Monday, September 2, 2013

भविष्यवाणी - कहानी [भाग 2]

(चित्र व कथा: अनुराग शर्मा)

कहानी भविष्यवाणी की पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि पड़ोस में रहने वाली रूखे स्वभाव की डॉ रूपम गुप्ता उर्फ रूबी को घर खाली करने का नोटिस मिल चुका था। उनका प्रवास भी कानूनी नहीं कहा जा सकता था। समस्या यह थी कि परदेस में एक भारतीय को कानूनी अडचन से कैसे निकाला जाय। अब आगे की कथा:


हम लोगों ने कुछ देर तक विमर्श किया। कई बातें मन में आईं। अपार्टमेंट प्रबंधन से बात तो करनी ही थी। यदि वे कुछ दिनों की मोहलत दें तो मैं स्थानीय परिचितों से मिलकर उसकी नई नौकरी ढूँढने में सहायता कर सकूँगा। लेकिन मेरा मन यह भी चाहता था कि रूबी को भारत वापस लौटाने का कोई साधन बने। टिकट खरीदकर देने में मुझे ज़्यादा तकलीफ नहीं थी। अगर कोई कानूनी अडचन होती तो किसी स्थानीय वकील से बात करने में भी मुझे कोई समस्या नहीं थी। श्रीमती जी उसके खाने पीने और अन्य आवश्यकताओं का ख्याल रखने को तैयार थीं।

शाम सात बजे के करीब हम दोनों उसके अपार्टमेंट के बाहर खड़े थे। मैंने दरवाजा खटखटाया। जब काफी देर तक कोई जवाब नहीं आया तो एक बार फिर कोशिश की। फिर कुछ देर रूककर इंतज़ार किया और वापस मुड़ ही रहे थे कि दरवाजा खुला। तेज़ गंध का एक तूफान सा उठा। सातवीं मंज़िल पर स्थित दरवाजे के ठीक सामने बिना पर्दे की बड़ी सी खिड़की से डूबता सूरज बिखरे बाल और अस्तव्यस्त कपड़ों में खड़ी रूबी के पीछे छिपकर भी अपनी उपस्थिति का बोध करा रहा था। उसने हमें अंदर आने को नहीं कहा। दरवाजे से हटी भी नहीं। बल्कि जब उसने हम दोनों पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली तो मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या कहूँ। मुझे याद ही न रहा कि मैं वहाँ गया किसलिए था। श्रीमती जी ने बात संभाली और कहा, "कैसी हो? हम आपसे बात करने आए हैं।"

कुछ अनमनी सी रूबी ज़रा हिली तो श्रीमती जी घर के अंदर पहुँच गईं और उनके पीछे-पीछे मैं भी अंदर जाकर खड़ा हो गया। इधर उधर देखा तो पाया कि छोटा सा स्टुडियो अपार्टमेंट बिलकुल खाली था। पूरे घर में फर्नीचर के नाम पर मात्र एक स्लीपिंग बैग एक कोने में पड़ा था। दूसरे कोने में किताबों और कागज-पत्र का ढेर था। कपड़े घर भर में बिखरे थे। एक लैंडलाइन फोन अभी भी हुक्ड रहते हुए हमें मुँह सा चिढ़ा रहा था। घर में भरी ऑमलेट की गंध इतनी तेज़ थी कि यदि मैं सामने दिख रही बड़ी सी खिड़की खोलकर अपना सिर बाहर न निकालता तो शायद चक्कर खाकर गिर पड़ता।

एक गहरी सांस लेकर मैंने कमरे में अपनी उपस्थिति को टटोला। मैं कुछ कहता, इससे पहले ही एक कोने की धूल मिट्टी खा रहे रंगीन आटे से बने कुछ अजीब से टूटे-फूटे नन्हे गुड्डे गुड़िया पड़े दिखाई दिये। मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि वे क्या हैं, कि श्रीमती जी ने सन्नाटा तोड़ा,

"हम चाहते थे कि आज आप डिनर हमारे साथ ही करें।"

"आज तक तो कभी डिनर पर बुलाया नहीं, आज क्या मेरी शादी है?"

मुझे उसका बदतमीज़ अकखड़पन बिलकुल पसंद नहीं आया, "रहने दो!" मैंने श्रीमती जी से कहा।

"आपके पड़ोसी और भारतीय होने के नाते हमारा फर्ज़ बनाता है कि हम ज़रूरत के वक़्त एक दूसरे के काम आयें", मैं रूबी से मुखातिब हुआ। उसकी भावशून्य नज़रें मुझ पर गढ़ी थीं।"

"आप घबराइए नहीं, सब कुछ ठीक हो जाएगा।" श्रीमती जी का धैर्य बरकरार था।

"सब ठीक ही है। मुझे पता है!" एक लापरवाह सा जवाब आया।

"क्या पता है?" लगता है मैं बहस में पड़ने वाला था।

"कि आप आने वाले हैं मुझे समझाने ..."

"अच्छा! कैसे?"

"अभी मैं भगवान से बातें कर रही थी ..."

"भगवान से ?"

"हाँ! वे ठीक यहीं खड़े थे, इसी जगह ... शंख चक्र गदा पद्म लिए हुए। उन्होने ही बताया।"

उसका कटाक्ष मुझे इस बार भी पसंद नहीं आया। बल्कि एक बार तो मन में यही आया कि उसकी करनी उसे भुगतनी ही है तो हम लोग बीच में क्यों पड़ रहे हैं।


[क्रमशः]

25 comments:

  1. कहाँ के लफड़े में फंसे

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  2. पता नहीं ईश्वर का क्या विधान है, अच्छे लोगों को ही अधिक उत्तर क्यों देने पड़ते हैं।

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  3. इस भाग में अपेक्षा से इतर मोड़ सा लग रहा है. आगे देखते हैं क्या होता है. इंतज़ार रहेगा.

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  4. जानना चाहेंगें रूबी के रूखेपन की वजह .....

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  5. मदद के बदले में इस प्रकार का व्यवहार आश्चर्य हुआ
    देखते है कहानी क्या मोड़ लाती है !

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  6. अब लगने लगा है कि रूबी किसी मानसिक रोग से तो पीडित नही है? कहानी ने दूसरे ही एपिसोड में ट्विस्ट ले लिया दिखता है?

    उत्सुकता बढ गई है.

    रामराम.

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  7. आश्चर्य है.. ! ऐसे भी होता है !

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  8. उसकी करनी उसे भुगतनी ही है तो हम लोग बीच में क्यों पड़ रहे हैं।

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  9. धन्यवाद रविकर जी!

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  10. बढ़िया बनी है कहानी।

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  11. pichchli baar lag raha tha kuchh clue hoga, is baar clue bhi nahi mil raha, bahut rochak episode

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  12. किसी मानसिक रोग से ग्रस्त रुबी,अपना दिमाग़ी संतुलन रख पाने में असमर्थ लगती है .

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  13. आमलेट की गन्‍द से मैं भी हिल जाता हूँ। अगली बार क्‍या बन रहा होगा इसके इंतजार में।

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  14. ओह!! पढ़ रहे हैं कहानी हम भी, दोनों कड़ी के बाद अब तीसरी कड़ी का इंतजार है...!

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  15. रंगीन आटे के गुड्डे गुडिया ….
    उत्सुकता बढ़ गयी है!

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  16. रोचक कहानी ,आगे पढ़ने की उत्सुकता बढ़ गई है .

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  17. सुंदर प्रस्तुति,आप को गणेश चतुर्थी पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें ,श्री गणेश भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे आप के सम्पुर्ण दु;खों का नाश करें,और अपनी कृपा सदा आप पर बनाये रहें...

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  18. आप बीच में इसलिये पड़ रहे हैं कि गदा-शंख-पद्म धारक की ऐसी ही इच्छा रही होगी।
    टुकड़ा-टुकड़ा सस्पेंस बढ़ाने में आपको महारत है।

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    1. चक्र का कोई ज़िक्र नहीं ...

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    2. चक्कर तो हैये है ’बिट्वीन द लाईंस’ :)

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  19. हाँय..यह तो अजीब महिला है! आप अपनी कहानी में उलझाते बहुत हैं। इसीलिए मैं आपकी कहानी समापन किश्त के बाद ही पढ़ना चाहता हूँ।

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  20. कहानी कब बढ़ेगी आगे !!

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