Sunday, January 8, 2012
Saturday, December 31, 2011
नववर्ष 2012 शुभ हो - इस्पात नगरी से [53]
स्वर्गीय डॉ. अमर कुमार |
ब्लॉगिंग की बात जारी रखूँ तो इस बात की खुशी है कि कुछ निकट मित्रों के सहयोग से इस वर्ष एक सामूहिक ब्लॉग रेडियो प्लेबैक इंडिया की शुरूआत हुई जिस पर गीत संगीत, बोलती कहानियाँ और सभी प्रकार के ऑडियो, पॉडकास्ट आदि उपलब्ध हैं। इसी प्रकार इस वर्ष मैं करुणा, स्वास्थ्य और शाकाहार का प्रसार करने को प्रतिबद्ध निरामिष ब्लॉग से जुड़ सका।
भारतीय संस्कृति उत्सवप्रिय है। जहाँ तालिबानी मनोवृत्ति के लोग जब नव शारदा और नौरोज़ पर प्रतिबन्ध लगाने की बात करते हैं और पश्चिमी संस्कृति को मातृदिवस और पितृदिवस जैसे पर्व गढने पड़ते हैं वहीं हमारे एक वर्ष में 400 त्योहार आराम से मिल जायेंगे। वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा को नित नये उत्सवों के उल्लास में सम्मिलित होने में प्रसन्नता ही होती है। क्रिसमस और नव वर्ष के उत्सव की रोशनी के बीच जब मैने एक बेघर के दिल के अँधेरे में झांकने का अनगढ सा प्रयास किया तब याद आया कि न जाने कितने मित्र अपनी समस्याओं में उलझे हुए हैं। उनसे हमारा भौतिक सम्पर्क हो न हो, वे हमारी प्रार्थनाओं में हैं। ईश्वर उनपर कृपा करे और नववर्ष में उनका जीवन प्रसन्नता से भरे, यही कामना है। 2011 के खट्टे-मीठे अनुभव याद करते समय उन सभी लोगों का आभार भी कहना चाहता हूँ जो व्यक्तिगत लेन-देन से ऊपर उठकर सत्यनिष्ठा की समझ रखते हैं।
बेघरों की बात चलने पर श्रीमतीजी ने याद दिलायी व्हिटनी एलिमेंटरी स्कूल और उसकी प्राचार्या शैरी गाह्न (Sherrie Gahn) की। श्रीमती जी बड़े उत्साह से बताती रहीं कि किस प्रकार एक टीवी कार्यक्रम में शैरी की उपस्थिति मात्र से उनके विद्यालय के हर छात्र के लिये बैकपैक, स्कूल पुस्तकालय के लिये पुस्तकें और कम्प्यूटर तथा विद्यालय के लिये बहुत सा पैसा मिला। लास वेगास स्थित यह विद्यालय अमेरिका के किसी सामान्य विद्यालय से इस मामले में फ़र्क है कि वहाँ के 610 विद्यार्थियों में से 518 बेघर हैं।
आठ वर्ष पहले इस पाठशाला में आयीं शैरी का कहना है कि इससे पहले उन्होंने ऐसी ग़रीबी नहीं देखी थी। हालात सुधरने के बजाय हर साल बिगड़ते ही गये। अंततः उन्होंने समुदाय के वयस्कों से मिलकर यह प्रस्ताव रखा कि यदि वे अपने बच्चों की शिक्षा की ज़िम्मेदारी उन्हें दें तो वे बच्चों के भोजन-वस्त्रों की ज़िम्मेदारी स्वतः ही ले लेंगी। लगभग 500 दानदाताओं के सहयोग से शैरी इन बच्चों के वस्त्र, भोजन, केश-कर्तन, चिकित्सा जैसी सुविधायें दे सकी हैं। दानदाताओं में निम्न मध्यवर्ग के व्यक्तियों से लेकर बड़े व्यवसायी भी शामिल हैं। जहाँ एक महिला फ़िलाडेल्फ़िया से 20 डॉलर प्रतिमास भेजती हैं, वहीं एक स्थानीय जुआरी दो हज़ार डॉलर प्रतिमास देता है।
जब मैंने लंचटाइम में बच्चों को केवल सॉस/केचप/चटनी खाते और उसमें से कुछ बचाकर घर ले जाने का प्रयास करते देखा तो मेरा दिल दहल गया। (~प्राधानाचार्या शैरी गाह्न)पाप-नगर (sin city) के नाम से मशहूर और अनेक हिन्दी फ़िल्मों में दिखाये गये लास-वेगास नगर की तेज़ रोशनी और जगमगाते कसीनोज़ के पीछे 12% बेरोज़गारी छिपी है। फ़ोरक्लोज़र (गिरवी घर की किश्तें न दे सकने पर बैंक द्वारा कब्ज़ा करना) की दर सारे देश में सर्वाधिक है। अमेरिका में 12वीं कक्षा तक शिक्षा निशुल्क होते हुए भी बेरोज़गार माता-पिताओं के यह बेघर बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित रहे थे तो ज़ाहिर है कि महंगी कॉलेज शिक्षा पाना उनके लिये जादुई सपने से कम नहीं है। इस बात को ध्यान में रखते हुए शैरी के विद्यालय ने अपने बच्चों की कॉलेज शिक्षा के लिये एक कोश भी बनाया है जो योग्य बच्चों की फ़ीस का ध्यान रखेगा।
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!नीचे के विडियो में आप शैरी को देख सकते हैं एक टीवी कार्यक्रम में अपने छात्रों के बारे में बात करते हुए। मानवता अभी जीवित है और सदा रहेगी!
The Ellen DeGeneres Show - Whitney Elementary School from Aaron Pinkston on Vimeo.
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Wednesday, December 28, 2011
सनातन धर्म खतरे में कभी नहीं था - धंधा खतरे में रहा होगा
इस्कॉन की "भग्वद्गीता यथारूप" |
स्वामी प्रभुपाद की पुस्तक पर पाबंदी लगाने का यह मामला विगत जून 2011 से साइबेरिया के तोमस्क की अदालत में लम्बित था जिसमें तोमस्क नगर के अभियोजन विभाग ने स्थानीय अदालत से तोम्स्क स्थित ISKCON (इस्कॉन = अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज) की धार्मिक गतिविधियों की जाँच कराने का अनुरोध किया था। इस्कॉन स्वामी प्रभुपाद द्वारा की गयी भगवद्गीता की टीका में बताई गई वैष्णव शिक्षाओं का प्रचार करता है।
रूस के बहुत से नागरिकों ने खुलकर इस मुक़दमे को रूस में रहने वाले हिन्दुओं के अधिकारों का उल्लंघन माना। रूस के हिन्दुओं के साथ-साथ अन्य धर्मों के अनुयायियों ने भी इस मुक़दमे के बारे में अपनी नाराज़गी और रोष प्रकट किया था।
अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः। मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः।।18।।जहाँ मैं इस फैसले से बहुत प्रसन्न हूँ, वहीं इस मामले ने भारत में हो रहे एक परिवर्तन को उजागर किया है जिस पर हर जागरूक भारतीय, विशेषकर हिन्दू को ध्यान देने की आवश्यकता है। इस्कॉन व कृष्णभक्तों की प्रशंसा करनी चाहिये क्योंकि उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम में असीमित संयम का परिचय दिया। उनके विपरीत इस मुकदमे की खबर मिलते ही कुछ तथाकथित हिन्दुओं ने इस घटनाक्रम को इंटरनैट पर ऐसे प्रस्तुत किया मानो रूस में गीता पर प्रतिबन्ध लग गया है जो कि सरासर झूठ था। मज़े की बात यह है कि ऐसा प्रचार करने वाले बहुत से लोगों ने ज़िन्दगी में कभी गीता की न तो एक प्रति खरीदी होगी न कभी गीता उठाकर पढी होगी। क्योंकि गीता को पढने, समझने वाला बात को जाने बिना असंतोष भड़काने का माध्यम नहीं बनेगा। धार्मिक मामलों को समझे बिना ऐसे अधार्मिक लोगों की बेचैनी मैं बिल्कुल नहीं समझ पाता हूँ।
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्। क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।19।।
(श्रीमद्भग्वद्गीता, अध्याय 16)
अहंकार, बल, घमण्ड, कामना और क्रोध के परायण और दूसरों की निन्दा करने वाले व्यक्ति अपने और दूसरों के शरीर में स्थित मुझ अन्तर्यामी से द्वेष करने वाले हैं। ऐसे द्वेषी, पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में डालता हूँ। (योगेश्वर कृष्ण)
भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक परम्परा वीरता के साथ-साथ ज्ञान, संयम और सहिष्णुता की भी है। याद रहे कि हिंदुत्व के पालन और रक्षा के लिए उग्र, सांप्रदायिक, या हिंसक होना किसी भी रूप में आवश्यक नहीं है। धैर्य और उदारता पर आधारित जो सभ्यता अनंत काल से अनवरत आक्रमणों और आघातों के बावजूद सनातन चलती रही है उसे अपनी रक्षा के लिए अधैर्य की कोई आवश्यकता भी नहीं है। खतरे में होंगे कोई और धर्म, पंथ, मज़हब या राजनीतिक विचारधाराएँ; मेरा निर्भय धर्म कभी खतरे में नहीं था, न कभी होगा। गीता के नाम पर चला मुकदमा तो अपनी परिणति को प्राप्त हुआ, अब इस पर असंतोष भड़काने वाले वाक्य या आलेख लिखने वाले हर व्यक्ति का इतना फर्ज़ बनता है कि वह भगवान कृष्ण की गीता की या कम से कम स्वामी प्रभुपाद की "भगवद्गीता जस की तस" की एक प्रति अपने पैसे से खरीदकर पढ़ें, समझें और धर्म के कार्य में अपनी निष्ठा दृढ करे। जो लोग पहले से ही गीता एवम अन्य सद्ग्रंथ पढकर उन्हें अपने जीवन में यथासम्भव अपनाकर अपने को बेहतर व्यक्ति बनाने का सतत प्रयत्न करते रहे हैं, वे सात्विक व्यक्ति वाकई आदर के पात्र हैं।
शुभ समाचार का विडियो
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