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साल की सबसे अंधेरी रात में*
दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी
एक चंदा का ही तो अवकाश है
आकाश में तारों का भी तो वास है
और जगमग दीप हम रख दें कई
बन्द कर खाते बुरी बातों के हम
आकाश में तारों का भी तो वास है
और जगमग दीप हम रख दें कई
बन्द कर खाते बुरी बातों के हम
भूल कर के घाव उन घातों के हम
समझें सभी तकरार को बीती हुई
कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
अपना-पराया भूल कर झगड़े सभी
प्रेम की गढ़ लें इमारत इक नई
चित्र एवं कविता: अनुराग शर्मा
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