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Tuesday, July 10, 2012

राष्ट्र पर न्योछावर प्राण - भगवतीचरण वोहरा!

भाई भगवतीचरण वोहरा
4 जुलाई 1904 - 28 मई 1930
जुलाई का महीना भीषण उमस और गर्मी भरा तो है ही, यह याद दिलाता है सूर्य के तेज की। धरती पर उदित सभी प्रकार के जीवन के रक्षक सूर्य के तेज की याद दिलाने के लिये "भाई" भगवती चरण वोहरा से अधिक उपयुक्त उदाहरण कौन सा हो सकता है? समकालीन क्रांतिकारियों में भाई के नाम से प्रसिद्ध आदरणीय श्री भगवती चरण वोहरा हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन के एक प्रमुख सदस्य थे। इसके पहले वे नौजवान भारत सभा के सह-संस्थापक और प्रथम महासचिव भी रहे थे। सरदार भगत सिंह, यशपाल आदि सेनानियों के पथप्रदर्शक माने जाने वाले वोहरा जी पंजाब के क्रांतिकारियों के संरक्षक भी थे। आगरा के एक अति-धनी परिवार के वारिस वोहराजी का कोष स्वाधीनता संग्राम के सरफ़रोशों के लिये सदा खुला रहता था। लाहौर का उनका निवास स्थल अनेक क्रांतिकारी योजनाओं, ऐतिहासिक विमर्शों और निर्णयों का साक्षी था। आयरन लेडी के नाम से जानी जाने वाली उनकी पत्नी श्रीमती दुर्गावती वोहरा उर्फ दुर्गा भाभी भी ख्यातिनाम सेनानी रही हैं।

मार्च 1926 में भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह ने मिलकर नौजवान भारत सभा का प्रारूप तैयार किया और फिर रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर संयुक्त रूप से इसकी स्थापना की।
भाई भगवतीचरण उन गिने चुने स्वाधीनता सेनानियों में से एक थे जिनके पास भगवान का दिया हुआ सब कुछ था। सुन्दर व्यक्तित्व, सुलझे विचार, अकूत धन-सम्पदा, अद्वितीय लेखन प्रतिभा, अतुल्य साहस और इन सबसे बढकर वीरता, उदारता और दिशा-निर्देशन की अद्वितीय क्षमता। वे अपने समय के सर्वप्रमुख क्रांतिकारी विचारक और लेखक थे। लाहौर कांग्रेस में बांटा गया "हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र" उन्होंने ही लिखा था। भारतीय क्रांतिकारियों का दृष्टिकोण बताता हुआ "बम का दर्शन-शास्त्र (फ़िलॉसॉफ़ी ओफ़ द बॉम)" नामक पत्र भी भाई द्वारा ही लिखित था। यही वह आलेख था जिसके बाद कॉंग्रेस व अन्य धाराओं में भी क्रांतिकारियों के प्रति जुड़ाव की भावना उत्पन्न हुई। इससे पहले के क्रांतिकारी अपनी धुन में रमे अकेले ही चल रहे थे।
हमें ऐसे लोग चाहिये जो निराशा के गर्त में भी निर्भय और बेझिझक होकर युद्ध जारी रख सकें। हमें ऐसे लोग चाहिये जो प्रशस्तिगान की आशा रखे बिना उस मृत्यु के वरण को तैयार हों, जिसके लिये न कोई आंसू बहे और न ही कोई स्मारक बने। ~ भाई भगवतीचरण वोहरा
उस समय में भी लाखों की सम्पत्ति और हज़ारों रुपये के बैंक बैलैंस होते हुए भी भाई भगवतीचरण ने अपने देशप्रेम हेतु अपने लिये साधारण और कठिन जीवन चुना परंतु साथी क्रांतिकारियों के लिये अपने जीते-जी सदा धन-साधन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति निस्वार्थ भाव से की। लाहौर में तीन मकानों के स्वामी भाई भगवतीचरण ने अपने क्रांतिकर्म के लिये उसी लाहौर की कश्मीर बिल्डिंग में एक कमरा किराये पर लेकर वहाँ बम-निर्माण का कार्य आरम्भ किया था।

समस्त वोहरा परिवार
विशालहृदय के स्वामी वोहरा जी और दुर्गा भाभी ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व दिल खोलकर न्योछावर किया। सां‌न्डर्स हत्याकांड के बाद भगत सिंह को लाहौर से सुरक्षित निकालने की योजना उन्हीं की थी। शचीन्द्रनाथ वोहरा को गोद लिये भगत सिंह की पत्नी के रूप में दुर्गा भाभी और साथ में नौकर की भूमिका में राजगुरु ट्रेन में कलकत्ता तक गये जहाँ वोहरा जी स्वागत के लिये पहले से मौजूद थे। चन्द्रशेखर आज़ाद एक साधु के वेश में तृतीय श्रेणी में इन सबकी सुरक्षा के उद्देश्य से साथ थे।

श्री भगवती चरण वोहरा का जन्म 4 जुलाई सन 1904 को आगरा के एक प्रतिष्ठित राष्ट्रभक्त और सम्पन्न परिवार में श्री शिवचरण नागर "वोहरा" के घर हुआ था। वोहरा परिवार स्वतंत्र भारत के सपने में पूर्णतया सराबोर था। देशप्रेम, त्याग और समर्पण की भावना समस्त परिवारजनों में कूट-कूट कर भरी थी। विदेशी उत्पाद और मान्यताओं से बचने वाले इस परिवार में केवल खादी के वस्त्र ही स्वीकार्य थे। देश की राजनैतिक और देशवासियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिये इस परिवार का हर सदस्य जान न्योछावर करने को तैयार रहता था।

दुर्गा भाभी
पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल की बदनीयती पर ध्यान आकर्षित करने के लिये क्रांतिकारियों के बनाये कार्यक्रम के अनुसार बटुकेश्वर दत्त और भगतसिंह द्वारा सेंट्रल एसेंबली में कच्चा बम फेंकने के बाद भगतसिंह ने घटनास्थल पर ही गिरफ़्तारी दी और इस सिलसिले में बाद में कई अन्य क्रांतिकारियों की गिरफ़्तारी हुई। शहीदत्रयी (राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह) द्वारा न्यायालय में पढ़े जाने वाले बयान भी "भाई" द्वारा ही पहले से तैयार किये गये थे।

अदालत की बदनीयती के चलते जब यह आशंका हुई कि अंग्रेज़ सरकार शहीदत्रयी को मृत्युदंड देने का मन बना चुकी है तब भाई (भगवती चरण वोहरा) और भैया (चंद्रशेखर आजाद) ने मिलकर बलप्रयोग द्वारा उन्हें जेल से छुड़ाने की योजना बनाई। चन्द्रशेखर आज़ाद द्वारा भेजे गये दो क्रांतिकारियों और अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर उन्हीं बमों के परीक्षण के समय 28 मई 1930 को रावी नदी के किनारे हुए एक विस्फोट ने वोहरा जी को हमसे सदा के लिये छीन लिया।
एक हाथ कलाई से उड़ गया था दूसरे की उंगलियाँ कट गयी थीं। सबसे बड़ा घाव पेट में था जिससे कुछ आँतें बाहर निकल आई थीं ... मैंने रूँधे कण्ठ से इतना ही कहा, "भैया, ये आपने क्या किया?" उत्तर में वही हठीली मुस्कान, वही शांत मधुर वाणी, "यह अच्छा ही हुआ। यदि तुम दोनों में से कोई घायल हो जाता तो मैं भैया (आज़ाद) को मुँह दिखाने लायक न रहता।" आत्मबलिदान का कितना महान आदर्श।  ~ क्रांतिकारी विश्वनाथ वैशम्पायन
मृत्यु पर आँसू बहाने की बात तो दूर, चैन से सोती दुनिया को शायद इस अमर शहीद के शव का भी पता न लगता। कहा जाता है कि शहीदत्रयी पर हुई क़ानूनी कार्यवाही के समय चली गवाहियों के बीच भाई की शहादत की बात सामने आयी और तब रावी नदी के किनारे समर्पित अस्थियों को खोदकर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था। भाई के दुखद अवसान के बाद भी दुर्गाभाभी एक सक्रिय क्रांतिकारी रहीं। स्वतंत्रता के बाद दुर्गा भाभी ने में अध्यापन कार्य किया और वोहरा परिवार की त्याग की परम्परा को बनाये रखते हुए लखनऊ का स्कूल और अपनी अचल सम्पत्ति सरकार को दान करके अपने पुत्र शचीन्द्र के साथ अपने अंतिम समय तक ग़ाज़ियाबाद में रहीं।

वोहरा जी को नमन और श्रद्धांजलि! साथ ही उन मित्रों को प्रणाम जिन्हें आज भी वोहरा जी सरीखे हुतात्माओं की याद है, विशेषकर उस मित्र का आभार जिसने मुझे फिर से उन पर लिखने का अवसर दिया। आज इस वीर सेनानी के जन्मदिन पर आइये हम भी देशप्रेम और त्याग की प्रेरणा लें। अमर हो स्वतंत्रता! सत्यमेव जयते!
सम्बन्धित कड़ियाँ
* अमर क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा
* श्रद्धेय वीरांगना दुर्गा भाभी के जन्मदिन पर
* हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र 
* महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर "आज़ाद"
* शहीदों को तो बख्श दो
* नेताजी के दर्शन - तोक्यो के मन्दिर में
* 1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
* नायकत्व क्या है - एक विमर्श
* अमेरिका को स्वाधीनता दिवस की बधाई

Wednesday, October 5, 2011

श्रद्धेय वीरांगना दुर्गा भाभी के जन्मदिन पर

आप सभी को दशहरा के अवसर पर हार्दिक मंगलकामनायें!
एक शताब्दी से थोडा पहले जब 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद कलक्ट्रेट के नाज़िर पण्डित बांके बिहारी नागर के शहजादपुर ग्राम ज़िला कौशाम्बी स्थित घर में एक सुकुमार कन्या का जन्म हुआ तब किसी ने शायद ही सोचा होगा कि वह बडी होकर भारत में ब्रिटिश राज की ईंट से ईंट बजाने का साहस करेगी और क्रांतिकारियों के बीच आयरन लेडी के नाम से पहचान बनायेगी। बच्ची का नाम दुर्गावती रखा गया। नन्ही दुर्गावती के नाना पं. महेश प्रसाद भट्ट जालौन में थानेदार और दादा पं. शिवशंकर शहजादपुर के जमींदार थे। दस महीने में ही उनकी माँ की असमय मृत्यु हो जाने के बाद वैराग्‍योन्‍मुख पिता ने उन्हें आगरा में उनके चाचा-चाची को सौंपकर सन्यास की राह ली।

1918 में आगरा निवासी श्री शिवचरण नागर वोहरा के पुत्र श्री भगवती चरण वोहरा के साथ परिणय के समय 11 वर्षीया दुर्गा पाँचवीं कक्षा उत्तीर्ण कर चुकी थीं। समस्त वोहरा परिवार स्वतंत्र भारत के सपने में पूर्णतया सराबोर था। जन-जागृति और शिक्षा के महत्व को समझने वाली दुर्गा ने खादी अपनाते हुए अपनी पढाई जारी रखी और समय आने पर प्रभाकर की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1925 में उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम शचीन्द्रनाथ रखा गया।

(7 अक्टूबर सन् 1907 -15 अक्टूबर सन् 1999) 
चौरी-चौरा काण्ड के बाद असहयोग आन्दोलन की वापसी हुई और देशभक्तों के एक वर्ग ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम के साथ-साथ फ़्रांस, अमेरिका और रूस की क्रांति से प्रेरणा लेकर सशस्त्र क्रांति का स्वप्न देखा। उन दिनों विदेश में रहकर हिन्दुस्तान को स्वतन्त्र कराने की रणनीति बनाने में जुटे सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी लाला हरदयाल ने क्रांतिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल को पत्र लिखकर शचीन्द्र नाथ सान्याल व यदु गोपाल मुखर्जी से मिलकर नयी पार्टी तैयार करने की सलाह दी। पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल ने इलाहाबाद में शचीन्द्र नाथ सान्याल के घर पर पार्टी का प्रारूप बनाया और इस प्रकार मिलकर आइरिश रिपब्लिकन आर्मी की तर्ज़ पर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (एचआरए) का गठन हुया जिसकी प्रथम कार्यकारिणी सभा 3 अक्तूबर 1924 को कानपुर में हुई जिसमें "बिस्मिल" के नेतृत्व में शचीन्द्र नाथ सान्याल, योगेन्द्र शुक्ल, योगेश चन्द्र चटर्जी, ठाकुर रोशन सिंह तथा राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी आदि कई प्रमुख सदस्य शामिल हुए। कुछ ही समय में अशफ़ाक़ उल्लाह खाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद, मन्मथनाथ गुप्त जैसे नामचीन एचआरए से जुड गये। काकोरी काण्ड के बाद एच.आर.ए. के अनेक प्रमुख कार्यकर्ताओं के पकडे जाने के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में एच.आर.ए. अपने नये नाम एच.ऐस.आर.ए. (हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन/आर्मी) से पुनरुज्जीवित हुई। दुर्गाभाभी, सुशीला दीदी, भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, भगवतीचरण वोहरा का सम्बन्ध भी इस संस्था से रहा।

माता-पिता के साथ शचीन्द्रनाथ
मेरठ षडयंत्र काण्ड में भगवतीचरण वोहरा के नाम वारंट निकलने पर वे पत्नी दुर्गादेवी के साथ लाहौर चले गये जहाँ वे दोनों ही भारत नौजवान सभा में सम्मिलित रहे। यहीं पर भारत नौजवान सभा ने तत्वावधान में भगवतीचरण वोहरा की बहन सुशीला देवी "दीदी" तथा अब तक "भाभी" नाम से प्रसिद्ध दुर्गादेवी ने करतार सिंह के शहीदी दिवस पर अपने खून से एक चित्र बनाया था।

सॉंडर्स की हत्या के अगले दिन 18 दिसम्बर 1928 को वे ही लाहौर स्टेशन पर उपस्थित 500 पुलिसकर्मियों को चकमा देकर हैट पहने भगत सिंह को अपने साथ रेलमार्ग से सुरक्षित कलकत्ता लेकर गयीं। राजगुरू ने उनके नौकर का वेश धरा और कोई मुसीबत आने पर रक्षा हेतु चन्द्रशेखर आज़ाद तृतीय श्रेणी के डब्बे में साधु बनकर भजन गाते चले। लखनऊ स्टेशन से राजगुरू ने वोहरा जी को उनके आगमन का तार भेजा जो कि सुशीला दीदी के साथ कलकत्ता में स्टेशन पर आ गये। वहाँ भगतसिंह अपने नये वेश में कॉंग्रेस के अधिवेशन में गये और गांधी, नेहरू और बोस जैसे नेताओं को निकट से देखा। भगतसिंह का सबसे प्रसिद्ध (हैट वाला) चित्र उन्हीं दिनों कलकत्ता में लिया गया।

भगतसिंह की गिरफ़्तारी के बाद आज़ाद के पास उस स्तर का कोई साथी नहीं रहा गया था जो उनकी कमी को पूरा कर सके। यह अभाव आज़ाद को हर कदम पर खल रहा था। अब आज़ाद और भगवतीचरण एक दूसरे के पूरक बन गए। ~शिव वर्मा
महान क्रांतिकारी दुर्गाभाभी
वोहरा दम्पत्ति लाहौर में क्रांतिकारियों के संरक्षक जैसे थे। जहाँ भगवतीचरण एक पिता की तरह उनके खर्च और दिशानिर्देश का ख्याल रखते थे वहीं दुर्गा भाभी एक नेत्री और माँ की तरह उनका निर्देशन करतीं और अनिर्णय की स्थिति में उनके लिये राह चुनतीं।

भगवतीचरण वोहरा की सहायता से चन्द्रशेखर आज़ाद ने पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में हुए सेंट्रल असेम्बली बम काण्ड में क़ैद क्रांतिकारियों को छुडाने के लिये जेल को बम से उडाने की योजना पर काम आरम्भ किया। इसी बम की तैयारी और परीक्षण के समय रावी नदी के तट पर सुखदेवराज और विश्वनाथ वैशम्पायन की आंखों के सामने 28 मई 1930 को वोहरा जी की अकालमृत्यु हो गयी। उस आसन्न मृत्यु के समय मुस्कुराते हुए उन्होंने विश्वनाथ से कहा कि अगर मेरी जगह तुम दोनों को कुछ हो जाता तो मैं भैया (आज़ाद) को क्या मुँह दिखाता?

शहीदत्रयी की फ़ांसी की घोषणा के विरोधस्वरूप दुर्गा भाभी ने स्वामीराम, सुखदेवराज और एक अन्य साथी के साथ मिलकर एक कार में मुम्बई के लेमिंगटन रोड थाने पर हमला करके कई गोरे पुलिस अधिकारियों को ढेर कर दिया। पुलिस को यह कल्पना भी न थी कि ऐसे आक्रमण में एक महिला भी शामिल थी। उनके धोखे में मुम्बई पुलिस ने बडे बाल वाले बहुत से युवकों को पूछताछ के लिये बन्दी बनाया था। बाद में मुम्बई गोलीकांड में उनको तीन वर्ष की सजा भी हुई थी।

भगवती चरण (नागर) वोहरा
4 जुलाई 1904 - 28 मई 1930
अडयार (तमिलनाडु) में मॉंटेसरी पद्धति का प्रशिक्षण लेने के बाद से ही वे भारत में इस पद्धति के प्रवर्तकों में से एक थीं। सन 1940 से ही उन्होंने उत्तर भारत के पहले मॉंटेसरी स्कूल की स्थापना के प्रयास आरम्भ किये और लखनऊ छावनी स्थित एक घर में पाँच छात्रों के साथ इसका श्रीगणेश किया। उनके इस विनम्र प्रयास की परिणति के रूप में आजादी के बाद 7 फ़रवरी 1957 को पण्डित नेहरू ने लखनऊ मॉंटेसरी सोसाइटी के अपने भवन की नीँव रखी। संस्था की प्रबन्ध समिति में कुछ राजनीतिकों के साथ आचार्य नरेन्द्र देव, यशपाल, और शिव वर्मा भी थे। 1983 तक दुर्गा भाभी इस संस्था की मुख्य प्रबन्धक रहीं। तत्पश्चात वे मृत्युपर्यंत अपने पुत्र शचीन्द्रनाथ के साथ गाजियाबाद में रहीं और शिक्षणकार्य करती रहीं। त्याग की परम्परा की संरक्षक दुर्गा भाभी ने लखनऊ छोडते समय अपना निवास-स्थल भी संस्थान को दान कर दिया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुछ राजनीतिज्ञों द्वारा राजनीति में आने के अनुरोध को उन्होंने विनम्रता से अस्वीकार कर दिया। पंजाब सरकार द्वारा 51 हजार रुपए भेंट किए जाने पर भाभी ने उन्हें अस्वीकार करते हुए अनुरोध किया कि उस पैसे से शहीदों का एक बड़ा स्मारक बनाया जाए जिससे भारत की स्वतंत्रता के क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास का अध्ययन और अध्यापन हो सके क्योंकि नई पीढ़ी को अपने गौरवशाली इतिहास से परिचय की आवश्यकता है।

92 वर्ष की आयु में 15 अक्टूबर सन् 1999 को गाजियाबाद में में रहते हुए उनका देहावसान हुआ। वोहरा दम्पत्ति जैसे क्रांतिकारियों ने अपना सर्वस्व हमारे राष्ट्र पर, हम पर न्योछावर करते हुए एक क्षण को भी कुछ विचारा नहीं। आज जब उनके पुत्र शचीन्द्रनाथ वोहरा भी हमारे बीच नहीं हैं, हमें यह अवश्य सोचना चाहिये कि हमने उन देशभक्तों के लिये, उनके सपनों के लिये, और अपने देश के लिये अब तक क्या किया है और आगे क्या करने की योजना है ।

सात अक्टूबर को दुर्गा भाभी के जन्मदिन पर उन्हें शत-शत नमन!

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* आजादी का अनोखा सपना बुना था दुर्गा भाभी ने
* Durga bhabhi: A forgotten revolutionary
* अमर क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा
* हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र
शहीदों को तो बख्श दो
* महान क्रांतिकारी थे भगवती चरण वोहरा
जेल में गीता मांगी थी भगतसिंह ने
महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर "आज़ाद"
जिन्होंने समाजवादी गणतंत्र का स्वप्न देखा
काकोरी काण्ड
* Lucknow Montessori Inter College
Revolutionary movement for Indian independence