Saturday, September 29, 2012

ये सुबह सुहानी हो - इस्पात नगरी से [60]


शामे-अवध और सुबहे बनारस की खूबसूरती के बारे में आपने सुना ही होगा लेकिन पिट्सबर्ग की सुबह का सौन्दर्य भी अपने आप में अनूठा ही है। किसी अभेद्य किले की ऊँची प्राचीर सरीखे ऊँचे पर्वतों से अठखेलियाँ करती काली घटायें मानो आकाश में कविता कर रही होती हैं। भोर के चान्द तारों के सौन्दर्य दर्शन के बाद सुबह के बादलों को देखना किसी दैवी अनुभूति से कम नहीं होता है।  
मोनोंगैहेला नदी की धारा के ऊपर वाष्पित जल की एक धारा सी बहती दिखती है। लेकिन पुल के ठीक सामने की पहाड़ी को बादलों की चिलमन ने जैसे छिपा सा लिया है। चिड़ियाघर के लिये बायें और बड़े बाज़ार के लिये दायें, जहाँ जाकर मोनोंगैहेला का संगम ऐलेगनी नदी से होगा और फिर वे दोनों ही अपना अस्तित्व समाप्त करके आगे से ओहायो नदी बनकर बह जायेंगी।

लीजिये हम नगर की ओर जाने के बजाय चिड़ियाघर की ओर मुड़ गये। सामने की सड़क का नाम तो एकदम सटीक ही लग रहा है। भाँति-भाँति के वन्य प्राणी जब नगर के भीतर एक ही जगह पर चौपाल सजा रहे हों तो उसे "वन वाइल्ड प्लेस" से बेहतर भला क्या नाम दिया जा सकता है।
अरुणोदय की आहट सुनते ही बादलों की चादर झीनी पड़ने लगती है और अब तक सोयी पड़ी लाल सुनहरी किरणों से शस्य श्यामला धरती प्रकाशित होकर नृत्य सा करने लगती है।  हरी भरी वादी के किनारे की इस सड़क पर सुबह की सैर का आनन्द ही कुछ और है।

सूर्यदेव के दस्तक देने के बाद भी जहाँ कुछ बादल छँट रहे हैं वहीं कुछ ने मानो डटे रहने का प्रण लिया है। इसी जुगलबन्दी से आकाश में बना है यह खूबसूरत चित्र। नीचे नदी और पुल दोनों ही नज़र आ रहे हैं। आकाश में भले ही कालिमा अभी दिख रही है, नदी का जल पूरा स्वर्णिम हो गया है। इस्पात नगरी है तो जलधारा की जगह लावा बहने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्लिक करके सभी चित्रों को बड़ा किया जा सकता है। 
आपका दिन शुभ हो!
  

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33 comments:

  1. वाह! ये हुई न बात। सभी ब्लॉगर मार्निंग वॉक में जांय और अपने-अपने क्षेत्र की फोटू खींच कर वहाँ के बारे में बतायें। अंतिम चित्र तो सूर्यास्त का लग रहा है।

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    1. पांडेय जी, जब घटा छाती है तो सुबह शाम लगती है और दिन रात। कभी=कभी तो सूरज ऐसे लगता है जैसे चान्द खिला हो। इसके उलट बर्फ़ से ढंकी धरती पर चान्दनी रात में सबकुछ दिन की तरह स्पष्ट दिखता है।

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    2. देवेंद्र पाण्डेयजी का प्रस्ताव उचित है।

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  2. उत्कृष्ट प्रस्तुति |
    बधाई भाई जी ||

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  3. सौन्दर्य तो मन में है उसी का विस्तारित रूप हम प्रकृति में देखते हैं -कहाँ है कोई अंतर बनारस,अवध और पिट्सबर्ग में ?
    बाकी तो सब मेक बिलीफ है !

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  4. बहुत सुहाने चित्र और उतना ही सुहाना वर्णन भी ....
    आभार ॥

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  5. बहुत अच्छी रही सैर :)..आपका दिनभी शुभ हो I

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  6. खुबसूरत चित्रों संग अनमोल जानकारी देती पोस्ट . चित्रों ने मन मोह लिया .भैया जी छत्तीसगढ़ में स्थित दीपाडीह आपके मन को प्राकृतिक छटा का ऐसा ही दृश्य दिखाएगी . भारत बाहें फैलाकर और हम दिल खोलकर आपका
    स्वागत करते हैं.

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  7. बहुत ही सुन्दर!

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (01-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    1. धन्यवाद शास्त्री जी!

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  9. दयानिधि वत्सSeptember 30, 2012 at 8:06 AM

    सारा जहाँ हमारा...बहुत सुन्दर फोटो...

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  10. बहुत ही सुन्दर, आपका दिन भी शुभ हो..

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  11. मनमोहक चित्र ....शुभकामनायें आपको भी

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  12. यह चित्रकथा मनोहारी है।

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  13. वाह! इतने सुन्‍दर चित्र! आपसे ईर्ष्‍या हो रही है। आप यह सब अपनी ऑंखों देखने का सुख-सौभाग्‍य पा सके।

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  14. बहुत खूबसूरत !

    आँख मिचौली आकाश में
    चल रही होती हो कहीं
    दिल में घर की ही फिल्म
    बन रही होती है वहीं !

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  15. प्रकृति के क्या खूब नज़ारे ...
    बहुत सुन्दर तस्वीरें !

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  16. प्रकृति के क्या खूब नज़ारे ...
    बहुत सुन्दर तस्वीरें !

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  17. सुन्‍दर चित्र....

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  18. वाह! क्या जगह है और क्या सुन्दर चित्र!
    दो नदियों का संगम और तीसरी में परिवर्तन! देखने का मन होने लगा!

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  19. वाह!
    शानदार चित्रमय उल्लास जगाती प्रस्तुति.
    आभार.

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  20. मनमोहक चित्र ............बहुत सुन्दर

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  21. इस्पातनगरी भी प्रकृति की छटा से पूर्ण !
    अमेरिका के पहाड़ों का स्वभाव ही अलग है ,प्रायः ही किले की दीवार की तरह लगते हैं .

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  22. मनोरम दृश्यावली!! ईर्ष्या को रोक पाना मुश्किल प्रतीत हो रहा है.

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  23. पिट्सवर्ग की सुहावनी सुबह की सुहानी पोस्ट .आभार |

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  24. Achchi sair karaai hai aapne ek sundar sthan ki.

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  25. मैं तो कुछ देर तस्वीरों को ही देखते रह गया!!! :)
    सुन्दर सी पोस्ट...!!

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  26. अनुराग जी , बहुत सुन्दर भाव हैं , इस्पात की नगरी भले ही हो परन्तु खूबसूरत विचारों को समाये है.....

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  27. अनुराग जी , बहुत सुन्दर भाव हैं , इस्पात की नगरी भले ही हो परन्तु खूबसूरत विचारों को समाये है.....

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  28. अनुराग जी , बहुत सुन्दर भाव हैं , इस्पात की नगरी भले ही हो परन्तु खूबसूरत विचारों को समाये है.....

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