मुग़ल बादशाह की फौज के लिए भर्ती चल रही थी। वैसे तो काम सेनाध्यक्षों और मित्र राजाओं की देखरेख में चल रहा था मगर बीच-बीच में बादशाह ख़ुद भी आकर देख-परख जाते थे। एक सहयोगी राजा साहब की सिफारिश के साथ आए दो सूरमा भर्ती से पहले बादशाह से आमने-सामने बात करना चाहते थे।
मुलाक़ात तय हुई तो पता लगा कि दोनों वीर बादशाह की नौकरी तो करेंगे मगर कुछ सम्माननीय शर्तों के साथ। एक शर्त यह भी थी कि उनकी तनख्वाह उनकी मर्जी से ही तय हो। और उनकी मर्जी उस समय के हिसाब से काफी ज्यादा थी। रकम सुनकर बादशाह को कुछ आश्चर्य हुआ। उसने इतने अधिक पैसे लेने का कारण जानना चाहा।
"हुज़ूर, कह कर बताएं या कर के दिखाएँ," उनमें से एक वीर ने पूछा।
"कहने से करना भला," बादशाह ने सोचा, "हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या"
"करके ही देख लेते हैं - दूध का दूध, पानी का पानी हो जायेगा। "
फ़िर क्या था, बादशाह की सहमति होते ही दोनों वीरों ने अपनी-अपनी तलवार निकाली। जब तक बादशाह को कुछ समझ आता दोनों ने एक झटके में एक दूसरे का सर उड़ा दिया।
खेल खतम,पैसा हजम ...
मुलाक़ात तय हुई तो पता लगा कि दोनों वीर बादशाह की नौकरी तो करेंगे मगर कुछ सम्माननीय शर्तों के साथ। एक शर्त यह भी थी कि उनकी तनख्वाह उनकी मर्जी से ही तय हो। और उनकी मर्जी उस समय के हिसाब से काफी ज्यादा थी। रकम सुनकर बादशाह को कुछ आश्चर्य हुआ। उसने इतने अधिक पैसे लेने का कारण जानना चाहा।
"हुज़ूर, कह कर बताएं या कर के दिखाएँ," उनमें से एक वीर ने पूछा।
"कहने से करना भला," बादशाह ने सोचा, "हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या"
"करके ही देख लेते हैं - दूध का दूध, पानी का पानी हो जायेगा। "
फ़िर क्या था, बादशाह की सहमति होते ही दोनों वीरों ने अपनी-अपनी तलवार निकाली। जब तक बादशाह को कुछ समझ आता दोनों ने एक झटके में एक दूसरे का सर उड़ा दिया।
खेल खतम,पैसा हजम ...
वाह भाई सच्चे वीर थे, सर्वोच्च तल पूरी तरह खाली रख छोड़ा था।
ReplyDeleteप्रेरक और प्रभावशाली प्रस्तुति.
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आगे भी पढने की चाह बनी रहेगी.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
जितनी तनख्वाह के योग्य थे, अन्तत उतनी उन्हे मिली! :)
ReplyDeleteप्रभावशाली लेखन ! और जिस चीज ( धन या हीरा) के लिए दोनों की जान गयी उस धन या हीरे को पता ही नही की दो जान उसकी चाह में कुर्बान हो चुकी हैं ! मित्र, लक्ष्मी की माया है ! इस कहानी की याद दिलाने के लिए आपका परम धन्यवाद ! ये सब पढ़ कर हम अपनी
ReplyDeleteऔकात में आ जाते हैं !
इस कहानी के लिए तिवारी साहब का आपको सलाम !
ReplyDeleteज्ञान वर्धक और शिक्षा लेने वाली कहानी है !
ReplyDeleteवाकई बड़े वीर थे .....दिलचस्प है.
ReplyDeleteप्रेरणादायक कहानी ।
ReplyDeleteसटीक..दिलचस्प!!
ReplyDelete:))
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है. सस्नेह
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणादायक कहानी है !!
ReplyDeleteइस कहानी का सार
ReplyDeleteयही है कि,
जिसका जीवन के प्रति
जैसा द्रष्टिकोण होगा
वह इस कथासे
वही सार ग्रहण करेगा !
- यही खूबी है !
बढिया प्रस्तुति रही ! :)
- लावण्या
बढ़िया है !
ReplyDeleteये तो ऐसा ही हुआ कि जहर को चख कर जाना कि जहर है !!
ReplyDeleteऐसे ही योद्धाओं के बारे में मुसलिम इतिहासकारों ने लिखा था कि राजपूत मरना जानते हैं,लड़ना नहीं.तभी तो हम हजार सालों तक गुलाम रहे.अच्छी और प्रेरणाप्रद कथा है.
ReplyDeleteप्रेरणादायक कथा। धन का लोभ विवेक भ्रष्ट कर देता है। आभार।
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