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Saturday, December 31, 2011

नववर्ष 2012 शुभ हो - इस्पात नगरी से [53]

स्वर्गीय डॉ. अमर कुमार
एक भावनात्मक नाता, एक लम्बा साथ। पुराना साल हमारे साथ लगभग 3,15,36,000 पल गुज़ारकर रुखसती की तैयारी में है। हममें से बहुत से लोगों के लिये यह समय साल भर के लेखेजोखे का है। कितना खोया, कितना पाया इसका हिसाब लगाना आसान नहीं है। इस वर्ष मैंने अमेरिका में कई नये स्थान देखे, भारत, कैनाडा और जापान की यात्रायें कीं। हर साल की तरह इस साल भी अनेक नये मित्र मिले, कितने ही नये ब्लॉगर्स हिन्दी ब्लॉगिंग में आये। इसके साथ ही हमने इस वर्ष कई मूर्धन्य ब्लॉगर्स को खोया है जिनमें श्रीमती सन्ध्या गुप्ता, डॉ अमर कुमार, श्री हिमांशु मोहन के नाम प्रमुख हैं। हिमांशु जी से मेरा विशेष परिचय नहीं रहा था परंतु सन्ध्या जी और डॉ. साहब से ब्लॉग जगत के किसी न किसी चौक, नुक्कड़ या मोड़ पर मुलाकात हो ही जाती थी। इन तीनों की कमी सदा महसूस होगी।

ब्लॉगिंग की बात जारी रखूँ तो इस बात की खुशी है कि कुछ निकट मित्रों के सहयोग से इस वर्ष एक सामूहिक ब्लॉग रेडियो प्लेबैक इंडिया की शुरूआत हुई जिस पर गीत संगीत, बोलती कहानियाँ और सभी प्रकार के ऑडियो, पॉडकास्ट आदि उपलब्ध हैं। इसी प्रकार इस वर्ष मैं करुणा, स्वास्थ्य और शाकाहार का प्रसार करने को प्रतिबद्ध निरामिष ब्लॉग से जुड़ सका।

भारतीय संस्कृति उत्सवप्रिय है। जहाँ तालिबानी मनोवृत्ति के लोग जब नव शारदा और नौरोज़ पर प्रतिबन्ध लगाने की बात करते हैं और पश्चिमी संस्कृति को मातृदिवस और पितृदिवस जैसे पर्व गढने पड़ते हैं वहीं हमारे एक वर्ष में 400 त्योहार आराम से मिल जायेंगे। वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा को नित नये उत्सवों के उल्लास में सम्मिलित होने में प्रसन्नता ही होती है। क्रिसमस और नव वर्ष के उत्सव की रोशनी के बीच जब मैने एक बेघर के दिल के अँधेरे में झांकने का अनगढ सा प्रयास किया तब याद आया कि न जाने कितने मित्र अपनी समस्याओं में उलझे हुए हैं। उनसे हमारा भौतिक सम्पर्क हो न हो, वे हमारी प्रार्थनाओं में हैं। ईश्वर उनपर कृपा करे और नववर्ष में उनका जीवन प्रसन्नता से भरे, यही कामना है। 2011 के खट्टे-मीठे अनुभव याद करते समय उन सभी लोगों का आभार भी कहना चाहता हूँ जो व्यक्तिगत लेन-देन से ऊपर उठकर सत्यनिष्ठा की समझ रखते हैं।

बेघरों की बात चलने पर श्रीमतीजी ने याद दिलायी व्हिटनी एलिमेंटरी स्कूल और उसकी प्राचार्या शैरी गाह्न (Sherrie Gahn) की। श्रीमती जी बड़े उत्साह से बताती रहीं कि किस प्रकार एक टीवी कार्यक्रम में शैरी की उपस्थिति मात्र से उनके विद्यालय के हर छात्र के लिये बैकपैक, स्कूल पुस्तकालय के लिये पुस्तकें और कम्प्यूटर तथा विद्यालय के लिये बहुत सा पैसा मिला। लास वेगास स्थित यह विद्यालय अमेरिका के किसी सामान्य विद्यालय से इस मामले में फ़र्क है कि वहाँ के 610 विद्यार्थियों में से 518 बेघर हैं।

आठ वर्ष पहले इस पाठशाला में आयीं शैरी का कहना है कि इससे पहले उन्होंने ऐसी ग़रीबी नहीं देखी थी। हालात सुधरने के बजाय हर साल बिगड़ते ही गये। अंततः उन्होंने समुदाय के वयस्कों से मिलकर यह प्रस्ताव रखा कि यदि वे अपने बच्चों की शिक्षा की ज़िम्मेदारी उन्हें दें तो वे बच्चों के भोजन-वस्त्रों की ज़िम्मेदारी स्वतः ही ले लेंगी। लगभग 500 दानदाताओं के सहयोग से शैरी इन बच्चों के वस्त्र, भोजन, केश-कर्तन, चिकित्सा जैसी सुविधायें दे सकी हैं। दानदाताओं में निम्न मध्यवर्ग के व्यक्तियों से लेकर बड़े व्यवसायी भी शामिल हैं। जहाँ एक महिला फ़िलाडेल्फ़िया से 20 डॉलर प्रतिमास भेजती हैं, वहीं एक स्थानीय जुआरी दो हज़ार डॉलर प्रतिमास देता है।
जब मैंने लंचटाइम में बच्चों को केवल सॉस/केचप/चटनी खाते और उसमें से कुछ बचाकर घर ले जाने का प्रयास करते देखा तो मेरा दिल दहल गया। (~प्राधानाचार्या शैरी गाह्न)
पाप-नगर (sin city) के नाम से मशहूर और अनेक हिन्दी फ़िल्मों में दिखाये गये लास-वेगास नगर की तेज़ रोशनी और जगमगाते कसीनोज़ के पीछे 12% बेरोज़गारी छिपी है। फ़ोरक्लोज़र (गिरवी घर की किश्तें न दे सकने पर बैंक द्वारा कब्ज़ा करना) की दर सारे देश में सर्वाधिक है। अमेरिका में 12वीं कक्षा तक शिक्षा निशुल्क होते हुए भी बेरोज़गार माता-पिताओं के यह बेघर बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित रहे थे तो ज़ाहिर है कि महंगी कॉलेज शिक्षा पाना उनके लिये जादुई सपने से कम नहीं है। इस बात को ध्यान में रखते हुए शैरी के विद्यालय ने अपने बच्चों की कॉलेज शिक्षा के लिये एक कोश भी बनाया है जो योग्य बच्चों की फ़ीस का ध्यान रखेगा।
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
नीचे के विडियो में आप शैरी को देख सकते हैं एक टीवी कार्यक्रम में अपने छात्रों के बारे में बात करते हुए। मानवता अभी जीवित है और सदा रहेगी!


The Ellen DeGeneres Show - Whitney Elementary School from Aaron Pinkston on Vimeo.

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Wednesday, December 31, 2008

नव वर्ष का संकल्प

मित्रों,
बातों ही बातों में पुराना साल कब निकल गया, पता ही न चला। देखते-देखते हम नव-वर्ष की पूर्व संध्या पर आ पहुँचे हैं. २००८ में मैंने एक कविता लिखी थी "कितना खोया कितना पाया।" दुहराव के डर से उसे यहाँ फ़िर से पोस्ट नहीं करूंगा। परन्तु उत्सुक जन कविता के शीर्षक पर क्लिक कर के उसे पढ़ सकते हैं।

गत वर्ष में बहुत कुछ हुआ - हमने कोसी की विनाशलीला भी देखी और पाकिस्तान से आए हैवानी आतंकवादियों की २६ नवम्बर की कारगुजारी भी, कश्मीर में आतंकवादियों की धमकियों और बयानबाजी का मुँहतोड़ जवाब देते हुए लोगों का शांतिपूर्ण मतदान भी देखा और चंद्रयान का सफल प्रक्षेपण भी। और भी बहुत कुछ दिया है इस साल ने। मैं बूढा तो भूल जाता हूँ, आप तो युवा हैं सब याद रखते हैं।

नए साल की पूर्व-संध्या पर कुछ संकल्प लेने की परम्परा सी बन गयी है। पहले तो मुझे यह बात समझ में नहीं आती थी लेकिन अब कुछ-कुछ समझने लगा हूँ। यदि संकल्प लेना ही है तो खुश रहने और अपने को बेहतर बनाने का संकल्प लेना पसंद करूंगा। २००८ में हिन्दी ब्लोगिंग शुरू की और बहुत से नए मित्रों से मिला जिनके साथ और कृपा से मेरा विकास ही होना है। क्या पता मेरा २००८ का ब्लॉग लिखना २००९ में पुस्तक लेखन में ही बदल जाए।

जिन लोगों ने कभी नए साल का संकल्प नहीं लिया या फ़िर कोई नई तरह का संकल्प लेना चाहते हैं, उनके लिए अपने अनुभव से निचोड कर कुछ सुझाव रखना चाहता हूँ।

कुछ ऐसा करिए जिससे आप में और समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन आए। कोई भी उम्र कम नहीं होती है। झांसी की रानी हों या भगत सिंह, उन्हें जीवन में इतने बड़े काम करने के लिए ३० साल का भी नहीं होना पडा था। जिन तांतिया टोपे के नाम से दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य काँप रहा था। माना जाता है कि उन्हें दो बार फांसी दी गयी थी। अपने बलिदान के समय वे १८५७ के संग्राम के युवा नायकों में सबसे बड़े थे - ३९ वर्ष के।

कोई भी पद कम नहीं है, कोई भी काम छोटा नहीं है। अंग्रेजी फौज में एक मामूली सिपाही के पद पर काम करने वाले मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूस को अपने दाँत से छूने नहीं दिया। बन्दा शहीद हो गया मगर उसकी फाँसी के साथ ही मुगलों, मराठों को हराने वाली "ईस्ट इंडिया कंपनी" का कभी न डूबने वाला सूरज हमेशा के लिए डूब गया।

सतही तौर पर ऐसा लगता है कि लेना आसान है मगर देना उससे भी आसान है। अगर सत्कार्य में देने को पैसा नहीं है तो समय दीजिये। और कोई दान नहीं तो रक्त-दान कीजिये। २००८ में हमारे एक बुजुर्ग का देहांत हुआ, उन्होंने अपनी आँखें दान कीं जिससे दो बच्चों को रोशनी मिली।

हम अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें। हो सके तो तैराकी या घुड़सवारी सीखें। जिम नहीं जा सकते तो घर में योगासन शुरू करें। इस साल के वृक्षारोपण में लगाए किसी सूख रहे पौधे को पानी देकर जमने लायक बना दें। बहुत दिनों से खोये हुए किसी पुराने मित्र को अचानक मिलकर आश्चर्यचकित कर दें, किसी चाय वाले छोटू को शतरंज खेलना सिखायेे या काम-वाली बाई के बेटे-बेटी की एक साल की कापी-किताबों का इंतजाम कर दें। जिस दिन भी शुरू करेंगे, आपको पता लगेगा कि एक छोटी सी शुरूआत से ही बड़े बड़े काम होते हैं:
बात तो आपकी सही है यह थोड़ा करने से सब नहीं होता
फिर भी इतना तो मैं कहूंगा ही कुछ न करने से कुछ नहीं होता


लिखने को बहुत कुछ है मगर बातें तो होती ही रहेंगी, कहीं भूल न जाऊँ इसलिए आज बस इतना ही कहता हूँ:
आपको, आपके परिवारजनों और मित्रों को नव-वर्ष की शुभकामनाएं!