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अनुराग शर्मा
Friday, April 16, 2021
प्रेम के हैं रूप कितने (अनुराग शर्मा)
तोड़ता भी, जोड़ता भी, मोड़ता भी प्रेम है,
मेल को है आतुर और छोड़ता भी प्रेम है॥
एकल वार्ता और काव्यपाठ, साढ़े सात मिनट की ऑडियो क्लिप
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काव्य तरंग || असीम विस्तार
Sunday, February 7, 2021
कविता: निर्वाण
(शब्द व चित्र:
अनुराग शर्मा
)
अंधकार से प्रकट हुए हैं
अंधकार में खो जायेंगे
बिखरे मोती रंग-बिरंगे
इक माला में पो जायेंगे
इतने दिन से जगे हुए हम
थक कर यूँ ही सो जायेंगे
देख हमें जो हँसते हैं वे
हमें न पाकर रो जायेंगे
रहे अधूरे-आधे अब तक
इक दिन पूरे हो जायेंगे॥
Tuesday, November 10, 2020
* मैत्री *
(शब्द व चित्र:
अनुराग शर्मा
)
दुश्मनी जमके हमसे है ठाने
दोस्ती किससे है वही जाने
हमने दरियादिली नहीं देखी
खूब सुनते हैं उसके अफ़साने
अंजुमन में सभी हैं अपने वहाँ
घर से बेदर हमीं हैं अनजाने
कुछ जला न धुआँ ही उट्ठा है
न वो शम्मा न हम हैं परवाने
कुछ तो है खास मैं नहीं जानूँ
यूँ नहीं सब हुए हैं दीवाने
जाने क्या कह दिया है शर्मा ने
हमसे अब वे लगे हैं शर्माने
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