भविष्य पुराण की एक खूबी है जो उसे अन्य समकक्ष साहित्य से अलग करती है। यह पुराण भविष्य में लिखा गया है। अर्थात, इसमें उन घटनाओं का वर्णन है जो कि भविष्य में होनी हैं। खुशकिस्मती से हम भविष्य में इतना आगे चले आए हैं कि इसमें वर्णित बहुत सा भविष्य अब भूत हो चुका है।
भारत में भविष्य में अवतीर्ण होने वाले विभिन्न आचार्यों व गुरुओं यथा शंकराचार्य, नानक, सूरदास आदि का ज़िक्र तो है ही, भारत से बाहर ईसा मसीह, हजरत मुहम्मद से लेकर तैमूर लंग तक का विवरण इस ग्रन्थ में मिलता है।
इस पुराण के अधिष्ठाता देव भगवान् सूर्य हैं। श्रावण मास में नाग-पंचमी के व्रत की कथा एवं रक्षा-बंधन की महिमा इस पुराण से ही आयी है। कुछ लोग सोचते हैं कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में सिर्फ़ परलोक की बातें हैं। इससे ज्यादा हास्यास्पद बात शायद ही कोई हो। इस पुराण में जगह जगह जनोपयोग के लिए कुँए, तालाब आदि खुदवाने का आग्रह है। वृक्षारोपण और उद्यान बनाने पर जितना ज़ोर इस ग्रन्थ में है उतना किसी आधुनिक पुस्तक में मिलना कठिन है।
पुत्र-जन्म के लिए हर तरह के टोटके करने वाले तथाकथित धार्मिक लोगों को तो इस ग्रन्थ से ज़रूर ही कुछ सीखना चाहिए। यहाँ कहा गया है कि वृक्षारोपण, पुत्र को जन्म देने से कहीं बड़ा है क्योंकि एक नालायक पुत्र (आपके जीवनकाल में ही) कितने ही नरक दिखा सकता है जबकि आपका रोपा हुआ एक-एक पौधा (आपके दुनिया छोड़ने की बाद भी) दूसरों के काम आता रहता है।
अब आप कौन सा पौधा लगाते हैं इसका चयन तो आपको स्वयं ही करना पडेगा। संत कबीर के शब्दों में:
करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय ।
बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय ॥
और हाँ, पेड़ लगाने के बहाने गली पर कब्ज़ा न करें तो अच्छा है।
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सुन्दर आलेख है भाई. अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी दी हे आप ने, किताब-उल-हिंद के बारे,सच हे हमारे बुजुर्ग बहुत आगे की सोचते थे, धन्यवाद
ReplyDeleteनहीं नहीं जब भूत भविष्य बन कर दिखे तब होती है विज्ञान कथा -समकालीन मिथक है विज्ञान कथा .भविष्य पुराण की रचना तो भोट काल में हुयी -वर्णन है भविष्य का -इस लिहाज से शैली के आधार पर यह साईंस फिक्शन है .कथ्य भी चूंकि भविष्य को समेटे हुए हैं इसलिए कुछ तत्व यहाँ भी विज्ञान कथात्मक हैं .
ReplyDeleteदरसल यही कारण है कि मैंने लगभग दो दशक पहले एक लेख लिखा था -भविष्य पुराण की ही आधुनिक सिली हैं विज्ञान कथाएं !चिन्तनपरक लेख के लिए आभार -मगर यह उत्तरोत्तर हल्का होता गया है -आप ख़ुद देखें .....
रोचक है यह पुराण। गीताप्रेस की प्रकाशित पुस्तक मैने भी खरीदी थी। बहुत कुछ नॉस्त्रेदम की कहावतों की तरह लगती है।
ReplyDeleteअसल में आज के युग की भी कई अच्छी पुस्तकें भविष्य में झांकने वाली हैं। भविष्य दर्शन सदा से कौतूहल का विषय रहा है!
देख कर यूँ ही छोड़ दिया गया कभी लगता है पढ़ना ही पड़ेगा भविष्य पुराण।
ReplyDeleteconcreet ke junglon me sach me ab wrikshon ki zaroorat hai.achha,gyanwardhak aur shikshaprad lekh.badhai aapko
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही बात पकडी है ! आजकल हम विज्ञान कथाएँ
ReplyDeleteकहते हैं ! बहुत कुछ वो ही है भविष्य पुराण !
"इसमें वर्णित बहुत सा भविष्य अब भूत हो चुका है।"
जैसे गैलिलियो की चपटी धरती गोल हो गई ! :)
कोई भी किताब शाश्वत नही हो सकती !
और हाँ, पेड़ लगाने के बहाने गली पर कब्ज़ा न करें तो अच्छा है।
मैं तो इस एक वाक्य पर आपको सौ में से सौ नंबर दूंगा !
ताऊ खुश हुआ ! :)
achchha laga aalekh aapka. mere khayal se ko kam se kam bhavishy puran to padh hi lena chahiye
ReplyDeleteरोचक और अद्भुत जानकारी.
ReplyDeleteआगे भी जारी रखिये तो मज़ा आए.
वैसे नेस्त्रादमस को तो मैंने भी थोड़ा बहुत पढ़ा है.
क्या सच है?
जबरदस्त अंदाजे
Very good......
ReplyDeleteVery good......
ReplyDeleteसही कहा .....देखिये कबीर जी तो कब से चेता रहे थे
ReplyDeleteभविष्य पुराण के बहाने नेशनल बुक ट्रस्ट से छपी विज्ञान कथा की किताब "बीता हुआ भविष्य" याद आ गयी, जिसमें समस्त भारतीय भाषाओं की चुनी हुई विज्ञान कथाएं प्रकाशित हुई हैं। चूंकि आपको विज्ञान कथाओं में विशेष रूचि है, इसलिए आपको यदि वह किताब कहीं मिले, तो उसे जरूर पढें।
ReplyDeleteभविष्य पुराण से परिचय कराने का शुक्रिया।
अलग अलग विषयोँ पर आलेख पढना पसँद आता है -
ReplyDeleteकुछ और तथ्य भी अगली कडी मेँ दीजियेगा -
आभार -
- लावण्या
koi website ka add. hai kisi ke pass , jisse yeh kitab pari ja ske?
ReplyDeletekisi ke pass is book ke bare mai puri zankari hai to muje bataye
ReplyDeleteभविष्य पुराण और इसके कल्याण विशेषांकों का संग्रह गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित हैं और देश भर में बिखरे हुए उनके स्टाल्स पर मिल सकते हैं. यदि आप उनसे सीधा संपर्क करना चाहते हैं तो पता यहाँ उपलब्ध है:
ReplyDeleteGita Press Gorakhpur Ki Pustak Dukan
Gita Press
P.O. Gita Press
Gorakhpur - 273005
Phone : +91-551-2334721
Fax : +91-551-2336997
संभवतः इस किताब के अन्य संस्करण धार्मिक पुस्तक भंडारों पर भी प्राप्त हो सकते हैं.
मेरी आज की पोस्ट इस भूमिका की अगली कड़ी के रूप में लिया जाय। इसे यहाँ देखकर वह कहावत याद आ रही है कि भले लोग एक सा सोचते हैं। :)
ReplyDeleteसिद्धार्थ जी की प्रविष्टि पढ़कर ही यहाँ आया । रोचक प्रविष्टि लिखी है आपने । आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी,आज के व्यस्ततम समय मे अधिकांस लोग पौराणिक जानकारी कम ही रखते हैं और लोग इसे फालतू की चीज कह कर जानना भी नही चाहते , किन्तु नेट के माध्यम से इस तरह का प्रकासन निश्चय ही सराहनीय है ,इस पर निश्चय ही और अधिक प्रयास होना चाहिए , ,हां प्रकासन अपनी विषयवस्तु से भटके नही । हिंदू समाज अपने वास्तविक और शास्वत रूप की बहुलता जा रहा है , लोग अपनी पारम्परिक व्यवस्था को जाने समझे और वापस लौटे यह बहुत अच्छा रहेगा ,इस गरिमामय प्रकासन के लिए बहुत बहुत बधाई और आभार
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