Wednesday, February 17, 2010

नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे [4]

आइये मिलकर उद्घाटित करें सपनों के रहस्यों को. पिछली कड़ियों के लिए कृपया निम्न को क्लिक करें: खंड [1] खंड [2] खंड [3]

स्वप्नों के कारण पर विचार करने से पहले आइये हम स्वप्न के कारकों और इसकी संरचना पर एक नज़र डालते चलें. देखें कि क्या इसमें अतीत की छवियों के अलावा भी कुछ है? [कम्प्यूटर विज्ञान के छात्रों को "कूड़ा डाला कूड़ा पाया" (GIGO) याद होगा] या फिर स्वप्न में कोई सन्देश छिपा है?

जहाँ तक मैंने समझा (और मुझे भी गलत होने का पूरा अधिकार है) स्वप्न एक वाहन चलाने जैसा है जिसमें आप वाहन में पहले से भरी मशीनरी, शक्ति, ईंधन आदि पूरा उपयोग करते हुए अपने संचालन प्रशिक्षण और अनुभव का पूरा लाभ उठाते हैं. अभिप्राय यह कि आपके अनुभव, आपके मस्तिष्क में एकत्रित विभिन्न यादें, कथन, घटनाएँ, छवियाँ आदि स्वप्न को कच्चा मसाला प्रदान करते हैं. दिमाग में बेतरतीब पड़े इन टुकड़ों को जोड़कर एक रहस्यमय कैनवास बनता है जिसमें आपकी चेतना रियल टाइम में तार्किक पैबंद का स्पर्श देती चलती है. इस सब के अलावा एक बात और है और वह है आपके अनुभव, यादों, नियंत्रण या संज्ञान से बाहर के एक तत्व की मौजूदगी. स्पष्ट कहें तो बाहरी परिवेश के प्रभाव से पैदा हुई इंटर एक्टिविटी. मतलब यह कि स्वप्न इंटरएक्टिव होते हैं. सपने का वाहन चलाते समय आपको राह में पड़ने वाले गड्ढों, अवरोधों, यातायात और संकेतों का ध्यान भी रखना पड़ता है क्योंकि यह सब आपके स्वप्न की दिशा को रीयल टाइम में बदल रहे होते हैं. ठीक वैसे ही जैसे वाहन चलाते समय सड़क पर अचानक सामने आता हुआ जुलूस आपका मार्ग बदल देता है.

मसलन यह कि जब आप स्वप्न देख रहे हैं और कोई कमरे की बत्ती जला दे तो आपके स्वप्न में सूर्योदय हो सकता है या अँधेरे जंगल में किसी जीप की हैडलाईट आपकी आँखों पर पड़ती है. सोते हुए व्यक्ति को सुई चुभने से स्वप्न में छुरा घोंपे जाने का अनुभव हो सकता है. ऐसे उदाहरण हैं जब लोग सपने में शेर से लड़े और जागने पर अपने आप को चूहे या किसी अन्य प्राणी द्वारा कुतरा हुआ पाया. आप स्वप्न देख रहे हैं और उसी समय टीवी पर कोई वृत्तचित्र आ रहा है तो आपका स्वप्न उस वृत्तचित्र के विषय, संवाद और संगीत से प्रभावित हो सकता है बल्कि अक्सर होता ही है. अकेले रहने वालों के मुकाबले संयुक्त परिवारों में या छात्रावास में रहने वालों के स्वप्न अधिक गत्यात्मक होते हैं क्योंकि नींद के समय उनका परिवेश अधिक गतिमान है. इसी तरह दिन की झपकी के सपने ज़्यादा रंगीन होते हैं क्योंकि आसपास का प्रकाश हमारी रंग महसूसने की क्षमता बढ़ा देता है.

अभिषेक ओझा जी ने कहा, "पहले सपने बहुत आते थे... हर रात. अब बहुत कम. ऐसा क्यों?"
ख़ास संभावना यह है कि शायद अब आपकी नींद में बाहरी व्यवधान पहले से कम हैं. हमने पीछे देखा कि जागृति के क्षण वाला सपना याद रहने की संभावना सर्वाधिक है. होता यह है कि जब हमारी नींद स्वप्न देखते हुए टूट जाती है तभी हमें याद रहता है कि सपना देखा था वरना नहीं. मतलब यह कि भरपूर नींद कमाई तो समझो सपना गँवाया.

दूसरा [कम महत्वपूर्ण] कयास यह कि अब नींद के बीच में कोई और बत्ती जलाता-बुझाता नहीं, रेडियो ऑन-ऑफ नहीं करता और न ही सुबह पढने के लिए जगाता है इसलिए परिवेश-जन्य घटनाएँ कम हैं जिनके याद रहने की संभावना ज़्यादा होती है क्योंकि वह सिर्फ अवचेतन की एक हल्की छवि न होकर इन्द्रियों का ताज़ा अनुभव होता है.

अभी तक की कड़ियों का एक त्वरित सिंहावलोकन:
  • स्वप्न नींद के किसी भी भाग में आ सकते हैं
  • स्वप्न पूर्णतया आभासी होते हैं और उन्हें सांसारिक नियमों के पालन की आवश्यकता नहीं होती
  • स्वप्न को नियंत्रित करना संभव है.
  • स्वप्न किसी फिल्म की तरह न होकर विडियो गेम की तरह होते हैं.
  • निद्रा स्थल का परिवेश रीयल टाइम में आपके स्वप्न को बदलता चलता है
  • हमें अक्सर वही सपने याद रहते हैं जिनके दौरान हम जग गए हों

स्वप्न और नींद पर आगे बात करने से पहले हम दिमाग की कुछ उलटबांसियों पर विचार करेंगे.

[कृपया बताइये कि इंटरएक्टिव और रीयल टाइम की हिन्दी क्या है?]
[क्रमशः]

Tuesday, February 16, 2010

नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे [3]

मिलकर उद्घाटित करें सपनों के रहस्यों को. पिछली कड़ियों के लिए कृपया निम्न को क्लिक करें: खंड [1] खंड [2]
आइये, आगे बढ़ने से पहले पिछली कड़ियों की कुछ टिप्पणियों पर एक नज़र डालते चलते हैं.

डॉ. अरविन्द मिश्र ने कहा:
मैं स्वप्न देखता हूँ तो ज्यादातर स्वप्न में भी यह बात स्पष्ट रहती है कि स्वप्न देख रहा हूँ -मगर सबसे रोचक बात यह कि ऐसे दृश्य आते हैं वे कदापि विश्वसनीय नही हो सकते हैं मगर इस समानांतर अनुभूति के बाद भी कि वे महज स्वप्न है -सच ही लगते हैं -ताज्जुब!

लवली कुमारी जी ने कहा:
कई बार ऐसी परिस्थितियां आती है कि हम एक ही सपने को अलग-अलग भाग करके देखते हैं (किसी धारावाहिक के पार्ट की तरह ) ..इस पर भी प्रकाश डालिए.
मैं सपने पसंद न आने पर बदल लेती थी...इस पर भी..और आप सिर्फ अनुभव और निष्कर्ष लिख रहे हैं विश्लेषण और कारण के साथ पूरे प्रोसेस पर लिखिए..वरना रहस्यमयी धुंध घटने जगह गहरी होगी.


गिरिजेश राव ने कहा:
मुझे सपने बहुत कम आते हैं या यूँ कहें कम याद रहते हैं।

समय ने कहा:
जागने के बाद अवचेतन के क्रियाकलाप जो स्मृतिपटल पर दर्ज़ रह जाते है, उन्हें ही हम स्वप्न की अवधारणा से पुकारते हैं। गहरी नींद यानि गहरी अचेतनता में हुए कार्यकलाप स्मृतिपटल पर दर्ज़ नहीं होते और मनुष्य सोचता है कि उसे स्वप्न नहीं आये।

डॉ .अनुराग ने कहा:
सपने देखने वालो की नींद पूरी नहीं मानी जाती क्यूंकि उसे आर इ एम् स्लीप बोलते है

और अब चर्चा
सतही तौर पर पहले तीनों प्रश्न अलग अलग लगते हैं मगर गहराई में जाने पर इनका कारण एक ही मुद्दे पर संकेंद्रित हो जाता है. कैसे? यह हम इस शृंखला की अंतिम कड़ी में देखेंगे. तब तक हमें कुछ और पहलुओं पर ध्यान देने की ज़रुरत है ताकि शृंखला पूरी होने तक सारे महत्वपूर्ण मुद्दे तय हो जाएँ.

समय जी की टिप्पणी में गिरिजेश राव की निद्रा के स्वप्नविहीन (नींद हमारी, ख्वाब कहाँ रे?) होने का कारण व्यक्त है मगर इस कथन से एक नया सवाल यह उठता है कि यदि स्वप्न बना ही पिछले अनुभवों और तात्कालिक कारकों से होता है तो जो दृश्य स्वप्न में दिखे थे उनके जागृति में याद रहने की संभावना तो रहनी ही चाहिए, मगर अक्सर ऐसा होता नहीं है. ज़रा अंदाज़ लगाकर इसके संभावित कारण बताइये न!

डॉ. अनुराग की बात को समझने के लिए नींद के विभिन्न पदों (stages) की एक त्वरित समीक्षा कर लेते हैं. नींद को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है:
1. तीव्र-चक्षुगति रहित (NREM = Non-Rapid Eye Movement) नींद
2. तीव्र-चक्षुगति (REM = Rapid Eye Movement) नींद

इनमें भी पहले वाली नींद के चार पद हैं जिन्हें हम 1, 2, 3, 4 कह सकते हैं. जब एक औसत व्यक्ति आठ घंटे की नींद लेता है तो वह तीव्र-चक्षुगति-रहित नींद के पद 1 से शुरूआत करता है और फिर 1 → २ → 3 → 4 → 3 → 2 → 1 तक आकर फिर तीव्र-चक्षुगति नींद में चला जाता है और लगभग 10 मिनट तक तीव्र-चक्षुगति नींद में रहने के बाद फिर तीव्र-चक्षुगति रहित नींद के पद 1, 2, 3, 4, 3, 2, 1 आ जाते हैं. कुल नींद में लगभग पाँच बार तीव्र-चक्षुगति नींद आती है और उसकी अवधि हर बार बढ़ती जाती है. पाँचवीं (और अंतिम) बार की तीव्र-चक्षुगति रहित नींद 20 से 40 मिनट तक होती है और उसके बाद आँख खुल जाती है.

पहले ऐसा समझा जाता था कि स्वप्न केवल तीव्र-चक्षुगति नींद में ही आते हैं मगर अब विशेषज्ञ जानते हैं कि स्वप्न नींद में कभी भी आते हैं. हाँ तीव्र-चक्षुगति रहित नींद में हमारा दिमाग चिंतन की अवस्था में होता है इसलिए स्वप्न पर बेहतर नियंत्रण रख सकता है. ज़रुरत हो तो उन्हें बदल भी सकता है. तीव्र-चक्षुगति नींद में हमारा शरीर अल्पकालीन पक्षाघात जैसी अवस्था में होता है और इस अवस्था के स्वप्न में मांसपेशीय गतियों की प्रतीति पूर्णतया काल्पनिक होती है. जागृति के ठीक पहले की (अंतिम) तीव्र-चक्षुगति नींद के स्वप्न याद रहने की संभावना सर्वाधिक होती है. याद रखिये कि यह बातें तभी पूर्णतया सच हो सकती हैं जब आपकी नींद बिलकुल टेक्स्ट बुक के हिसाब से हो.

अंत में,  कार्तिकेय मिश्र की 'विनम्र जिद':
कृपया अगली कड़ी में ईडन के प्रयोग के कुछ बोधगम्य दृष्टांत दें, या कम से कम उनके लिंक तो दे ही दें! जितना अभी तक ढूँढा मैनें, कुछ खास जँचा नहीं...

कार्तिकेय की टिप्पणी के बाद जब मैंने ढूंढना शुरू किया तो उनकी कठिनाई समझ में आई. स्वप्न पर अंतरजाल में इतनी सामग्री है कि अपने काम की चीज़ ढूंढना असंभव सा ही लगता है. अंग्रेज़ी में कुछ हलकी फुल्की कड़ियाँ रखने की धृष्टता कर रहा हूँ. बाद में यदि संभव हुआ तो सूची अद्यतन कर दूंगा:

लूसिड ड्रीम्स (लाबर्ग)
लूसिड ड्रीम्स प्रश्नोत्तरी
स्वप्न अध्ययन

[क्रमशः]

Monday, February 15, 2010

नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे [2]

नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे - 1

आगे बढ़ने से पहले, बीस-तीस साल पहले "मधु मुस्कान" में पढी एक कहानी आपसे साझा करना चाहता हूँ. मेरी आधी-अधूरी याद के अनुसार उसमें एक खिलाड़ी लाइलाज कोमा में चला जाता है. मगर चिकित्सक उसे फिर से खडा करके कुशल खिलाड़ी बना देते हैं. वह अपनी प्रगति से बड़ा खुश है और इस बात से बिलकुल बेखबर भी कि यह नया जीवन चिकित्सकों द्वारा उसके लगभग निर्जीव शरीर में स्पंदित एक स्वप्न भर ही है. [यदि किसी को लेखक/लेखिका के बारे में जानकारी हो तो कृपया साझा करें.]

कभी-कभी सत्य बिलकुल अविश्वसनीय होता है. इसी तरह अक्सर सपने उपरोक्त खिलाड़ी के सपने की तरह बिलकुल सच जैसे होते हैं खासकर खुशहाल लोगों के सपने. ऐसा समय आता है जब स्वप्न और सच्चाई में फर्क करना कठिन होता है. कोई लोग च्यूंटी काटकर देख लेते हैं, यदि दर्द न हो तो सपना है वरना सच. मेरे बचपन में यह ट्रिक हमेशा कामयाब रही. मज़े की बात यह है कि इसकी ज़रुरत सिर्फ सपने में ही पडी. [हाल की एक घटना को छोड़कर - उसके बारे में फिर कभी]

पुराने ज़माने में डेटाक्वेस्ट या उसकी सहयोगी पत्रिका में कृत्रिम बुद्धि पर सुगत मित्र की एक शृंखला आयी थी जिसमें स्वप्न के एक विशिष्ट लक्षण का ज़िक्र था - वह था स्वप्न का पूर्ण आभासी होना. जैसा मुझे याद पड़ता है उन्होंने इसे सिक्कों के एक उदाहरण से समझाया था. मान लीजिये आप स्वप्न में कुछ सिक्के लिए बैठे हैं. तो उन्हें दो-तीन बार गिनिये, हर बार उनकी संख्या अलग होगी. हो सकता है कि अचानक ही आपको मुट्ठी एकदम खाली भी मिले. [जो लोग सुगत मित्र से परिचित नहीं हैं उनसे मेरा अनुरोध है कि उनके होल इन द वाल प्रयोग के बारे में ज़रूर पढ़ें]

सपनों की दुनिया के पीछे सच का ठोस धरातल नहीं होता है. बच्चों के बस मैं बैठते ही बस की जगह पर एक हाथी हो सकता है (क्यों होता है इसके लिए थोड़ा इंतज़ार करना पडेगा) सच तो यह है कि प्रकृति के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन सपनों को सत्य से अलग कर सकने में बहुत सहायक होता है.

उपरोक्त विचार का विस्तार करें तो वही बात सामने आती है कि स्वप्न की दुनिया सच्चाई की दुनिया जैसी निश्चित और नियमबद्ध नहीं है. लेकिन चुटकी काटने की विधि और सुगत मित्र के कथन में एक और महत्वपूर्ण तथ्य छिपा है जो कि स्वप्न-वार्ता में अक्सर छूट जाता है, वह यह कि स्वप्न अवचेतन का अनियंत्रित प्रलाप मात्र नहीं है. कई स्वप्नों को आप नियंत्रित कर सकते हैं. आप उनकी चुटकी काट सकते हैं, दुबारा गिनती कर सकते हैं या दिशा-परिवर्तन कर सकते हैं.

बचपन के सपनों में यदि मेरा सामना किसी खल से होता था और मैं उसके पास कोई हथियार पाता था तो मैं "अरे यह तो सपना है" मन्त्र बोलकर या तो उससे बेहतर हथियार अपने हाथ में ले लेता था या बिना चोट खाए आराम से उस हथियार का मुकाबला कर लेता था. इसका मतलब यह नहीं है कि स्वप्न में दौड़ने पर आप हाँफेंगे नहीं इसका मतलब सिर्फ इतना है कि जब आप हाँफने लगें तो "अरे यह तो सपना है" इतना ध्यान में आते ही फिर आपको हाँफने, दौड़ने की ज़रुरत ही नहीं बचेगी. आप उड़कर या अदृश्य होकर आराम से गंतव्य तक पहुँच सकेंगे यहाँ मैं दिवास्वप्न की बात नहीं कर रहा हूँ. अगले स्वप्न में आप भी करके देखिये.

डच मनोचिकित्सक फ्रेडरिक फान ईडन (Frederik van Eeden) ने इस प्रकार के स्वप्न के लिए lucid dream शब्द-युग्म दिया था. इस पर बहुत खोजें, अध्ययन और चिकित्सकीय प्रयोग (क्लिनिकल ट्रायल्स) हो चुके हैं. जो लोग विस्तार से जानना चाहते हैं उन्हें अंतरजाल पर ही काफी सामग्री मिल सकती है प्रकाशनों की तो बात ही क्या है.

तो इस कड़ी में हमने देखा कि -
1. स्वप्न आभासी होता है और प्रकृति के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन कर सकता है.
2. वास्तविकता के मुकाबले स्वप्न को उसके आभासी रूप से पहचाना जा सकता है.
3. स्वप्न अनियंत्रित ही रहे, यह ज़रूरी नहीं है. स्वप्न को चेतना द्वारा निर्देशित किया जा सकता है

अगली कड़ी में हम देखेंगे कि स्वप्न सिर्फ भूत के अनुभव, चेतन के निर्देश या हमारी आकांक्षाओं और भावनाओं पर ही आधारित नहीं हैं बल्कि सितारों से आगे जहाँ और भी हैं.
पिट्सबर्ग के फर्स्ट इंग्लिश एवंजेलिकल लुथरण चर्च की 1888 में बनी इमारत 
First English Lutheran Evangelical Church of Pittsburgh
[Photo by Anurag Sharma - चित्र अनुराग शर्मा]
[क्रमशः]