(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)
अंधकार से प्रकट हुए हैं
अंधकार में खो जायेंगे
बिखरे मोती रंग-बिरंगे
इक माला में पो जायेंगे
इतने दिन से जगे हुए हम
थक कर यूँ ही सो जायेंगे
देख हमें जो हँसते हैं वे
हमें न पाकर रो जायेंगे
रहे अधूरे-आधे अब तक
इक दिन पूरे हो जायेंगे॥
Sunday, February 7, 2021
Tuesday, November 10, 2020
* मैत्री *
हमने दरियादिली नहीं देखी
खूब सुनते हैं उसके अफ़साने
अंजुमन में सभी हैं अपने वहाँ
घर से बेदर हमीं हैं अनजाने
घर से बेदर हमीं हैं अनजाने
कुछ जला न धुआँ ही उट्ठा है
न वो शम्मा न हम हैं परवाने
न वो शम्मा न हम हैं परवाने
कुछ तो है खास मैं नहीं जानूँ
यूँ नहीं सब हुए हैं दीवाने
यूँ नहीं सब हुए हैं दीवाने
जाने क्या कह दिया है शर्मा ने
हमसे अब वे लगे हैं शर्माने
हमसे अब वे लगे हैं शर्माने
Sunday, October 11, 2020
* घर के वृद्ध *
चलो अब डायरी में लिख लेंगे
मन को कहके यही भरमाते हैं।
बीती बातों को याद कर-कर के
दिल के घावों को वे सहलाते हैं।
दिल के घावों को वे सहलाते हैं।
सबकी मजबूरियों को समझा है
अपनी बारी पे चुप हो जाते हैं।
अपनी बारी पे चुप हो जाते हैं।
अपनी तनहाइयों को झटका दे
गीत उत्सव के गुनगुनाते हैं॥
***
गीत उत्सव के गुनगुनाते हैं॥
***
Subscribe to:
Posts (Atom)