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Saturday, July 2, 2011

संयुक्त राज्य अमेरिका को स्वाधीनता दिवस की बधाई [इस्पात नगरी से 42]

4 जुलाई 1904 को अमर शहीद भाई भगवती चरण (नागर) वोहरा का जन्म हुआ था। इस मंगलमय अवसर पर इस महान क्रांतिकारी को नमन!

4 जुलाई 1776 को अमेरिकी जनता ने अपने को ब्रिटिश दासता से मुक्त घोषित किया था। तब से अब तक इस महान राष्ट्र ने एक लम्बा सफ़र तय किया है और संसार में वैचारिक स्वतंत्रता का प्रतीक बना है। बच्चों ने दो दिन पहले ही आतिशबाज़ी चलाना शुरू कर दिया है। घर-आंगन में तारे-पट्टियाँ ध्वज फ़हरते दिख रहे हैं और लकडी के छज्जों पर लोग मित्रों और परिवारजनों के साथ स्वतंत्रता भोज (कुक आउट) की तैयारियाँ कर रहे हैं।

पिछले दिनों अपने डाक टिकट संग्रह में भारतीय स्वाधीनता संग्राम के चिह्न ढूंढते समय अमेरिकी स्वतंत्रता से सम्बन्धित कुछ भारतीय टिकट और आवरण, तथा भारत की स्वतंत्रता से सम्बन्धित अमेरिकी चिह्न देखकर उन्हें इस अवसर के अनुकूल पाया। संसार के दो महानतम लोकतंत्रों द्वारा व्यक्तिगत और राजनैतिक स्वतंत्रता, मनावाधिकार, और एक दूसरे का सम्मान स्वाभाविक ही है।

जन्मदिन शुभ हो अमेरिका

भारतीय जनता की ओर से अमेरिकी जनता को बधाई

अमेरिका के कुछ ध्वजों की झलकियाँ 
अमेरिका के राष्ट्रपति
अमेरिका द्वारा महात्मा गान्धी के सम्मान में प्रथम दिवस आवरण - स्वतंत्रता के नायक

स्वतंत्रता के नायक महात्मा गान्धी - अमेरिकी टिकट शृंखला

भारतीय गणतंत्र दिवस पर अमेरिका द्वारा राष्ट्रपिता का सम्मान

[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: All photos by Anurag Sharma]

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
* स्वामी विवेकानन्द
* डीसी डीसी क्या है?

Wednesday, November 5, 2008

बधाई ओबामा, जय प्रजातंत्र!

ओबामा ने अमेरिका के इतिहास में पहला अश्वेत राष्ट्रपति बनकर एक अनोखा इतिहास रचा है - इसके लिए उन्हें और अमेरिकी जनता के साथ-साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में विश्वास रखे वाला हर व्यक्ति बधाई का पात्र है.

यह केवल प्रजातंत्र में ही सम्भव हो सकता है कि आप किसी भी धर्म, समुदाय, जाती, दल या विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हुए भी दमन के भय के बिना दूसरी विचारधाराओं से स्वस्थ प्रतियोगिता कर सकते हैं.

जिस तरह पानी के कितने भी तेज़ दवाब में रहने पर भी लकडी का तिनका अंततः तैरकर ऊपर आ ही जाता है उसी प्रकार जनता द्वारा अपने प्रतिनिधि का चुनाव एक ऐसी विचारधारा है जो कि कितने भी अत्याचारों के बावजूद ऊपर आकर ही रहेगी. काश धर्म, सेना या प्रजातंत्र विरोधी विभिन्न वाद या सिद्धांत यथा राजतंत्र, साम्यवाद आदि के नाम पर निरीह जनता को गोलियों से भूनने वाले तानाशाह इस तथ्य को समय रहते समझ पायें.

भारत उपमहाद्वीप का ही उदाहरण लें तो पायेंगे कि यहाँ हमारा प्रजातंत्र चीन और बर्मा की दमनकारी साम्यवादी तानाशाही, पाकिस्तान व बांग्लादेश के आंतरायिक क्रूर सैनिक शासनों और नेपाल व भूटान के राजतन्त्रों से घिरा हुआ था. मगर भारत में जनतंत्र के सफल प्रयोग ने नेपाल, भूटान आदि में इस नए परिवर्तन को प्रेरित किया.

खैर, प्रजातंत्र से इतर तंत्रों पर फिर कभी बात करेंगे. अभी सिर्फ़ इतना ही कि मैं बहुत प्रसन्न हूँ.

कहानी लिखने का मेरा प्रयास "सब कुछ ढह गया" को मैं सफल मानूंगा क्योंकि आप सब ने उसे इतना पसंद किया. सुझावों और संदेशों के लिए आप सब का आभारी हूँ. धन्यवाद!