Thursday, August 7, 2008

गड़बड़झाला

कोई जकड़ा ही रहता है,
कोई सब छोड़ जाता है।

कोई कुछ न समझता है,
कोई सबको समझाता है।

कोई करुणा का सागर है,
कोई हर पल सताता है।

कोई हर रोज़ मरता है,
शहादत कोई पाता है।

कोई तो प्यार करता है,
कोई करके जताता है।

कोई बस भूल जाता है,
कोई बस याद आता है।

मैं ऐसा हूँ या वैसा हूँ,
समझ मुझको न आता है।

फरिश्ता कोई कहता था,
कोई जालिम बताता है।

(अनुराग शर्मा)

16 comments:

  1. बहुत बेहतरीन..वाह!!

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  2. अच्छी बातोँ का साँमजस्य लिये
    कविता पसँद आई !
    -~~ लावण्या

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  3. सुंदर भावों की सुंदर कविता

    ...अनुराग जी आपने मेरे ई मेल का जवाब नही दिया मिला था या नही ?

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  4. farishta koi kehta tha, koi jaalim batata hai. sunder

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  5. कोई कुछ भी कहे, चिन्‍ता मत कीजिए । दो पंक्तियां शायद बात स्‍पष्‍ट करें -
    किस-किस का हम मुंह पकडेंगे, लाख जबानें चलती हैं ।
    जो जितना पुजता है दुनिया, उस पर ज्‍यादा जलती है ।।

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  6. वाह.
    सुंदर गीत है.
    पढ़ कर अच्छा लगा.

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  7. परम यथार्थवादी कविता है ! इसे कहते
    हैं एक ही सिक्के के दो पहलू ! जैसे दिन
    और रात ! बहुत शुक्रिया इस गड़बड़ झाला
    के लिए !

    ताऊ का हाल आपने पूछा ! धन्यवाद ! ताऊ
    की बहुत दुर्गति करी ताई नै ! ताऊ अभी अभी
    लौटे हैं ! पूरे ब्यौरे के लिए थोडा सा इंतजार
    कीजिये ! ताऊ के लिए पोस्ट तैयार किया जा
    रहा है ! दोस्तों ने सारी कसर निकाल ली !

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  8. बढ़िया लिखा है। कोई मनुष्य या व्यक्ति कह दे तो बहुत होगा।
    घुघूती बासूती

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  9. कंट्रास्ट खूब है कविता में।

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  10. गागर में सागर है

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  11. इस कोई से
    हमें भी
    मिलवा दो।

    कोई करता
    है सब कुछ
    समझ आता
    है अब कुछ।

    - अविनाश वाचस्‍पति

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  12. बहुत ही सुन्दर ,शव्दो को सुन्दर रुप दिया हे आप ने धन्यवाद एक अच्छी कविता के लिये

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  13. सुंदर कविता है। आभार।

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  14. कोई हर रोज़ मरता है,
    शहादत कोई पाता है।
    बहुत सच्ची बात कही आपने अनुराग भाई !!!!!!!!

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  15. बेहतरीन कविता

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