Tuesday, October 21, 2008

बर्फ, प्याज, पैट्रोल, नमक और चुनाव

हर सोमवार की तरह ही इस बार भी सुबह उठने में देर हो गयी। इस बार इतनी देर हो गयी कि सुबह की आख़िरी बस भी छूट गयी, सो काम पर ड्राइव करके जाना पड़ा। अब कार चलाते समय बस-यात्रा की तरह अखबार तो पढा नहीं जा सकता है, तो समय का सदुपयोग करने के लिए जनता रेडियो पर दुनिया भर का हाल सुनता रहा। जब उन्होंने बताया कि आसपास का तापक्रम ३० डिग्री फेहरनहाइट (सेंटीग्रेड में शून्य से लगभग एक डिग्री कम) है तब ध्यान गया कि घास हरी के बजाय सफ़ेद क्यों दिख रही थी। साथ ही याद आया कुछ हफ्ते पहले नगर-पालिका से मिला नोटिस जिसमें उन्होंने याद दिलाया था कि इस बार वे बर्फ गिरने पर सड़कों पर हिम गलाने वाला लवण पिछली बार जैसी मुस्तैदी से नहीं डाल सकेंगे क्योंकि एक वर्ष के बीच ही इस लवण की कीमत दोगुनी बढ़ गयी है।

रेडियो पर दूसरी ख़बर थी कि सोमवार का दिन राष्ट्रपति चुनाव के लिए डाक-बैलट भेजे जाने की शुरूआत का दिन था। दूसरे शब्दों में अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव का पहला वोट कहीं पर सोमवार को चिन्हित किया जा चुका हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

मुझे याद आया कि चुनाव-वर्ष में भारत में प्याज का दाम एक आम मुद्दा हुआ करता था। अब सडकों पर फैंका जाने वाला नमक क्या भारतीय चुनावी प्याज जैसा महत्वपूर्ण हो सकता है। प्याज न खाने से शायद ही किसी की जान जाती हो। सच तो यह है कि लाखों परम्परागत भारतीय घरों की रसोईयों में तो शायद प्याज कभी घुस भी नहीं पायेगा। मगर वोट बैंक के मारे नेताओं को परम्परागत भारतीय की फ़िक्र कब से होने लगी? अलबत्ता इस नमक की कमी हर बर्फबारी के बाद बहुत सी दुर्घटनाएं करा सकती है।

कार चलाते हुए ही पाया कि पहली बार ही पैट्रोल का प्रति गैलन दाम भी तीन डॉलर से कम नज़र आया। सोचने लगा कि क्या यह सब भी चुनाव वर्ष का चिह्न हो सकता है?




आप सब को बहुत-बहुत बधाई

आज सुबह 6 बजकर 20 मिनट (IST) पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी-11 पहले भारतीय चंद्रयान-1 को लेकर अंतरिक्ष में रवाना हुआ।

26 comments:

  1. चुनाब के कारण बहुत सी अनापेक्षित चीजे होती भी हैं और उसके कारण बहुत सी चीजों को हम जोड़ भी लेते हैं।
    पता नहीं यह अर्थव्यवस्था का सिकुड़न-विस्तार चुनाव से रिलेटेड ही हो। अमेरिका तो मन्दी से जल्दी निजात पा लेगा। मरन काहिल अर्थव्यवस्थाओं की होगी।

    ReplyDelete
  2. chunav ke samay, chunav ke aas paas kuchh bhee ho sakta hai, jaise koi neta aap ko vinmarta se bol sakta hai, aapke ghar aa sakta hai

    ReplyDelete
  3. चुनाव बहुत से सपने दिखाते हैं और तोड़ते भी हैं।

    ReplyDelete
  4. चुनाव सच में एक विभीषिका से कम नही होता ! आम जनता का पैसा लुटा कर जनता को ही झूंठे सपने दिखा कर अपना उल्लू सीधा किया जाता है ! यु.एस. में फ़िर भी थोड़ी नैतिकता होगी जो क्रूड के दाम अपने हाई से आधे होने पर ३ डालर कम कर दिए भले ही चुनाव भी उसमे एक मुद्दा हो सकता है ! पर हमारे यहाँ आज भी वही ५५ रु. के भाव हैं ! यहाँ एक बार बढे तो फ़िर फेविकोल से चिपक कर अमर हो जाते हैं ! वाकई आर्थिक हालत अभी ख़राब है और सबसे ज्यादा संकटग्रस्त अभी तो यु.एस ही है ! सो नमक का छिड़काव भी इस बार चुनाव जितना ही हो पायेगा ! अफ़सोस चुनाव अब निकलने को है ! बहुत उम्दा और सही चिंतन है !

    ReplyDelete
  5. यहाँ भी लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं -अच्छी बुरी बातें यहाँ भी शरू हो रही हैं

    ReplyDelete
  6. कार चलाते वक्त भी दिमाग में क्या - क्या आता है न ?
    राजनीती के बारे में तो मुझे कुछ कहना ही नही है.

    ReplyDelete
  7. दरअसल प्याज नही खाने वाले ब्याज खाते हैं और वही लोग राजनिती को कंट्रोल करते हैं।इसिलिये यहां प्यज सरकार गिरा देता है,रहा सवाल पेट्रोल का तो वो आपके यहां महंगा होता है तो हमारे यहां भी हो जाता है मगर जब आपके यहां सस्ता होता है तब हमारे यंहा कोइ फ़र्क नही पड्ता। अब कांटा देखकर गाडी चलाते हैं,मज़बूरी मे।

    ReplyDelete
  8. वहां शासन और प्रशासन अलग-अलग ही होते हैं और प्रशासन, 'कानून का राज' चलाता है । भारत में शासन और प्रशासन में राजनीति की राजनेताओं की इच्‍छाओं का प्रदूषण होता है सो प्रशासन का प्रत्‍येक काम सदैव संदिग्‍ध और अविश्‍वसनीय होता है । चुना सम्‍पन्‍न हो जाने के बाद वहां प्रतिपक्ष, 'वरोध के लिए विरोध' नहीं करता । हमारे यहां तो नेता अपनी सुविधानुसार वक्‍तव्‍य देते हैं । वहां नमक का मंहगा होना बाजार की सामान्‍य घटना है, हमारे यहां किसानों-व्‍‍यापारियों के वोट का मामला होता है ।

    ReplyDelete
  9. चुनाव पूर्व सारी दुनिया एक सी है

    ReplyDelete
  10. Bach kar kahan jayenge. bharat jaisa haal vahan bhi hai. Aadmi saat samandar paar chala jaye to bhi pareshaniyan uska vahan bhi peecha karti hain. ham to sochate the aapke to maze hi maze hain.

    ReplyDelete
  11. हम सीधे साधे भूत हैं सो राजनीती और चुनाव तो समझते नही हैं ! पर चंद्रमा वाली ख़बर के लिए आपको बधाई ! वैसे आपने बहुत सार्थक बात कही है इस लेख में ! धन्यवाद !

    ReplyDelete
  12. " well said, sub chunavee fnda hai, wada or sapne vaise bhee todne ke liye hain, chunav ke baad tu kaun or mai kaun.."

    regards

    ReplyDelete
  13. हाय रे ......एक तो बर्फ के मजे ऊपर से जनता रेडियो...(नाम मजेदार लगता है )आप दूर रहकर भी करीब है भारत के .....अच्छा लगता है...ओर कभी कभी शुक्रिया कहने का मन भी इस टेक्नोलोजी को.....

    ReplyDelete
  14. वाह बहुत सुन्दर।

    ReplyDelete
  15. भइया, हम भारतीय महान हैं। विश्व को हमना बहुत कुछ दिया है। हम हर काम अव्वल दर्जे का करते हैं। सो बेवकूफियां भी अव्वल दर्जे की करते हैं। प्याज पर सरकार गिराना या जाति-मजहब के नाम पर भिड़ जाना हमारी अव्वल दर्जे की बेवकूफियों का प्रतीक है।

    ReplyDelete
  16. भाई प्याज नही भी खाया तो कोई बात नही , लेकिन अगर समय पर नमक नही डाला सडक पर तो मियां जीतने से पहले ही हार निश्चित है.... क्यो कि यहां पर भारत की जनता नही जो चुप चाप सहती रहेगी....
    लेकिन आप के लिखने का ढंग बहुत ही अच्छा है, पढ कर मजा आ गया, हमारे यहां अगर सरकार की वजह से कोई नुक्सान हो जाये तो सरकर हरजाना देती है, जेसे सडक अगर टुटी है( ओर कोई चेतावनी नही लगी) ओर आप की कार वहा से गुजरी ओर आप किसी दुर्घटना के शिकार होगये तो आप सरकार को पकड सकते है, यह आप का हक है,ओर पुरा हरजाना आप को मिलेगा

    ReplyDelete
  17. Acha likha hai,badai!

    ReplyDelete
  18. अनुराग भाई,
    नमक तो डालना होगा वर्ना पीट्सबर्ग की सडकोँ पर कार दौडाना मुश्किल हो जायेगा
    और
    चुनाव का जुलूस
    अब जलसाघर पहुँचने वाला ही है :)
    देखते हैँ क्या होता है ,
    और आपकी टाइप की हुई कथा
    मेरे ब्लोग पर शोभायमान है :)
    बहुत बहुत धन्य्वाद आपने इतना परिश्रम किया -
    - स स्नेह्,
    -लावण्या

    ReplyDelete
  19. नमक का यह महत्व भी है, पहली बार पता चला। रोचक पोस्ट।

    ReplyDelete
  20. सड़क पर नमक ??????? नई और रोचक जानकारी मिली.
    यहाँ भी तो चुनाव आने वाले हैं पर नेतागण बड़े परेशान है कि प्याज वाला प्यादा तो अब चलेगा नही,कौन सा नया रामबाण उपाय/नारा दिया किया जाए कि बस जीत मुट्ठी से चिपक जाए.

    ReplyDelete
  21. चुनाव बहुत से सपने दिखाते हैं. रोचक पोस्ट.

    ReplyDelete
  22. भारत में प्याज भी राजनीतिक दल की तरह है जो रुलाता है।
    पेट्रोल राजनेता की तरह है जो जलाता है।
    चुनाव हवन कुंड है, जहां आम आदमी की गाढ़ी कमाई का पैसा
    होम कर दिया जाता है।

    ReplyDelete
  23. कुछ चींजें प्रतीक होती हैं और कुछ बना दी जाती है.....हम लोकतंत्र का ढिंढोरा पीटते हैं लेकिन यह कई कारकों से नाहक ही प्रभावित होकर स्वावलंबी होने की धारणा को भ्रम में जब-तब परिवर्तित कर देता है...जिसके उदाहरण के रूप में हमें प्याज और दूसरे भावनात्मक मुद्दों पर सरकार गिरती और बनती मिलती हैं. अमेरिका का लोकतंत्र पढ़े लिखे और सिविलाइज्ड लोगों के भरोसे है...ऐसा मेरा कहना उचित होगा की नहीं आप अधिक बेहतर बता सकते हैं...लेकिन हमारे लोकतंत्र को कुछ ईलाजी झटकों की सख्त आवश्यकता है.

    ReplyDelete
  24. कुछ चींजें प्रतीक होती हैं और कुछ बना दी जाती है.....हम लोकतंत्र का ढिंढोरा पीटते हैं लेकिन यह कई कारकों से नाहक ही प्रभावित होकर स्वावलंबी होने की धारणा को भ्रम में जब-तब परिवर्तित कर देता है...जिसके उदाहरण के रूप में हमें प्याज और दूसरे भावनात्मक मुद्दों पर सरकार गिरती और बनती मिलती हैं. अमेरिका का लोकतंत्र पढ़े लिखे और सिविलाइज्ड लोगों के भरोसे है...ऐसा मेरा कहना उचित होगा की नहीं आप अधिक बेहतर बता सकते हैं...लेकिन हमारे लोकतंत्र को कुछ ईलाजी झटकों की सख्त आवश्यकता है.

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।