Saturday, August 23, 2008

ह्त्या की राजनीति

कल तक जिस गाँव में शमशान सा सन्नाटा छाया हुआ था आज वहाँ कुम्भ मेले जैसी गहमागहमी है। लोगों का हुजूम समुद्र की लहरों जैसा उछल रहा है। क्यों न हो, बर्बर समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बर्बर प्रताप जो अपने लाव लश्कर के साथ आए हुए हैं।

उनकी शान का क्या वर्णन करूँ। अलग ही है। खानदानी रईस हैं। 50 गाँवों की ज़मींदारी थी। राजा साहब कहलाते थे। मगर गरीब जनता की सेवा का चस्का ऐसा लगा कि आज अगर कोई राजा कह दे तो शायद उसकी जुबान ही खिंचवा दें। उनका काम करने का तरीका भी आम नेताओं से बिल्कुल अलग है। भाषण तो देते ही हैं, गरीब जनता के ऊपर कविताएँ भी लिखते हैं और चित्रकारी भी करते हैं। गरीबों से इतना अपनापन मानते हैं कि सिर्फ़ भेड़ का सेवन करते हैं। उनकी नज़र में गाय-भैंस तो अमीरों के चोंचले हैं। लोग तो उनकी तारीफ़ में यहाँ तक कहते हैं कि अगर कोई कलाकार गाय का चित्र भी बना दे तो वे उसे तुंरत साम्प्रदायिक करार कर देंगे।

राजसी परिवार का कोई दंभ नहीं तभी तो महल के ऐशो-आराम छोड़कर आम सांसदों की तरह नई दिल्ली के सरकारी बंगले में रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट के शहरी जजों का बस चले तो गरीबों के इस मसीहा को पिछले पाँच सालों से उस बंगले का किराया व बिल आदि न देने के इल्जाम में बेघर ही कर दें। मगर राजा साहब जानते हैं कि इस देश की बेघर, भूखी, नंगी और अनपढ़ जनता सब देखती और समझती है। वह अपने राजा साहब के साथ ऐसा अन्याय हरगिज़ न होने देगी।

-=xXx=-
बर्बर प्रताप जी का हैलिकोप्टर अभी अभी नत्थू के खेत में उतरा है। वह बेचारा दूर एक कोने में सहमा सा खडा काले कपडों वाले बंदूकधारियों के दस्ते को देख रहा है। कल रात इसी दस्ते की निगरानी में पुलिसवालों ने उसके खेत की सारी अरहर काट डाली थी ताकि राजा साहब का हेलिकॉप्टर आराम से उतर सके। वह बेचारा सोच रहा है कि अगर उसकी पहुँच राजा साहब के किसी कारिंदे तक होती तो शायद महाजन क़र्ज़ अदायगी को अगली फसल तक टाल देता, वरना तो सल्फास की गोली ही उसका आख़री सहारा है।

लाउडस्पीकर की आवाज़ से उसका ध्यान भंग हुआ। राजा साहब मंच पर आ गए थे। मंच क्या पूरा किला ही लग रहा था। काले कपड़े वाले बंदूकधारी हर तरफ़ मोर्चा लेकर खड़े हुए थे। राजा साहब पिछले हफ्ते हुई काले प्रधान की ह्त्या का ज़िक्र कर रहे थे। काले हमारे गाँव का प्रधान था। अव्वल दर्जे का जालिम। गरीबों को उसके खेतों में बेगार तो करनी ही पड़ती थी, उनकी बहू बेटियाँ भी सुरक्षित नहीं थी। थाने में भी गरीबों की कोई सुनवाई न थी इसलिये लोग खून का घूँट पीकर रह जाते थे। मगर जब उसहैत की 10 साल की बेटी के साथ पैशाचिक कृत्य की ख़बर मिली तो सारा गाँव ही गुस्से से भर गया। सभी पागल हुए घूम रहे थे मगर किसी की भी इतनी हिम्मत न थी कि थाने में जाकर रपट भी लिखाए। सबको पता था कि जो भी जायेगा थानेदार उसी को मार-कूट कर अन्दर कर देगा। सुबह पता लगा कि उसी रात काले प्रधान का काम तमाम हो गया। गाँव के मर्द तो यह ख़बर मिलते ही भाग खड़े हुए, पुलिस का कहर टूटा औरतों और बच्चों पर। कई बच्चे तो अभी भी हल्दी-चूना लपेटे खाट पर पड़े हैं।


राजा साहब पुलिस के निकम्मेपन का ज़िक्र कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गरीब लोग अपनी जान हथेली पर लिए हुए घूम रहे हैं। वे बोले कि पूरे प्रदेश में गुंडों- माफियाओं का राज हो गया है तथा कानून व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई है। काले प्रधान जैसे सत्पुरुषों की जान ही सुरक्षित नहीं है तो आम लोगों का तो कहना ही क्या। रोजाना ही डकैती, हत्या और बलात्कार हो रहे हैं। उन्होंने नई सरकार के कार्यकाल में कानून व्यवस्था की स्थिति ध्वस्त होने का आरोप लगाते हुए अपनी हत्या की आशंका भी जताई।

मंच से उतरने के बाद राजा साहब ने पत्रकारों से बात की और वहाँ भी अपनी ह्त्या की आशंका को दुहराया। पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि यह सरकार कभी भी उनकी हत्या करवा सकती है। उन्होंने काले प्रधान हत्याकांड को एक राजनीतिक साजिश करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि विजेता समाज पार्टी की सरकार के दौरान उनकी पार्टी कार्यकर्ताओं की सरकारी सुरक्षा वापस ली जा रही है। उनके लोगों की चुन-चुनकर हत्या हो रही है। उन्होंने कहा कि विजेता समाज पार्टी की सरकार सिर्फ शहरों पर ध्यान दे रही है और गाँवों के गरीब मजदूर महंगाई, बेरोजगारी और असुरक्षा के बीच पिस रहे हैं। इस सरकार का ग्रामीण जनता से कोई सरोकार नहीं है।


-=xXx=-
चार दिन के बाद जब राजा साहब एक निकटवर्ती गाँव में एक और छुटभय्ये नेता के दशमे में गए तो उनके काफिले पर गंभीर हमला हुआ। उनके सभी बंदूकधारियों का काम तमाम हो गया। हमलावर उनके गोली-बन्दूक भी अपने साथ ले गए। पता लगा कि राजा साहब मृतक नेता के परिवार के भरण-पोषण के लिए पार्टी फंड से कई लाख रुपये भी लाये थे। हमलावर वह सारा रोकड़ा भी अपने साथ ही ले गए। देवी माँ की असीम कृपा थी कि राजा साहब का बाल भी बाँका न हुआ।

-=xXx=-
इस बात को कई महीने गुज़र गए हैं। नेताओं पर बढ़ते हमलों का कारण पता करने के लिए जांच समिति भी बैठ चुकी है। पुलिस आज भी गाँव-गाँव जाकर लोगों को डरा-धमका रही है मगर आज तक किसी को यह पता नहीं चला कि ये सारी घटनाएँ राजा साहब के कारकुनों ने विजेता समाज पार्टी की सरकार के ऊपर राजनैतिक लाभ लेने के लिये कराई थीं।
-=xXx=-

22 comments:

  1. डम्‍बर प्रताप जी के प्रताप के क्‍या कहने..
    ऐसे ही प्रतापी राजाओं के पराक्रम से इन दिनों देश की राजनीति चलती है। धन्‍य है देश। धन्‍य धन्‍य देश की

    ReplyDelete
  2. अच्छा प्लॉट है मित्र। आपमें इण्डियन "गॉडफादर" लिख पाने की प्रबल सम्भावनायें हैं। उन सम्भावनाओं का दोहन करें!
    बाकी यह पोलिटिको-सोशल नीचता तो भारत का पर्याय है! :)

    ReplyDelete
  3. शायद महाजन क़र्ज़ अदायगी को अगली फसल तक टाल दे, वरना तो सल्फास की गोली ही उसका आख़री सहारा है ।

    बहुत करारा और प्रासंगिक, अद्भुत लेख ! बधाई !

    ReplyDelete
  4. शायद महाजन क़र्ज़ अदायगी को अगली फसल तक टाल दे, वरना तो सल्फास की गोली ही उसका आख़री सहारा है ।

    बहुत करारा और प्रासंगिक, अद्भुत लेख ! बधाई !

    ReplyDelete
  5. हाय रे जनता .. मेरी टिप्‍पणी में से जनता कहां गुम हो गयी :) पूरी टिप्‍पणी इस प्रकार है -

    डम्‍बर प्रताप जी के प्रताप के क्‍या कहने..
    ऐसे ही प्रतापी राजाओं के पराक्रम से इन दिनों देश की राजनीति चलती है। धन्‍य है देश। धन्‍य धन्‍य देश की जनता।

    ReplyDelete
  6. पुलिस भी गाँव-गाँव जाकर लोगों को डरा-धमका रही है मगर आज तक किसी को यह पता नहीं चला कि ये सारी घटनाएं राजा साहब के कारकुनों ने विजेता समाज पार्टी की सरकार के ऊपर राजनैतिक लाभ लेने के लिये कराई थीं। आज हर जगह यही कहानी देखने को मिलेगी। जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाई।

    ReplyDelete
  7. अच्छी कहानी है... यथार्थ ही तो है.

    ReplyDelete
  8. chakit kiya is post ne.kamal hai.
    aur desh ki vyavastha ke kamaal se to aap ne sab ko hi parichit kara diya.
    its called BHARAT UDAY
    रहीस RAHEES KO RAIIS KAR LEN.
    RAAIIS SE HI RIYASAT BANA HAI.

    ReplyDelete
  9. कथा पसँद आई !
    - पर विस्तार से क्यूँ ना लिखी ?
    अब लिख दीजिये जी
    - लावण्या

    ReplyDelete
  10. करारा व्यंग मारा है समाज के तथाकथित जनता-सेवकों के मुँह पर. आजकल डम्बर प्रसाद जैसे नेताओं की ही पूछ है. इनके जैसे क्या? सारे ही ऐसे हैं...
    फिर भी मेरा भारत महान है. अब समय आ गया है कि हम अपने अधिकारों को पहचानें. वैसे ऐसे नेताओं के साथ हिंसा कोई बुरी बात नहीं है.

    ReplyDelete
  11. भाई मुझे तो लगता हे यह साला राजा ही सारी जडो की जड हे, नाथू एक थोडे ही हे बहुत हे इस दुनिया ने....
    काले का भाई हे यह राजा, ओर जब सारे बन्दुक धारी मर गये, गोली बारुद सब ले गये तो इस राजा साहब को क्यो छोड गये,
    हमारे मुहल्ले मे एक कुत्ते का नाम राजा था, लेकिन वो सारे मुह्हले का वफ़ा दार था, इस जेसा नही था..
    कब भगवान देखेगा इन राजाओ को...
    धन्यवाद , भाई सच मे तुम स्मार्ट हो

    ReplyDelete
  12. मित्र पित्सबर्गिया,
    परिवार एवं मित्रों सहित आपको जन्माष्टमी पर्व की
    बधाई एवं शुभकामनाएं ! कन्हैया इस साल में आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करे ! आज की यही प्रार्थना कृष्ण-कन्हैया से है !

    ReplyDelete
  13. आपकी पोस्ट पर आकर भारत दर्शन हो गये।
    लाजवाब...
    सत्यकथा कहना होगा इस लघुकथा को।

    ReplyDelete
  14. कान्हा जन्मोत्सव की हार्दिक बधाइयां !

    आपका आलेख हमको अति पसंद आया !
    और आपको हार्दिक शुभकामनाए देते हैं !
    यहाँ भाटिया साब ने पूछा है की राजा को
    क्यों छोड़ गए ? तो हम ये फरमाना चाहते
    हैं की एक कहावत है की " समझदार मर
    गए , औलाद छोड़ गए " ! शायद इसी को
    ध्यान में रखते हुए राजा को छोड़ गए होंगे !:)

    ReplyDelete
  15. वाह क्या राजा हैं ये। हेलीकॉप्टर की वजह से बेचारे की फसल कट गई लेकिन उस की विपदा कौन सुने। अच्छा लिखा है घटनाक्रम को बड़े ही सहज तरीके से पेश किया।

    ReplyDelete
  16. यह कहानी नहीं हकीकत है.सिर्फ पात्रों के नाम ही तो बदल दिए हैं आपने.

    ReplyDelete
  17. गोपाल के जन्मोत्सव की हार्दिक बधाई आपको भी !
    आपका ये लेख पढा जो की व्यवस्थाओं पर गहरी
    चोट है ! सटीक लगा ! आपकी बाक़ी की पोस्ट
    भी अभी पढ़नी बाक़ी हैं ! उम्मीद है गुलाम जामुन
    भाई साहब भी प्रसन्न होंगे ! :)

    ReplyDelete
  18. सर जी जन्माष्टमी की बधाई ! और आपके डम्बर
    प्रताप जी सरीखे लोगो से हमारा तो रोज पाला
    पङता है ! आप कहो तो इनके हाथ पैर ठीक कर
    दे पर एक आध से क्या होगा ! मेरे को चढी नही
    है , होशोहवास में कह रहा हूँ की पुरे , जी हाँ पुरे
    कुँए में ही भांग पडी है !

    ReplyDelete
  19. अनुराग जी आपने कहानी के रूप में सच बयां किया है | डम्बर प्रताप जैसे लोग तो आजकल हर गली कूचे में मिल जायेंगे !

    जन्माष्टमी कि हार्दिक शुभकामनाएं !!!

    ReplyDelete
  20. बहुत मर्मस्पर्शी हकीक़त बयान की है आपने ! यह सच्चाई आज भी उत्तर प्रदेश के तमाम मशहूर स्थानों पर अपने तमाम लावलश्कर और चमचों के साथ बखूबी जिंदा है ! लगता कोई सच्ची कहानी बयां कर रहे हो ! शुभकामनाओं के साथ धन्यवाद !

    ReplyDelete
  21. व्यंग्य अच्छा है और प्रासंगिक भी .

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।