च की पकौडी बनाता हूँ।

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सम्बंधित कड़ियाँ
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The Hottest chile in the World - Bhoot Jolokia

Sunday, September 28, 2008

एक शाम बेटी के नाम

शाम का धुंधलका छा रहा था। हम लोग डैक पर बैठकर खाना खा रहे थे। बेटी अपने स्कूल के किस्से सुना रही थी। वह इन किस्सों को डी एंड डी टाक्स (डैड एंड डाटर टाक्स = पिता-पुत्री वार्ता) कहती है। आजकल हमारी पिता-पुत्री वार्ता पहले से काफी कम होती है। पिछले साल तक मैं सुबह दफ्तर जाने से पहले उसे कार से स्कूल छोड़ता था और लंच में जाकर उसे स्कूल से ले आता था। तब हमारी वार्ता खूब होती थी। वह अपने किस्से सुनाती थी और मेरे किस्से सुनने का आग्रह करती थी। यही वह समय होता था जब मुझे उसकी नयी कवितायें सुनने को मिलती थीं। उसने अपनी अंग्रेजी कहानी "मेरे जीवन का एक दिन" भी ऐसी ही एक वार्ता के दौरान सुनाई थी। जब से मेरा दफ्तर दूर चला गया है मैं रोज़ सुबह बस लेकर ऑफिस जाता हूँ। वह भी बस से स्कूल जाती है। हमारी वार्ता की आवृत्ति काफी कम हो गयी है। या कहें कि पहले रोज़ सुबह शाम होने वाली वार्ता सिर्फ़ सप्ताहांत की शामों तक ही सीमित रह गयी है।

उसने अपने क्लास के एक लड़के के बारे में बताया जो सब बच्चों के पेन-पेन्सिल आदि ले लेता है। जब उसने बताया कि एक दिन उस लड़के ने बेटी का कैलकुलेटर भी ले लिया तो मैंने पूछा, "बेटा, कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके पास यह सब ज़रूरी समान खरीदने के लिए पैसे न हों?" बेटी ने नकारते हुए कहा कि उस लड़के के कपड़े तो बेशकीमती होते हैं।

आजकल अमेरिका की आर्थिक स्थिति काफी डावांडोल है। बैंक डूब रहे हैं, नौकरियाँ छूट रही हैं। भोजन, आवागमन, बिजली, गैस आदि सभी की कीमतें बढ़ती जा रही हैं. अक्सर ऐसी खबरें पढने में आती हैं जब इस बुरी आर्थिक स्थिति के कारण लोग बेकार या बेघर हो गए। कल तक मर्सिडीज़ चलाने वाले आज पेट्रोल-पम्प पर काम करते हुए भी नज़र आ सकते हैं। बच्ची तो बाहर की दुनिया की सच्चाई से बेखबर है। मेरे दिमाग में आया कि उस लड़के का परिवार कहीं ऐसी किसी स्थिति से न गुज़र रहा हो। मैंने बेटी को समझाने की कोशिश की और बात पूरी होने से पहले ही पाया कि वह कुछ असहज थी। मैंने पूछना चाहा, "आप ठीक तो हो बेटा?" मगर उसने पहले ही रूआंसी आवाज़ में पूछा, "आप ठीक तो हैं न पापा?"

"हाँ बेटा! मुझे क्या हुआ?" मैंने आश्चर्य से पूछा।

"मेरा मतलब है... आपका जॉब..." उसने किसी तरह से अटकते हुए कहा। बात पूरी करने से पहले ही उसकी आंखों से आंसू टप-टप बहने लगे। मैंने उसे गले से लगा लिया। उसकी मनोदशा जानकर मुझे बहुत दुःख हुआ। मैंने समझाने की भरपूर कोशिश की और कहा कि अगर मेरे साथ कभी ऐसा होता तो मैं उसे अपनी बेटी से, अपने परिवार से कभी छुपाता नहीं। मेरे इस वाक्य से उसकी भोली मुस्कान वापस आ गयी। यह जानकर खुशी हुई कि उसे अभी भी अपने पिता के सच बोलने पर पूरा भरोसा है।


Friday, September 26, 2008

पतझड़



निष्ठुर ठंडी काली रातें
रिसते घाव रुलाती रातें।

फूल पात सब बीती बातें
सूने दिन और रीती रातें।

मुरझाया कुम्हलाया तन-मन
उजड़ी सेज कंटीली रातें।

मिलन बिछोहा सब झूठा था
सत्य भयानक हैैं ये रातें।

फटी पुरानी यादें लाकर
पैबन्दों को बिछाती रातें।

सूखे पत्ते सूनी शाखें
पतझड़ में सताती रातें।।


(रेखाचित्र: अनुराग शर्मा)