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Tuesday, February 16, 2010

नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे [3]

मिलकर उद्घाटित करें सपनों के रहस्यों को. पिछली कड़ियों के लिए कृपया निम्न को क्लिक करें: खंड [1] खंड [2]
आइये, आगे बढ़ने से पहले पिछली कड़ियों की कुछ टिप्पणियों पर एक नज़र डालते चलते हैं.

डॉ. अरविन्द मिश्र ने कहा:
मैं स्वप्न देखता हूँ तो ज्यादातर स्वप्न में भी यह बात स्पष्ट रहती है कि स्वप्न देख रहा हूँ -मगर सबसे रोचक बात यह कि ऐसे दृश्य आते हैं वे कदापि विश्वसनीय नही हो सकते हैं मगर इस समानांतर अनुभूति के बाद भी कि वे महज स्वप्न है -सच ही लगते हैं -ताज्जुब!

लवली कुमारी जी ने कहा:
कई बार ऐसी परिस्थितियां आती है कि हम एक ही सपने को अलग-अलग भाग करके देखते हैं (किसी धारावाहिक के पार्ट की तरह ) ..इस पर भी प्रकाश डालिए.
मैं सपने पसंद न आने पर बदल लेती थी...इस पर भी..और आप सिर्फ अनुभव और निष्कर्ष लिख रहे हैं विश्लेषण और कारण के साथ पूरे प्रोसेस पर लिखिए..वरना रहस्यमयी धुंध घटने जगह गहरी होगी.


गिरिजेश राव ने कहा:
मुझे सपने बहुत कम आते हैं या यूँ कहें कम याद रहते हैं।

समय ने कहा:
जागने के बाद अवचेतन के क्रियाकलाप जो स्मृतिपटल पर दर्ज़ रह जाते है, उन्हें ही हम स्वप्न की अवधारणा से पुकारते हैं। गहरी नींद यानि गहरी अचेतनता में हुए कार्यकलाप स्मृतिपटल पर दर्ज़ नहीं होते और मनुष्य सोचता है कि उसे स्वप्न नहीं आये।

डॉ .अनुराग ने कहा:
सपने देखने वालो की नींद पूरी नहीं मानी जाती क्यूंकि उसे आर इ एम् स्लीप बोलते है

और अब चर्चा
सतही तौर पर पहले तीनों प्रश्न अलग अलग लगते हैं मगर गहराई में जाने पर इनका कारण एक ही मुद्दे पर संकेंद्रित हो जाता है. कैसे? यह हम इस शृंखला की अंतिम कड़ी में देखेंगे. तब तक हमें कुछ और पहलुओं पर ध्यान देने की ज़रुरत है ताकि शृंखला पूरी होने तक सारे महत्वपूर्ण मुद्दे तय हो जाएँ.

समय जी की टिप्पणी में गिरिजेश राव की निद्रा के स्वप्नविहीन (नींद हमारी, ख्वाब कहाँ रे?) होने का कारण व्यक्त है मगर इस कथन से एक नया सवाल यह उठता है कि यदि स्वप्न बना ही पिछले अनुभवों और तात्कालिक कारकों से होता है तो जो दृश्य स्वप्न में दिखे थे उनके जागृति में याद रहने की संभावना तो रहनी ही चाहिए, मगर अक्सर ऐसा होता नहीं है. ज़रा अंदाज़ लगाकर इसके संभावित कारण बताइये न!

डॉ. अनुराग की बात को समझने के लिए नींद के विभिन्न पदों (stages) की एक त्वरित समीक्षा कर लेते हैं. नींद को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है:
1. तीव्र-चक्षुगति रहित (NREM = Non-Rapid Eye Movement) नींद
2. तीव्र-चक्षुगति (REM = Rapid Eye Movement) नींद

इनमें भी पहले वाली नींद के चार पद हैं जिन्हें हम 1, 2, 3, 4 कह सकते हैं. जब एक औसत व्यक्ति आठ घंटे की नींद लेता है तो वह तीव्र-चक्षुगति-रहित नींद के पद 1 से शुरूआत करता है और फिर 1 → २ → 3 → 4 → 3 → 2 → 1 तक आकर फिर तीव्र-चक्षुगति नींद में चला जाता है और लगभग 10 मिनट तक तीव्र-चक्षुगति नींद में रहने के बाद फिर तीव्र-चक्षुगति रहित नींद के पद 1, 2, 3, 4, 3, 2, 1 आ जाते हैं. कुल नींद में लगभग पाँच बार तीव्र-चक्षुगति नींद आती है और उसकी अवधि हर बार बढ़ती जाती है. पाँचवीं (और अंतिम) बार की तीव्र-चक्षुगति रहित नींद 20 से 40 मिनट तक होती है और उसके बाद आँख खुल जाती है.

पहले ऐसा समझा जाता था कि स्वप्न केवल तीव्र-चक्षुगति नींद में ही आते हैं मगर अब विशेषज्ञ जानते हैं कि स्वप्न नींद में कभी भी आते हैं. हाँ तीव्र-चक्षुगति रहित नींद में हमारा दिमाग चिंतन की अवस्था में होता है इसलिए स्वप्न पर बेहतर नियंत्रण रख सकता है. ज़रुरत हो तो उन्हें बदल भी सकता है. तीव्र-चक्षुगति नींद में हमारा शरीर अल्पकालीन पक्षाघात जैसी अवस्था में होता है और इस अवस्था के स्वप्न में मांसपेशीय गतियों की प्रतीति पूर्णतया काल्पनिक होती है. जागृति के ठीक पहले की (अंतिम) तीव्र-चक्षुगति नींद के स्वप्न याद रहने की संभावना सर्वाधिक होती है. याद रखिये कि यह बातें तभी पूर्णतया सच हो सकती हैं जब आपकी नींद बिलकुल टेक्स्ट बुक के हिसाब से हो.

अंत में,  कार्तिकेय मिश्र की 'विनम्र जिद':
कृपया अगली कड़ी में ईडन के प्रयोग के कुछ बोधगम्य दृष्टांत दें, या कम से कम उनके लिंक तो दे ही दें! जितना अभी तक ढूँढा मैनें, कुछ खास जँचा नहीं...

कार्तिकेय की टिप्पणी के बाद जब मैंने ढूंढना शुरू किया तो उनकी कठिनाई समझ में आई. स्वप्न पर अंतरजाल में इतनी सामग्री है कि अपने काम की चीज़ ढूंढना असंभव सा ही लगता है. अंग्रेज़ी में कुछ हलकी फुल्की कड़ियाँ रखने की धृष्टता कर रहा हूँ. बाद में यदि संभव हुआ तो सूची अद्यतन कर दूंगा:

लूसिड ड्रीम्स (लाबर्ग)
लूसिड ड्रीम्स प्रश्नोत्तरी
स्वप्न अध्ययन

[क्रमशः]