Friday, October 4, 2013

पितृ पक्ष - महालय

साल के ये दो सप्ताह - इस पखवाड़े में हज़ारों की संख्या में वानप्रस्थी मिशनरी पितर वापस आते थे अपने अपने बच्चों से मिलने, उनको खुश देखकर खुशी बाँटने, आशीष देने. साथ ही अपने वानप्रस्थ और संन्यास के अनुभवों से सिंचित करने। दूर-देश की अनूठी संस्कृतियों की रहस्यमयी कथाएँ सुनाने। रास्ते के हर ग्राम में सम्मानित होते थे। जो पितर ग्राम से गुज़रते वे भी और जो संसार से गुज़र चुके होते वे भी, क्योंकि मिलन की आशा तो सबको रहती थी। कितने ही पूर्वज जीवित होते हुए भी अन्यान्य कारणों से न आ पाते होंगे, कुछ जोड़ सूनी आँखें उन्हें ढूँढती रहती होंगी शायद।

साल भर चलने वाले अन्य उत्सवों में ग्रामवासी गृहस्थ और बच्चे ही उपस्थित होते थे क्योंकि 50+ वाले तो संन्यासी और वानप्रस्थी थे। सो उल्लास ही छलका पड़ता था, जबकि इस उत्सव में गाम्भीर्य का मिश्रण भी उल्लास जितना ही रहता था। समाज से वानप्रस्थ गया, संन्यास और सेवा की भावना गयी, तो पितृपक्ष का मूल तत्व - सेवा, आदर, आद्रता और उल्लास भी चला गया।

भारतीय संस्कृति में ग्रामवासियों के लिए उत्सवों की कमी नहीं थी। लेकिन वानप्रस्थों के लिए तो यही एक उत्सव था, सबसे बड़ा, पितरों का मेला। ज़ाहिर है ग्रामवासी जहाँ पितृपूजन करते थे वहीं पितृ और संतति दोनों मिलकर देवपूजन भी करते थे। विशेषकर उस देव का पूजन जो पितरों को अगले वर्ष के उत्सव में सशरीर आने से रोक सकता था। यम के विभिन्न रूपों को याद करना, जीवन की नश्वरता पर विचार करते हुए समाजसेवा की ओर कदम बढ़ाना इस पक्ष की विशेषता है। अपने पूर्वजों के साथ अन्य राष्ट्रनायकों को याद करना पितृ पक्ष का अभिन्न अंग है। मृत्यु की स्वीकृति, और उसका आदर -
मालिन आवत देखि करि, कलियाँ करीं पुकार। फूले फूले चुन लिए, काल्हि हमारी बार।। ~ कबीर

केवल अपनी वंशरेखा के पितर ही नहीं, बल्कि परिवार में निःसंतान मरे लोगों के साथ-साथ गुरु. मित्र, सास, ससुर आदि के श्राद्ध की परम्परा याद दिलाती है कि कृतज्ञता भारतीय सभ्यता के केंद्र में है। अविवाहित और निःसंतान रहे भीष्म पितामह का श्राद्ध सभी वर्णों द्वारा किया जाना भी अपने रक्त सम्बंध और जाति-वर्ण आदि से मुक्त होकर हुतात्माओं को याद करने की रीति से जोड़ता है। मैं और मेरे के भौतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर, आज और अभी के लाभ को भूलकर, हमारे और सबके, बीते हुए कल के सत्कृत्यों और उपकार को श्रद्धापूर्वक स्मरण करने का प्रतीक है श्राद्ध।

आज पितृविसर्जनी अमावस्या को अपने पूर्वजों को विदा करते समय उनके सत्कर्मों को याद करने का, उनके अधूरे छूटे सत्संकल्पों को पूरा करने का निर्णय लेने का दिन है।

क्षमा प्रार्थना
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया। दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।।
गतं पापं गतं दु:खं गतं दारिद्रयमेव च। आगता: सुख-संपत्ति पुण्योऽहं तव दर्शनात्।

पिण्ड विसर्जन मन्त्र
ॐ देवा गातुविदोगातुं, वित्त्वा गातुमित। मनसस्पतऽइमं देव, यज्ञ स्वाहा वाते धाः॥

पितर विसर्जन मन्त्र - तिलाक्षत छोड़ते हुए
ॐ यान्तु पितृगणाः सर्वे, यतः स्थानादुपागताः ।। सर्वे ते हृष्टमनसः, सवार्न् कामान् ददन्तु मे॥ ये लोकाः दानशीलानां, ये लोकाः पुण्यकर्मणां ।। सम्पूर्णान् सवर्भोगैस्तु, तान् व्रजध्वं सुपुष्कलान ॥ इहास्माकं शिवं शान्तिः, आयुरारोगयसम्पदः ।। वृद्धिः सन्तानवगर्स्य, जायतामुत्तरोत्तरा ॥

देव विसजर्न मन्त्र - पुष्पाक्षत छोड़ते हुए
ॐ यान्तु देवगणाः सर्वे, पूजामादाय मामकीम्। इष्ट कामसमृद्ध्यर्थ, पुनरागमनाय च॥

सभी को नवरात्रि पर्व पर हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएँ!

Tuesday, September 24, 2013

शव पुष्प - इस्पात नगरी से [65]

क्या आप बता सकते हैं कि भारत का सबसे बड़ा पुष्प कौन सा होता है और कहाँ पाया जाता है?
जब तक आप उत्तर ढूंढें, संसार के सबसे बड़े पुष्प से पिट्सबर्ग में हुई मेरी संक्षिप्त मुलाक़ात से प्राप्त जानकारी यहाँ देख और पढ़ सकते हैं. आकार के मामले में संसार का सबसे बड़ा सुमन भारत के पूर्व में सुमात्रा द्वीप में प्राकृतिक रूप से बड़ी मात्रा में उगता है. प्याज लहसुन की तरह ही यह पौधा गाँठ/बल्ब से उगता है. स्वरुप भी लगभग वैसा ही है. फूल के पल्लवित होने पर उसमें से तीव्र दुर्गन्ध भी आती है ताकि मक्खी, भुनगे आदि आकर उसके परागण में सहायता करें. गाँठ वाले अधिकाँश पौधों की तरह ही अपना पल्लवन-चक्र पूरा होने के बाद यह पौधा सतह के ऊपर से फिर गायब हो जाता है, अगले चक्र के इंतज़ार में. इस दुस्सह दुर्गन्ध के कारण ही इस फूल को शव पुष्प (corpse flower) कहा जाता है.

परिपक्व पौधे में बस एक ही पत्ती होती है

पौधे में पहला फूल आने में 8-10 साल लग जाते हैं

पित्त्स्बर्ग में खिलते पुष्प के मार्ग में मजाकिया सन्देश लगाने का प्रयास

शव पुष्प की ऊंचाई 8 से 20 फीट तक हो सकती है

सुमात्रा के बाहर पहली बार यह पुष्प लन्दन में 1889 में खिला और 1937 में पहली बार अमेरिका में.

कहीं सुना था, "जिन लाहौर नहीं वेख्या ..." लेकिन प्रकृति के चमत्कार देखकर लगता है कि अपने संसार को लाहौर तक सीमित रखना शायद ठीक नहीं है. फ़िप्स कंजर्वेटरी, पिट्सबर्ग में इस साल "रोमेरो" नामक एक फूल के विकास के क्रम को एक स्टिल कैमरा द्वारा नियमित अंतराल पर लिए गए चित्रों से एक विडिओ क्लिप में गतिमान किया गया है जो कि यूट्यूब पर उपलब्ध है और मैंने भी यहाँ एम्बेड की है ताकि आप उसका आनंद ले सकें.




[आलेख व चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]
* सम्बन्धित कड़ियाँ *
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला

Saturday, September 21, 2013

भविष्यवाणी - कहानी [भाग 3]

कहानी भविष्यवाणी में अब तक आपने पढ़ा कि पड़ोस में रहने वाली रूखे स्वभाव की डॉ रूपम गुप्ता उर्फ रूबी को घर खाली करने का नोटिस मिल चुका था। उनका प्रवास भी कानूनी नहीं कहा जा सकता था। समस्या यह थी कि परदेस में एक भारतीय को कानूनी अडचन से कैसे निकाला जाय। रूबी की व्यंग्योक्तियाँ और क्रूर कटाक्ष किसी को पसंद नहीं थे, फिर भी हमने प्रयास करने की सोची। रूबी ने कहा कि हमारे उसके घर आने के बारे में उसे शंख चक्र गदा पद्मधारी भगवान् ने इत्तला दी थी।
भाग १
भाग २
अब आगे की कथा:
"और क्या क्या बताया था आपके शंख चक्र गदा पद्मधारी भगवान् ने?" मैंने पूछा

"अपने को हुशियार समझते, आयेंगे समझाने लोग ..." उसने तुनककर कहा

"आप स्थिति की गंभीरता को नहीं समझ रही हैं। यदि व्यवस्था को पता लगा कि आपका कार्य-वीसा वैलिड नहीं रहा है, तो आपको वापस भेज देंगे।"

"मेरे साथ यह नहीं होने वाला. कार्य दूर, मेरा तो वीसा ही छः महीने पहले ख़त्म हो गया था। होना होता तो अब तक जेल भी हो सकती थी।"

"हाँ, यह तो गनीमत है आप अमेरिका में हैं। और कोई देश होता तो वीसा के बिना अब तक न जाने क्या दुर्दशा हुई होती। लेकिन गैरकानूनी होना तो कहीं भी सही नहीं है। आपके लिए भारत वापस जाना ही सही है। आप परेशान न हों, हम आपके टिकट की व्यवस्था कर देंगे।"

"मैंने आपका क्या बिगाड़ा है? आप मुझसे परेशान हैं? मुझे मारना चाहते हैं?

"नहीं, आपके पास वापसी का टिकट नहीं है, हम घर वापस जाने में आपकी मदद करना चाहते हैं। बस इतनी सी बात है।" समझाने की कमान इस बार श्रीमती जी ने संभाली।

"टिकट दिलाने में मरने-मारने की बात कहाँ से आ गयी?" पूछे बिना रहा नहीं गया मुझसे।

उसने मेरी और ऐसे देखा जैसे संसार में मुझसे बड़ा नादान कोई और न हो। फिर कुछ सोचकर मेरे पास आई और बोली, "इतना समझ लो कि मैं बस उतने दिन ही ज़िंदा हूँ, जितने दिन यहाँ हूँ। आइएसटी (IST भारतीय समय) मेरा काल है और ईएसटी (EST पूर्वोत्तर अमेरिका का स्थानीय समय) मेरा जीवनकाल. मुझे भारत भेजने की बात करने वाला मेरा हत्यारा ही होगा।"

"मुझे कुछ समझ नहीं आया, ठीक से समझायेंगी?"

"जिम में तो आप देखते थे न मुझे? स्विमिंग पूल में भी देखती थी मैं आपको ..."

मुझे याद आया कि अकस्मात नज़र मिलने पर मुस्कान का जवाब तो दूर, मुँह चिढाकर नज़र फेर लेती थी वह।

" ... मेरी नौकरी ऐसे ही नहीं ख़त्म हुई है, वह सब एक षड्यंत्र था मेरे खिलाफ। दुर्घटना हुई थी, फिजियोथेरेपी भी कराती थी मैं और स्विमिंग, योगा, सब तरह के व्यायाम भी करती थी।"

"तो?"

"तो, यह दर्द ठीक होने वाला नहीं। अब मैं नौकरी नहीं कर सकती। भगवान् ने बताया कि इंडिया जाते ही मर जाऊंगी।"

"अच्छा, कैसे बताया भगवान् ने?" मुझे रास्ता सूझने लगा था। अब आगे की योजना ज़्यादा कठिन नहीं लगी, "... भगवान् कान में बोले थे कि चिट्ठी भेजी थी?"

[क्रमशः]