आज रक्षाबंधन जैसा महत्वपूर्ण त्यौहार भाई बहन के रिश्ते तक सिमटकर रह गया है। सच ही है, वर्षों की गुलामी ने हमें दूसरों के मामलों से कन्नी काटना सिखाया है। अनेक आक्रमणों के बाद जब हमारी व्यवस्था का पतन हो गया तो देश-धर्म और संस्कृति की रक्षा जैसी चीज़ें प्रचलन से बाहर (आउट ऑफ फैशन) हो गयीं। तथाकथित वीरों की जिम्मेदारियाँ भी सिकुड़कर बहुत से बहुत अपनी बहन की रक्षा तक ही सीमित रह गयीं। कोई आश्चर्य नहीं कि बहुत से अंचलों में वीर शब्द का अर्थ भी सिमटकर भाई तक ही सीमित रह गया। इन बोलियों में वीरा या वीर जी आज भाई का ही पर्याय है।ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात।
संध्यावंदन (1931) से साभार |
बचपन में मैंने देखा था कि हमारे समुदाय में शासक के नाम की राखी कृष्ण भगवान् को बांधी जाती थी। राम जाने किस राजा के समय से यह परम्परा शुरू हुई परन्तु कभी तो ऐसा हुआ जब यथार्थ शासक को धार्मिक रूप से अमान्य कर के सिर्फ़ श्री कृष्ण को ही धर्म पालक राजा के रूप में स्वीकार किया गया। शायद किसी आतताई मुग़ल शासक के समय में या ब्रिटिश शासन में ऐसा हुआ होगा।
भविष्य पुराण के अनुसार पहली बार इन्द्र की पत्नी शची ने देवासुर संग्राम में विजय के उद्देश्य से अपने पति को रक्षा बंधन बांधा था जिसके कारण देव अजेय बने रहे थे। एक वर्ष बाद उसकी काट के लिए असुरों के विद्वान् गुरु शुक्राचार्य ने भक्त प्रहलाद के पौत्र असुरराज बलि को दाहिने हाथ में रक्षा बांधी थी। पुरोहित आज भी रक्षा या कलावा/मौली आदि बांधते समय इसी घटना को याद करते हुए निम्न मन्त्र पढ़ते है:
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल
बाकी बातें बाद में क्योंकि कुछ ही देर में मुझे एक स्थानीय रक्षा बंधन समारोह में राखी बंधाने के लिए निकलना है।
आपने अति सुन्दरतम जानकारी रक्षाबंधन के
ReplyDeleteविषय में दी है ! भाई शब्द को भी दिशा दी है !
धन्यवाद !
आशा है स्थानीय राखी समारोह में आपने बहनों
से रक्षा कवच धारण करके जेब को यथासम्भव
हलकी करवा ली होगी ! :) माफ़ करें .. आज कल यहाँ तो मायने बदल गए हैं और इस त्योंहार को भी मार्केटिंग वालों ने माल कल्चर में बदल दिया
है !
आपने अति सुन्दरतम जानकारी रक्षाबंधन के
ReplyDeleteविषय में दी है ! भाई शब्द को भी दिशा दी है !
धन्यवाद !
आशा है स्थानीय राखी समारोह में आपने बहनों
से रक्षा कवच धारण करके जेब को यथासम्भव
हलकी करवा ली होगी ! :) माफ़ करें .. आज कल यहाँ तो मायने बदल गए हैं और इस त्योंहार को भी मार्केटिंग वालों ने माल कल्चर में बदल दिया
है !
bahut badhiya,gyanvardhak aur saamayik lekhan ki badhai
ReplyDeleteबेहद रोचक, किंतु सत्य.
ReplyDeleteमेरे पिता संस्क्रुत के प्रकांड विद्वान है, उनने पढ कर आपको आशिर्वाद दिया है.
आप विदेश में भी रह कर अपने देश की परंपरा एवं संस्क्रुति को नही भूलें है, साथ में उसे जन मानस तक पहुचाने के लिये प्रयासरत है. साधुवाद!!
bahut badiya accha laga ..likhte rahiye
ReplyDeleteआज इस प्रकार के लेख, आपके देश में ही लोग भूल गए हैं ! आप दूर बैठकर भी अपनी संस्कृति याद किए बैठे हो ! आपको प्रणाम !
ReplyDeletehamarey yahan aaj bhii kabhi khaali haath nahi rehtey..sadaa laal kalava bandhtey hain..post bahut achii lagi aapki..
ReplyDeleteआपने अच्छी जानकारी दी है,एक ज्ञानवर्धक लेख के लिये धन्यवाद,बहुत से ऎसे लोग भी है जो नही जानते रक्षाबन्धन के मायने,यह भी सच है आज बस यह सिमट कर भाई-बहन के रिश्ते तक रह गया है,रानी पद्मिनी की कहानी भी इसी में आती है.जब उसने रक्षार्थ मुघल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी थी...
ReplyDeleteक्षमा करें भईया किंचित विलंब के बाद टिप्पणी के लिए ।
ReplyDeleteबडे भाई हम तो आपको रक्षा सूत्र बांध रहे हैं और गुनगुना रहे हैं
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामsभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
आपके आर्शिवाद का आकांक्षी .......
बहुत ही सुन्दर भाव हे, बहुत अच्छी जान कारी दी हे आप ने, धन्यवाद
ReplyDeleteआप तो यू.एस.ए. में
ReplyDeleteरहकर भी हिन्दी और
भारतीय चेतना का
प्रसार कर रहे हैं.
बधाई.============
डा.चन्द्रकुमार जैन
jake aaiye fir baat karten hain
ReplyDeleteसादर अभिवादन नीतीश जी
ReplyDeleteआपकी इस सशक्त रचना के लिए बधाई
चलिए , अभी एक गीत मैने अपने ब्लॉग पे डाला ही उसकी कुछ पंक्तियाँ भेज रहा हूँ
देखिएगा
तुम कभी मायूस मत होना किसी हालात् में
हम चलेंगे ' आखिरी दम तक ' तुम्हारे साथ में
है अँधेरा आज थोड़ा सा अगर तो क्या हुआ
आ गयी कुछ देर को मुश्किल डगर तो क्या हुआ
दर्द के बादल जरा सी देर में छँट जायेंगे
कल तुम्हारी राह के पत्थर सभी हट जायेंगे
चाहते हो जो तुम्हें सब कुछ मिलेगा देखना
हर कली हर फूल कल फ़िर से खिलेगा देखना
फ़िर महकने - मुस्कुराने सी लगेगी जिंदगी
फ़िर खुशी के गीत गाने सी लगेगी जिंदगी
घोर तम हर हाल में हरना तुम्हारा काम है
"दीप "हो तुम रौशनी करना तुम्हारा काम है
पीर की काली निशा है आख़िरी से दौर में
अब समय ज्यादा नहीं है जगमगाती भोर में
देख लो नजरें उठाकर ,साफ दिखती है सुबह
देख लो अब जान कितनी सी बची है रात में
तुम कभी मायूस मत होना किसी हालात् में
हम चलेंगे ' आखिरी दम तक ' तुम्हारे साथ में
आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा मे
डॉ . उदय 'मणि'
http://mainsamayhun.blogspot.com
(मेरे ब्लॉग पे भी आपका सहृदय स्वागत है , और यदि आपको ब्लॉग समर्थ और सार्थक लगे तो इसे अपनी ब्लॉग लिस्ट मे शामिल कीजिए अतिप्रसन्नता होगी ..)
विदेश में रहते हुए भी आप भारतीय संस्कृति से इतना जुडाव रखते हैं,इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं.आपको सादर अभिनंदन.लेख बहुत ही रोचक एवम सारगर्भित था,धन्यवाद.
ReplyDeleteविदेश में रहते हुए भी आप भारतीय संस्कृति से इतना जुडाव रखते हैं,इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं.आपको सादर अभिनंदन.लेख बहुत ही रोचक एवम सारगर्भित था,धन्यवाद.
ReplyDeleteविदेश में रहते हुए भी आप भारतीय संस्कृति से इतना जुडाव रखते हैं,इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं.आपको सादर अभिनंदन.लेख बहुत ही रोचक एवम सारगर्भित था,धन्यवाद.
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteरोचक और अच्छी जानकारी जानकारी.
सोचने का विषय है भाई ......अब तो घड़ी से लेकर मोबाइल वाले भी इस त्यौहार को भुनाते है....
ReplyDeleteइन्द्र शचि / पति पत्नी से चलकर आज भाई बहन और
ReplyDeleteपुरोहित की रक्षा मौलि बँधन की यात्रा रोचक रही अनुराग भाई !
- लावण्या
बहुत ही अच्छा लेख!
ReplyDeleteयह मंत्र तो बहुत बार सुना लेकिन इसका अर्थ पता नहीं था।
ReplyDeleteआप हमें क्यों बहुत अच्छे लगते हैं ? ज्ञान वर्धन करते रहिये
ReplyDeleteमैं इस आलेख को उन लोगों लो जरूर पढ़वाउंगी जिन्होंने मेरे इसी तरह के विश्लेषण पर काफी आपत्ति जताई थी । धन्यवाद इस आवश्यक और ज्ञानवर्धक लेख के लिए ।
ReplyDeleteजय हो...
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