Tuesday, May 15, 2012

बदले ज़माने देखो - कविता

(कविता व चित्र अनुराग शर्मा)


रंग मेरे जीवन में, तुमने भी सजाये हैं
याद से हटते नहीं गुज़रे ज़माने देखो।
सूनी आँखों में बसे दोस्त पुराने देखो॥

प्यार की जीत सदा नफ़रतों पे होती है।
हर तरफ़ महके मेरे शोख फ़साने देखो॥

ग़लतियाँ हमने भी सरकार बड़ी कर डालीं।
चाहते क्या थे चले क्या-क्या कराने देखो॥

कोशिशें करने से भी वक़्त ही जाया होगा।
भर सकेंगे न कभी दिल के वीराने देखो॥

सारा दिन दर्द के काँटों पे ही गुज़रा था।
रात आयी है यहाँ ख्वाब सजाने देखो॥

आखिरी बूंद मेरे खून की बहने के बाद।
ताल खुद आये मेरी प्यास बुझाने देखो॥

साँस रोकी थी मेरी जिसने ज़ुबाँ काटी थी।
मर्सिया पढ़ता वही बैठ सिरहाने देखो॥

50 comments:

  1. गहन ...अंतस का दर्द मर्म छू रहा है ...!!
    बहुत सुंदर रचना ...!
    शुभकामनायें ...!!

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  2. उदासियाँ जीवन मे पहले ही कम नहीं हैं,
    आप भी आज हमें लगे रुलाने देखो |

    गलतियाँ दोस्तों की नज़रंदाज़ भी कर दिया कीजै
    माइक्रोस्कोप लेकर गलतियाँ लगे दिखाने देखो ....

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    1. ग़लतियाँ हमने भी सरकार बड़ी कर डालीं,
      चाहते क्या थे चले क्या-क्या कराने देखो॥
      :(

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    2. सम्वाद हर निर्वात का हल है मित्रों
      मौन व्रत भी लगे है बतियाने देखो॥

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    3. हम तो समझे थे कि अफसाना ख़त्म हो गया
      आपके शेर फिर आंसू आँखों में लगे लाने देखो ....

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  3. गलतियाँ कीं तो कीं ,चलो,अब तो समझदार हुए !

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  4. गहन ....अर्थपूर्ण पंक्तियाँ...

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  5. अनुराग जी, तस्वीर के नीचे लिखी इबारत पर..
    रंग जीवन में मेरे, सारे सजाये तुमने
    प्यार जतलाने के ये कैसे बहाने देखो!
    गज़ल.. कमाल!!

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  6. कविता है तो वाह वाह बहुत सारी, और ग़ज़ल है तो मरहबा मरहबा|

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  7. बहुत बढ़िया गज़ल बन गई देखो...!

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  8. आखिरी बूंद मेरे खून की बहने के बाद।
    ताल खुद आये मेरी प्यास बुझाने देखो॥
    शमा जलकर पिघलती रही मुद्दतों
    जलने तो आया परवाना पिघल जाने के बाद !

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  9. सुन्दर प्रस्तुति |
    आभार ||

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  10. बहुत खूबसूरत भाव |
    बधाई भाई जी ||

    बस ऐसे ही -
    दर्द छलक आया --

    जुबाँ काटे गला काटे, कलेजा काट कर फेंके |
    जले श्मशान में काँटा, वहां भी हाथ वो सेंके ||

    रही थी दोस्ती उनसे, गुजारे थे हंसीं-लम्हे
    उन्हें हरदम बुरा लगता, वही जो रास्ता छेंके ||

    कभी निर्द्वंद घूमें वे, खुला था आसमां सर पर
    धरा पर पैर न पड़ते, मिले आखिर छुरा लेके ||

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    1. रविकर जी, आप सचमुच हिन्दी ब्लॉगिंग में साहित्य के चमकते रवि के समान हैं। आपकी पंक्तियों से मेरी पंक्तियाँ भी धन्य हुईं। हार्दिक आभार!

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  11. ज़माना बदल गया.....................जाने क्यूँ फिर हम ना बदले?????

    आखिरी बूंद मेरे खून की बहने के बाद।
    ताल खुद आये मेरी प्यास बुझाने देखो॥

    वाह.........................

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  12. आखिरी बूंद मेरे खून की बहने के बाद।
    ताल खुद आये मेरी प्यास बुझाने देखो॥

    गज़ब ...
    संकलन लायक है यह रचना ....

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  13. याद से हटते नहीं गुज़रे ज़माने देखो।
    सूनी आँखों में बसे दोस्त पुराने देखो॥
    बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति।

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  14. कोशिशें करने से भी वक़्त ही जाया होगा।
    भर सकेंगे न कभी दिल के वीराने देखो ...

    बहुत खूब अनुराग जी ... फिर भी कोशिश करना जरूरी है ... मज़ा आ गया इस अंदाज़ पे ..

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  15. सांस रोकी थी मेरी जिसने ज़ुबां काटी थी।
    मर्सिया पढता वही बैठ सिरहाने देखो॥
    जबर्दास्त्त..

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  16. प्यार की जीत सदा नफ़रतों पे होती है।
    हर तरफ़ महके मेरे शोख फ़साने देखो॥

    वाह वाह ! बहुत सही बात कही है .

    कोशिशें करने से भी वक़्त ही जाया होगा।
    भर सकेंगे न कभी दिल के वीराने देखो॥

    लेकिन इतनी निराशा क्यों !

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  17. याद से हटते नहीं गुज़रे ज़माने देखो।
    सूनी आँखों में बसे दोस्त पुराने देखो॥
    @ वाह रे वाह आ गये फिर दुश्मन पटाने देखो.
    गरदन में ग़र बल हों तो बेकार झटकाने देखो.

    प्यार की जीत सदा नफ़रतों पे होती है।
    हर तरफ़ महके मेरे शोख फ़साने देखो॥
    @ खुशफहमी में यहाँ लोग रहा करते हैं
    पब्लिसिटी मयखानों से लगे महकाने देखो.

    कोशिशें करने से भी वक़्त ही जाया होगा।
    भर सकेंगे न कभी दिल के वीराने देखो॥
    @ वक्त ही वक्त है जिसने उपजाया.
    प्यार के दरख्तों पे लगे फ़ल आने देखो.

    सारा दिन दर्द के काँटों पे ही गुज़रा था।
    रात आयी है यहाँ ख्वाब सजाने देखो॥
    @ चोट देने वाले भी दर्द सहा करते हैं.
    काँटे भी स्वप्न में लगाएँ फूल सिरहाने देखो.

    आखिरी बूंद मेरे खून की बहने के बाद।
    ताल खुद आये मेरी प्यास बुझाने देखो॥
    @ खून बहने और प्यास बुझाने में कोई तारतम्यता नहीं लग रही. शायद अच्छे से समझ नहीं आया.

    सांस रोकी थी मेरी जिसने ज़ुबां काटी थी।
    मर्सिया पढता वही बैठ सिरहाने देखो॥
    @ आना रोका था मेरा तेरी खुरापातों ने.
    अब सियार भी लगे शेर गुनगुनाने देखो.

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    1. @ खून बहने और प्यास बुझाने में कोई तारतम्यता नहीं लग रही. शायद अच्छे से समझ नहीं आया.

      आखिरी बूंद मेरे खून की बहने के बाद
      वे आये हमदर्द बन मरहम पट्टी कराने देखो .... ??

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    2. पट्टी कराने देखो/
      पट्टी लगाने देखो/
      नमक लगाने देखो

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    3. नमक लगाने ठीक लगता है |

      अनुराग जी हमें यहाँ से खदेड़ देंगे - उनकी कविता की बैंड बजा दी हमने :)

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    4. हम टोला बदल लेंगे शिल्पाजी, बैंड ही तो बजाना है, कहीं और जाकर बजा लेंगे :)

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    5. नहीं जी, फ़िकर नास्त खुदा मेहरबान अस्त! आप चैन से नमक लगाइये, मिर्च की ज़रूरत समझें तो भूत जोलोकिया भी यहीं मौजूद है। :)

      अतिथि देवो भवः

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    6. @ खून बहने और प्यास बुझाने में कोई तारतम्यता नहीं लग रही. शायद अच्छे से समझ नहीं आया.
      - जब रक्त बहता है तो शरीर प्यास के द्वारा तरलता पाने का प्रयास करता है। वही सन्दर्भ ध्यान में रखते हुए और "का वर्षा जब कृषि सुखाने" की अवधारणा पर आखिरी बूंद जाने के बाद (प्राणांत पर) यदि ताल भी इकट्ठे हो जायें तो क्या लाभ जैसी बात कहने का प्रयास है।

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  18. प्यार की जीत सदा नफ़रतों पे होती है।
    हर तरफ़ महके मेरे शोख फ़साने देखो॥

    खूबसूरत....
    सादर...

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  19. दिल को छूने वाली रचना..

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  20. पकड़ हाथ आये तो बाँधा करेंगे,
    फिसल रोज जाते मुहाने को देखो।

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  21. याद से हटते नहीं गुज़रे ज़माने देखो।
    सूनी आँखों में बसे दोस्त पुराने देखो॥
    vaah sundar ......

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  22. सांस रोकी थी मेरी जिसने ज़ुबां काटी थी।
    मर्सिया पढता वही बैठ सिरहाने देखो॥
    हर एक पँक्ति दिल को छो0इओती हुया। शुभकामनायें।

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  23. सांस रोकी थी मेरी जिसने ज़ुबां काटी थी।
    मर्सिया पढता वही बैठ सिरहाने देखो॥

    यही तो दस्तूर बनता जा रहा है

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  24. बुरा- भला?
    तथाकथित अंतर्राष्ट्रीय कवि 'महफूज़ अली' की कविता के जर्मनी के पाठ्यक्रम में शामिल होने की खबर न सिर्फ ब्लोग्स पर देखने को मिली, बल्कि उनके ब्लॉग पर 'दैनिक हिन्दुस्तान' समाचार पत्र में इस आशय का समाचार छपने की तस्वीर भी है| अखबार से इस समाचार का स्त्रोत पूछा गया है और जवाब अभी प्रतीक्षित है और शायद प्रतीक्षित ही रहेगा| सम्बंधित जर्मन प्रकाशक से संपर्क करने के बाद पता चला कि उनके यहाँ ऐसा कुछ नहीं छपा है| प्रकाशक के डिटेल्स इस प्रकार हैं -
    STARK mbH & Co.
    Bachstr. 2
    85406 Zolling
    Tel. 0180 3 179000 Fax 0180 3 179001
    Handelsregister München HRA78578
    Geschäftsführer Dr. Detlev Lux
    info@stark-verlag.de
    अपने फेसबुक प्रोफाईल पर महफूज़ अली खुद को जिस अंतर्राष्ट्रीय संस्था का चेयरमेन और सी.ई.ओ. बता रहे हैं, उस स्वयंसेवी संस्था में ऐसा कोई पद ही नहीं है और इस नाम का कोई अन्य अधिकारी भी नहीं है| संस्था का विवरण इस प्रकार है -
    Jana Parejko
    Mental Health Resource League for Mchenry County (MHRL)
    info@mhrl.org
    (815) 385-5745
    ये सरासर धोखाधड़ी है, हमारे आपके विश्वास के साथ धोखा, हमारी सद्भावनाओं के साथ धोखा| जो नहीं है, खुद की उन उपलब्धियों का बखान खुद करना और दूसरों को धोखे में रखकर औरों से भी अपना महिमामंडन करवाना, कहीं से भी शराफत का काम नहीं है|
    ब्लोगर्स मीट में, पुरस्कार वितरणों में या किताबें छपने छपवाने में हजारों रुपये खर्च करने वाले आप लोग सौ-पचास रुपये खर्च करके इन फोन नम्बर्स पर संपर्क करके असलियत जान सकते हैं और यदि ये भी मुश्किल है तो ईमेल एड्रेस तो है ही| मेरी विश्वसनीयता संदिग्ध लगे तो आप महफूज़ अली के ब्लॉग से इन प्रकाशक संस्थान और दुसरे संगठन का नाम नोट करके नेट से खुद भी इन नम्बर्स और आई.डी. की जानकारी ले सकते हैं| ब्लॉग और फेसबुक के इनके प्रोफाईल का स्नैप शोट सुरक्षित है, क्योंकि इन्हें बदल दिए जाने की पूरी संभावना है| झूठ के पाँव नहीं होते|
    किसी लोभ में या लिहाज में हम लोग इन बातों को नजर अंदाज करते हैं तो ये झूठ के प्रचार प्रसार में हमारी सहभागिता है| फैसला आपके हाथ में है, आपको क्या स्वीकार्य है - छले जाना या सच्चाई को जानना?

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  25. मन के साथ-साथ आंखें भी भर आईं।

    सारा दिन दर्द के काँटों पे ही गुज़रा था।
    रात आयी है यहाँ ख्वाब सजाने देखो॥

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  26. agree ... girijesh ji and anurqg ji ... can very easily touch heartstings and make people's eyes well up ...

    i remember the movie mera naam joker - where rk ji alws used to say how he wanted to make ppl smil - but alws managed to make the audience cry nonstop for 3.5 hours

    :(

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    1. बहुत ही बढ़िया कविता/ग़ज़ल (?)
      अनुराग सर जी, ग़ज़ल का ग भी नहीं पता, इसलिए कविता ही कह रहा हूँ अपनी भर भाषा में।

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  27. इस दामन में क्या-क्या कुछ है.....
    नत! विनत!

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  28. सांस रोकी थी मेरी जिसने ज़ुबां काटी थी।
    मर्सिया पढता वही बैठ सिरहाने देखो॥


    क्या बात है अनुराग जी । बेहद उम्दा गज़ल ।

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  29. लाजवाब ग़ज़ल है ... एक एक शेर जैसे एक एक अनमोल मोती ..

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