Wednesday, August 6, 2008

सावन

निर्मल शीतल निश्छल पावन
घटा बादल जल और सावन

झरर झरर झर झरता जाता
प्यासी पृथ्वी की प्यास बुझाता

होती सुखमय निर्जल धरती
प्यासे प्राणीजन की पीड़ा हरती

भूरे मटमैले घावों पर
हरियाले मरहम का लेपन

धूल तपन सब दूर हो गई
आया मदमाता सावन।

13 comments:

  1. सुंदर है सावन गीत. बहुत सुंदर.

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  2. ''भूरे मटमैले घावों पर
    हरियाले मरहम का लेपन

    धूल तपन सब दूर हो गई
    आया मदमाता सावन।''
    सुंदर कविता है।
    नागपंचमी पर झूला-उला खेले कि नहीं अनुराग भाई, त्‍योहार की शुभकामनाएं।

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  3. निर्मल शीतल निश्छल पावन
    घटा बादल जल और सावन

    सुंदर सावन की कविता है

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  4. होती सुखमय निर्जल धरती
    प्यासे प्राणीजन की पीड़ा हरती

    भूरे मटमैले घावों पर
    हरियाले मरहम का लेपन
    अच्छा लेखन है मित्र आपके इस गुण से भी परिचित हो गये

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  5. मधुरिम कंठ तुम्हारे सा यह स्वर साधन !
    प्रेम पगे प्राणों की धड़कन सा वादन !!

    from maggababa

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  6. बहुत ही सुन्दर गीत सावन की तरह से मस्त,धन्यवाद

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  7. धूल तपन सब दूर हो गई
    आया मदमाता सावन।
    bahut sundar rachana . dhanaywaad.

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  8. भारतीय मौसम में से सावन को निकाल दें तो सिर्फ सूखा बचेगा। सुंदर गीत।

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  9. बहुत उम्दा, क्या बात है!

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  10. Bahut hee khubsoorat ,saawan hai hee aisa mausam.

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  11. भूरे मटमैले घावों पर
    हरियाले मरहम का लेपन
    bahut khoob....
    gadhya ki tarah kaavya bhi aapka kamaal hai...

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  12. बेहद खूबसूरत...
    बहुत ही सुंदर.
    प्यारा गीत. अच्छा लगा पढ़ कर.

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  13. बेहद खूबसूरत...
    बहुत ही सुंदर.
    प्यारा गीत. अच्छा लगा पढ़ कर.

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