(अनुराग शर्मा)
सुरमयी यादों की बात ही निराली है
भंडार है अनन्त जेब भले खाली है।
परदे के पीछे से झाँक झाँक जाती थी
हृदय में रहती वह षोडशी मतवाली है।
थामा था हाथ जो ओठों से चूमा था
रूमानी शाम थी आज भी हरियाली है।
याद तेरी आयी तो सहरा शीतल हुआ
चतुर्मास की साँझ घिरी घटा काली है।
दृष्टि क्षीण हो भले रजतमय केश हों
आज भी अधरों पे याद वही लाली है।