कई बरस पहले की बात है, दफ्तर में इंजिनियर की एक खाली जगह के लिए इन्टरव्यू चल रहे थे। एक भारतीय नौजवान भी आया। नाम से ही पता लग गया कि उत्तर भारतीय है। उत्तर भारत में स्थित एक सर्वोच्च श्रेणी के प्रतिष्ठान् से पढा हुआ था। सो ज़हीन ही होगा।
उस दिन शहर में बारिश हो रही थी। कहते हैं कि पिट्सबर्ग में सूरज पूरे साल में सिर्फ़ १०० दिन ही निकलता है। शायद उन रोशन दिनों में से अधिकाँश में हम छुट्टी बिताने भारत में होते हैं। हमने तो यही देखा कि जब बादल नहीं होते हैं तो बर्फ गिर रही होती है। श्रीमती जी खांसने लगी हैं, लगता है थोड़ी ज्यादा ही फैंक दी हमने। लेकिन इतना तो सच है कि यहाँ बंगलोर जितनी बारिश तो हो ही जाती है।
अपना परिचय देते हुए अपने देश के उज्जवल भविष्य से हाथ मिलाने में हमें गर्व का अनुभव हुआ। हालांकि, भविष्य की बेरुखी से यह साफ़ ज़ाहिर था कि गोरों के बीच में एक भारतीय को पाकर उन्हें कुछ निराशा ही हुई थी। उन्होंने मुझे अपना नाम बताया, "ऐन-किट ***।" मुझे समझ नहीं आया कि मुझ जैसे ठेठ देसी के सामने अंकित कहने में क्या बुराई थी।
इस संक्षिप्त परिचय के बाद अपना गीला सूट झाड़ते हुए वह टीम के गोरे सदस्यों की तरफ़ मुखातिब होकर अंग्रेजी में बोले, "क्या पिट्सबर्ग में कभी भी बरसात हो जाती है? हमारे इंडिया में तो बरसात का एक मौसम होता है, ये नहीं कि जब चाहा बरस गए।"
मैं चुपचाप खड़ा हुआ सोच रहा था कि पिट्सबर्ग में कितनी भी बरसात हो जाए वह सर्वाधिक वर्षा का विश्व रिकार्ड बनाने वाले भारतीय स्थान "चेरापूंजी" का मुकाबला नहीं कर सकता है। क्या हमारे पढ़े लिखे नौजवानों के "इंडिया" को कानपुर या दिल्ली तक सीमित रहना चाहिए?
उस दिन शहर में बारिश हो रही थी। कहते हैं कि पिट्सबर्ग में सूरज पूरे साल में सिर्फ़ १०० दिन ही निकलता है। शायद उन रोशन दिनों में से अधिकाँश में हम छुट्टी बिताने भारत में होते हैं। हमने तो यही देखा कि जब बादल नहीं होते हैं तो बर्फ गिर रही होती है। श्रीमती जी खांसने लगी हैं, लगता है थोड़ी ज्यादा ही फैंक दी हमने। लेकिन इतना तो सच है कि यहाँ बंगलोर जितनी बारिश तो हो ही जाती है।
अपना परिचय देते हुए अपने देश के उज्जवल भविष्य से हाथ मिलाने में हमें गर्व का अनुभव हुआ। हालांकि, भविष्य की बेरुखी से यह साफ़ ज़ाहिर था कि गोरों के बीच में एक भारतीय को पाकर उन्हें कुछ निराशा ही हुई थी। उन्होंने मुझे अपना नाम बताया, "ऐन-किट ***।" मुझे समझ नहीं आया कि मुझ जैसे ठेठ देसी के सामने अंकित कहने में क्या बुराई थी।
इस संक्षिप्त परिचय के बाद अपना गीला सूट झाड़ते हुए वह टीम के गोरे सदस्यों की तरफ़ मुखातिब होकर अंग्रेजी में बोले, "क्या पिट्सबर्ग में कभी भी बरसात हो जाती है? हमारे इंडिया में तो बरसात का एक मौसम होता है, ये नहीं कि जब चाहा बरस गए।"
मैं चुपचाप खड़ा हुआ सोच रहा था कि पिट्सबर्ग में कितनी भी बरसात हो जाए वह सर्वाधिक वर्षा का विश्व रिकार्ड बनाने वाले भारतीय स्थान "चेरापूंजी" का मुकाबला नहीं कर सकता है। क्या हमारे पढ़े लिखे नौजवानों के "इंडिया" को कानपुर या दिल्ली तक सीमित रहना चाहिए?
बिल्कुल सही कहा आपने.. हालाँकि अब चेरापूंजी का स्थान किसी और जगह ने ले लिया है.. अभी नाम याद नही आ रहा
ReplyDeleteमेरे खयाल से ये " एन कीट " अपने किसी मँथन मेँ उलझा हुआ व्यक्ति लगा -
ReplyDeleteभारतीय , कई तरह के हैँ !
..ये , सीमित व्यक्तित्त्व वाले होँगे -
- लावण्या
jo ankit se en-kit ho jaye,jiske Bharat India ho jaye use desh ka bhugol aur itihaas ka kya pata,accha aur jwalant sawaal hai,shayad ye bhi ek karan hai bhartiyata ke kamzor hone ka.achhi post.
ReplyDelete"ऐन-किट ***" जैसे नौजवानो के मन में
ReplyDeleteशायद अभी भी हीन भावना वाली ग्रंथि
है ! और आपने वाक़या बिल्कुल ऐसा
सुनाया है की जिसे अभी अभी कोई
ये हरकत कर के गया हो ! बहुत
बढिया ! धन्यवाद !
एन-किट कहने से भारतीयता कमजोर हो जाती है और बुनियादी शिक्षा भारत की जनता के पैसे से पाने के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था में पहले योगदान देने से मजबूत होती है?अमेरिकी झण्डे के नीचे,उसकी कसम खाने के बाद !
ReplyDeleteबहरहाल 'एन-किट' से ज्यादा व्यावहारिक उसी शहर में था जिसका नाम मानिए 'बालसुब्रमण्यम'था- उसका नाम मरिकी न बिगाड़ें इसलिए वह कहता था -Call me Jack.
अच्छा दृष्टान्त
ReplyDeleteकृपया मेरी ट्प्पणी में 'पहले' के बाद 'से' जोड़ कर पढ़ें ।
ReplyDelete- अफ़लातून
एन किट उन्हें शायद अंकित से ज्यादा बेहतर लगा होगा :) जैसा देश वैसा नाम पर यकीन रखते होंगे वह शायद :)
ReplyDeleteअब क्या कहूं?? लगता है उन्होंने आपकी "मैं एक भारतीय" पोस्ट पढ़ ली होगी... तभी तो जैसा देस,वैसा भेस....
ReplyDeleteखैर, एन-किट जैसे लोगों से मैं भी १-२ बार मिल चुकी हूँ....
ऐसा लगा जैसे अभी अभी कोई मेरे सामने से सूट झाड़ता हुआ उठा हो......ऐसे लोगो को मन करता है ठेठ हिन्दी में गाली दो जोर से.....फ़ौरन अपने मोहल्ले में कहाँ नल टपकता था ये सब बता देंगे.....
ReplyDeleteअच्छा-भला नाम है अंकित, लगता है उन सज्जन के दिमाग में किसी कीट का प्रकोप हो गया होगा :)
ReplyDeleteवण्डरफुल! अभिजात्य भारतीयों के नाम का एन्ग्लिसाइज्ड रूपान्तरण करने वाली एक नामावली प्रकाशित की जाये तो बहुत बिके! यह जमात आगे बहुत बढ़ने-फलने-फूलने वाली है! :)
ReplyDeleteएन कीट को नमस्टे कह देना हमारी!!
ReplyDeleteयही है भारत का भविष्य जय हो एन -किट की हुंह !!
ReplyDeleteअरे भाई दुनिया मे क्या सब से ज्यादा एन किट भारत मे हे, मुझे भी बहुत मिलते हे, फ़िर गुस्सा आता हे, जिन्हे हम अपना समझे वोही मि० एन किट बन जाये तो...
ReplyDeleteधन्यवाद एक सच्चाई से रुबरु करबाने के लिये
इसी मानसिकता (नक़ल करने की ) के होते हुए हम अपना स्थान नही बना पाए हैं ! विभिन्न समारोहों में आप जैसे स्मार्ट इंडियन की उपस्थिति ही, और इन घटनाओं पर मात्र मुस्करा भर देने से इन "एन किट" जैसों को शर्म जरूर आएगी !
ReplyDeleteएन-किट को फिर नौकरी मिली क्या?
ReplyDeleteउस जगह तो नहीं मिली थी। :(
Deleteभाई,यकीनन अंकित नाम का यह जीव उल्लू का पट्ठा होगा.
ReplyDeleteसमझ से परे है, यह हीन भावना आती क्यों है?
ReplyDelete