Tuesday, June 21, 2011

बेमेल विवाह - एक कहानी

आभार
यह कहानी गर्भनाल के जून 2011 के अंक में प्रकाशित हुई थी। जो मित्र वहां न पढ़ सके हों उनके लिए आज यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। कृपया बताइये कैसा रहा यह प्रयास।

... और अब कहानी

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.-<>-. बेमेल विवाह .-<>-.
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डॉ. अमित
मेरे साथ तो हमेशा से अन्याय हुआ है। ज़िंदगी सदा अधूरी ही रही। बचपन में बेमेल विवाह, मेडिकल कॉलेज में आरक्षण का ताना और अब पिताजी की यह सनक – उनकी सम्पत्ति से बेदखली। अपने ही दुश्मन हो जायें तो जीवन कैसे कटे। मेरा दिल तो घर जाने को करता ही नहीं। सोचता हूँ कि सारी दुनिया बीमार हो जाये और मेरा काम कभी खत्म न हो।

कु. रीना
कितनी खडूस हैं डॉ निर्मला। ऐसी भी क्या अकड़? पिछली बार बीमार पडी थी तब वहाँ गयी थी। छूकर देखा तक नहीं। दूर से ही लक्षण पूछ्कर पर्चा बना दिया था। आज तो मैं डॉ. अमित के पास जाऊंगी। कैसे हँसते रहते हैं हमेशा। आधा रोग तो उन्हें देखकर ही भाग जाये।

डॉ. अमित
क्या-क्या अजीब से सपने आते रहते हैं। वो भी दिन में? लंच के बाद ज़रा सी झपकी क्या ले ली कि एक कमसिन को प्रेमपत्र ही लिख डाला। यह भी नहीं देखा कि हमारी उम्र में कितना अंतर है। क्या यह सब मेरी अतृप्त इच्छाओं का परिणाम है? खैर छोड़ो भी इन बातों को। अब मरीज़ों को भी देखना है।

कु. रीना
कितने सहृदय हैं डॉ. अमित। कितने प्यार से बात कर रहे थे। पर मेरे बारे में इतनी जानकारी किसलिए ले रहे थे? कहाँ रहती हूँ, कहाँ काम करती हूँ, क्या शौक हैं मेरे, आदि। एक मिनट, दवा के पर्चे के साथ यह कागज़ कैसा? अरे ये क्या लिखा है बुड्ढे ने? आज रात का खाना मेरे साथ फाइव स्टार में खाने का इरादा है क्या? मुझे फोन करके बता दीजिये। समझता क्या है अपने आप को? मैं कोई ऐरी-गैरी लड़की नहीं हूँ। अपनी पत्नी से ... नहीं, अपनी माँ से पूछ फाइव स्टार के बारे में। सारा शहर जानता है कि यह मर्द शादीशुदा है। फिर भी इसकी यह मज़ाल। मुझ पर डोरे डाल रहा है। मैं भी बताती हूँ तूने किससे पंगा ले लिया? यह चिट्ठी अभी तेरे घर में तेरी पत्नी को देकर आती हूँ मैं।

श्रीमती अमिता
जाने कौन लडकी थी? न कुछ बोली न अन्दर ही आयी। बस एक कागज़ पकड़ाकर चली गयी तमकती हुई।

डॉ. अमित
अपने ऊपर शर्म आ रही है। मेरे जैसा पढा लिखा अधेड़ कैसे ऐसी बेवक़ूफी कर बैठा? पहले तो ऐसा बेतुका सपना देखा। ऊपर से ... जान न पहचान डिनर का बुलावा दे दिया मैंने … और लड़की भी इतनी तेज़ कि सीधे घर पहुँचकर चिट्ठी अमिता को दे आयी। ज़रा भी नहीं सोचा कि एक भूल के लिये कितना बड़ा नुकसान हो जाता। मेरा तो घर ही उजड जाता अगर अमिता अनपढ न होती।

[समाप्त]

36 comments:

  1. बहुत गहरी बात ...

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  2. "बेमेल विवाह - हर कहानी - एक प्रश्न - एक जवाब - कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता"

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  3. जबरदस्त..अनुराग जी कैसे कैसे रत्न आपकी झोली में हैं और कुछ आप गढ़ के भी उसमें डालते रहते है ..

    यह कहानी एक अन्य ब्लॉग कथा की प्रत्युत्तर -कथा प्रतीति भी है और पृथक से भी बहुत कुछ है ....

    एक अधेड़ संवेदना -प्रवंचित जीवन,निरक्षरा पत्नी .......आह ओह !

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  4. लघुकथा वाले अंदाज में है कहानी। अच्‍छी रचना।

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  5. मेरा तो घर ही उजड जाता
    अगर अमिता अनपढ न होती ||

    सहानुभूति है डाक्टर से ||

    पर,

    इसमें भी कुछ भला |
    हर छोटी - बड़ी बात में
    अपनी सोच को
    आगे --सबसे आगे रखने की कोशिश
    तो नहीं करती होगी वो ||
    डाक्टर !!

    दोपहर में ऊंघने से अच्छा है--
    अक्षर ज्ञान दे पत्नी को--

    न - न
    मत बोलना--
    "आ बैल मुझे मार "

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  6. मानव के अन्तर्मन और अन्तर्द्वन्द दोनों को बहुत सूक्ष्म दृष्टि से आब्सर्व करते हैं आप...

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  7. पत्नी भी बेचारी क्या करे ,घर को सँभाल रही है .डाक्टर थोड़ी सी ,सुविधायें दे और कोशिश करे तो पढ़-लिख-कर अपना व्यक्तित्व सँवार सकती है .

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  8. अच्छी और रोचक लघु कथा है

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  9. मेरा तो घर ही उजड जाता अगर अमिता अनपढ न होती। ....
    कमाल का अवलोकन ....सुंदर कथा

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  10. अनुराग जी , और लिखिए ना इसपर ..अभी अधूरा सा लगा है

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  11. वाह!! अनुराग जी!!

    "मेरा तो घर ही उजड जाता अगर अमिता अनपढ न होती।"

    बेमेल विवाह में भी गज़ब का मेल……
    अभावों के भी सार्थक उपभोग की प्रेरणा दे जाती कथा!!

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  12. wow - great anticlimax in such a short story ...

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  13. ओह..कई सारे सवाल कड़ी करती लघु कथा.
    बहुत उम्दा.

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  14. बेमेल में भी कुछ मेल मिल जाता है, हानी योग्य।

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  15. मन के उथल-पुथल....आते-जाते विचारों को शब्दों का रूप दिया है....पर मन पर से जरा सा नियंत्रण छूटा और भूल हुई...
    यथार्थ के करीब कहानी

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  16. बेहद शानदार कहानी...

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  17. atisay marmik . jin manobagyani dhratal ko apney asparsh kiya hai us manah isthiti ko pranam . aagey bhi likhtey rahaey. kahani vidha me yeh tarika bhi ek naya pryog hai.mai bhi kahani likhta hoon kabhi mako laga to post karunga..dhanyavad.
    vishnu kant mishra.
    lucknow. u.p.India.

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  18. yahi duniya hai sabka nazaria alag alag hai....


    jai baba banaras..........

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  19. कहानी तो अच्छी गढ़ी है यथार्थ के करीब | ऐसे ही होते है लोग जो बेमेल विवाह को लेकर अपनी किस्मत को कोसते रहते है और किसी और को पाने का प्रयास करते है किन्तु कभी उसकी जगह पति या पत्नी को अपने मेल का बनाने का प्रयास नहीं करते है |

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  20. समय और परिस्थितियां विचारों में बदलाव का कारण होती हैं ...
    कहानी जितनी छोटी है , कथ्य उतना ही वृहद् ...

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  21. मानव मन और अंतर्विरोधों की जितनी गहरी पकड़ है न आपको....बस क्या कहूँ...

    समस्त अनकहों में कितना कुछ कह डाला आपने....

    लाजवाब !!!!

    रविकर जी की टिपण्णी जबरदस्त है...

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  22. moral of the story
    all woman should be educated !!

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  23. आगाज तो अच्छा है | अंजाम भी अच्छा ही होगा |

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  24. अच्छी और रोचक लघु कथा है

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  25. तस्वीर का एक रुख ये भी हो सकता है.

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  26. अति सुन्दर ! आपके कहानी की आखिरी लाइन अक्सर बहुत दमदार होती है.

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  27. यदि सबको सबकुछ मिल जाये तो फिर बात ही क्या

    बहुत अच्छी रचना

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  28. एक अजीब चिंतन को जन्म देती कहानी..कितने बिंदु को दिखाती हुई..

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  29. बेमेल विवाह...संवेदनशील कथानक पर अच्‍छी कहानी....

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  30. अच्छा तो यह भी कामयाब रहा ! डाक्टर साहब चालाक है !

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  31. बेमेल विवाह ने ही घर उजडने से बचा लिया ..अच्छी प्रस्तुति

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  32. आज पढ पाई ये लघु कथा। जीवन के कितने रंग --- बेमेल विवाह सब से बदरंग पहलू फिर भी होता है चलता है बस।

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