(अनुराग शर्मा)
मेरे घर में मैं नहीं हूँ
बैठे हैं अनजाने लोग
मैं हूँ इक गुमनाम यहाँ
पर ये हैं जाने-माने लोग
दुख में परिजन साथ नहीं हैं
सब हैं बिन पहचाने लोग
झूठी हमदर्दी के बहाने
आए दिल को जलाने लोग
उसका जिक्र किये जाते हैं
मेरे दिल की न जाने लोग।
मेरे घर में मैं नहीं हूँ
बैठे हैं अनजाने लोग
मैं हूँ इक गुमनाम यहाँ
पर ये हैं जाने-माने लोग
दुख में परिजन साथ नहीं हैं
सब हैं बिन पहचाने लोग
झूठी हमदर्दी के बहाने
आए दिल को जलाने लोग
उसका जिक्र किये जाते हैं
मेरे दिल की न जाने लोग।
ऐसे भाव रखने वाले हर पोस्ट के साथ मैं सही निर्णय नही कर पा रहा हू..... इसे अच्छा कहू या बुरा..... ये बुरा है तो हमलोग भी इमानदारी से प्रयास नही कर रहे हैं उनसे मिलने की....
ReplyDeleteआप की रचना पढ़ कर जगजीत सिंह जी की गयी ग़ज़ल
ReplyDelete"आए हैं समझाने लोग
हैं कितने दीवाने लोग
वक्त पे काम नहीं आते
ये जाने पहचाने लोग"
याद आगयी...आपकी रचना कमाल की है...बहुत खूब.
नीरज
झूठी हमदर्दी के बहाने
ReplyDeleteआए दिल को जलाने लोग
उसका जिक्र किये जाते हैं
मेरे दिल की न जानें लोग।
आज कल के माहोल में ढली यह सही लगी मुझे ..नीरज जी ने सही कहा वह गजल मुझे भी याद आ गई इसको पढ़ कर
bahut hi achhi rachna.....
ReplyDeleteघर में मैं नहीं हूँ
ReplyDeleteबैठे हैं अनजाने लोग
दुख में स्वजन साथ नहीं हैं
पर हैं बिन पहचाने लोग
झूठी हमदर्दी के बहाने
आए दिल को जलाने लोग
उसका जिक्र किये जाते हैं
मेरे दिल की न जानें लोग। ,
भई पूरी की पूरी कविता इतनी शानदार है की मुझे
तो मेरे प्रिय सतसैया ही याद आ रहे हैं ! मित्र आप
तो रोज एक तीर ऐसा ही मारा करो ! बहुत बहुत
शुभकामनाएं और धन्यवाद !
बढ़िया रचना है...छोटी किंतु अपनी बात कहने में समर्थ.
ReplyDeleteमेरे घर में मैं नहीं हूँ
ReplyDeleteबैठे हैं अनजाने लोग
बहुत सुन्दर रचना, सच हे जब सच्ची हमदर्दी नहो,प्यार ना हॊ तो ऎसा ही लगता हे,आप ने छोटी सी कविता मे बहुत बडी बात कह दी.धन्यवाद
झूठी हमदर्दी के बहाने
ReplyDeleteआए दिल को जलाने लोग
उसका जिक्र किये जाते हैं
मेरे दिल की न जानें लोग।
सब लोगो ने पहले से ही बहुत कुछ कह दिया है......बस दिल से लिखिए..ओर मस्त रहिये.....
katu satya ko sundar shabdon me kaha aapne.
ReplyDeleteअगली कविता में आप के दिल की कहिएगा। हम बैठे हैं जानने को।
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteबहुत खूब!!
कविता बहुत अच्छी है...
ReplyDeleteकई दिनों से कुछ गद्य पढने में नही आया आपका... कब लिखेंगे?
झूठी हमदर्दी के बहाने
ReplyDeleteआए दिल को जलाने लोग
उसका जिक्र किये जाते हैं
मेरे दिल की न जानें लोग।
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।